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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1997
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उन्होंने ‘सच्चाई को मोल लिया’!

“सच्चाई को मोल लेना, बेचना नहीं।” (नीतिवचन २३:२३) बुद्धिमान पुरुष सुलैमान ने यह प्रोत्साहन दिया। जबकि यह बात आम तौर पर सच्चाई के लिए कही जा सकती है, यह ख़ासकर तब लागू होती है जब परमेश्‍वर के वचन, बाइबल में पायी जानेवाली सच्चाई की बात आती है। ऐसी सच्चाई अनंत जीवन की ओर ले जा सकती है! (यूहन्‍ना १७:३, १७) लेकिन, ध्यान दीजिए कि ऐसी सच्चाई को पाने के लिए क़ीमत अदा करनी पड़ती है। एक व्यक्‍ति को इसे “मोल” लेने के लिए, यानी उसे पाने के लिए किसी चीज़ का त्याग करने या उसे छोड़ देने के लिए तैयार होना चाहिए। (मत्ती १३:४५, ४६ से तुलना कीजिए।) आम तौर पर, लोग ऐसा करने के लिए तैयार नहीं होते। लेकिन अनेक देशों में, ऐसे साहसी व्यक्‍तियों की संख्या बढ़ रही है जो बाइबल सच्चाई को मोल लेते हैं—और अकसर उन्हें बहुत बड़ी क़ीमत चुकानी पड़ती है।

उदाहरण के लिए पश्‍चिम अफ्रीकी देश, घाना के यहोवा के साक्षियों को लीजिए। जून १९८९ तक, उस देश में ३४,००० से ज़्यादा ऐसे व्यक्‍ति थे जिन्होंने बाइबल की सच्चाई को अपनाया था और दूसरों के साथ इसे बाँटने में सक्रिय थे। फिर सार्वजनिक प्रचार कार्य पर कानूनी प्रतिबंध लगा दिया गया। फिर भी, सच्चे दिल के लोगों ने कानूनी अड़चनों के बावजूद भी “सच्चाई को मोल लेना” जारी रखा। अक्‍तूबर ३१, १९९१ के दिन प्रतिबंध हटा दिया गया और उसके हटाए जाने के सिर्फ़ साढ़े तीन साल बाद, यानी १९९५ के मध्य भाग तक घाना में यहोवा के सक्रिय साक्षियों की संख्या बढ़कर ४६,१०४ हो गयी थी! और इस साल यह संख्या बढ़कर ५२,८०० से ज़्यादा हो गयी है।

किस बात ने लोगों को परमेश्‍वर के वचन की सच्चाई की ओर आकर्षित किया है? कुछ लोगों को ‘सच्चाई मोल लेने’ के लिए कौन-से त्याग करने पड़े हैं? जवाब में, आइए हम तीन घानावासी मसीहियों के अनुभव देखें।

बाइबल शिक्षाओं से आकर्षित

आइए पहले एक युवती की ओर ध्यान दें, जो २० पार कर चुकी है। उसका पिता एक पादरी था, फिर भी उसने अपने पिता के धर्म को छोड़ने का चुनाव किया। इसका कारण? सच्चाई के लिए उसका प्रेम।

उसने एक बार बताया: “साक्षी जब घर-घर भेंट करने जाते तो हमारे घर पर भी आया करते थे। उनके साथ की गयी चंद चर्चाओं के बाद, मुझे एहसास हुआ कि उनकी शिक्षाओं का ठोस आधार बाइबल है। मैंने त्रियेक, नरकाग्नि, आत्मा के अमरत्व और ख़ासकर विश्‍वास-चंगाई जैसे विषयों पर सवाल पूछे। मेरा पक्का विश्‍वास था कि ये धर्म-सिद्धांत बाइबल से हैं। लेकिन साक्षियों ने मुझे यह समझने में मदद दी कि ऐसी बात नहीं है।”—इन विषयों पर बाइबल के दृष्टिकोण की झलक के लिए, कृपया मरकुस १३:३२; रोमियों ६:२३; प्रेरितों १०:४०; और १ कुरिन्थियों १३:८-१० देखिए।

उस युवती ने आगे कहा: “फिर भी मेरे परिवार ने, ख़ासकर मेरे पिताजी ने कड़ा विरोध किया। उन्हें लगा कि मैं गुमराह की जा रही हूँ। लेकिन, मैं जानती थी कि यहोवा के साक्षियों से मैं जो सीख रही थी वह सच्चाई थी। मैंने अपने पिताजी को बाइबल से ये बातें बतानी चाहीं, लेकिन उन्होंने मेरी एक न सुनी। असल में, विरोध और बढ़ गया।

“लेकिन मैंने हार नहीं मानी। मैं जानती थी कि केवल सच्चा ज्ञान ही परादीस में अनंत जीवन की ओर ले जाता है, और मैंने निश्‍चय किया था कि इस ज्ञान को हाथ से जाने न दूँगी। जब वहाँ के साक्षियों ने सुना कि मैं किन समस्याओं का सामना कर रही हूँ, तो उन्होंने प्रेम से मेरी मदद की, मेरी हिम्मत बँधायी और जिन चीज़ों की मुझे निहायत ज़रूरत थी वो मुझे दीं। इस व्यवहार से, यूहन्‍ना १३:३५ में पाए जानेवाले यीशु के शब्द मेरे मन में घर कर गए: ‘यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।’ मेरा यह विश्‍वास और मज़बूत हो गया कि यहोवा के साक्षी सच्चे धर्म का पालन करते हैं। बाद में, जब मेरे माता-पिता ने देखा कि मैंने अपने जीवन में बदलाव किया है और पहले से बेहतर हो गयी हूँ, तो उन्होंने जो देखा वह उन्हें पसंद आया, और मेरी ओर उनका रवैया बदल गया—इस हद तक कि मेरे पिता ने साक्षियों से मेरे बड़े भाई के साथ बाइबल का अध्ययन करने के लिए कहा!”

खुद को सच्चाई साबित करके दिखाना

“सच्चाई को मोल लेना” कुछ ऐसे युवाओं के लिए भी चुनौती है जिन्हें साक्षी माता-पिता ने पाल-पोसकर बड़ा किया है। कुछ युवा बड़ी आसानी से बाइबल की सच्चाई को तुच्छ समझने लगते हैं। अगर वे इन सच्चाइयों को अपनाने से चूक जाते हैं, तो अकसर उनका विश्‍वास कमज़ोर और ऊपरी हो जाता है। (मत्ती १३:२०, २१ से तुलना कीजिए।) घाना का नथान्येल नामक एक व्यक्‍ति, जो ३० पार कर चुका है, बताता है कि कैसे उसने बचपन में ही ‘सच्चाई को मोल लिया।’

“मेरे माता-पिता ने मुझे बाल-अवस्था से ही बाइबल सिखायी थी,” वह याद करता है। “जैसे-जैसे मैं बड़ा हो रहा था, मैं उनके साथ प्रचार कार्य के लिए जाता था, लेकिन मैंने असल में यह निर्णय नहीं किया था कि मैं एक साक्षी बनूँगा। कुछ समय बाद, मुझे एहसास हुआ कि मुझे खुद बाइबल की जाँच करनी चाहिए।

“पहले-पहल, मुझे खुद को यह विश्‍वास दिलाना था कि कोई और पवित्र धर्म-ग्रंथ नहीं, बल्कि बाइबल परमेश्‍वर का वचन है। व्यक्‍तिगत अध्ययन के ज़रिए, मैंने जाना कि यह एकमात्र पवित्र किताब है जिसमें ऐसी ढेरों स्पष्ट भविष्यवाणियाँ हैं जो यथार्थता से पूरी हुईं। मैंने यह भी जाना कि बाइबल में अनेक वैज्ञानिक सच्चाइयाँ हैं—मसलन, कि पृथ्वी ‘बिना टेक लटकी रहती है।’ (अय्यूब २६:७) हमारे सौर मंडल को वैज्ञानिक जान पाते, उससे हज़ारों साल पहले ये शब्द लिखे गए थे। केवल परमेश्‍वर मनुष्यों को ऐसी बातें लिखने के लिए प्रेरित कर सकता था!a

“इसके बाद, मैं यह पता लगाना चाहता था कि कौन-सा धार्मिक संगठन, बाइबल में सिखायी गयी सच्चाइयाँ सिखाता है और उन पर चलता है। अधिकांश धर्मों में नरकाग्नि, त्रियेक, और मृत्यु के बाद जीवित रहनेवाली अमर आत्मा के बारे में सिखाया जाता है। लेकिन ये धर्म-सिद्धांत मेरी समझ से परे थे। मैं सोचता था: अपने बच्चे को सज़ा देने के लिए खौलते पानी के पतीले में उसका हाथ डालनेवाला पिता क्या दुष्ट नहीं होगा? तो फिर, प्रेम का परमेश्‍वर कैसे अपने बच्चों को जलते नरक में डालकर उन्हें दुःख दे सकता है? लेकिन, यहोवा के साक्षी जो सिखाते हैं वह रोमियों ६:२३ जैसे बाइबल के पाठों से मेल खाता है, जो कहता है: ‘पाप की मजदूरी तो मृत्यु है’—कोई जलता हुआ नरक नहीं। यह बात मेरी समझ में आ रही थी।

“मैंने यह भी देखा कि यहोवा के साक्षी यह माँग करते हैं कि उनके सभी सदस्य बाइबल के दर्जों के अनुसार जीएँ और वे ऐसे सभी लोगों का बहिष्कार कर देते हैं जो बिना पश्‍चाताप किए पाप करना जारी रखते हैं। इन सब बातों को ध्यान में रखकर, मैं इस निर्णय पर पहुँचा कि यहोवा के साक्षियों के पास सच्चाई है, और मैंने उनका एक भाग बनने का निजी निर्णय लिया। मैंने कड़ी मेहनत की ताकि एक साक्षी बनने के लिए बपतिस्मा लेने के योग्य बनूँ।”—१ कुरिन्थियों ५:११-१३.

नथान्येल का अनुभव इस बात का अच्छा उदाहरण है कि मसीही माता-पिता द्वारा पाले-पोसे गए युवाओं को भी “सच्चाई को मोल लेना” है। उन्हें बस नाममात्र के लिए कलीसिया सभाओं में उपस्थित नहीं होना चाहिए। प्राचीन बिरीयावासियों की तरह, उन्हें ‘प्रति दिन पवित्र शास्त्रों में ढूंढ़ते रहना चाहिए कि ये बातें योंहीं हैं, कि नहीं।’ (प्रेरितों १७:११) इसमें समय और मेहनत लगती है, लेकिन इसका परिणाम पक्का विश्‍वास और निश्‍चय हो सकता है।—इफिसियों ३:१७-१९ से तुलना कीजिए।

झूठे धर्म से निराश

गॉडविन नामक एक घानावासी पुरुष लगभग ७० साल का था जब उसने प्रॆसबिटेरियन चर्च और मेसोनिक सभास्थान से नाता तोड़ लिया। “चर्च में ऐसे काम हो रहे थे जो मुझे बुरे लगे,” गॉडविन कहता है। “उदाहरण के लिए, अंदरूनी कलह बहुत थी और यह अब भी चल रही है। कभी-कभी तो शांति और व्यवस्था क़ायम करने के लिए पुलिस को आना पड़ता था! मैं सोचता था कि मसीह के चेलों के लिए यह उचित बात नहीं थी। फिर एक प्रॆसबिटेरियन साथी और मेरे बीच समस्या उत्पन्‍न हुई। एक सार्वजनिक अदालत ने मुक़दमा सुना और दूसरे व्यक्‍ति को दोषी ठहराया। लेकिन, चर्च के पादरी ने अनुचित ही इस व्यक्‍ति का पक्ष लिया और सारी कलीसिया के सामने मेरी निंदा करने की कोशिश की! मैंने इस मामले के बारे में अपने विचार उसे साफ़-साफ़ बता दिए और फिर कभी लौटकर न आने के लिए चर्च से बाहर निकल गया।

“कुछ समय बीता, और यहोवा के साक्षी मेरे घर आए। शुरूआत में, मैंने उनकी बात सिर्फ़ इसलिए सुनी क्योंकि मैं परमेश्‍वर के बारे में बात करनेवाले लोगों को ठुकराना नहीं चाहता था। लेकिन मैंने यह देखना शुरू किया कि दशकों तक एक प्रॆसबिटेरियन रहने के बावजूद, बाइबल के बारे में मुझे बहुत सी बातें पता नहीं थीं। उदाहरण के लिए, मुझे पहले पता नहीं था कि बाइबल पृथ्वी पर परादीस में सदा जीने की आशा देती है।b और जब मैंने यहोवा के साक्षियों की सभाओं में जाना शुरू किया, तो उनके अच्छे व्यवहार, और ख़ासकर उनके युवाओं के पहनावे और बाल बनाने के तरीक़े ने मुझे बहुत ज़्यादा प्रभावित किया। ये वो लोग थे जो सचमुच बाइबल सिद्धांतों के अनुसार जीते थे!”

फिर भी, ‘सच्चाई मोल लेने’ के लिए उसे अपने जीवन में कुछ कष्टदायक परिवर्तन करने पड़े। गॉडविन याद करता है: “मैं एक मेसोनिक सभास्थान का सदस्य था। और हालाँकि यह एक मित्रवत्‌ समाज के रूप में जाना जाता है जो अपने सदस्यों की मदद करता है, फिर भी मैंने ऐसी विधियों का पालन किया जिनमें खोपड़ियों और हड्डियों का इस्तेमाल होता था और आत्माओं को बुलाया जाता था। कहते हैं ये आत्माएँ उनसे संपर्क करनेवालों को आध्यात्मिक रूप से विकसित होने में मदद करती हैं।

“मेरे अध्ययन से मुझे यह समझने में मदद मिली कि यहोवा परमेश्‍वर प्रेतात्मवाद के साथ किसी भी प्रकार के संबंध से बहुत ही घृणा करता है क्योंकि इससे एक व्यक्‍ति पर शैतान और उसकी दुष्ट आत्मिक सेना का प्रभाव हो सकता है।c क्या मैं रहस्यवादी मेसोनिक सभास्थान का सदस्य रहूँगा, या क्या मैं उसे छोड़कर यहोवा को प्रसन्‍न करूँगा? मैंने दूसरे क़दम का चुनाव किया। मैंने फ्रीमेसन का अपना सारा सामान निकालकर नष्ट कर दिया, यहाँ तक कि सभास्थान की सभाओं के लिए जिस सूट का मैं इस्तेमाल करता था उसे भी नष्ट कर दिया। मैंने यीशु की प्रतिज्ञा की सच्चाई का अनुभव किया जब उसने कहा, ‘सत्य तुम्हें स्वतंत्र करेगा’! (यूहन्‍ना ८:३२) अब मैं ख़ुशी-ख़ुशी दूसरों के साथ वे बातें बाँट रहा हूँ जिन्हें मैंने सीखा है। मुझे कोई पछतावा नहीं है।”

‘सच्चाई मोल लेने’ के लिए सच्चे दिल के हज़ारों लोगों ने इसी तरह बड़े-बड़े त्याग किए हैं। यहाँ जिन तीन मसीहियों के बारे में बताया गया है, उनकी तरह इन्हें भी अपने परिवर्तनों पर कोई पछतावा नहीं है। बाइबल की सच्चाई ने उन्हें “आगे के लिये एक अच्छी नेव” दी है, “[ता]कि [वे] सत्य जीवन को वश में कर लें।” (१ तीमुथियुस ६:१९) वह “सत्य जीवन” और उसके साथ आनेवाली सभी आशीषें सदा के लिए आपकी भी हो सकती हैं अगर आप ‘सच्चाई मोल लें।’

[फुटनोट]

a अधिक जानकारी के लिए, वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित किताब बाइबल—परमेश्‍वर का वचन या मनुष्य का वचन? (अंग्रेज़ी) देखिए।

b उदाहरण के लिए, भजन ३७:९-११, २९ देखिए।

c व्यवस्थाविवरण १८:१०-१२ और गलतियों ५:१९-२१ देखिए।

[पेज 9 पर तसवीर]

नथान्येल

[पेज 9 पर तसवीर]

गॉडविन

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