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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—1998
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ईश्‍वरशासन के अधीन रहिए

“यहोवा हमारा न्यायी, यहोवा हमारा व्यवस्था देनेवाला और यहोवा हमारा राजा है।”—यशायाह ३३:२२, NHT.

१. हर आदमी सरकार के बारे में क्यों सोचता है?

सरकार एक ऐसा मसला है जिसके बारे में हर आदमी सोचता है। अच्छी सरकार शांति और खुशहाली लाती है। बाइबल कहती है: “राजा न्याय से देश को स्थिर करता है।” (नीतिवचन २९:४) दूसरी तरफ, अगर सरकार अच्छी न हो तो बेइंसाफी, भ्रष्टाचार और ज़ुल्म बढ़ जाते हैं। “जब एक दुष्ट मनुष्य शासन करता है तो लोग कराह उठते हैं।” (नीतिवचन २९:२, NHT) इंसानों ने आज तक कई किस्म की सरकारों को आज़माया है, मगर दुःख की बात यह है कि राज करनेवालों के ज़ुल्म की वज़ह से उन्हें अकसर ‘कराहना’ पड़ा है। (सभोपदेशक ८:९) क्या किसी किस्म की सरकार अपने लोगों को सदा के लिए सुख-चैन दिलाने में कामयाब हो सकेगी?

२. शब्द “ईश्‍वरशासन” इस्राएल की सरकार पर एकदम सही क्यों बैठता है?

२ इतिहासकार जोसीफस ने एक अनोखे किस्म की सरकार का ज़िक्र किया, उसने लिखा: “कुछ लोगों ने सारी सत्ता राजाओं के हवाले छोड़ दी, कुछ ने किसी दल के हवाले, तो किसी ने जनता को यह अधिकार दिया। लेकिन, हमें व्यवस्था सौंपनेवाले [मूसा] पर इनमें से किसी भी किस्म की सरकार का कोई असर नहीं पड़ा। लेकिन उसने अपनी कानून-व्यवस्था को वह रूप दिया जिसे, नए शब्दों में, ‘ईश्‍वरशासन’ कहा जा सकता है जिसमें सारी सत्ता और अधिकार परमेश्‍वर के हाथों में होता है।” (अगेन्स्ट एपीयन, II, १६४-५) कंसाइस ऑक्सफर्ड डिक्शनरी के मुताबिक, ईश्‍वरशासन का मतलब है “परमेश्‍वर द्वारा चलायी जा रही सरकार।” शब्द ईश्‍वरशासन बाइबल में नहीं पाया जाता है, लेकिन प्राचीन इस्राएल की सरकार पर यह शब्द एकदम सही बैठता है। हालाँकि इस्राएल पर इंसान राज्य करते थे फिर भी उनका असली राजा यहोवा था। इस्राएली भविष्यवक्‍ता यशायाह ने कहा: “यहोवा हमारा न्यायी, यहोवा हमारा व्यवस्था देनेवाला और यहोवा हमारा राजा है।”—यशायाह ३३:२२, NHT.

असली ईश्‍वरशासन क्या है?

३, ४. (क) असली ईश्‍वरशासन क्या है? (ख) जल्द ही, ईश्‍वरशासन से मनुष्यों को कौन-सी आशीषें मिलेंगी?

३ जब से जोसीफस ने यह शब्द ईजाद किया है, तब से कई राष्ट्रों को ईश्‍वरशासन कहा गया है। मगर देखा जा सकता है कि इनमें से कुछ राष्ट्र कठोर, कट्टरवादी, बेरहम और ज़ुल्मी थे। क्या इन्हें असली ईश्‍वरशासन का नाम दिया जा सकता है? जोसीफस के मुताबिक तो नहीं। समस्या यह है कि शब्द “ईश्‍वरशासन” के और भी अर्थ बताए गए हैं। वर्ल्ड बुक एनसाइक्लोपीडिया इसकी परिभाषा यूँ देती है, “ऐसे किस्म की सरकार जिसमें एक पुजारी-पुरोहित या पुजारी-पुरोहितों का वर्ग राष्ट्र पर शासन करता है और जिसमें पुजारी-पुरोहितों को कानूनी और धार्मिक मामलों में पूरा-पूरा अधिकार होता है।” लेकिन, पुरोहितों की सरकार असली ईश्‍वरशासन नहीं है। असली ईश्‍वरशासन वह है जिसमें इस विश्‍व का सृजनहार, यहोवा परमेश्‍वर सत्ता चलाता है।

४ वह दिन जल्द ही आएगा जब सारी दुनिया में ईश्‍वरशासन होगा और यह कितनी बड़ी आशीष होगी! “परमेश्‍वर आप [मनुष्यों] के साथ रहेगा; और उन का परमेश्‍वर होगा। और वह उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।” (प्रकाशितवाक्य २१:३, ४) पुजारी-पुरोहितों की कोई भी सरकार जो असिद्ध इंसानों से बनी हो ऐसी खुशियाँ नहीं दिला सकती। सिर्फ परमेश्‍वर का शासन ऐसी खुशियाँ दे सकता है। इसलिए सच्चे मसीही राजनैतिक विद्रोह करके ईश्‍वरशासन लाने की कोशिश नहीं करते। वे धीरज धरकर परमेश्‍वर की बाट जोहते हैं कि वह अपने ठहराए हुए समय पर और अपने तरीके से पूरी दुनिया में ईश्‍वरशासन लाए।—दानिय्येल २:४४.

५. असली ईश्‍वरशासन आज कहाँ काम कर रहा है, और इस बारे में कौन-से सवाल पैदा होते हैं?

५ लेकिन, असली ईश्‍वरशासन आज भी काम कर रहा है। कहाँ? उन लोगों के बीच जो दिल से परमेश्‍वर के शासन के अधीन होते हैं और उसकी इच्छा पूरी करने के लिए साथ मिलकर काम करते हैं। इन वफादार लोगों की एक विश्‍वव्यापी आत्मिक “जाति” को उनके आत्मिक “देश” में इकट्ठा किया गया है। ये “परमेश्‍वर के इस्राएल” के शेषजन हैं और इनके साथ पचपन लाख से ज़्यादा इनके मसीही साथी हैं। (यशायाह ६६:८; गलतियों ६:१६) ये लोग स्वर्गीय राजा यीशु मसीह के अधीन हैं जिसे “सनातन राजा” यहोवा परमेश्‍वर ने सिंहासन पर बिठाया है। (१ तीमुथियुस १:१७; प्रकाशितवाक्य ११:१५) किस मायने में यह संगठन एक ईश्‍वरशासन है? इस संगठन के सदस्य राष्ट्र की सरकारों के अधिकार के बारे में क्या सोचते हैं? और इस आध्यात्मिक बिरादरी में अधिकार के पद पर ठहराए हुए लोग किस तरह ईश्‍वरशासन को कायम रखते हैं?

ईश्‍वरशासित संगठन

६. पृथ्वी पर मनुष्यों के किसी संगठन पर परमेश्‍वर का शासन कैसे हो सकता है?

६ मनुष्यों के किसी संगठन पर यहोवा का शासन कैसे हो सकता है जबकि वह तो अनदेखे स्वर्ग में रहता है? (भजन १०३:१९) यह इसलिए हो सका है क्योंकि इस संगठन के सदस्यों ने यह ईश्‍वर-प्रेरित सलाह मानी है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना।” (नीतिवचन २:६; ३:५) वे खुद को परमेश्‍वर के शासन के अधीन करते हैं क्योंकि वे “मसीह की व्यवस्था” पर चलते हैं और बाइबल के ईश्‍वर-प्रेरित उसूलों को अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में लागू करते हैं। (गलतियों ६:२; १ कुरिन्थियों ९:२१; २ तीमुथियुस ३:१६. मत्ती ५:२२, २८, ३९; ६:२४, ३३; ७:१२, २१ देखिए।) ऐसा करने के लिए ज़रूरी है कि वे दिन-रात बाइबल का अध्ययन करें। (भजन १:१-३) पहली सदी के “भले” बिरीयावासियों की तरह, वे मनुष्यों के पीछे नहीं जाते इसके बजाय वे सीखी हुई बातों को हमेशा बाइबल से जाँचते रहते हैं। (प्रेरितों १७:१०, ११; भजन ११९:३३-३६) भजनहार की तरह वे बिनती करते हैं: “मुझे भली विवेक-शक्‍ति और ज्ञान दे, क्योंकि मैं ने तेरी आज्ञाओं का विश्‍वास किया है।”—भजन ११९:६६.

७. ईश्‍वरशासन में अधिकार का ढाँचा क्या है?

७ हर संगठन में, अधिकार रखनेवाले या अगुवाई करनेवाले कुछ लोग होते हैं। यहोवा के साक्षी अलग नहीं हैं और वे अधिकार के उस ढाँचे को मानते हैं जिसके बारे में प्रेरित पौलुस ने बताया: “हर एक पुरुष का सिर मसीह है: और स्त्री का सिर पुरुष है: और मसीह का सिर परमेश्‍वर है।” (१ कुरिन्थियों ११:३) इसके मुताबिक, सिर्फ काबिल भाई कलीसिया में प्राचीनों के रूप में सेवा करते हैं। हालाँकि “हर एक पुरुष का सिर” यानी यीशु स्वर्ग में है, फिर भी उसके अभिषिक्‍त भाइयों के “शेष” लोग अब भी इस पृथ्वी पर मौजूद हैं। और ये स्वर्ग में यीशु के साथ शासन करने की आशा रखते हैं। (प्रकाशितवाक्य १२:१७; २०:६) इन सभी शेष लोगों से “विश्‍वासयोग्य और बुद्धिमान दास” वर्ग बनता है। मसीही इस “दास” की निगरानी के अधीन रहकर यीशु और उसके सिर यहोवा के प्रति अपनी अधीनता दिखाते हैं। (मत्ती २४:४५-४७; २५:४०) इस तरह ईश्‍वरशासन में व्यवस्था होती है। “परमेश्‍वर गड़बड़ी का नहीं, परन्तु शान्ति का कर्त्ता है।”—१ कुरिन्थियों १४:३३.

८. मसीही प्राचीन, ईश्‍वरशासन के सिद्धांत को कैसे मानते हैं?

८ मसीही प्राचीन इसलिए ईश्‍वरशासन के सिद्धांत को मानते हैं क्योंकि उन्हें एहसास है कि अपने सीमित अधिकार को भी इस्तेमाल करने के लिए उन्हें यहोवा को लेखा देना होगा। (इब्रानियों १३:१७) और फैसले करते वक्‍त वे अपनी नहीं बल्कि परमेश्‍वर की समझ का सहारा लेते हैं। ऐसा करने में वे यीशु के नक्शेकदम पर चलते हैं, जो इस दुनिया का सबसे बुद्धिमान मनुष्य था। (मत्ती १२:४२) इसके बावजूद, उसने यहूदियों को बताया: “पुत्र आप से कुछ नहीं कर सकता, केवल वह जो पिता को करते देखता है।” (यूहन्‍ना ५:१९) प्राचीन भी दाऊद जैसा नज़रिया रखते हैं। उस समय के ईश्‍वरशासन में उसने बड़े अधिकार का इस्तेमाल किया। फिर भी, वह अपने तरीके के मुताबिक नहीं बल्कि यहोवा के तरीके के मुताबिक चलना चाहता था। उसने बिनती की: “हे यहोवा, मुझे अपना मार्ग सिखा, . . . समतल पथ पर मेरी अगुवाई कर।”—भजन २७:११, NHT.

९. ईश्‍वरशासन में अलग-अलग आशाओं और अलग-अलग सेवा के अधिकारों के बारे में समर्पित मसीहियों का कौन-सा संतुलित नज़रिया है?

९ कुछ लोगों ने इस बात पर एतराज किया है कि क्या कलीसिया में सिर्फ भाइयों का अधिकार चलाना सही है और क्या यह सही है कि कुछ लोगों को स्वर्ग की आशा है जबकि दूसरों को सिर्फ पृथ्वी की। (भजन ३७:२९; फिलिप्पियों ३:२०) लेकिन, समर्पित मसीही यह समझते हैं कि ये सारे प्रबंध परमेश्‍वर के वचन में बताए गए हैं। ये प्रबंध परमेश्‍वर की ओर से हैं। और इन पर एतराज करनेवाले आम तौर पर वही लोग होते हैं जो बाइबल के उसूलों को नहीं मानते। इसके अलावा, मसीही जानते हैं कि जहाँ तक उद्धार की बात है वहाँ यहोवा की नज़रों में पुरुष और स्त्री दोनों बराबर हैं। (गलतियों ३:२८) सच्चे मसीहियों के लिए इससे बड़ा सम्मान और कोई नहीं हो सकता कि वे विश्‍व के महाराजाधिराज की उपासना करते हैं और यहोवा उन्हें जैसा भी काम देता है वे उसे सिर आँखों पर रखते हैं। (भजन ३१:२३; ८४:१०; १ कुरिन्थियों १२:१२, १३, १८) और फिर अनंत जीवन चाहे स्वर्ग में हो चाहे परादीस पृथ्वी पर, वाकई एक बेहतरीन आशा है।

१०. (क) योनातन ने किस तरह एक बढ़िया गुण दिखाया? (ख) आज मसीही, योनातन जैसा नज़रिया कैसे दिखाते हैं?

१० इस बात में यहोवा के साक्षी परमेश्‍वर का भय माननेवाले योनातन की तरह हैं जो राजा शाऊल का बेटा था। योनातन वाकई एक अच्छा राजा साबित होता। लेकिन, शाऊल के वफादार न रहने की वज़ह से यहोवा ने इस्राएल का अगला राजा बनने के लिए दाऊद को चुना। क्या इस बात से योनातन जलन से भर गया? नहीं। वह दाऊद का जिगरी दोस्त बन गया, यहाँ तक कि उसने दाऊद को शाऊल से भी बचाया। (१ शमूएल १८:१; २०:१-४२) उसी तरह पृथ्वी पर जीने की आशा रखनेवाले स्वर्ग की आशा रखनेवालों से नहीं जलते। और सच्चे मसीही, कलीसिया में ईश्‍वरशासनिक अधिकार चलानेवालों से जलन नहीं रखते। इसके बजाय, वे ‘प्रेम के साथ उन को बहुत ही आदर के योग्य समझते’ हैं और अपने आध्यात्मिक भाई-बहनों के लिए उनकी कड़ी मेहनत की कदर करते हैं।—१ थिस्सलुनीकियों ५:१२, १३.

राष्ट्र की सरकारों के बारे में ईश्‍वरशासनिक नज़रिया

११. ईश्‍वरशासन के अधीन रहनेवाले मसीही, राष्ट्र की सरकारों को किस नज़र से देखते हैं?

११ अगर यहोवा के साक्षी परमेश्‍वर के शासन, यानी ईश्‍वरशासन के अधीन हैं तो वे राष्ट्र के शासकों को किस नज़र से देखते हैं? यीशु ने कहा कि उसके चेले इस ‘संसार का [भाग] नहीं’ होंगे। (यूहन्‍ना १७:१६) लेकिन मसीही इस बात को मानते हैं कि वे “कैसर” यानी राष्ट्र की सरकार के कर्ज़दार हैं। यीशु ने कहा कि उन्हें “जो कैसर का है, वह कैसर को; और जो परमेश्‍वर का है, वह परमेश्‍वर को” देना चाहिए। (मत्ती २२:२१) बाइबल कहती है, मानव सरकारें ‘[अपने अपने स्थान पर] परमेश्‍वर की ठहरायी हुई हैं।’ यहोवा, जो सारी प्रभुता और अधिकार का बनानेवाला है, सरकारों को राज्य करने देता है और उनसे उम्मीद करता है कि वे अपनी जनता के साथ भलाई करें। जब सरकारें ऐसा करती हैं तो वे “परमेश्‍वर का सेवक” हैं। मसीही जिस देश में रहते हैं, “[अपने] विवेक के कारण” वहाँ की सरकार के अधीन रहते हैं। (रोमियों १३:१-७) बेशक, अगर सरकार परमेश्‍वर के नियम के विरुद्ध कुछ माँग करती है, तो एक मसीही “मनुष्यों की आज्ञा से बढ़कर परमेश्‍वर की आज्ञा का पालन” करेगा।—प्रेरितों ५:२९.

१२. जब सरकारें मसीहियों को सताती हैं, तब वे किसके नक्शेकदम पर चलते हैं?

१२ जब राष्ट्र की सरकारें सच्चे मसीहियों को सताती हैं तब क्या? तब वे पहली सदी के मसीहियों के नक्शेकदम पर चलते हैं, जिन्होंने कई बार बड़े उपद्रव को सहा। (प्रेरितों ८:१; १३:५०) विश्‍वास की यह परीक्षाएँ ऐसी नहीं थीं जिनके आने की कोई उम्मीद नहीं थी, क्योंकि यीशु ने चिताया था कि ऐसी परीक्षाएँ आएँगी। (मत्ती ५:१०-१२; मरकुस ४:१७) इसके बावजूद पहली सदी के इन मसीहियों ने अपने सतानेवालों से बदला नहीं लिया; न ही मुश्‍किलें आने पर उनका विश्‍वास कमज़ोर हुआ। इसके बजाय, वे यीशु की मिसाल पर चले: “वह गाली सुनकर गाली नहीं देता था, और दुख उठाकर किसी को भी धमकी नहीं देता था, पर अपने आप को सच्चे न्यायी के हाथ में सौंपता था।” (१ पतरस २:२१-२३) जी हाँ, शैतान की चालों को मसीही उसूलों से जीता गया।—रोमियों १२:२१.

१३. यहोवा के साक्षियों ने अपने खिलाफ सताहट और झूठे प्रचार का जवाब कैसे दिया है?

१३ यह आज भी सच है। इस सदी में, तानाशाह शासकों ने यहोवा के साक्षियों को बुरी तरह सताया है—ठीक जैसी यीशु ने भविष्यवाणी की थी। (मत्ती २४:९, १३) कुछ देशों में अधिकारियों को इन सच्चे मसीहियों के खिलाफ कार्यवाही करने पर मजबूर करने के लिए अफवाहें और झूठी खबरें फैलायी जाती हैं। लेकिन, ऐसी “बदनामी” के बावजूद भी साक्षी अपने बढ़िया चालचलन से खुद को परमेश्‍वर के योग्य सेवक साबित करते हैं। (२ कुरिन्थियों ६:४, ८, NHT) जब कभी संभव हो, वे देश के अधिकारियों और अदालतों के सामने अपना मुकदमा पेश करते हैं ताकि अपने बेगुनाह होने का सबूत दे सकें। वे सब लोगों के सामने सुसमाचार की रक्षा करने के लिए हर मौजूद रास्ता इख्तियार करते हैं। (फिलिप्पियों १:७) और फिर, कानून के दायरे में रहकर अपनी पूरी कोशिश कर लेने के बाद वे सबकुछ यहोवा पर छोड़ देते हैं। (भजन ५:८-१२; नीतिवचन २०:२२) अगर ज़रूरत पड़े तो वे पहली सदी के मसीहियों की तरह धार्मिकता की खातिर दुःख उठाने से नहीं डरते।—१ पतरस ३:१४-१७; ४:१२-१४, १६.

परमेश्‍वर की महिमा को पहला स्थान दीजिए

१४, १५. (क) ईश्‍वरशासन के सिद्धांत को माननेवालों के लिए सबसे पहले क्या आता है? (ख) किस मौके पर सुलैमान ने निगरानी के पद पर रहकर नम्रता दिखाने की एक अच्छी मिसाल पेश की?

१४ यीशु ने अपने चेलों को प्रार्थना करना सिखाते वक्‍त सबसे पहले बताया कि यहोवा का नाम पवित्र माना जाए। (मत्ती ६:९) उसी के मुताबिक, जो लोग आज ईश्‍वरशासन के अधीन हैं वे अपनी नहीं बल्कि परमेश्‍वर की महिमा करना चाहते हैं। (भजन २९:१, २) बाइबल बताती है कि पहली सदी में, यही बात उन लोगों के लिए एक ठोकर का कारण थी जिन्होंने यीशु का चेला बनने से इनकार कर दिया था क्योंकि “मनुष्यों की प्रशंसा उन को परमेश्‍वर की प्रशंसा से अधिक प्रिय लगती थी।” (यूहन्‍ना १२:४२, ४३) अपना अभिमान छोड़कर यहोवा को सम्मान देने के लिए सचमुच नम्रता की ज़रूरत होती है।

१५ इस मामले में सुलैमान ने बढ़िया गुण दिखाया। जिस आलीशान मंदिर को सुलैमान ने बनवाया था उसके समर्पण के वक्‍त उसने जो शब्द कहे उनकी तुलना नबूकदनेस्सर के उन शब्दों से कीजिए जो उसने अपने भवन-निर्माण के बारे में कहे थे। घमंड के नशे में चूर होकर, नबूकदनेस्सर ने कहा: “क्या यह बड़ा बाबुल नहीं है, जिसे मैं ही ने अपने बल और सामर्थ से राजनिवास होने को और अपने प्रताप की बड़ाई के लिये बसाया है?” (दानिय्येल ४:३०) इससे बिलकुल अलग, सुलैमान ने अपने महान काम को कोई महत्त्व न देकर नम्रता दिखाते हुए कहा: “क्या परमेश्‍वर सचमुच मनुष्यों के संग पृथ्वी पर वास करेगा? स्वर्ग में वरन सब से ऊंचे स्वर्ग में भी तू नहीं समाता, फिर मेरे बनाए हुए इस भवन में तू क्योंकर समाएगा?” (२ इतिहास ६:१४, १५, १८; भजन १२७:१) सुलैमान ने अपनी बड़ाई नहीं की। वह जानता था कि वह यहोवा का महज़ एक नुमाइंदा है और उसने लिखा: “जब अभिमान होता, तब अपमान भी होता है, परन्तु नम्र लोगों में बुद्धि होती है।”—नीतिवचन ११:२.

१६. अपनी बड़ाई न करके प्राचीन खुद को एक बड़ी आशीष कैसे साबित करते हैं?

१६ इसी तरह मसीही प्राचीन भी अपनी बड़ाई करने के बजाय यहोवा को महिमा देते हैं। वे पतरस की सलाह पर चलते हैं: “यदि कोई सेवा करे, तो उस शक्‍ति से करे जो परमेश्‍वर देता है; जिस से सब बातों में यीशु मसीह के द्वारा, परमेश्‍वर की महिमा प्रगट हो।” (१ पतरस ४:११) प्रेरित पौलुस ने “अध्यक्ष [के पद]” को बड़े रुतबे का पद नहीं बताया बल्कि उसे “भले काम” करने का पद कहा। (१ तीमुथियुस ३:१) प्राचीन सेवा करने के लिए नियुक्‍त हैं, न कि राज करने के लिए। वे परमेश्‍वर के झुंड के सिखानेवाले और चरवाहे हैं। (प्रेरितों २०:२८; याकूब ३:१) नम्र, त्याग करनेवाले प्राचीन एक कलीसिया के लिए बहुत बड़ी आशीष होते हैं। (१ पतरस ५:२, ३) ‘ऐसों का आदर कीजिए’ और यहोवा का शुक्र अदा कीजिए कि उसने इन “अन्तिम दिनों” में ईश्‍वरशासन को कायम रखने के लिए इतने काबिल प्राचीन दिए हैं।—फिलिप्पियों २:२९; २ तीमुथियुस ३:१.

“परमेश्‍वर के सदृश्‍य बनो”

१७. ईश्‍वरशासन के अधीन रहनेवाले लोग किन तरीकों से परमेश्‍वर के सदृश्‍य बनते हैं?

१७ प्रेरित पौलुस उकसाता है: “प्रिय, बालको की नाईं परमेश्‍वर के सदृश्‍य बनो।” (इफिसियों ५:१) जो खुद को ईश्‍वरशासन के अधीन करते हैं वे असिद्ध इंसान होने के बावजूद जहाँ तक हो सके परमेश्‍वर जैसा बनने की कोशिश करते हैं। मिसाल के तौर पर, यहोवा के बारे में बाइबल कहती है: “वह चट्टान है, उसका काम खरा है; और उसकी सारी गति न्याय की है। वह सच्चा ईश्‍वर है, उस में कुटिलता नहीं, वह धर्मी और सीधा है।” (व्यवस्थाविवरण ३२:३, ४) परमेश्‍वर के इन गुणों को दिखाने के लिए मसीही कोशिश करते हैं कि वे भी विश्‍वासयोग्य हों और खरे हों और सही तरह न्याय से काम करें। (मीका ६:८; १ थिस्सलुनीकियों ३:६; १ यूहन्‍ना ३:७) वे उन कामों से दूर रहते हैं जिन्हें संसार में आम समझा जाने लगा है, जैसे अनैतिकता, हवस और लालच। (इफिसियों ५:५) क्योंकि यहोवा के सेवक इंसानों के नहीं बल्कि परमेश्‍वर के दर्जों को मानते हैं, इसीलिए उसका संगठन ईश्‍वरशासित, शुद्ध और सुखदायक है।

१८. परमेश्‍वर का सबसे बड़ा और पहला गुण कौन-सा है, और मसीही यह गुण कैसे दिखाते हैं?

१८ यहोवा परमेश्‍वर का सबसे बड़ा और पहला गुण है प्रेम। प्रेरित यूहन्‍ना कहता है, “परमेश्‍वर प्रेम है।” (१ यूहन्‍ना ४:८) ईश्‍वरशासन का मतलब है परमेश्‍वर का शासन, यानी प्रेम का शासन। यीशु ने कहा: “यदि आपस में प्रेम रखोगे तो इसी से सब जानेंगे, कि तुम मेरे चेले हो।” (यूहन्‍ना १३:३५) इस ईश्‍वरशासित संगठन ने मुश्‍किलों से भरे इन अंतिम दिनों में अनोखा प्रेम दिखाया है। अफ्रीका में जातिसंहार के दौरान, यहोवा के साक्षियों ने सबके लिए प्रेम ज़ाहिर किया, चाहे वे किसी भी जाति के क्यों न थे। भूतपूर्व यूगोस्लाविया में युद्ध के दौरान, जहाँ एक तरफ यहोवा के साक्षी सभी क्षेत्रों में एक दूसरे की मदद कर रहे थे वहीं दूसरे धार्मिक दल कुछ जातियों का सफाया करने में लगे थे। यहोवा का हर साक्षी पौलुस की सलाह को मानने की कोशिश करता है: “सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए। और एक दूसरे पर कृपाल, और करुणामय हो, और जैसे परमेश्‍वर ने मसीह में तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी एक दूसरे के अपराध क्षमा करो।”—इफिसियों ४:३१, ३२.

१९. जो लोग खुद को ईश्‍वरशासन के अधीन करते हैं उन्हें अभी और भविष्य में कौन-सी आशीषें मिलेंगी?

१९ जो लोग खुद को ईश्‍वरशासन के अधीन करते हैं उन्हें बहुत बड़ी आशीषें मिलती हैं। परमेश्‍वर और संगी मसीहियों के साथ उनकी शांति बनी रहती है। (इब्रानियों १२:१४; याकूब ३:१७) उनके जीवन का एक मकसद होता है। (सभोपदेशक १२:१३) वे आध्यात्मिक रूप से सुरक्षित हैं और भविष्य के बारे में उनकी आशा अटल है। (भजन ५९:९) बेशक, वे आनेवाले उस समय का अभी से स्वाद चख रहे हैं जब सारी मनुष्यजाति ईश्‍वरशासन के अधीन होगी। बाइबल कहती है, उस वक्‍त “मेरे सारे पवित्र पर्वत पर न तो कोई दुःख देगा और न हानि करेगा; क्योंकि पृथ्वी यहोवा के ज्ञान से ऐसी भर जाएगी जैसा जल समुद्र में भरा रहता है।” (यशायाह ११:९) वह कितना ही शानदार समय होगा! आज उस ईश्‍वरशासन के अधीन रहकर आइए हम सभी उस आनेवाले परादीस में अपनी जगह बनाएँ।

क्या आप समझा सकते हैं?

◻ असली ईश्‍वरशासन क्या है और आज यह कहाँ पाया जाता है?

◻ मनुष्य अपने जीवन में ईश्‍वरशासन के अधीन कैसे होते हैं?

◻ ईश्‍वरशासन के अधीन लोग किन तरीकों से अपनी नहीं बल्कि परमेश्‍वर की महिमा करते हैं?

◻ ईश्‍वरशासन को माननेवाले परमेश्‍वर के किन गुणों को दिखाते हैं?

[पेज 17 पर तसवीर]

सुलैमान ने अपनी नहीं बल्कि परमेश्‍वर की महिमा की

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