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  • जब पाप नहीं रहेगा
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
w97 7/15 पेज 4-7

जब पाप नहीं रहेगा

“क्या हम पाप में जन्मे हैं?” बाइबल अध्ययन शुरू करने के कुछ ही समय बाद अमरीका में एक कॉलॆज स्नातक छात्र को इस प्रश्‍न ने उलझन में डाल दिया। हिंदू होने के कारण, वंशागत पाप का विचार उसके लिए नया था। लेकिन यदि पाप वास्तव में वंशागत है, उसने तर्क किया, तो उसकी वास्तविकता से इनकार करना या उसे नज़रअंदाज़ करना व्यर्थ होगा। व्यक्‍ति इस प्रश्‍न का उत्तर कैसे पा सकता है?

यदि पाप वंशागत है तो कहीं-न-कहीं उसकी शुरूआत हुई होगी। क्या प्रथम मनुष्य को दुष्ट सृजा गया था, जिससे कि बुरे लक्षण उसके बच्चों में भी आ गए? या क्या दोष बाद में विकसित हुआ? पाप ठीक कब शुरू हुआ? दूसरी ओर, यदि पाप मात्र बाहरी, दुष्ट तत्त्व या सिद्धांत है, तो क्या हम कभी इससे स्वतंत्रता पाने की आशा रख सकते हैं?

हिंदू विश्‍वास के अनुसार, कष्ट और दुष्टता सृष्टि के साथ-साथ चलते हैं। “कष्ट [या दुष्टता],” एक हिंदू विद्वान कहता है, “पुराने गठिया-रोग की तरह बस एक जगह से दूसरी जगह चला जाता है लेकिन पूरी तरह से दूर नहीं किया जा सकता।” पूरे लिखित इतिहास के दौरान दुष्टता निश्‍चित ही मानवजाति के जीवन का हिस्सा रही है। यदि यह मनुष्य के ऐतिहासिक रिकॉर्डों से पहले से है, तो इसके उद्‌गम के बारे में विश्‍वसनीय उत्तर अवश्‍य ही मनुष्य से उच्च स्रोत की ओर से मिलने चाहिए। उत्तर परमेश्‍वर की ओर से मिलने चाहिए।—भजन ३६:९.

मनुष्य—पापरहित सृजा गया

मनुष्य की सृष्टि के बारे में वेदों में दिए गए वर्णन लाक्षणिक हैं, हिंदू तत्त्वज्ञानी निखिलानंद स्वीकार करता है। उसी प्रकार, अधिकतर पूर्वी धर्म सृष्टि के बारे में केवल पौराणिक व्याख्या ही देते हैं। फिर भी, प्रथम मनुष्य की सृष्टि के बारे में बाइबल वृत्तांत पर विश्‍वास करने के तर्कसंगत और वैज्ञानिक कारण हैं।a इसका पहला ही अध्याय कहता है: “तब परमेश्‍वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्‍न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्‍वर ने उसको उत्पन्‍न किया, नर और नारी करके उस ने मनुष्यों की सृष्टि की।”—उत्पत्ति १:२७.

‘परमेश्‍वर के स्वरूप के अनुसार’ सृजे जाने का क्या अर्थ है? मात्र यह: मनुष्य को परमेश्‍वर की समानता में बनाया गया था, उसमें ईश्‍वरीय गुण थे—जैसे न्याय, बुद्धि, और प्रेम—जिनके कारण वह जानवरों से भिन्‍न था। (कुलुस्सियों ३:९, १० से तुलना कीजिए।) इन गुणों ने उसे अच्छा या बुरा करने के बीच चुनाव करने की क्षमता दी, और उसे स्वेच्छाधारी बनाया। प्रथम मनुष्य में उसकी सृष्टि के समय कोई पाप नहीं था, उसके जीवन में कोई दुष्टता या कष्ट नहीं था।

मनुष्य आदम को यहोवा परमेश्‍वर ने यह आज्ञा दी: “तू बाटिका के सब वृक्षों का फल बिना खटके खा सकता है: पर भले या बुरे के ज्ञान का जो वृक्ष है, उसका फल तू कभी न खाना: क्योंकि जिस दिन तू उसका फल खाए उसी दिन अवश्‍य मर जाएगा।” (उत्पत्ति २:१६, १७) आज्ञा मानने का चुनाव करने के द्वारा, आदम और उसकी पत्नी हव्वा अपने रचयिता को स्तुति और महिमा ला सकते थे और पाप से मुक्‍त रह सकते थे। दूसरी ओर, अवज्ञा का काम दिखाता कि वे परमेश्‍वर के सिद्ध स्तरों पर खरे उतरने से चूक गए हैं और यह उन्हें अपरिपूर्ण—पापी—बना देता।

आदम और हव्वा को ईश्‍वरीय-रूप में नहीं बनाया गया था। लेकिन, उनमें कुछ ईश्‍वरीय गुण थे और नैतिक निर्णय करने की क्षमता थी। परमेश्‍वर की सृष्टि होने के कारण, वे पापरहित, अथवा परिपूर्ण थे। (उत्पत्ति १:३१; व्यवस्थाविवरण ३२:४) उनकी सृष्टि ने उस शांति को भंग नहीं किया जो उससे पहले युगों से परमेश्‍वर और विश्‍वमंडल के बीच थी। तो फिर, पाप कैसे आया?

पाप का उद्‌गम

पाप पहले आत्मिक क्षेत्र में हुआ। पृथ्वी और मनुष्य की सृष्टि से पहले, परमेश्‍वर ने अक्लमंद आत्मिक प्राणी—स्वर्गदूत—सृजे थे। (अय्यूब १:६; २:१; ३८:४-७; कुलुस्सियों १:१५-१७) इनमें से एक स्वर्गदूत अपनी सुंदरता और अक्ल पर फूला नहीं समाता था। (यहेजकेल २८:१३-१५ से तुलना कीजिए।) जब परमेश्‍वर ने आदम और हव्वा को यह निर्देश दिया कि बच्चे पैदा करें, तब यह स्वर्गदूत देख सका कि जल्द ही पूरी पृथ्वी धर्मी लोगों से भर जाएगी, और वे सभी परमेश्‍वर की उपासना कर रहे होंगे। (उत्पत्ति १:२७, २८) इस आत्मिक प्राणी की अभिलाषा थी कि उनकी उपासना उसे मिले। (मत्ती ४:९, १०) इस अभिलाषा को बढ़ाने के कारण उसने ग़लत मार्ग अपना लिया।—याकूब १:१४, १५.

एक सर्प के माध्यम से हव्वा से बात करते हुए, इस विद्रोही स्वर्गदूत ने कहा कि भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष से फल खाने की मनाही करने के द्वारा परमेश्‍वर वह ज्ञान रोककर रख रहा था जो हव्वा के पास होना चाहिए। (उत्पत्ति ३:१-५) यह कहना एक घृणापूर्ण झूठ था—पाप का काम था। यह झूठ बोलने के द्वारा, उस स्वर्गदूत ने अपने आपको पापी बना लिया। फलस्वरूप, वह इब्‌लीस, अर्थात्‌ निंदक और शैतान, अर्थात्‌ परमेश्‍वर का विरोधी कहलाने लगा।—प्रकाशितवाक्य १२:९.

शैतान के विश्‍वासोत्पादक तर्क का हव्वा पर प्रतिकूल प्रभाव हुआ। प्रलोभक के शब्दों पर भरोसा करके, उसने अपने आपको बहकावे में आने दिया और वर्जित वृक्ष का फल खा लिया। उसके पति, आदम ने भी उसके साथ वह फल खाया, और इस प्रकार वे दोनों पापी बन गए। (उत्पत्ति ३:६; १ तीमुथियुस २:१४) स्पष्ट है कि परमेश्‍वर की अवज्ञा करने का चुनाव करके, हमारे प्रथम माता-पिता परिपूर्णता के लक्ष्य से चूक गए और अपने आपको पापी बना बैठे।

आदम और हव्वा की संतान के बारे में क्या? बाइबल समझाती है: “एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिये कि सब ने पाप किया।” (रोमियों ५:१२) आनुवंशिकता का नियम प्रभावी हो चुका था। आदम अपने बच्चों को वह नहीं दे सकता था जो उसके पास नहीं था। (अय्यूब १४:४) परिपूर्णता खो देने के कारण, प्रथम दंपति उस समय पापी थे जब उनके बच्चे गर्भ में पड़े। फलस्वरूप, हम सभी ने—कोई अपवाद नहीं है—उत्तराधिकार में पाप पाया है। (भजन ५१:५; रोमियों ३:२३) क्रमशः, पाप ने बस दुष्टता और कष्ट ही उत्पन्‍न किया है। इसके अलावा, इसके कारण हम सभी बूढ़े होते और मर जाते हैं, “क्योंकि पाप की मजदूरी तो मृत्यु है।”—रोमियों ६:२३.

अंतःकरण ‘दोष लगाता’ या ‘निर्दोष ठहराता’ है

प्रथम मानव जोड़े के व्यवहार पर पाप का जो प्रभाव हुआ उस पर भी विचार कीजिए। उन्होंने अपने शरीर के अंग ढाँके और अपने आपको परमेश्‍वर से छिपाने का प्रयास किया। (उत्पत्ति ३:७, ८) इस प्रकार पाप ने उनमें दोष, चिंता, और लज्जा की भावनाएँ डालीं। मानवजाति आज इन भावनाओं से भली-भांति परिचित है।

कौन है जिसने किसी ज़रूरतमंद को दया न दिखाने के कारण बुरा न महसूस किया हो या जिसे ऐसे शब्द कहने के कारण पछतावा न हुआ हो जो कभी नहीं कहे जाने चाहिए थे? (याकूब ४:१७) हमारे अंदर ऐसी व्याकुल करनेवाली भावनाएँ क्यों उठती हैं? प्रेरित पौलुस समझाता है कि ‘व्यवस्था की बातें हमारे हृदयों में लिखी हुई हैं।’ यदि हमारा अंतःकरण कठोर नहीं पड़ा है तो उस व्यवस्था की किसी भी बात का उल्लंघन करना अंदर से अशांत कर देता है। सो अंतःकरण की आवाज़ हम पर “दोष लगाती” या हमें “निर्दोष ठहराती” है। (रोमियों २:१५; १ तीमुथियुस ४:२; तीतुस १:१५) चाहे हमें इसका एहसास होता है या नहीं, हमारे अंदर ग़लत का, पाप का बोध है!

पौलुस अपनी पापमय प्रवृत्तियों को अच्छी तरह जानता था। “जब भलाई करने की इच्छा करता हूं, तो बुराई मेरे पास आती है,” उसने स्वीकार किया। “मैं भीतरी मनुष्यत्व से तो परमेश्‍वर की व्यवस्था से बहुत प्रसन्‍न रहता हूं। परन्तु मुझे अपने अंगों में दूसरे प्रकार की व्यवस्था दिखाई पड़ती है, जो मेरी बुद्धि की व्यवस्था से लड़ती है, और मुझे पाप की व्यवस्था की बन्धन में डालती है।” सो पौलुस ने पूछा: “मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?”—रोमियों ७:२१-२४.

पाप से स्वतंत्रता—कैसे?

“हिंदू परंपरा में, मुक्‍ति,” एक विद्वान कहता है, “बार-बार जन्म और मृत्यु से मुक्‍ति है।” समाधान के रूप में, इसी प्रकार बौद्धधर्म निर्वाण की ओर संकेत करता है, जो बाह्‍य वास्तविकता के प्रति शून्य स्थिति है। वंशागत पाप की धारणा को न समझते हुए, हिंदुत्व अस्तित्त्व से मुक्‍ति मात्र की प्रतिज्ञा करता है।

दूसरी ओर, मुक्‍ति पाने का जो माध्यम बाइबल बताती है उससे पापमय स्थिति का वास्तव में निवारण होगा। यह पूछने के बाद कि वह पाप से कैसे छुड़ाया जा सकता है, प्रेरित पौलुस उत्तर देता है: “अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्‍वर का धन्यवाद।” (रोमियों ७:२५) जी हाँ, छुटकारा परमेश्‍वर की ओर से यीशु मसीह के द्वारा मिलता है।

मत्ती की सुसमाचार-पुस्तक के अनुसार, “मनुष्य का पुत्र,” यीशु मसीह इसलिए आया कि “बहुतों की छुड़ौती के लिये अपने प्राण दे।” (मत्ती २०:२८) जैसा १ तीमुथियुस २:६ (NW) में अभिलिखित है, पौलुस ने लिखा कि यीशु ने “अपने आपको सब के लिए समतुल्य छुड़ौती के रूप में दे दिया।” शब्द “छुड़ौती” बंधुओं के छुटकारे के लिए दाम देने को सूचित करता है। यह तथ्य कि यह समतुल्य छुड़ौती है न्याय की तुला के पलड़ों को बराबर करने में इस मूल्य के महत्त्व पर ज़ोर देता है। लेकिन कैसे एक मनुष्य की मृत्यु “सब के लिए समतुल्य छुड़ौती” समझी जा सकती है?

आदम ने पूरी मानवजाति को, जिसमें हम भी सम्मिलित हैं, पाप और मृत्यु में बेच दिया। इसके मूल्य, या दण्ड स्वरूप उसने अपना परिपूर्ण मानव जीवन खो दिया। उसे वापस पाने के लिए, एक और परिपूर्ण मानव जीवन—समतुल्य छुड़ौती—दिए जाने की ज़रूरत थी। (निर्गमन २१:२३; व्यवस्थाविवरण १९:२१; रोमियों ५:१८, १९) क्योंकि कोई अपरिपूर्ण मनुष्य यह छुड़ौती नहीं दे सकता था, परमेश्‍वर ने अपनी असीम बुद्धि का प्रयोग कर, इस दुःखद स्थिति से निकालने के लिए एक रास्ता खोला। (भजन ४९:६, ७) उसने अपने एकलौते पुत्र के परिपूर्ण जीवन को स्वर्ग से पृथ्वी पर एक कुँवारी के गर्भ में स्थानांतरित किया, और उसे एक परिपूर्ण मनुष्य के रूप में जन्म लेने दिया।—लूका १:३०-३८; यूहन्‍ना ३:१६-१८.

मनुष्यजाति को छुटकारा देने का काम पूरा करने के लिए, यीशु को पृथ्वी पर अंत तक खराई रखनी थी। ऐसा उसने किया। फिर उसकी बलिदान-रूपी मृत्यु हुई। इस तरह यीशु ने यह निश्‍चित किया कि एक परिपूर्ण मानव जीवन—स्वयं उसके जीवन—का मूल्य छुड़ौती के रूप में देने के लिए उपलब्ध हो ताकि मानवजाति को छुटकारा मिल सके।—२ कुरिन्थियों ५:१४; १ पतरस १:१८, १९.

मसीह की छुड़ौती हमारे लिए क्या कर सकती है

यीशु का छुड़ौती बलिदान हमें अभी लाभ पहुँचा सकता है। उसमें विश्‍वास करने के द्वारा, हम परमेश्‍वर के सम्मुख शुद्ध स्थिति का आनंद ले सकते हैं और यहोवा की प्रेममय और कोमल छाया में आ सकते हैं। (प्रेरितों १०:४३; रोमियों ३:२१-२४) अपने पापों के कारण दोष-भावना में डूबने के बजाय, हम छुड़ौती के आधार पर बिना हिचकिचाए परमेश्‍वर से क्षमा माँग सकते हैं।—यशायाह १:१८; इफिसियों १:७; १ यूहन्‍ना २:१, २.

आनेवाले दिनों में, छुड़ौती से यह संभव होगा कि पाप के कारण हुई मानवजाति की रोगग्रस्त अवस्था पूरी तरह ठीक की जाए। बाइबल की अंतिम पुस्तक “जीवन के जल की एक नदी” का वर्णन करती है जो परमेश्‍वर के सिंहासन से निकलकर बहती है। नदी के किनारों पर ढेरों फलदार पेड़ हैं जिनके पत्तों से “जाति जाति के लोग चंगे” होंगे। (प्रकाशितवाक्य २२:१, २) लाक्षणिक रूप से, बाइबल यहाँ सृष्टिकर्ता के उस अद्‌भुत प्रबंध के बारे में बोल रही है जिससे मानवजाति यीशु के छुड़ौती बलिदान के आधार पर सर्वदा के लिए पाप और मृत्यु से मुक्‍त हो जाएगी।

प्रकाशितवाक्य की पुस्तक के भविष्यसूचक दर्शन जल्द ही पूरे होंगे। (प्रकाशितवाक्य २२:६, ७) तब सभी सत्हृदयी लोग परिपूर्ण हो जाएँगे, “विनाश के दासत्व से छुटकारा” पाएँगे। (रोमियों ८:२०, २१) क्या इससे हमें प्रेरित नहीं होना चाहिए कि यहोवा परमेश्‍वर और उसके निष्ठावान पुत्र, छुड़ौती देनेवाले यीशु मसीह के बारे में ज़्यादा सीखें?—यूहन्‍ना १७:३.

[फुटनोट]

a वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित पुस्तक जीवन—यह यहाँ कैसे आया? क्रमविकास से या सृष्टि से? (अंग्रेज़ी), देखिए।

[पेज 6 पर तसवीर]

आदम मानवजाति पर पाप और मृत्यु लाया

[पेज 7 पर तसवीर]

यीशु का छुड़ौती बलिदान पाप और मृत्यु से स्वतंत्रता लाता है

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