जब पत्थरदिल पसीजते हैं
सन् १९८९ में, पोलैंड में यहोवा के साक्षियों को एक धार्मिक संगठन मानकर कानूनी तौर पर स्वीकार किया गया। जिन साक्षियों को अपनी मसीही तटस्थता के कारण जेल में डाला गया था, उन्हें आहिस्ते-आहिस्ते रिहा किया गया। सो जेल में ऐसे कई कैदी रह गए थे जो इनसे बाइबल के बारे में और सीखना चाहते थे। परमेश्वर के वचन, बाइबल में लोगों के दिलों को बदलने की शक्ति है। नीचे इसी प्रकार के एक जेल की कहानी दी गयी है जहाँ यहोवा के साक्षी पत्थरदिल लोगों को बाइबल के सहारे से नर्मदिल इंसान बनने में मदद देते हैं।
वोवूफ शहर दक्षिण-पश्चिमी पोलैंड में है और इसमें १२,००० लोग रहते हैं। यहाँ एक २०० साल पुराना जेल है जिसमें पोलैंड के सबसे खतरनाक अपराधियों को रखा जाता है। जब से यहाँ यहोवा के साक्षियों के काम को सरकारी तौर पर स्वीकार किया गया है, तब से उन्होंने इस जेल के कैदियों को राज्य सुसमाचार सुनाने की कोशिश की है। और वे बड़े उत्साह के साथ ऐसा करते हैं।
दरअसल जिसकी वज़ह से यह संभव हुआ वह एक खत था। इस खत को मिनिस्ट्री ऑफ जसटिस ने फरवरी, १९९० में जारी किया और पोलैंड के सभी जेलों के डायरॆक्टरों को भेज दिया। खत में इन डायरॆक्टरों से कहा गया था कि यदि कोई कैदी वॉच टावर के साहित्य पाना चाहता है या यहोवा के साक्षियों से मिलना चाहता है तो इन डायरॆक्टरों को उनके लिए “कोई परेशानी नहीं खड़ी करनी” चाहिए। कई साक्षियों ने वोवूफ के जेल में काफी साल बिताए थे। सो वे वहाँ के कई पत्थरदिल कैदियों को बहुत अच्छी तरह से जानते थे। फिर भी, बाइबल सच्चाई दूसरे पत्थरदिल कैदियों को पसीज दे, ऐसा करने की अपनी कोशिशों पर उन्होंने यहोवा की आशीष पर भरोसा किया।
काम शुरू करना
भाई चेसवाफ को वोवूफ के जेल में आने-जाने की छूट थी। वह करीब ४० किलोमीटर दूर व्रोटस्लाफ शहर में रहता है। वह कहता है, “इस काम को शुरू करना थोड़ा मुश्किल था। जेल के अफसरों को यह यकीन दिलाने के लिए कि हमारी ‘धर्म की सेवाओं’ से कैदियों का भला ही होगा, हमें उनके साथ कई बार और घंटों चर्चा करनी पड़ी।”
चेसवाफ का साथी पावयू कहता है, मामला और पेचीदा हो गया जब “एक ऊँचे पदवाला अफसर अपनी बात पर अड़ गया कि धर्म की सेवाओं का बहाना बनाकर कैदी पैसे कमाने के चक्कर में हैं।” लेकिन जब तीन ऐसे कैदियों ने, जो पहले खतरनाक अपराधी थे, खुद को १९९१ में बपतिस्मे के लिए पेश किया तब जेल के अधिकारियों को अपना विचार बदलना ही पड़ा और तब से वे अधिक सहयोग देने लगे।
चेसवाफ कहता है, “हमने शुरू-शुरू में कैदियों को, उनसे मिलने जेल में आनेवाले उनके परिवार के सदस्यों को, और जेल के कर्मचारियों को प्रचार किया। इसके बाद हमें जेल के हरेक वार्ड में जा-जाकर सुसमाचार प्रचार करने की अनुमति मिली। यह खास बात थी क्योंकि ऐसा करने का मौका किसी और को नहीं दिया जाता था। आखिर में, जब हमें दिलचस्पी दिखानेवाले कुछ जन मिले, तब हमें बाइबल अध्ययन और मसीही सभाएँ चलाने के लिए एक छोटा-सा हॉल दिया गया।” जी हाँ, यहोवा ने इन पत्थरदिल कैदियों के दिलों तक पहुँचने का रास्ता खोल दिया था।
शिक्षा जो असरदार है
बहुत जल्द वह हॉल भी छोटा पड़ने लगा। चूँकि बपतिस्मा लिए हुए कैदी और बाहर से आनेवाले भाई प्रचार कार्य में भाग लेते थे, तो करीब-करीब ५० कैदी सभाओं में हाज़िर होने लगे। वहाँ का एक प्राचीन कहता है, “तीन से भी ज़्यादा सालों से हमने वहाँ अपनी सभाएँ चलायीं, और कैदी हर हफ्ते बराबर मीटिंग आते थे।” सो मई १९९५ को इन कैदियों को एक बड़ा हॉल दिया गया।
ज़िम्मेदारी के पद रखनेवाले भाई कैसे तय करते हैं कि जेल में होनेवाली सभाओं में कौन आ सकते हैं और कौन नहीं? भाई चेसवाफ और झड्जॆशवाफ कहते हैं, “हमारे पास एक लिस्ट है जिसमें उन कैदियों का नाम दर्ज़ है जो सच्चाई में सचमुच दिलचस्पी रखते हैं। यदि कोई कैदी प्रगति नहीं करता या अकारण ही मीटिंगों में नहीं आता है, जिससे ऐसे प्रबंधों के प्रति उसकी कदर की कमी दिखती है, तो हम लिस्ट से उसका नाम हटा देते हैं और जेल के डायरॆक्टर को इसकी खबर दे देते हैं।”
कैदियों के साथ बाइबल अध्ययन करते वक्त, भाई उन्हें यह भी सिखाते हैं कि मीटिंगों के लिए अच्छी तरह तैयारी कैसे करनी है और हमारे साहित्य को असरदार तरीके से कैसे इस्तेमाल करना है। इस प्रकार, जब कैदी मीटिंग आते हैं, तो अच्छी तरह से तैयारी करके आए होते हैं और वे खुलकर भाग ले पाते हैं। उनके जवाब प्रोत्साहक होते हैं, जवाब देते वक्त वे अच्छी तरह से बाइबल इस्तेमाल करते हैं, उसकी सलाहों को समझकर खुद पर लागू करते हुए जवाब देते हैं। वे अकसर जवाब देते वक्त कहते हैं, ‘मुझे अब समझ में आया कि मुझे इस-इस पर काम करना है।’
कलीसिया का सॆक्रेटरी कहता है, “वोवूफ जेल में कुल मिलाकर २० बाइबल अध्ययन चलाए जा रहे हैं। इनमें से आठ बाइबल अध्ययन तीन कैदी चलाते हैं। ये कैदी प्रकाशक बन चुके हैं।” इन तीन कैदियों को हरेक वार्ड में जा-जाकर और जेल के कंपाउंड में टहलते वक्त प्रचार करने से अच्छे परिणाम मिले हैं। मसलन, सितंबर १९९३ से लेकर जून १९९४ के दस महीनों के दौरान, इन्होंने २३५ पुस्तकें, करीबन ३०० ब्रोशर और १,७०० मैगज़ीन लोगों को दिया। हाल ही में जेल के दो अफसर भी बाइबल सीखना चाहते हैं।
खास सम्मेलनों से आनंद मिलता है
समय के गुज़रते, इस जेल में हो रहे शिक्षण के कार्यक्रम में और भी पहलू जोड़े गए और ये थे खास सम्मेलन। जेल के जिमखाने में सफरी ओवरसियर और दूसरे काबिल भाई सर्किट सम्मेलन और एक-दिन के खास सम्मेलन के कार्यक्रमों के मुख्य भाषण देते। अक्तूबर १९९३ को पहला खास सम्मेलन हुआ था। पचास कैदी हाज़िर थे, और “वोवूफ से सभी परिवार, स्त्रियों और बच्चों सहित आए थे,” स्वोवो पोलस्की नामक अखबार ने रिपोर्ट दी। कुल १३९ लोग हाज़िर हुए थे। सम्मेलन कार्यक्रम के बीच भोजन के लिए जो समय मिला उसके दौरान बहनों द्वारा तैयार किया गया खाना खाया गया और साथ ही उन्हें दूसरे मसीही भाई-बहनों के साथ बढ़िया संगति करने का मौका मिला।
तब से सात और खास सम्मेलन आयोजित किए गए और उनसे सिर्फ जेल में रहनेवालों को ही लाभ नहीं हुआ बल्कि बाहरवालों को भी लाभ हुआ। एक व्यक्ति पहले वोवूफ के जेल में बंदी था, अब वह शहर में रहता है। जब एक साक्षी बहन ने इस व्यक्ति से भेंट की, तब शुरू-शुरू में तो उसने शक किया। लेकिन जब उससे कहा गया कि एक अमुक कैदी अब साक्षी बन चुका है, तो इस व्यक्ति को अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने हैरान होते हुए कहा: “वह हत्यारा अब एक साक्षी?” नतीजा यह हुआ कि इस व्यक्ति ने भी बाइबल अध्ययन स्वीकार किया।
बाइबल दिलों को बदलती है
बड़े पैमाने में किए गए शिक्षण के इस कार्यक्रम से क्या वाकई कैदियों के पत्थरदिल पसीज गए? आइए हम उनकी कहानी उनकी ज़ुबानी सुनें।
अपनी बीती ज़िंदगी के बारे में विचार करते हुए झड्जॆशवाफ कहता है, “मुझे अपने माँ-बाप का चेहरा तक याद नहीं क्योंकि बचपन में ही उन्होंने मुझे त्याग दिया था। यह मैंने कभी नहीं जाना कि जब कोई हमसे प्यार करता है, तब कैसा महसूस होता है, और इसका मुझे बहुत दुःख है। बहुत छुटपन से ही मैं अपराध करने लगा और अंततः मैंने हत्या भी कर दी। दोषभावना की वज़ह से मैंने खुद की जान ले लेने की भी बात सोची, और कहीं से सच्ची आशा पाने के लिए मैं छटपटा रहा था। फिर १९८७ में कहीं से एक प्रहरीदुर्ग पत्रिका मेरे हाथ लगी। उसमें पुनरुत्थान और अनंत जीवन की आशा के बारे में लिखा था। यह एहसास होने पर कि आशा का चिराग अभी बुझा नहीं है, मैं खुद की जान लेने के विचार को छोड़कर बाइबल का अध्ययन करने लगा। अब मैं यहोवा से और अपने भाइयों से यह समझ पाया हूँ कि प्रेम क्या है।” यह पहले का हत्यारा सन् १९९३ से सहायक सेवक और सहयोगी पायनियर है, और पिछले साल वह नियमित पायनियर बना।
दूसरी तरफ, तोमाश ने बड़ी आसानी से बाइबल अध्ययन स्वीकार किया था। लेकिन वह कबूल करता है, “वो तो दिल से उठाया गया कदम नहीं था। मैं तो सिर्फ इसलिए बाइबल अध्ययन कर रहा था ताकि यहोवा के साक्षियों के विश्वास के बारे में दूसरों को बताते वक्त मैं डींगें मार सकूँ। लेकिन बाइबल की सच्चाई के बारे में मैं कुछ खास नहीं कर रहा था। एक दिन, मैंने मन में ठान लिया कि मैं मसीही मीटिंग में जाऊँगा और मैं गया। बपतिस्मा लिए हुए कैदियों ने गर्मजोशी से मेरा स्वागत किया। तब मुझे एहसास हुआ कि अपनी जानकारी से दूसरों के सामने डींगें मारने के बजाय मुझे अपने पत्थरदिल को पिघलाना है और अपने मन को बदलना है।” तोमाश ने मसीहियों के नए व्यक्तित्त्व को धारण करना शुरू किया। (इफिसियों ४:२२-२४) आज वह समर्पित, बपतिस्मा-प्राप्त साक्षी है और हरेक वार्ड में जा-जाकर प्रचार करने में उसे बहुत खुशी मिलती है।
पहले के दोस्तों से दबाव
जिन लोगों ने जेल में बाइबल की सच्चाई सीखी, उन पर अपने वार्ड के पहले के दोस्तों से और जेल के अफसरों से काफी दबाव आया। उनमें से एक कहता है: “बहुत बार मेरी खिल्ली उड़ायी गयी और मुझ पर ताने कसे गए। लेकिन मैंने अपने भाइयों की प्रोत्साहक बातों को हमेशा मन में रखा। उन्होंने मुझसे कहा था, ‘यहोवा से प्रार्थना करते रहिए। बाइबल पढ़िए तो आपको मन की शांति मिलेगी।’ इससे मुझे सचमुच मदद मिली।”
हट्टा-कट्टा और बपतिस्मा-प्राप्त भाई रिशार्ड कहता है, “मुझ पर बुरी तरह ताने कसने में मेरे संगी कैदियों ने कोई कसर नहीं छोड़ी। वे मुझे धमकी देते, ‘तुम चाहो तो अपनी मीटिंग में जा सकते हो, लेकिन हमारे बीच रहकर अपने आपको हमसे बेहतर दिखाने की कोशिश मत करना, समझे?’ बाइबल सिद्धांतों को लागू करने की वज़ह से जब मैंने अपने जीवन में परिवर्तन किए, तो मुझे इसका अंजाम भुगतना पड़ा। उन्होंने मेरे बिस्तरे को उलट-पलट दिया, मेरे बाइबल साहित्य इधर-उधर फेंक दिए और वार्ड में जहाँ मैं रहता था, उसे अस्त-व्यस्त कर दिया। मैंने अपने गुस्से को रोकने के लिए यहोवा से शक्ति माँगी और फिर मैं चुपचाप अपनी चीज़ें सरियाने में लग गया। कुछ समय बाद, ऐसी हरकतें बंद हो गयीं।”
बपतिस्मा-प्राप्त कुछ दूसरे कैदियों ने कहा, “जब संगी कैदी देखते हैं कि हमने यहोवा की सेवा करने की ठान ली है, तब दूसरे तरीकों से हम पर दबाव डालते। वे यों कहते, ‘याद रखना, अब से तुम्हें शराब पीना, धूम्रपान करना या झूठ बोलना मना है!’ इस प्रकार के दबाव से हमें अपने पर नियंत्रण रखने में मदद मिलती है और हम जल्द-से-जल्द अपनी बुरी आदतों या लतों से छुटकारा पा लेते हैं। इससे हमें आत्मा के फल विकसित करने में भी मदद मिलती है।”—गलतियों ५:२२, २३.
परमेश्वर के समर्पित सेवक बनना
जेल के अधिकारियों की इज़ाज़त से, १९९१ के वसंत में जिमखाने में पहला बपतिस्मा हुआ। झड्जॆशवाफ उम्मीदवार था और वह बहुत खुश था। जेल में ही रहनेवाले १२ कैदी हाज़िर हुए और बाहर रहनेवाले २१ भाई-बहन भी उपस्थित थे। कैदियों पर इस मीटिंग का बहुत ही असर पड़ा जिससे वे प्रोत्साहित हुए। उनमें से कुछ लोगों ने इतनी तेज़ी-से प्रगति की कि उसी साल बाद में दो अन्य कैदियों का भी बपतिस्मा हुआ। दो साल बाद, १९९३ में दो बार बपतिस्मे का आयोजन किया गया और सात और कैदियों ने यहोवा के प्रति अपने समर्पण के प्रतीक में बपतिस्मा लिया!
दिसंबर में हुए बपतिस्मे पर रिपोर्ट देते हुए, वहाँ के अखबार, व्येकोर्ड व्रोस्वाव्या ने लिखा: “जिमखाने में लोगों की भीड़ आती रही और एक दूसरे से हाथ मिलाते हुए लोग एक दूसरे का स्वागत करते रहे। यहाँ कोई भी किसी के लिए अजनबी नहीं है। ये सब मिलकर मानो एक बड़ा परिवार है जिनका सोच-विचार और जीने का तरीका एक जैसा है, और वे सब एकजुट होकर एक ही परमेश्वर, यहोवा की सेवा करते हैं।” उस ‘एक बड़े परिवार’ में उस समय १३५ लोग थे और इनमें ५० कैदी भी शामिल थे। आइए हम उनमें से कुछ लोगों से मुलाकात करें।
जून में बपतिस्मा लेनेवाले यर्ज़ी कहता है: “हालाँकि बाइबल सच्चाई के बारे में मुझे कई साल पहले पता चल गया था, लेकिन उस वक्त मेरा दिल सचमुच पत्थर का था। चालबाज़ी, पहली पत्नी से तलाक, क्रिसटीना के साथ अवैध संबंध, बिना विवाह किए हुए बच्चा, और बार-बार जेल के चक्कर काटना—मेरी ज़िंदगी बस यही थी।” जब मैंने देखा कि जेल के कट्टर-से-कट्टर अपराधी कैसे साक्षी बन रहे हैं, तो मैं अपने आपसे पूछने लगा, ‘क्या मैं भी एक बेहतर इंसान नहीं बन सकता?’ यर्ज़ी ने बाइबल अध्ययन का निवेदन किया और सभाओं में हाज़िर होने लगा। लेकिन, असल बदलाव तो तब आया जब उसने पब्लिक प्रॉसीक्यूटर से जाना कि क्रिसटीना तीन साल पहले यहोवा की एक साक्षी बन चुकी थी। यर्ज़ी कहता है, “मैं तो एकदम हैरान हो गया! मैंने सोचा, ‘मेरे बारे में क्या? मैं क्या कर रहा हूँ?’ मुझे समझ में आया कि यहोवा की स्वीकृति पाने के लिए मुझे अपनी ज़िंदगी सुधारनी होगी।” नतीजा यह हुआ कि जेल में यर्ज़ी का क्रिसटीना और उनकी ११ साल की बेटी, मार्जीना से दोबारा मुलाकात हुई और वे बहुत खुश थे। जल्द ही उन्होंने अपने विवाह को कानूनी बना लिया। हालाँकि यर्ज़ी अब भी जेल में है और वहाँ की ज़िंदगी के उतार-चढ़ाव का सामना कर रहा है, उसने हाल ही में खुद से साइन-लैंग्वैज सीखा और जेल के बहरे कैदियों की मदद कर रहा है।
मीरोस्वाफ जब प्राइमरी स्कूल में था, तब से ही वह अपराध के मामलों में फँसा हुआ था। उसके साथी जो करते थे, उसे यह बहुत सराहा करता था और जल्द ही वह भी वही काम करने लगा। उसने कइयों को लूटा या पीटा। इसके बाद उसे कैद हो गयी। मीरोस्वाफ कबूल करता है, “जब मैंने खुद को हिरासत में पाया, तब मैंने पादरी से मदद माँगी। लेकिन वहाँ भी मुझे बस निराशा ही हाथ लगी। सो मैंने निश्चय किया कि मैं ज़हर खाकर मर जाऊँगा।” जिस दिन उसने अपनी जान लेने की सोची, उसी दिन उसे किसी दूसरे वार्ड में भेज दिया गया। वहाँ उसे प्रहरीदुर्ग की एक कॉपी मिली जिसमें जीवन के मकसद के बारे में लिखा हुआ था। वह आगे कहता है, “जो सरल व साफ जानकारी दी गयी थी, मुझे उसी की ज़रूरत थी। अब मैं जीना चाहता था! सो मैंने यहोवा से प्रार्थना की और साक्षियों से बाइबल अध्ययन का निवेदन किया।” मीरोस्वाफ ने बाइबल अध्ययन में तेज़ी से प्रगति की और १९९१ में बपतिस्मा लिया। अब वह जेल में सहयोगी पायनियर के तौर पर सेवा करता है और उसे हरेक वार्ड में जा-जाकर प्रचार करने का विशेषाधिकार है।
अब तक कुल १५ कैदियों ने बपतिस्मा लिया है। कुल मिलाकर उनकी सज़ा के साल लगभग २६० होते हैं। कुछ कैदियों को अपनी पूरी सज़ा काटने से पहले ही रिहा कर दिया गया। एक कैदी को २५ साल की सज़ा सुनायी गयी थी जिसमें से १० साल घटा दिए गए। और ऐसे कैदी जिन्होंने जेल में रहते वक्त बाइबल सच्चाई में दिलचस्पी दिखायी थी, वे रिहा होने के बाद बपतिस्मा लेकर साक्षी बने। और तो और, जेल में अब ऐसे चार और कैदी हैं जो बपतिस्मा लेने की तैयारी कर रहे हैं।
जेल के अधिकारियों की टिप्पणियाँ
जेल की एक रिपोर्ट बताती है, “कैदियों की मनोवृत्ति में आए बदलाव अलग-से नज़र आते हैं। कइयों ने धूम्रपान करना छोड़ दिया है और वे अपने-अपने वार्ड को साफ रखते हैं। कई कैदियों के चालचलन में ऐसे बदलाव दिखते हैं।”
अखबार झेची वॉर्शाव रिपोर्ट करता है कि वोवूफ के जेल के संचालकों ने कहा, “जिन्होंने यह धर्म अपनाया है, वे अनुशासित होते हैं; उनसे जेल के गार्डों को कोई खतरा नहीं होता।” लेख आगे कहता है कि जिन लोगों को उनकी सज़ा पूरी होने से पहले रिहा कर दिया गया है, वे यहोवा के साक्षियों के साथ पूरी तरह घुल-मिल चुके हैं और वे फिर से अपराध का रास्ता नहीं अपनाते।
जेल के डायरॆक्टर की राय क्या है? वह कहता है, “इस जेल में यहोवा के साक्षियों के कार्य को बहुत ही पसंद किया जाता है और यह कार्य बहुत ही मददगार है।” डायरॆक्टर मानता है कि साक्षियों के साथ “अपने बाइबल अध्ययन के दौरान कैदियों की मान्यताएँ और स्तर बदलते हैं और इनसे उन्हें अपनी ज़िंदगी को नए तरीके से मार्गदर्शित करने में मदद मिलती है। वे सही तरीके से और शिष्टता से पेश आते हैं। वे मेहनती हो जाते हैं और किसी को भी किसी प्रकार की परेशानी नहीं देते।” अधिकारियों की तरफ से कही गयी अच्छी बातों से सच में उन साक्षियों को बहुत संतुष्टि मिलती है जो वोवूफ जेल के कैदियों के साथ सेवकाई का काम करते हैं।
कैदियों से मिलने के लिए आनेवाले साक्षी पूरी तरह से यीशु के इन शब्दों को समझते हैं: “मैं अपनी भेड़ों को जानता हूं, और मेरी भेड़ें मुझे जानती हैं। . . . वे मेरा शब्द सुनेंगी; तब एक ही झुण्ड और एक ही चरवाहा होगा।” (यूहन्ना १०:१४-१६) कोई भी दीवार, चाहे वह जेल की ही क्यों न हो, अच्छे चरवाहे, यीशु मसीह को अपने भेड़-समान लोगों को इकट्ठा करने से रोक नहीं सकती। वोवूफ के साक्षी शुक्रगुज़ार हैं कि उन्हें इस आनंदमय सेवा में हिस्सा लेने का विशेषाधिकार मिला है। वे मदद के लिए यहोवा की ओर देखते हैं और उसकी भरपूर आशीष चाहते हैं ताकि वे अंत आने से पहले कई पत्थरदिल इंसानों को राज्य सुसमाचार सुनाकर पसीज सकें।—मत्ती २४:१४.
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रिहाई के बाद की समस्याएँ
वोवूफ जेल में काम करनेवाले साक्षियों ने बताया, “कुछ समय तक जेल में रहने के बाद, कैदी अकसर यह भूल जाता है कि आज़ाद होकर जीना या अपने ही पैरों पर खड़े होकर जीना कैसा होता है। खासकर देखने में आता है कि वयस्क होने के बावजूद भी कैदियों को ‘बच्चों जैसी’ समस्याएँ होती हैं, यानी कि जेल से रिहा होने पर कैदी खुद की देखरेख नहीं कर पाते। सो ऐसे कैदियों के लिए कलीसिया को बाइबल सच्चाई सिखाने से कहीं ज़्यादा करना पड़ता है। हमें उसे तैयार करना होता है ताकि वह समाज में घुल-मिल सके। होनेवाले खतरों व प्रलोभनों की भी उसे चेतावनी देनी पड़ती है। हमें सावधानी बरतनी चाहिए कि हम उसकी हद से ज़्यादा रक्षा न करें, दूसरी तरफ हमें यह भी देखना होता है कि नयी ज़िंदगी की शुरूआत करने के लिए उसे पूरी मदद मिले।”