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  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
w97 8/15 पेज 2-4

विपत्तियों के समय में बचाए गए

सियोल, कोरिया में पाँच मंज़िला डिपार्टमॆंट स्टोर अचानक गिर पड़ा, जिसमें सैकड़ों लोग दब गए! बचाव दल ने ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को बचाने के लिए रात-दिन एक कर दिया। जैसे-जैसे दिन बीतते गए कंक्रीट और लोहे के ढेर के नीचे दबे अन्य किसी भी व्यक्‍ति को जीवित निकाल पाने की संभावना कम होने लगी।

जब सारी उम्मीदें ख़त्म हो चुकी थीं, तब एक आश्‍चर्यजनक घटना घटी। मलबे के नीचे से एक क्षीण, दर्द-भरी आवाज़ आती सुनी गई। एक १९-वर्षीया स्त्री को, जो पूरे १६ दिनों से ज़िंदा दफ़न थी, निकालने के लिए बचाव-कर्मियों ने अपने ख़ाली हाथों से पागलों की तरह खोदा। एक टूटी हुई लिफ़्ट के खाँचे ने उसके ऊपर एक सुरक्षात्मक ढाल बना दी थी और गिरती हुई टनों कंक्रीट से उसका बचाव किया। हालाँकि उसके शरीर में बुरी तरह पानी की कमी हो गयी थी और वह कट-फट गई थी, तौभी वह मौत के मुँह से बच निकली!

आजकल, किसी आपदा की ख़बर सुने मुश्‍किल से एक महीना भी नहीं गुज़रता। चाहे वह एक भूकंप, एक भयंकर तूफ़ान, एक ज्वालामुखीय विस्फोट, एक दुर्घटना, या एक अकाल ही क्यों न हो। और बचाव और उत्तरजीविता की कहानियाँ उन करोड़ों लोगों को, जो ख़बरों का जायज़ा लेते हैं, चक्कर में डाल देती हैं। लेकिन, एक आनेवाली विपत्ति की चेतावनी को—मानव इतिहास में किसी भी विपत्ति से बड़ी—कुल मिलाकर नज़रअंदाज़ किया गया है। (मत्ती २४:२१) बाइबल इस आनेवाली घटना का इन शब्दों में वर्णन करती है: “देखो, विपत्ति एक जाति से दूसरी जाति में फैलेगी, और बड़ी आंधी पृथ्वी की छोर से उठेगी! उस समय यहोवा के मारे हुओं की लोथें पृथ्वी की एक छोर से दूसरी छोर तक पड़ी रहेंगी। उनके लिये कोई रोने-पीटनेवाला न रहेगा, और उनकी लोथें न तो बटोरी जाएंगी और न कबरों में रखी जाएंगी; वे भूमि के ऊपर खाद की नाईं पड़ी रहेंगी।”—यिर्मयाह २५:३२, ३३.

सनसनीखेज़ शब्द! लेकिन प्राकृतिक आपदाओं और दुर्घटनाओं के विपरीत, यह विपत्ति एक अंधाधुंध जनसंहार नहीं होगी। दरअसल, उत्तरजीविता—आपकी उत्तरजीविता—संभव है!

अत्यावश्‍यकता का एक समय

इस सच्चाई को पूरी तरह समझने के लिए, एक व्यक्‍ति को यह समझने की ज़रूरत है कि यह विश्‍वव्यापी विपत्ति आख़िर क्यों आएगी। दरअसल, मानवजाति की समस्याओं का यही एकमात्र सच्चा समाधान है। आज बहुत कम लोग कुशल और सुरक्षित महसूस करते हैं। विज्ञान के सर्वश्रेष्ठ प्रयासों के बावजूद, संक्रामक रोग पृथ्वी की जनसंख्या को लगातार क्षति पहुँचा रहे हैं। धार्मिक, जनजातीय, और राजनैतिक मतभेदों के कारण होनेवाली लड़ाइयाँ हज़ारों की तादात में जानें लेती हैं। अकाल निर्दोष पुरुषों, महिलाओं, और बच्चों की दुर्दशा और सताहट में इज़ाफ़ा कर देता है। समाज की बुनियाद को नैतिक सड़न की दीमक खा रही है; यहाँ तक कि बच्चों को भी भ्रष्ट किया गया है।

अनोखी यथार्थता के साथ, १,९०० वर्षों से भी पहले लिखी गई एक बाइबल भविष्यवाणी हमारी स्थिति का वर्णन करती है। वह कहती है: “तुम्हें मालूम होना ज़रूरी है कि अंतिम दिनों में ख़तरों से भरा हुआ समय होगा।”—२ तीमुथियुस ३:१, जे. बी. फिलिप्स द्वारा द न्यू टेस्टामेंट इन मॉडर्न इंग्लिश। मत्ती २४:३-२२ से तुलना कीजिए।

क्या यह बात आपको तर्कसंगत लगती है कि एक प्रेममय परमेश्‍वर हमारी दुर्दशा के प्रति उदासीन होगा? बाइबल कहती है: “वही परमेश्‍वर है; उसी ने पृथ्वी को रचा और बनाया, . . . उस ने उसे सुनसान रहने के लिये नहीं परन्तु बसने के लिये उसे रचा है।” (यशायाह ४५:१८) जी हाँ, इस सुंदर ग्रह और इसके लोगों को तबाह होने देने की बजाय, परमेश्‍वर हस्तक्षेप करेगा। सवाल यह है कि वह ऐसा कैसे करेगा?

जीवन को अपनाइए!

बाइबल भजन ९२:७ में जवाब देती है: “दुष्ट जो घास की नाईं फूलते-फलते हैं, और सब अनर्थकारी जो प्रफुल्लित होते हैं, यह इसलिये होता है, कि वे सर्वदा के लिये नाश हो जाएं।” पृथ्वी की समस्याओं के लिए परमेश्‍वर का समाधान है दुष्टता ही का विनाश। ख़ुशी की बात है कि इसका यह अर्थ नहीं कि सभी लोगों के विनाश की ज़रूरत है। भजन ३७:३४ हमें आश्‍वस्त करता है: “यहोवा की बाट जोहता रह, और उसके मार्ग पर बना रह, और वह तुझे बढ़ाकर पृथ्वी का अधिकारी कर देगा; जब दुष्ट काट डाले जाएंगे, तब तू देखेगा।”

ये शब्द सूचित करते हैं कि मनुष्यजाति पर कभी-भी आनेवाली सबसे बड़ी विपत्ति से बचने का एक अवसर है। परमेश्‍वर ने हमें एक चुनाव दिया है। जिस वक़्त इस्राएली प्रतिज्ञात देश में प्रवेश पाने के लिए तैयार हो रहे थे उस वक़्त जिन शब्दों के साथ मूसा ने उन्हें प्रोत्साहित किया वे आज भी उसी तरह हम पर लागू होते हैं: “मैं ने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिये तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनों जीवित रहें।” (व्यवस्थाविवरण ३०:१९) लेकिन एक व्यक्‍ति कैसे ‘जीवन अपना लेता’ है और बचाया जाता है? सच्चे उद्धार का वास्तव में क्या अर्थ है?

[पेज 2 पर चित्र का श्रेय]

COVER: Explosion: Copyright © Gene Blevins/Los Angeles Daily News

[पेज 3 पर चित्र का श्रेय]

Yunhap News Agency/Sipa Press

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