आप पाप को किस दृष्टि से देखते हैं?
“तुझ में कोई पाप नहीं, तुझ में कोई पीड़ा नहीं, तू तो असीम सामर्थ का भंडार है।” यह उक्ति विख्यात हिंदू तत्त्वज्ञानी विवेकानंद ने की जब वह हिंदुओं की पवित्र पुस्तक, भगवद् गीता से एक परिच्छेद समझा रहा था। वेदांत का हवाला देते हुए, वह दावा करता है: “सबसे बड़ी भूल है यह कहना कि तू दुर्बल है, कि तू पापी है।”a
लेकिन, क्या यह सच है कि मनुष्य में कोई पाप नहीं? और यदि जन्म के समय मनुष्य उत्तराधिकार में कुछ पाता है तो वह क्या है? मात्र “शारीरिक लक्षण निर्धारित होते हैं आनुवंशिकता से,” हिंदू स्वामी, निखिलानंद कहता है। दूसरी विशेषताएँ व्यक्ति के “पिछले जन्मों के कर्मों” द्वारा निर्धारित होती हैं। विवेकानंद के अनुसार, “तू ही अपने भाग्य का रचयिता है।” हिंदुत्व वंशागत पाप के बारे में कुछ नहीं सिखाता।
वंशागत पाप की धारणा ज़रतुश्तियों, शिंतो-धर्मियों, कन्फ़्यूशीवादियों, और बौद्ध-धर्मियों के बीच भी नहीं है। यहूदी-मसीही धर्मों में भी, जिन्होंने पारंपरिक रूप से वंशागत पाप का धर्म-सिद्धांत सिखाया है, पाप के प्रति रवैया बदल रहा है। अधिकाधिक लोग आज अपने आपको पापी नहीं समझते।
“आधुनिक सचेतना नैतिक कलंक का समर्थन नहीं करती; विशेषकर, यह आत्म-कलंक का समर्थन नहीं करती,” धर्मविज्ञानी कॉरनीलयस प्लैनटिंगा, जूनियर कहता है। पाप की गंभीरता घटाने का कुछ दोष मसीहीजगत के गिरजों को जाता है। “गिरजे में आपको पाप के बारे में सुनने को नहीं मिलेगा,” ड्यूक युनिवर्सिटी का एक पादरी कहता है। और प्लैनटिंगा के अनुसार, कुछ गिरजे आम तौर पर पाप के बारे में केवल तब बोलते हैं जब सामाजिक मुद्दे अंतर्ग्रस्त होते हैं।
माना कि आजकल ढेरों सामाजिक समस्याएँ हैं। हिंसा, अपराध, युद्ध, नृजातीय कलह, नशीले पदार्थों का दुरुपयोग, बेईमानी, अत्याचार, और बच्चों पर हिंसा व्याप्त है। असल में, २०वीं सदी को अब तक की सबसे खूनी सदियों में गिना गया है। इसमें बीमारी, बुढ़ापे और मृत्यु के फलस्वरूप आयी पीड़ा और कष्ट जोड़िए। कौन नहीं चाहता आज संसार में विद्यमान असंख्य समस्याओं से मुक्ति?
तो फिर, पाप के बारे में आपका दृष्टिकोण क्या है? क्या पाप वंशागत है? क्या हम कभी पीड़ा और कष्ट से स्वतंत्रता पाएँगे? अगले लेख में इन प्रश्नों पर चर्चा की जाएगी।
[फुटनोट]
a वेदांत तत्त्वज्ञान उपनिषदों पर आधारित है, जो हिंदू शास्त्र, वेदों के अंत में आते हैं।