परीक्षाओं के बावजूद यहोवा में आनंदित होना
जॉर्ज स्कीपीयो की ज़बानी
दिसंबर १९४५ में, मैं एक अस्पताल के वॉर्ड में पड़ा था। मेरे हाथों और पैरों को छोड़ मेरे पूरे शरीर को लकवा मार गया था। मेरा तो सोचना था कि मैं जल्दी ठीक हो जाऊँगा पर दूसरों को शक था कि मैं कभी चल भी पाऊँगा या नहीं। १७-साल के एक चुस्त-फुर्त नौजवान के लिए यह कितनी बड़ी परीक्षा थी! लेकिन मैंने दूसरों की बातों पर विश्वास नहीं किया। करता भी कैसे, मैंने कितनी योजनाएँ बनाई थीं, जिसमें अगले साल अपने मालिक के साथ इंग्लैंड जाने की भी योजना थी।
हमारे टापू, सेंट हलीना में चारों ओर पोलियोमाइलिटिस महामारी फैली हुई थी जिसका मैं भी शिकार हुआ। इसने ११ लोगों की जानें ले लीं और कइयों को अपाहिज कर दिया। बिस्तर पर पड़े-पड़े अपनी बीती हुई छोटी-सी ज़िंदगी और आनेवाले कल के बारे में सोचने के लिए मेरे पास काफी समय था। और जब मैं सोचने लगा तो मुझे एहसास हुआ कि इस तकलीफ के बावजूद मेरे पास खुश होने का कारण है।
एक छोटी-सी शुरूआत
मेरे पिता टॉम, पुलिसमैन थे और बैपटिस्ट चर्च में एक डीकन भी थे। सन् १९३३ में उन्होंने दो यहोवा के साक्षियों से कुछ किताबें ली थीं। तब मैं पाँच साल का था। वे साक्षी पूर्ण-समय के प्रचारक या पायनियर थे और हमारे टापू पर कुछ समय के लिए आए थे।
उन किताबों में से एक का नाम था, द हार्प ऑफ गॉड। मेरे पिताजी अपने परिवार के साथ और दिलचस्पी दिखानेवाले कई व्यक्तियों के साथ बाइबल अध्ययन करते वक्त इसी किताब का इस्तेमाल करते थे। उसमें बड़ी गहरी बातें लिखी थीं, इसलिए मैं कुछ ज़्यादा नहीं समझ पाता था। फिर भी मुझे याद है कि जितने शास्त्रवचनों की चर्चा होती, मैं अपनी बाइबल में उन पर निशान लगा देता। पिताजी को जल्द ही एहसास हुआ कि हम जो सीख रहे हैं वह सच है और बैपटिस्ट चर्च में वे जो सिखाते रहे हैं, यह उससे बिलकुल अलग है। वे इसके बारे में दूसरों को बताने लगे और चर्च में भी यह सिखाने लगे कि त्रियेक, नरक और अमर आत्मा जैसी कोई चीज़ है ही नहीं। इससे चर्च में काफी खलबली मच गई।
आखिरकार इस मामले को सुलझाने के लिए चर्च में एक मीटिंग बुलाई गई। सवाल पूछा गया, “जो बैपटिस्ट चर्च की ओर हैं, वे खड़े हो जाएँ?” अधिकांश लोग खड़े हो गए। दूसरा प्रश्न था, “जो यहोवा की ओर हैं, वे खड़े हो जाएँ?” तकरीबन १०-१२ लोग खड़े हुए। उन्हें चर्च छोड़ देने के लिए कहा गया।
इस तरह सेंट हलीना में एक नए धर्म की छोटी-सी शुरूआत हुई। पिताजी ने अमरीका में वॉच टावर सोसाइटी के मुख्यालय से संपर्क किया और एक बड़े ग्रामोफोन के लिए निवेदन किया ताकि वे लोगों को बाइबल पर आधारित रिकॉर्ड किए गए भाषण सुना सकें। उनसे कहा गया कि यह बहुत बड़ा है इसलिए उसे सेंट हलीना नहीं भेजा जा सकता। उसके बदले एक छोटा ग्रामोफोन रिकॉर्ड प्लेयर भेजा गया। भाइयों ने बाद में दो और ग्रामोफोन मँगवाए। वे पैदल चलकर या गधे पर सवार होकर पूरे टापू में घूमते थे और लोगों को राज्य का संदेश सुनाते थे।
जैसे-जैसे यह संदेश फैलता गया, वैसे-वैसे विरोध भी बढ़ा। मेरे स्कूल में बच्चे गाना गाते: “झटपट दौड़कर आजा रे, टॉमी का ग्रामोफोन सुन ले रे!” यह मेरे लिए एक बहुत बड़ी परीक्षा थी क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि मेरे साथ पढ़नेवाले बच्चे मुझे चिढ़ाएँ, मैं तो उनकी दोस्ती चाहता था। किस बात ने मुझे ये सब सहने की शक्ति दी?
हमारा बड़ा परिवार—जिसमें छः बच्चे थे—बिना नागा पारिवारिक बाइबल अध्ययन करता था। हम सब मिलकर हर सुबह नाश्ते से पहले बाइबल भी पढ़ते थे। बेशक इसकी वज़ह से, हमारे परिवार को आज तक सच्चाई में वफादारी से टिके रहने में मदद मिली है। मुझे खुद बहुत कम उम्र में बाइबल से प्यार हो गया था और मैंने रोज़ाना बाइबल पढ़ने की आदत को आज भी बरकरार रखा है। (भजन १:१-३) जब मैंने १४ साल की उम्र में स्कूल छोड़ा तो तब तक सच्चाई मेरे दिल में अच्छी तरह से जड़ पकड़ चुकी थी और मेरे दिल में यहोवा का डर था। इसलिए इन परीक्षाओं के बावजूद मैं यहोवा के कारण खुश था।
परीक्षाएँ भी बढ़ीं और आनंद भी
बीमारी में बिस्तर पर पड़े-पड़े जब मैं उन पुराने दिनों के बारे में और अपने भविष्य के बारे में सोचा करता था, तब बाइबल से मिले ज्ञान के आधार पर मैं यह बखूबी जानता था कि मेरी बीमारी परमेश्वर की ओर से कोई परीक्षा या दंड नहीं है। (याकूब १:१२, १३) फिर भी पोलियो एक दुःखदायक परीक्षा तो थी ही क्योंकि इसका असर ज़िंदगी भर रहनेवाला था।
जब मैं ठीक हुआ तो मुझे फिर से चलना सीखना पड़ा। मेरे हाथों की कुछ माँस-पेशियाँ भी बेकार हो चुकी थीं। मैं दिन में इतनी बार गिर पड़ता था जिसकी कोई गिनती नहीं। फिर भी मैंने दिल से प्रार्थना की और लगातार कोशिश की, जिसकी वज़ह से १९४७ तक मैं छड़ी के सहारे चलने के काबिल हुआ।
इस बीच मुझे एक लड़की से प्यार हो गया। उसका नाम डोरस था और मेरी तरह वह भी सच्चाई में दिलचस्पी लेती थी। शादी के लिए अभी हमारी उम्र कम थी, लेकिन इससे मुझे हिम्मत मिली कि और भी अच्छी तरह चलने की कोशिश करूँ। मैंने अपनी नौकरी भी छोड़ दी क्योंकि उतनी पगार से मैं अपनी शादीशुदा ज़िंदगी नहीं गुज़ार सकता था। सो मैंने अलग अपना डैंटिस्ट का काम शुरू किया जो मैं दो साल तक करता रहा। फिर १९५० में हमने शादी कर ली। उस समय तक मैंने इतने पैसे जुटा लिए थे कि एक छोटी-सी कार खरीद सकूँ। मैं अब भाइयों को सभाओं में और प्रचार के काम में साथ ले जा सकता था।
टापू पर परमेश्वर के काम में प्रगति
सन् १९५१ में संस्था ने अपनी तरफ से पहली बार हमारे पास एक भाई को भेजा। यह दक्षिण अफ्रीका का नौजवान याकोबुस वॉन स्टाडन था। हमने हाल ही में घर बदला था और अब एक बड़े घर में रहने लगे थे इसलिए हम उसे पूरे साल अपने यहाँ ठहरा सके। मेरा अपना रोज़गार था इसीलिए मैंने उसके साथ प्रचार में खूब समय बिताया और उससे अच्छी ट्रेनिंग भी पायी।
याकोबुस को हम कोस बुलाते थे, वह हर हफ्ते कलीसिया की सभाओं का आयोजन करता था जिनमें हम सभी बड़ी खुशी-खुशी जाते थे। हमें आने-जाने में तकलीफ होती थी क्योंकि दिलचस्पी दिखानेवाले सभी लोगों में बस दो ही के पास कार थी। हमारा इलाका पहाड़ी था और बहुत-ही ऊबड़खाबड़ था। उस समय अच्छी सड़कें भी बहुत कम थीं। इसलिए सभी को सभाओं में ले आना एक बड़ा भारी काम था। कुछ लोग सुबह जल्दी चलना शुरू कर देते थे। मैं अपनी छोटी-सी कार में तीन लोगों को बिठाता और कुछ दूर ले जाकर उन्हें उतार देता और वे आगे चलते जाते। मैं वापस लौटता, और तीन लोगों को बिठाता, उन्हें भी कुछ दूर ले जाकर उतारता और फिर वापस लौटता। आखिरकार इस तरह सभी लोग सभाओं में पहुँचते। और सभाओं के बाद घर जाने के लिए भी हम फिर से ऐसा ही करते थे।
कोस ने हमें यह भी सिखाया कि प्रचार में हम असरदार तरीके से कैसे बात करें। कई बार लोग हमारी सुनते थे और हमें खुशी होती थी लेकिन कभी-कभी हमारा विरोध भी किया जाता था। फिर भी, हमें प्रचार काम में इतनी खुशी मिलती थी कि उसके सामने विरोधियों द्वारा लायी गई सताहट कुछ भी नहीं थी। एक सुबह मैं कोस के साथ प्रचार कर रहा था। हम जैसे ही एक दरवाज़े पर पहुँचे, हमने एक आवाज़ सुनी। एक आदमी ज़ोर-ज़ोर से बाइबल पढ़ रहा था। हम यशायाह अध्याय २ के जाने-पहचाने शब्दों को साफ-साफ सुन सकते थे। जब वह आयत ४ पर पहुँचा हमने दरवाज़ा खटखटाया। दोस्ताना मिज़ाज़ के एक बुज़ुर्ग व्यक्ति ने हमें अंदर बुलाया और हमने यशायाह २:४ का उपयोग करते हुए उसे परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाया। उसके साथ एक बाइबल अध्ययन शुरू हुआ हालाँकि उसके घर तक पहुँचना बहुत-ही मुश्किल था। पहले हमें एक पहाड़ी उतरनी पड़ती थी, उसके बाद पत्थरों पर पैर रख-रखकर एक नदी पार करनी पड़ती थी, फिर एक और पहाड़ी चढ़नी और उतरनी पड़ती थी और तब कहीं जाकर उसका घर आता। लेकिन हमारी मेहनत बेकार नहीं गयी। इस नम्र बुजुर्ग ने सच्चाई स्वीकार की और बपतिस्मा लिया। सभाओं में आने के लिए वह दो छड़ियों के सहारे उस जगह तक चलकर आता, जहाँ से मैं उसे अपनी कार में बिठाकर ले जाता था। वह मरते दम तक एक वफादार साक्षी रहा।
एक पुलिस कमिश्नर हमारे काम का विरोध करता था और बार-बार धमकी देता था कि कोस को देशनिकाला दे देगा। वह महीने में एक बार कोस को पूछताछ के लिए बुलाता। और कोस उसे बाइबल से ही सीधे-सीधे जवाब देता इसलिए वह और भी चिढ़ गया था। हर बार वह कोस को प्रचार बंद करने की धमकी देता, मगर कोस हर बार उसे साक्षी देता। कोस के सेंट हलीना छोड़ जाने के बाद भी वह विरोध करता रहा। लेकिन वही कमिश्नर जो एक हट्टा-कट्टा इंसान था, अचानक बीमार पड़ गया और सूखकर काँटा हो गया। डॉक्टरों को उसकी बीमारी का पता नहीं चल पाया। आखिरकार वह टापू छोड़कर चला गया।
बपतिस्मा और लगातार बढ़ौतरी
कोस को टापू पर आए तीन महीने हो चुके थे और उसे लगा कि यहाँ कुछ लोगों को बपतिस्मा दिया जा सकता है। कहीं भी अच्छा तालाब नहीं था। हमने फैसला किया कि तालाब बनाने के लिए हम एक बड़ा गड्ढा खोदकर उसके चारों ओर सीमेंट लगाएँगे और उसे पानी से भर देंगे। बपतिस्मे से एक रात पहले ऐसी बारिश हुई कि गड्ढा लबालब पानी से भर गया और दूसरे दिन जब हमने यह देखा तो हमारी खुशी का ठिकाना न रहा।
उस रविवार की सुबह कोस ने बपतिस्मे के विषय पर भाषण दिया। जब उसने बपतिस्मा लेनेवालों को खड़े होने के लिए कहा, तो हम पूरे २६ लोग खड़े हुए और आमतौर पर पूछे जानेवाले सवालों का जवाब देने के लिए तैयार थे। यह एक आशीष थी कि उस टापू पर बपतिस्मा लेनेवाले हम पहले साक्षी थे। उस दिन मुझे अपनी ज़िंदगी की सबसे बड़ी खुशी मिली क्योंकि मुझे हमेशा यह चिंता रहती थी कि हरमगिदोन कहीं मेरे बपतिस्मे से पहले न आ जाए।
कुछ समय बाद दो कलीसियाएँ बनीं, एक लेवलवुड में और दूसरी जेम्सटाउन में। हर हफ्ते, हम तीन या चार लोग १३ किलोमीटर सफर करके, शनिवार शाम को एक कलीसिया में थियोक्रेटिक मिनिस्ट्री स्कूल और सर्विस मिटिंग चलाने के लिए जाते थे। रविवार सुबह, प्रचार काम के बाद हम लौटते और फिर दोपहर और शाम को अपनी कलीसिया में इन्हीं सभाओं के साथ-साथ प्रहरीदुर्ग अध्ययन भी चलाते। इस तरह हर हफ्ते शनिवार और रविवार के दिन परमेश्वर के काम में खुशी-खुशी बीत जाते। मेरी तो यही इच्छा थी कि मैं पूरे समय प्रचार का काम करूँ लेकिन परिवार की देखरेख का भार तो मुझी पर था। इसलिए १९५२ में मैंने फिर से पूरे समय के लिए डैंटिस्ट की अपनी सरकारी नौकरी शुरू की।
सन् १९५५ से, संस्था के सफर करनेवाले प्रतिनिधियों यानी सर्किट ओवरसियरों ने साल में एक बार टापू पर आना शुरू किया, उस समय कुछ दिन वे मेरे घर पर ठहरते थे। इनका हमारे परिवार पर बहुत-ही अच्छा असर हुआ। उसी समय के आस-पास मुझे पूरे टापू पर संस्था की तीन फिल्में दिखाने का भी एक सुअवसर मिला।
एक रोमांचक ‘ईश्वरीय इच्छा’ सम्मेलन
सन् १९५८ में, न्यू यॉर्क में ‘ईश्वरीय इच्छा’ अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में हाज़िर होने के लिए मैंने फिर से अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इस सम्मेलन ने मुझे एक नई राह दिखाई यह एक ऐसा अवसर था जब मुझे यहोवा में आनंदित होने के बहुत-से कारण मिले। टापू पर जाने के लिए कोई समुद्री जहाज न होने के कारण हम साढ़े पाँच महीने तक घर नहीं जा पाए। सम्मेलन आठ दिन का था और कार्यक्रम सुबह नौ बजे से रात नौ बजे तक चलता था। लेकिन मुझे कभी थकान महसूस नहीं हुई, मैं हर रोज़ अगले दिन का इंतज़ार करता था। मुझे सेंट हलीना के प्रतिनिधि के तौर पर कार्यक्रम में दो मिनट का भाग पेश करने का भी सुनहरा मौका मिला। लेकिन यैंकी स्टेडियम और पोलो ग्राउंड्स में मौजूद इतनी बड़ी भीड़ के सामने बोलते वक्त मेरे पसीने छूट गए।
इस सम्मेलन ने पायनियर बनने के मेरे इरादे को और भी मज़बूत किया। खासकर जन भाषण, “परमेश्वर का राज्य शासन करता है—क्या संसार का अंत निकट है?” बहुत-ही हिम्मत बढ़ानेवाला भाषण था। सम्मेलन के बाद हमने ब्रुकलिन में संस्था का मुख्यालय देखा और फैक्टरी भी गए। भाई नॉर उस समय वॉच टावर सोसाइटी के अध्यक्ष थे, मैंने उन्हें सेंट हलीना में हो रही प्रगति के बारे में बताया। वे बोले कि किसी दिन मैं भी उस टापू पर आना चाहूँगा। लौटते वक्त हम अपने परिवार और दोस्तों के लिए सारे भाषणों के टेप और सम्मेलन के चलचित्र ले गए।
पूरे समय सेवा करने की मेरी ख्वाहिश पूरी हुई
लौटने पर मुझे फिर से उसी पुरानी नौकरी के लिए बुलाया गया क्योंकि उस टापू पर कोई और डैंटिस्ट नहीं था। लेकिन मैंने उन्हें समझाया कि मेरा इरादा पूरे समय सेवकाई करने का है। बहुत बातचीत के बाद यह तय हुआ कि मुझे हफ्ते में बस तीन दिन काम करना होगा और पगार भी ज़्यादा दी जाएगी, जितनी मुझे पहले छः दिन काम करने पर भी नहीं मिलती थी। यीशु की बात सच निकली: “पहिले तुम उसके राज्य और धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएं भी तुम्हें मिल जाएंगी।” (मत्ती ६:३३) अपने कमज़ोर पैरों से टापू के पहाड़ी इलाके में घूमना-फिरना मेरे लिए हमेशा आसान नहीं था। फिर भी मैंने १४ साल पायनियरिंग की और टापू पर रहनेवाले अपने कई साथियों की सच्चाई सीखने में मदद की। और इसकी वज़ह से मिले आनंद का मैं शब्दों में बयान नहीं कर सकता।
सन् १९६१ में सरकार मुझे दो साल की मुफ्त ट्रेनिंग देने के लिए फिजी द्वीप भेजना चाहती थी ताकि मैं एक अच्छा डैंटिस्ट बन सकूँ। वे मेरे परिवार को भी मेरे साथ भेजने के लिए तैयार थे। यह पेशकश वाकई लुभावनी थी, लेकिन इसके बारे में अच्छी तरह सोच लेने के बाद मैंने इसे ठुकरा दिया। मैं इतने समय तक अपने भाइयों से दूर रहकर उनके साथ काम करने का अवसर नहीं खोना चाहता था। इस यात्रा का प्रबंध करनेवाला एक सीनियर मेडिकल अफसर सबसे ज़्यादा निराश हुआ। उसने कहा: “अगर तुम्हें लगता है कि अंत इतना करीब है, तौभी इस बीच तुम जितना पैसा कमाओगे उसका अच्छी तरह इस्तेमाल भी कर सकते हो।” लेकिन मैं अटल रहा।
अगले साल मुझे किंगडम मिनिस्ट्री स्कूल में उपस्थित होने के लिए दक्षिण अफ्रीका बुलाया गया। इसमें कलीसिया के ओवरसियरों को एक महीने की ट्रेनिंग दी जाती थी। हमें बहुत ही बढ़िया सलाह दी गई जिससे हमें अपनी कलीसिया की ज़िम्मेदारियाँ अच्छी तरह निभाने में मदद मिली। स्कूल खत्म होने के बाद मैंने एक सफरी ओवरसियर के साथ काम करके और भी ट्रेनिंग पायी। इसके बाद मैं दस साल से भी ज़्यादा समय तक सेंट हलीना की दो कलीसियाओं में सबस्टिट्यूट सर्किट ओवरसियर के तौर पर काम करता रहा। कुछ समय बाद जब दूसरे भाई इस काम में काबिल हुए तो उन्होंने भी इस काम में हाथ बँटाया।
इस बीच हम जेम्सटाउन से लेवलवुड चले गए। यहाँ ज़रूरत ज़्यादा थी इसलिए हम दस साल तक रहे। इस दौरान मैं दिन-रात कड़ी मेहनत करता था, पायनियरिंग के साथ-साथ हफ्ते में तीन दिन सरकारी नौकरी करता और किराने की छोटी-सी दुकान चलाता। इसके अलावा मैं कलीसिया से जुड़े काम भी करता था और पत्नी के साथ चार बढ़ते बच्चों के परिवार की देखरेख भी करता था। थोड़ी राहत पाने के लिए मैंने अपनी तीन दिन की नौकरी छोड़ी, दुकान बेची और अपने पूरे परिवार को लेकर दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन में, तीन महीने की छुट्टी पर चला गया। फिर हम एसैंशन द्वीप गए और वहाँ एक साल तक रहे। उस दौरान, बाइबल का सही-सही ज्ञान लेने में हमने कई लोगों की मदद की।
सेंट हलीना लौटने पर हम फिर से जेम्सटाउन आ गए। हमने किंगडम हॉल से जुड़े हुए घर की मरम्मत करायी। मेरे बेटे जॉन और मैंने घर का खर्च चलाने के लिए फोर्ड ट्रक में आइसक्रीम की दुकान खोली और अगले पाँच साल तक हमने आइसक्रीम बेची। कारोबार शुरू करने के थोड़े समय बाद ही, वैन से मेरा ऐक्सीडैंट हो गया। वैन लुढ़क गया और मेरी टाँगें उसमें फँस गईं। इसकी वज़ह से मेरे घुटने के नीचे की नसें बेजान हो गईं और ठीक होने में मुझे तीन महीने लग गए।
अतीत और भविष्य में भरपूर आशीषें
इन सालों के दौरान हमें कई आशीषें मिलीं जिसकी वज़ह से हम और भी आनंदित हुए। इनमें से एक आशीष थी हमारा दक्षिण अफ्रीका जाना। वहाँ हम १९८५ में राष्ट्रीय अधिवेशन के लिए गए थे। हमने वहाँ नया बेथेल भी देखा जिसका निर्माण काम तब चल ही रहा था। एक और आशीष मिली, जब जेम्सटाउन के करीब एक सुंदर असेम्बली हॉल बनाने में मैंने और मेरे बेटे जॉन ने हाथ बँटाया। हम इस बात से भी खुश हैं कि हमारे तीन बेटे प्राचीन हैं और एक पोता दक्षिण अफ्रीका के बेथेल में सेवा कर रहा है। और बेशक बहुत-से लोगों को बाइबल का सही-सही ज्ञान देकर हमने बेहद खुशी और संतुष्टि पायी है।
प्रचार के लिए हमारा क्षेत्र बहुत-ही कम है, जिसमें बस लगभग ५,००० लोग रहते हैं। लेकिन उसी क्षेत्र में बारंबार काम करके अच्छे नतीजे भी मिले हैं। ऐसे बहुत कम लोग हैं जो हमसे कठोरता से पेश आते हैं। वैसे सेंट हलीना के लोग मिलनसार होने के लिए जाने जाते हैं और आप चाहे जहाँ भी जाएँ, रास्ते पर हों या गाड़ी चलाते हों, मुस्कुराकर आपका अभिवादन किया जाएगा। मैंने तो यही पाया है कि आप लोगों से जितनी अच्छी तरह घुल-मिल जाएँगे, आपके लिए प्रचार करना उतना ही आसान हो जाएगा। बहुत-से भाई टापू छोड़ गए हैं, इसके बाद भी हमारे पास अब १५० प्रकाशक हैं।
हमारे सारे बच्चे बड़े हो गए हैं और अपने पैरों पर खड़े हो गए हैं। और अब शादी के ४८ साल बाद परिवार में मैं और मेरी पत्नी ही रह गए हैं। इस दौरान डोरस की वफादारी, प्रेम और उसके सहारे ने मुझे परीक्षाओं के बावजूद लगातार यहोवा की सेवा, आनंद से करते रहने में मदद दी है। हमारी शारीरिक शक्ति घट रही है लेकिन दिन-ब-दिन हम आध्यात्मिक रूप से मज़बूत होते जा रहे हैं। (२ कुरिन्थियों ४:१६) अपने परिवार और दोस्तों के साथ मैं उस शानदार भविष्य की आस लगाए बैठा हूँ जब मैं फिर से तंदुरुस्त हो जाऊँगा, उससे भी अधिक तंदुरुस्त जैसा मैं १७ की उम्र में था। मेरी दिली तमन्ना है कि हर तरीके से परिपूर्णता का आनंद उठाऊँ और इससे भी अधिक यह चाहता हूँ कि हमारे प्यारे और परवाह करनेवाले परमेश्वर यहोवा और उसके ठहराए हुए राजा यीशु मसीह की हमेशा-हमेशा तक सेवा करता रहूँ।—नहेमायाह ८:१०.
[पेज 26 पर तसवीर]
जॉर्ज स्कीपीयो और उसके तीन बेटे जो प्राचीन हैं
[पेज 29 पर तसवीर]
जॉर्ज स्कीपीयो अपनी पत्नी डोरस के साथ