“अपनी संपत्ति के द्वारा . . . यहोवा की प्रतिष्ठा करना”—कैसे?
“अपनी संपत्ति के द्वारा, और अपनी भूमि की सारी पहिली उपज दे देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना।” क़रीब २,६०० साल पहले लिखे गये, बुद्धि के इन ईश्वरप्रेरित शब्दों में यहोवा की भरपूर आशीष पाने की कुंजी बंद है, क्योंकि लेखक आगे यह बताता है: “इस प्रकार तेरे खत्ते भरे और पूरे रहेंगे, और तेरे रसकुण्डों से नया दाखमधु उमण्डता रहेगा।”—नीतिवचन ३:९, १०.
लेकिन परमेश्वर की प्रतिष्ठा करने का क्या अर्थ है? कौन-सी संपत्ति है जिससे हमें यहोवा की प्रतिष्ठा करनी है? और हम यह कैसे कर सकते हैं?
“यहोवा की प्रतिष्ठा करना”
शास्त्र में, प्रतिष्ठा के लिए मुख्य इब्रानी शब्द, कावोध का आक्षरिक अर्थ है “भारीपन।” सो एक व्यक्ति की प्रतिष्ठा करने का अर्थ है उसे भारी, प्रभावशाली, या महत्त्वपूर्ण समझना। प्रतिष्ठा के लिए एक और इब्रानी शब्द यक़ार, का अनुवाद भी “अनमोल” और “अनमोल वस्तुएँ” किया जाता है। उसी तरह यूनानी शब्द तीमे, जिसे बाइबल में “प्रतिष्ठा” अनुवादित किया गया है, मान, महत्त्व, अमूल्यता का भाव देता है। अतः एक व्यक्ति दूसरे को गहरा आदर और मान देने के द्वारा उसकी प्रतिष्ठा करता है।
प्रतिष्ठा करने का एक और पहलू भी है। विश्वासी यहूदी मोर्दकै के वृत्तांत पर विचार कीजिए, जिसने एक अवसर पर प्राचीन फ़ारस के राजा क्षयर्ष की जान लेने के लिए रचे गये षड्यंत्र का परदाफ़ाश किया। बाद में, जब राजा को पता चला कि उस काम के लिए मोर्दकै की प्रतिष्ठा करने के लिए कुछ नहीं किया गया था, तब उसने अपने प्रधानमंत्री, हामान से पूछा कि जिससे राजा प्रसन्न हुआ हो उसकी प्रतिष्ठा सबसे अच्छी तरह कैसे की जाए। हामान ने सोचा कि ऐसी प्रतिष्ठा उसी के लिए होगी, लेकिन उसे कितनी ग़लतफ़हमी थी! ख़ैर, हामान ने कहा कि ऐसे व्यक्ति को “राजकीय वस्त्र” पहनाया जाना चाहिए और “जिस [घोड़े] पर राजा सवार होता है” उस पर सवारी करायी जानी चाहिए। उसने अंत में कहा: “उस घोड़े पर सवार करके, नगर के चौक में उसे फिराया जाए; और उसके आगे आगे यह प्रचार किया जाए, कि जिसकी प्रतिष्ठा राजा करना चाहता है, उसके साथ ऐसा ही किया जाएगा।” (एस्तेर ६:१-९) इस क़िस्से में, एक व्यक्ति की प्रतिष्ठा करने में सबके सामने उसे उन्नत करना सम्मिलित था ताकि सब लोग उसे बहुत मान दें।
उसी तरह, यहोवा की प्रतिष्ठा करने के दो पहलू हैं: व्यक्तिगत रूप से उसे गहरा आदर देना और उसके नाम की जन उद्घोषणा के काम में हिस्सा लेने और उसका समर्थन करने के द्वारा सबके सामने उसे उन्नत करना।
‘आपकी संपत्ति’ —वह क्या है?
हमारी संपत्ति में निश्चित ही हमारा जीवन, हमारा समय, हमारे कौशल और हमारी शक्ति सम्मिलित है। हमारे भौतिक धन के बारे में क्या? जब यीशु ने एक ज़रूरतमंद विधवा को मंदिर के भंडार में कम मूल्य के दो छोटे सिक्के डालते देखा, तब उसके कहे शब्दों पर विचार कीजिए। उसने कहा: “इस कंगाल विधवा ने सब से बढ़कर डाला है। क्योंकि उन सब [दूसरे दानियों] ने अपनी अपनी बढ़ती में से दान में कुछ डाला है, परन्तु इस ने अपनी घटी में से अपनी सारी जीविका डाल दी है।” (लूका २१:१-४) यहोवा की उपासना को बढ़ाने में अपनी भौतिक संपत्ति इस्तेमाल करने के लिए यीशु ने इस विधवा की प्रशंसा की।
तो फिर स्पष्ट है कि सुलैमान द्वारा उल्लिखित संपत्ति में हमारा भौतिक धन भी सम्मिलित है। और अभिव्यक्ति “अपनी भूमि की सारी पहिली उपज” में यहोवा को अपनी संपत्ति का सबसे उत्तम भाग देने का विचार है।
लेकिन, भौतिक वस्तुएँ देने से यहोवा की प्रतिष्ठा कैसे हो सकती है? क्या सभी वस्तुएँ पहले से ही उसकी नहीं हैं? (भजन ५०:१०; ९५:३-५) “तुझी से तो सब कुछ मिलता है,” यहोवा को एक हार्दिक प्रार्थना में राजा दाऊद ने स्वीकार किया। और जो बड़ा दान उसने और उसकी प्रजा ने मंदिर के निर्माण के लिए दिया था, उसके बारे में दाऊद ने कहा: “हम ने तेरे हाथ से पाकर तुझे दिया है।” (१ इतिहास २९:१४) सो यहोवा को भेंट चढ़ाते समय, हम तो बस वही वापस कर रहे हैं जो उसने अपने हृदय की भलाई से हमें दिया है। (१ कुरिन्थियों ४:७) लेकिन, जैसे पहले बताया गया है, यहोवा की प्रतिष्ठा करने में दूसरों की नज़रों में उसे उन्नत करना सम्मिलित है। और जो भौतिक दान सच्ची उपासना की बढ़ौतरी के लिए इस्तेमाल किया जाता है उससे परमेश्वर की प्रतिष्ठा होती है। बाइबल में इस तरह से यहोवा की प्रतिष्ठा करने के उत्तम उदाहरण हैं।
अतीत से उदाहरण
क़रीब ३,५०० साल पहले, जब यहोवा का समय आया कि इस्राएलियों के लिए वीराने में उपासना के स्थान के रूप में निवासस्थान प्रदान करे, तब तरह-तरह की अनमोल वस्तुओं की ज़रूरत पड़ी जो परमेश्वर-प्रदत्त डिज़ाइन के लिए आवश्यक थीं। यहोवा ने मूसा को आज्ञा दी कि ‘जितने अपनी इच्छा से देना चाहें वे यहोवा के लिए भेंट ले आएं।’ (निर्गमन ३५:५) वृत्तांत आगे बताता है: “जितनों को उत्साह हुआ, और जितनों के मन में ऐसी इच्छा उत्पन्न हुई थी, वे मिलापवाले तम्बू के काम करने और उसकी सारी सेवकाई और पवित्र वस्त्रों के बनाने के लिये यहोवा की भेंट ले आने लगे।” (निर्गमन ३५:२१) असल में, उनका स्वैच्छिक दान काम के लिए जितना चाहिए था उससे कहीं ज़्यादा था, सो लोग “और भेंट लाने से रोके गए”!—निर्गमन ३६:५, ६.
एक और उदाहरण पर विचार कीजिए। जब निवासस्थान का उद्देश्य पूरा हो चुका और मंदिर के निर्माण की तैयारियाँ हो रही थीं, तब दाऊद ने उस मंदिर के लिए अपनी तरफ़ से एक बड़ा दान दिया जो उसका पुत्र सुलैमान बनाता। उसने दूसरों को भी बुलावा दिया कि इसमें हिस्सा लें और लोग भेंटस्वरूप यहोवा के लिए मूल्यवान वस्तुएँ लाए। केवल चाँदी और सोना ही वर्तमान दर पर ५० अरब डॉलर के क़रीब होगा। ‘तब प्रजा के लोग आनन्दित हुए, क्योंकि उन्होंने अपनी अपनी इच्छा से यहोवा के लिये भेंट दी थी।’—१ इतिहास २९:३-९; २ इतिहास ५:१.
हमारे समय में ‘अपनी इच्छा से भेंट’
अपने समय में हम स्वैच्छिक भेंट के आनंद के भागी कैसे हो सकते हैं? इस समय संसार में हो रहा सबसे महत्त्वपूर्ण काम है राज्य प्रचार और शिष्य बनाने का काम। (मत्ती २४:१४; २८:१९, २०; प्रेरितों १:८) और यहोवा ने इसे उचित जाना है कि राज्य की पार्थिव संपत्ति अपने साक्षियों को सौंपे।—यशायाह ४३:१०.
यह स्पष्ट है कि जो काम यहोवा के साक्षी आज कर रहे हैं उसका ख़र्च उठाने के लिए पैसे की ज़रूरत है। राज्य गृह, सम्मेलन गृह, शाखा दफ़्तर, फ़ैक्ट्रियाँ और बॆथॆल घर बनाने और उनका रखरखाव करने में पैसा लगता है। विभिन्न भाषाओं में बाइबल और बाइबल-आधारित प्रकाशनों को प्रकाशित और वितरित करने में भी ख़र्च आता है। ऐसे संगठनात्मक ख़र्चों को कैसे पूरा किया जाता है? ऐसे अंशदानों के द्वारा जो पूरी तरह से स्वैच्छिक हैं!
अधिकतर अंशदान उन व्यक्तियों की ओर से मिलता है जिनके पास—उस विधवा की तरह जिस पर यीशु ने ध्यान दिया—बस थोड़े-बहुत साधन हैं। यहोवा की प्रतिष्ठा करने के इस पहलू से चूकना न चाहते हुए, वे “अपनी सामर्थ भर,” और कभी-कभी तो “सामर्थ से भी बाहर” छोटा-मोटा दान करते हैं।—२ कुरिन्थियों ८:३, ४.
“हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करे; न कुढ़ कुढ़ के, और न दबाव से, क्योंकि परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है,” प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थ के मसीहियों को कहा। (२ कुरिन्थियों ९:७) हर्ष से देने के लिए अच्छी योजना की ज़रूरत है। पौलुस ने कुरिन्थियों से कहा: “सप्ताह के पहिले दिन तुम में से हर एक अपनी आमदनी के अनुसार कुछ अपने पास रख छोड़ा करे, कि मेरे आने पर चन्दा न करना पड़े।” (१ कुरिन्थियों १६:२) उसी तरह, निजी और स्वैच्छिक रूप से, जो लोग आज राज्य कार्य को बढ़ाने के लिए दान करना चाहते हैं वे उस कार्य के लिए अपनी कुछ आमदनी अलग रख सकते हैं।
यहोवा उन्हें आशीष देता है जो उसकी प्रतिष्ठा करते हैं
जबकि भौतिक संपन्नता के कारण अपने आप आध्यात्मिक संपन्नता नहीं आ जाती, फिर भी यहोवा की प्रतिष्ठा करने के लिए अपनी संपत्ति—अपने समय, अपनी शक्ति और अपने भौतिक साधनों—को उदारता से इस्तेमाल करना भरपूर आशीषें लाता है। ऐसा इसलिए है कि सब वस्तुओं का स्वामी, परमेश्वर हमें आश्वस्त करता है: “उदार प्राणी हृष्ट पुष्ट हो जाता है, और जो औरों की खेती सींचता है, उसकी भी सींची जाएगी।”—नीतिवचन ११:२५.
राजा दाऊद की मृत्यु के बाद, उसके पुत्र सुलैमान ने यहोवा के निर्देशानुसार, एक महिमावान मंदिर बनाने के लिए अपने पिता द्वारा एकत्र किये गये स्वैच्छिक दानों को इस्तेमाल किया। और जब तक सुलैमान परमेश्वर की उपासना में विश्वासी रहा, “दान से बेर्शेबा तक के सब यहूदी और इस्राएली . . . सुलैमान के जीवन भर निडर रहते थे।” (१ राजा ४:२५) भंडार भरे हुए थे, दाख के कुंड उमड़ रहे थे—जब तक इस्राएल ने ‘अपनी संपत्ति के द्वारा यहोवा की प्रतिष्ठा की।’
बाद में, भविष्यवक्ता मलाकी के द्वारा यहोवा ने कहा: “सेनाओं का यहोवा यह कहता है, कि ऐसा करके मुझे परखो कि मैं आकाश के झरोखे तुम्हारे लिये खोलकर तुम्हारे ऊपर अपरम्पार आशीष की वर्षा करता हूं कि नहीं।” (मलाकी ३:१०) यहोवा के सेवक आज जिस आध्यात्मिक संपन्नता का आनंद लेते हैं वह इसका प्रमाण है कि परमेश्वर ने अपना वचन निभाया है।
यहोवा निश्चित ही प्रसन्न होता है जब हम राज्य हितों को बढ़ाने में अपना भाग अदा करते हैं। (इब्रानियों १३:१५, १६) और यदि हम ‘पहले परमेश्वर के राज्य और उसकी धार्मिकता की खोज में लगे रहें,’ तो वह हमें सँभालने की प्रतिज्ञा करता है। (मत्ती ६:३३, NHT) ऐसा हो कि हृदय से बड़े आनंदित होकर, हम ‘अपनी संपत्ति से यहोवा की प्रतिष्ठा करें।’
[पेज 28, 29 पर बक्स]
विश्वव्यापी कार्य के लिए कुछ लोग इन तरीक़ों से स्वैच्छिक दान देते हैं
अनेक लोग कुछ धनराशि एक तरफ़ रखते हैं, या बजट करते हैं, जिसे वे उन अंशदान बक्सों में डालते हैं जिन पर लिखा होता है: “संस्था के विश्वव्यापी कार्य के लिए अंशदान—मत्ती २४:१४.” हर महीने कलीसियाएँ इन धनराशियों को या तो ब्रुकलिन, न्यू यॉर्क में विश्व मुख्यालय को या स्थानीय शाखा दफ़्तर को भेज देती हैं।
पैसे के रूप में स्वैच्छिक चंदा भी सीधे Watch Tower Bible and Tract Society of India, H-58, Old Khandala Road, Lonavla, 410 401, Pune Dist., Mah. को या आपके देश में जो संस्था का दफ़्तर है, उसको भेजा जा सकता है। गहने या अन्य मूल्यवान वस्तुएँ भी चंदे के रूप में दी जा सकती हैं। इन अंशदानों के साथ एक संक्षिप्त पत्र भेजा जाना चाहिए जिसमें कहा गया हो कि यह पूर्णतया भेंट है।
शर्तबंद-चंदा व्यवस्था वॉच टावर संस्था को इस विशेष व्यवस्था के अधीन पैसा दिया जा सकता है कि व्यक्तिगत ज़रूरत के समय यह दाता को लौटा दिया जाएगा। अधिक जानकारी के लिए, कृपया संस्था के साथ उपरोक्त पते पर संपर्क कीजिए।
योजनाबद्ध दान पैसों की पूर्णतया भेंटों और पैसों के शर्तबंद-चंदों के अतिरिक्त, विश्वव्यापी राज्य सेवा को लाभ पहुँचाने के लिए दान देने के और भी तरीक़े हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं:
बीमा: वॉच टावर संस्था को जीवन बीमा पॉलिसी या सेवा-निवृत्त/पॆंशन योजना का लाभग्राही बनाया जा सकता है। संस्था को ऐसी किसी भी व्यवस्था के बारे में सूचना दी जानी चाहिए।
बैंक खाते: बैंक खाते, जमा प्रमाण-पत्र, या व्यक्तिगत निवृत्ति खाते, स्थानीय बैंक माँगों के अनुरूप, वॉच टावर संस्था के लिए न्यास में रखे जा सकते हैं या वॉच टावर संस्था को मृत्यु पर देय किए जा सकते हैं। संस्था को ऐसी किसी भी व्यवस्था के बारे में सूचना दी जानी चाहिए।
शेयर और ऋणपत्र: शेयर और ऋणपत्र वॉच टावर संस्था को पूर्णतया भेंटस्वरूप या ऐसी एक व्यवस्था के अधीन दान दिए जा सकते हैं जिसमें आमदनी पहले की तरह ही दाता को दी जाती है।
भू-संपत्ति: विक्रेय भू-संपत्ति वॉच टावर संस्था को पूर्णतया भेंट करने के द्वारा दी जा सकती है या दाता के लिए आजीवन-संपदा सुरक्षित रखने के द्वारा दान की जा सकती है, जो वहाँ अपने जीवनकाल के दौरान रह सकता या सकती है। ऐसी किसी भी भू-संपत्ति का संस्था के नाम दानपत्र बनाने से पहले व्यक्ति को संस्था के साथ संपर्क करना चाहिए।
वसीयत और न्यास: संपत्ति या पैसा वॉच टावर संस्था के नाम एक कानूनी तौर पर निष्पादित वसीयत के द्वारा किया जा सकता है, या संस्था को एक न्यास अनुबंध पत्र का लाभग्राही बनाया जा सकता है। किसी धार्मिक संगठन को लाभ पहुँचानेवाले एक न्यास से करों में कुछ लाभ मिल सकते हैं। वसीयत या न्यास अनुबंध पत्र की एक प्रति संस्था को भेजी जानी चाहिए।
जो लोग ऐसी किसी भी योजनाबद्ध दान व्यवस्थाओं में दिलचस्पी रखते हैं उन्हें ऊपर दिए गए पते पर संस्था से संपर्क करना चाहिए, या उन्हें अपने ही देश में जो संस्था का दफ़्तर है, उससे संपर्क करना चाहिए। इनमें से किसी भी व्यवस्था के बारे में संबंधित दस्तावेज़ों की एक प्रति संस्था को दी जानी चाहिए।