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  • यहोवा रास्ता तैयार करता है
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यहोवा रास्ता तैयार करता है

“राज्य का यह सुसमाचार . . . प्रचार किया जाएगा।”—मत्ती २४:१४.

१. पहली सदी में और आज २०वीं सदी में प्रचार का काम किए जाने से क्या हासिल हुआ है?

यहोवा परमेश्‍वर इंसान से प्रेम करता है, इसलिए वह चाहता है कि “सब मनुष्यों का उद्धार हो; और वे सत्य को भली भांति पहचान लें।” (१ तीमुथियुस २:४) इसके लिए यह ज़रूरी हो गया है कि पूरी दुनिया में राज्य के सुसमाचार का प्रचार किया जाए और लोगों को सिखाया जाए। पहली सदी में, मसीही कलीसिया ने प्रचार का काम इतने बड़े पैमाने पर किया कि उसे “सत्य का खंभा, और नेव” का नाम हासिल हुआ। (१ तीमुथियुस ३:१५) मगर फिर धर्मत्याग की लंबी, अंधेरी रात शुरू हुई जिसमें सच्चाई की रोशनी फीकी पड़ गयी। लेकिन, आज बीसवीं सदी में, इस “अन्त समय” के दौरान, लाखों लोगों को बाइबल से उद्धार की यानी अनंत जीवन की आशा दी जा रही है और इस तरह “[सच्चा] ज्ञान” फिर से फैलने लगा है।—दानिय्येल १२:४.

२. प्रचार काम को पूरा करने के लिए यहोवा ने क्या किया है?

२ पहली सदी में और २०वीं सदी में भी शैतान ने लगातार कोशिश की है कि परमेश्‍वर के उद्देश्‍य में बाधा डाले और उसे पूरा होने न दे। इसके बावजूद, पुराने ज़माने में और आज भी प्रचार का काम इतने बड़े पैमाने पर हुआ है कि देखकर हैरानी होती है। इससे यशायाह की भविष्यवाणी याद आती है। यह भविष्यवाणी सा.यु.पू छठी सदी में यहूदियों के बंधुआई से छूटकर वापस अपने देश यहूदा जाने के बारे में है, यशायाह ने लिखा: “हर एक तराई भर दी जाए और हर एक पहाड़ और पहाड़ी गिरा दी जाए; जो टेढ़ा है वह सीधा और जो ऊंचा-निचा है वह चौरस किया जाए।” (यशायाह ४०:४) यहोवा ने पहली सदी में और २०वीं सदी में भी इस प्रचार के काम में आनेवाली पहाड़ जैसी रुकावटों को दूर करके रास्ता तैयार किया है।

३. यहोवा किन तरीकों से अपना उद्देश्‍य पूरा करता है?

३ इसका मतलब यह नहीं कि सुसमाचार के प्रचार को बढ़ाने का रास्ता तैयार करने के लिए यहोवा पृथ्वी पर हो रही हर घटना में दखल देता है; न ही इसका यह मतलब है कि भविष्य बता सकने की अपनी काबिलीयत से यहोवा आगे होनेवाली हर छोटी-मोटी बात जान लेता है। यह सच है कि अगर वह चाहे तो भविष्य बता सकता है और अपनी मरज़ी पूरी कर सकता है। (यशायाह ४६:९-११) इसके अलावा, जब कोई घटना अपने आप घट जाती है, तब यहोवा अपना उद्देश्‍य पूरा करने के लिये इसका इस्तेमाल करता है। एक अनुभवी चरवाहे की तरह जो यह जानता है कि उसे अपने झुंड की अगुवाई और उसकी रक्षा कैसे करनी है, यहोवा भी अपने लोगों को सही रास्ता दिखाता है। वह उन्हें उद्धार के मार्ग पर ले जाता है, उनकी आध्यात्मिकता की रक्षा करता है और उन्हें ऐसे हालात और ऐसी तरक्कियों का फायदा उठाने के लिए उकसाता है जिनसे सारी दुनिया में चल रहे सुसमाचार प्रचार के काम को सफलता मिले।—भजन २३:१-४.

एक मुश्‍किल काम

४, ५. सुसमाचार का प्रचार करना इतना चुनौती भरा और मुश्‍किल काम क्यों रहा है?

४ जैसे नूह को अपने ज़माने में एक जहाज़ बनाने का बहुत बड़ा काम दिया गया था, उसी तरह पहली सदी में और आज भी मसीहियों को सारी दुनिया में राज्य के सुसमाचार का प्रचार करने का काम दिया गया है। दुनिया के कोने-कोने तक कोई संदेश पहुँचाना अपने आप में ही एक मुश्‍किल काम है, और सुसमाचार प्रचार करने का यह काम तो और भी मुश्‍किल रहा है। क्योंकि पहली सदी में, एक तो यीशु के चेलों की गिनती बहुत कम थी, दूसरे उनके स्वामी यीशु पर देशद्रोह का इलज़ाम लगाकर उसे मरवा दिया गया था। और उस वक्‍त यहूदी धर्म का दबदबा था और उन्हें इस बात का गर्व था कि यरूशलेम में उनका आलीशान मंदिर है। दक्षिणी यूरोप, उत्तर अफ्रीका और आस-पास के इलाकों में दूसरे धर्मों का दबदबा था और उनके भी अपने मंदिर और पुजारी थे। उसी तरह, सन्‌ १९१४ में जब “अन्तसमय” शुरू हुआ तो यीशु के अभिषिक्‍त चेलों की गिनती बहुत कम थी, और दूसरे धर्मों के लोगों की गिनती ज़्यादा थी, जो ये मानते थे कि वही परमेश्‍वर के सच्चे सेवक हैं।—दानिय्येल १२:९.

५ यीशु ने अपने चेलों को चेतावनी दी थी कि उन्हें सताया जाएगा। उसने कहा: “तब वे क्लेश दिलाने के लिये तुम्हें पकड़वाएंगे, और तुम्हें मार डालेंगे और मेरे नाम के कारण सब जातियों के लोग तुम से बैर रखेंगे।” (मत्ती २४:९) इतना ही नहीं, मसीहियों को खासकर आज के इन “अन्तिम दिनों में कठिन समय” का सामना करना पड़ेगा। (२ तीमुथियुस ३:१) तो फिर, प्रचार करने की इतनी भारी ज़िम्मेदारी, सताए जाने और अंतिम दिनों की तकलीफों की वज़ह से प्रचार का काम आज खासकर मुश्‍किल हो गया है। इस काम को पूरा करने के लिए बहुत ही मज़बूत विश्‍वास की ज़रूरत है।

६. यहोवा ने किस भविष्यवाणी के ज़रिए अपने लोगों को भरोसा दिलाया कि वे अपना काम ज़रूर पूरा कर पाएँगे?

६ यहोवा जानता था कि मुश्‍किलें ज़रूर आएँगी, मगर वह यह भी जानता था कि इस काम को कोई रोक नहीं पाएगा। एक जानी-मानी भविष्यवाणी में बताया गया था कि यह काम ज़रूर पूरा होगा। यह भविष्यवाणी पहली सदी में पूरी हुई थी और आज २०वीं सदी में भी हो रही है: “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा।” (तिरछे टाइप हमारे।)—मत्ती २४:१४.

७. पहली सदी में प्रचार का काम किस हद तक किया जा चुका था?

७ पहली सदी में परमेश्‍वर के सेवकों ने विश्‍वास दिखाया और पवित्र आत्मा की मदद से इस काम को पूरा करने के लिए वे निकल पड़े। यहोवा उनके साथ था इसलिए उन्होंने ऐसी सफलता पायी जिसकी उन्होंने शायद कभी उम्मीद भी नहीं की थी। यीशु की मौत के लगभग २७ साल बाद, जब पौलुस ने कुलुस्सियों की पत्री लिखी तब वह कह सका कि सुसमाचार का “प्रचार आकाश के नीचे की सारी सृष्टि में किया” जा चुका है। (कुलुस्सियों १:२३) उसी तरह बीसवीं सदी के खत्म होते-होते भी, यह सुसमाचार अब २३३ देशों में पहुँच चुका है।

८. बहुत-से लोगों ने किन हालात में सुसमाचार पर विश्‍वास किया है? मिसालें बताइए।

८ हाल के सालों में, लाखों लोगों ने सुसमाचार पर विश्‍वास किया है। इनमें से कई लोगों ने बहुत ही मुश्‍किल हालात में, युद्धों के दौरान, साक्षियों के काम पर पाबंदी के दौरान या कड़ी सताहट के दौरान सच्चाई स्वीकार की। पहली सदी में भी ऐसा ही हुआ था। एक बार पौलुस और सीलास को बड़ी निर्दयता से बेतों से मारा गया और बन्दीगृह में डाल दिया गया। क्या ऐसे हालात में भी किसी को चेला बनाया जा सकता है? क्यों नहीं, यहोवा ने ऐसा ही किया! उसने एक चमत्कार करके पौलुस और सीलास को बन्दीगृह से छुड़ाया, जिसकी वज़ह से दारोगा और उसका परिवार मसीही बन गये। (प्रेरितों १६:१९-३३) ऐसे अनुभव दिखाते हैं कि विरोध करनेवाले चाहे लाख कोशिश करें, मगर वे सुसमाचार के प्रचार को रोक नहीं सकते। (यशायाह ५४:१७) लेकिन ऐसा नहीं है कि मसीहियत के इतिहास के पन्‍ने हमेशा ही मुसीबतों और सताहटों की कहानियों से भरे हुए हैं। आइए अब हम कुछ ऐसी तरक्कियों पर ध्यान दें जिनसे पहली सदी में और आज २०वीं सदी में भी सफलता से सुसमाचार का प्रचार करने का रास्ता तैयार हुआ है।

धार्मिक माहौल

९, १०. यहोवा ने पहली सदी और २०वीं सदी में सुसमाचार के प्रचार के लिए माहौल कैसे तैयार किया?

९ इस पर गौर कीजिए कि दोनों ही सदियों में प्रचार का काम किस माहौल में शुरू हुआ। पहली सदी में, दानिय्येल ९:२४-२७ में ७० सप्ताहों के सालों की भविष्यवाणी में, उस साल की ओर यानी सा.यु. २९ की ओर इशारा किया गया था जब मसीहा प्रकट होनेवाला था। हालाँकि पहली सदी के यहूदी यह नहीं जानते थे कि मसीहा ठीक-ठीक कब आएगा, फिर भी वे उसका इंतज़ार कर रहे थे और आस लगाए हुए थे। (लूका ३:१५) फ्रेंच मानूएल बीबलीक कहती है: “लोग जानते थे कि दानिय्येल द्वारा बताए गए सत्तर सप्ताहों के साल अब खत्म हो रहे थे; इसलिए जब बपतिस्मा देनेवाले यूहन्‍ना ने कहा कि परमेश्‍वर का राज्य नज़दीक है तो किसी को भी ताज्जुब नहीं हुआ।”

१० हमारे समय के बारे में क्या? इस सदी की शुरूआत में स्वर्ग में एक बहुत बड़ी घटना घटी, यीशु राजा बना। इसी घटना से यीशु की उपस्थिति शुरू हुई। बाइबल की भविष्यवाणी बताती है कि यह उपस्थिति १९१४ में शुरू हुई। (दानिय्येल ४:१३-१७) हमारी सदी की शुरूआत में भी कुछ ईसाई लोग इस भविष्यवाणी के पूरा होने की आस लगाए हुए थे। और सच्चे बाइबल विद्यार्थी भी इसकी आस लगाये हुए थे, यह इससे ज़ाहिर होता है कि उन्होंने सन्‌ १८७९ में जब यह पत्रिका, प्रहरीदुर्ग छापनी शुरू की तब इसका नाम रखा, सिय्योन का प्रहरीदुर्ग और मसीह की होनेवाली उपस्थिति का ऐलान (अंग्रेज़ी)। इस तरह, पहली सदी में और आज भी, धार्मिक लोग जिस तरह आस लगाये हुए थे, उससे सुसमाचार के प्रचार किये जाने का माहौल तैयार हुआ।a

११. किस धार्मिक माहौल की वज़ह से दोनों युगों में सुसमाचार के प्रचार का काम करने में आसानी हुई?

११ एक और वज़ह जिससे दोनों युगों में मसीहियों का प्रचार काम आसान हो गया, वह यह थी कि बहुत-से लोग पवित्र शास्त्र या बाइबल से अच्छी तरह वाकिफ थे। पहली सदी में, यहूदियों की बिरादरियाँ आस-पास के गैर-यहूदी देशों में हर जगह फैली हुई थीं। इन यहूदियों के आराधनालय हुआ करते थे जहाँ वे नियमित रूप से शास्त्र पढ़ते थे और उन पर चर्चा करते थे। इस तरह, पहली सदी के मसीहियों के लिए लोगों को नयी-नयी सच्चाइयाँ सिखाना आसान था क्योंकि उन्हें पहले से शास्त्र का काफी ज्ञान था। (प्रेरितों ८:२८-३६; १७:१, २) उसी तरह, इस सदी की शुरूआत में भी, यहोवा के लोगों को बहुत-से देशों में ऐसा ही माहौल मिला। ईसाईजगत के इलाकों में, खासकर प्रोटेस्टंट देशों में बाइबल हर जगह मौजूद थी। बहुत-से गिरजों में इसे पढ़ा जाता था। लाखों लोगों के पास अपनी एक बाइबल थी, मगर इसे समझने के लिए उन्हें मदद की ज़रूरत थी।

कानून की मदद

१२. पहली सदी में रोम के कानून से लोगों की हिफाज़त कैसे होती थी?

१२ प्रचार के काम में मसीहियों को सरकार के कानूनों से भी कई बार फायदा हुआ है। पहली सदी में दुनिया पर रोमी साम्राज्य का अधिकार था और इस साम्राज्य के लिखित कानूनों का रोज़मर्रा ज़िंदगी पर बहुत असर पड़ता था। ये कानून लोगों की हिफाज़त करते थे और इनसे उस समय के मसीहियों को भी फायदा होता था। मिसाल के तौर पर, जब पौलुस ने रोम के एक कानून का हवाला दिया तो वह कैदखाने से छूट गया और कोड़े खाने से भी बच गया। (प्रेरितों १६:३७-३९; २२:२५, २९) एक बार जब रोम में कचहरी के इंतज़ाम के बारे में कहा गया तो इफिसुस में गुस्से से पागल हो रही भीड़ को शांत किया गया। (प्रेरितों १९:३५-४१) और एक बार, यरूशलेम में पौलुस को मार डाले जाने से बचाया गया क्योंकि वह एक रोमी नागरिक था। (प्रेरितों २३:२७) बाद में, रोम के कानून की वज़ह से ही वह कैसर के सामने अपने विश्‍वास के पक्ष में सफाई दे सका। (प्रेरितों २५:११) रोम के ज़्यादातर कैसर या राजा तानाशाह थे, फिर भी उस वक्‍त ऐसे कानून थे जिनके ज़रिये ‘सुसमाचार की रक्षा और उसका पुष्टिकरण’ किया जा सकता था।—फिलिप्पियों १:७, NHT.

१३. हमारे समय में प्रचार का काम पूरा करने में कानून से मदद कैसे मिली है?

१३ आज भी बहुत-से देशों में ऐसा ही होता है। हालाँकि कुछ लोग “कानून की आड़ में उत्पात मचाते हैं,” लेकिन, फिर भी ज़्यादातर देशों के लिखित कानून किसी भी धर्म को मानने की आज़ादी देते हैं और इसे एक बुनियादी हक मानते हैं। (भजन ९४:२०) आज कई देशों की सरकारों ने यहोवा के साक्षियों को कानूनी तौर पर मान्यता दी है, क्योंकि वे अब जान गए हैं कि साक्षी समाज की शांति के लिए खतरा नहीं हैं। अमरीका में साक्षियों का ज़्यादातर छपाई का काम होता है। वहाँ ऐसे कानून हैं जिनकी वज़ह से प्रहरीदुर्ग पत्रिका को लगातार १२० सालों से छापना और पढ़ने के लिये दुनिया भर में भेजना मुमकिन हो पाया है।

शांति और सहनशीलता का समय

१४, १५. पहली सदी में काफी हद तक जो शांति और स्थिरता थी उससे प्रचार का काम करने में कैसे मदद मिली?

१४ दोनों ही युगों में, कुछ समय तक दुनिया में जो शांति रही है, उसकी वज़ह से भी प्रचार का काम करने में मदद मिली है। बेशक, यीशु ने भविष्यवाणी की थी कि पहली सदी और २०वीं सदी में भी ‘जाति पर जाति चढ़ाई करेगी,’ और यह भविष्यवाणी पूरी हुई है। मगर इन लड़ाइयों के बीच ऐसा समय भी आया है, जब शांति और स्थिरता की वज़ह से राज्य के सुसमाचार का प्रचार पूरे ज़ोरों पर करना मुमकिन हुआ। (मत्ती २४:७) पहली सदी के मसीही पैक्स रोमाना या रोम के शांतियुग में जीये। एक इतिहासकार ने लिखा: “रोम ने दक्षिण यूरोप, उत्तर अफ्रीका और आस-पास के इलाकों को पूरी तरह अपने काबू में कर लिया था, इस वज़ह से उन देशों के बीच लगातार चली आ रही लड़ाइयाँ खत्म हो गयी थीं।” और इस शांति और स्थिरता की वज़ह से पहली सदी के मसीही रोम साम्राज्य के किसी भी इलाके में घूमते हुए भी काफी हद तक सुरक्षित थे।

१५ रोम यह कोशिश कर रहा था कि अपने साम्राज्य के लोगों में एकता लाए। और इसलिए लोगों का हौसला बढ़ाया गया कि वे अलग-अलग इलाकों में आएँ-जाएँ, दूसरे धर्मों के लिए सहनशीलता दिखाएँ और एक-दूसरे के विचार जानें। साथ ही इस भावना को भी बढ़ावा दिया गया कि सब इंसान भाई-भाई हैं। सभ्यता की ओर (अंग्रेज़ी) किताब कहती है: “[रोमी] साम्राज्य में एकता की वज़ह से [मसीहियों को प्रचार] के काम में काफी मदद मिली। देशों की सरहदें मिटा दी गयी थीं। रोम साम्राज्य के किसी एक देश का नागरिक खुद को पूरे साम्राज्य का नागरिक समझता था। . . . ऐसे में, अगर रोमी नागरिकों को एक ऐसे धर्म के बारे में सिखाया जाता जो सारी दुनिया के लोगों को भाई-भाई कहता है तो उन्हें इसे मानने में कोई मुश्‍किल नहीं होती।”—प्रेरितों १०:३४, ३५; १ पतरस २:१७ से तुलना कीजिए।

१६, १७. आज किस वज़ह से देशों के बीच कुछ हद तक शांति बनी हुई है और कई लोग किसकी ज़रूरत महसूस करते हैं?

१६ हमारे समय के बारे में क्या? बीसवीं सदी में जैसे विनाशकारी युद्ध हुए हैं वैसे पहले कभी नहीं हुए। और कुछ देशों के बीच छोटे-मोटे युद्ध तो चलते ही रहते हैं। (प्रकाशितवाक्य ६:४) मगर ऐसा भी समय आया है जब काफी हद तक शांति कायम रही है। पिछले ५० से भी ज़्यादा सालों से, दुनिया के बड़े-बड़े देशों के बीच कोई बड़ा युद्ध नहीं हुआ। इस वज़ह से इन देशों में सुसमाचार का प्रचार करना काफी आसान रहा है।

१७ बीसवीं सदी में हो चुके युद्धों के डरावने नतीजे देखकर कई लोग यह मानने लगे हैं कि सारी दुनिया पर एक ही सरकार होनी चाहिए। कहीं एक और विश्‍वयुद्ध न हो जाए, इस डर से राष्ट्र संघ और संयुक्‍त राष्ट्र संघ बनाए गए। (प्रकाशितवाक्य १३:१४) और इन दोनों संस्थाओं ने अपना मकसद ज़ाहिर किया है कि वे दुनिया के सभी देशों के बीच सहयोग और शांति को बढ़ाएँगे। लोग भी इसकी ज़रूरत महसूस करते हैं और इसलिए जब वे एक ऐसी सरकार यानी परमेश्‍वर के राज्य के बारे में खुशखबरी सुनते हैं जो हमेशा के लिए इस धरती पर सच्ची शांति लाएगा, तो वे इसके बारे में और ज़्यादा सीखना चाहते हैं।

१८. धर्मों के बारे में कैसा नज़रिया प्रचार काम के लिए अच्छा रहा है?

१८ हालाँकि दोनों सदियों में मसीहियों को कई बार बड़ी निर्दयता से सताया गया है, मगर ऐसा भी समय रहा है जब उन्हें सताहट से चैन मिला और अपना धर्म मानने की आज़ादी थी। (यूहन्‍ना १५:२०; प्रेरितों ९:३१) रोमी साम्राज्य में भी ऐसी आज़ादी थी, क्योंकि रोमी दूसरे लोगों पर जब जीत हासिल करते थे तो वे उनके देवी-देवताओं को भी अपना लेते थे और उन्हें किसी भी देवता को मानने की छूट थी। प्रोफॆसर रॉडनी स्टार्क ने लिखा: “किसी भी धर्म को मानने की जो आज़ादी रोम देता था, वैसी आज़ादी अठारहवीं सदी के अमरीकी आंदोलन तक कहीं और नज़र नहीं आयी।” आज के ज़माने में, उसी तरह की आज़ादी है क्योंकि कई देशों में ऐसे खुले विचारों के लोग हैं जो दूसरों के विचारों को सुनने लगे हैं, चाहे वे उनके अपने विचारों से अलग ही क्यों न हों। इसी वज़ह से, जब यहोवा के साक्षी ऐसे लोगों के पास बाइबल का संदेश लेकर जाते हैं तो वे उनकी सुनते हैं।

टेक्नॉलजी की मदद

१९. पहली सदी के मसीहियों ने कोडॆक्स का इस्तेमाल कैसे किया?

१९ आखिर में, गौर कीजिए कि यहोवा ने कैसे अपने लोगों को टेक्नॉलजी में होनेवाली तरक्की का फायदा उठाने में मदद दी है। पहली सदी में, टेक्नॉलजी में कोई खास तरक्की तो नहीं हुई थी, लेकिन ईजाद की गयी एक नयी चीज़ का मसीहियों ने पूरा-पूरा फायदा उठाया था। यह था कोडॆक्स यानी पन्‍नोंवाली किताब। कोडॆक्स ने उन खर्रों की जगह ली जिन्हें इस्तेमाल करना बहुत मुश्‍किल था। कोडॆक्स का जन्म (अंग्रेज़ी) किताब कहती है: “दुनियावी साहित्य में खर्रों की जगह कोडॆक्स को अपनाने में बहुत वक्‍त लग गया, मगर मसीहियों ने तुरंत और बड़े पैमाने पर कोडॆक्स को अपना लिया।” इसी किताब में यह भी कहा गया: “दूसरी सदी में मसीही, कोडॆक्स का इतने बड़े पैमाने पर इस्तेमाल कर रहे थे, जिससे ऐसा लगता है कि इसे शायद बहुत पहले ईजाद किया गया था, जबकि यह सिर्फ सा.यु. १०० के करीब ईजाद की गयी थी।” खर्रे से ज़्यादा कोडॆक्स को इस्तेमाल करना आसान था। शास्त्रवचनों को ढूँढने में मुश्‍किल नहीं होती थी। पहली सदी में पौलुस को और साथ ही दूसरे मसीहियों को भी इससे ज़रूर मदद मिली होगी जो न सिर्फ बाइबल का ज्ञान लोगों को देते थे बल्कि इन शिक्षाओं को सच साबित करने के लिए वे उनको शास्त्र के हवाले ‘खोल-खोलकर समझाते थे।’—प्रेरितों १७:२, ३.

२०. परमेश्‍वर के लोगों ने दुनिया के कोने-कोने तक प्रचार करने के लिए आधुनिक टेक्नॉलजी का इस्तेमाल कैसे किया है और क्यों?

२० हमारी सदी में टेक्नॉलजी ने हैरतअंगेज़ तरक्की की है। आज तेज़ गति से किताबें छापनेवाली मशीनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। इनकी मदद से बाइबल समझानेवाली किताबें बीसियों भाषाओं में साथ-साथ छापी जा रही हैं। आधुनिक टेक्नॉलजी की मदद से बाइबल के अनुवाद में भी तेज़ी आयी है। ट्रकों, ट्रेनों, पानी के जहाज़ों और हवाईजहाज़ों के ज़रिए बाइबल समझानेवाली इन किताबों को दुनिया के किसी भी कोने तक जल्द-से-जल्द पहुँचाया जा सकता है। टेलिफोन और फैक्स मशीनों के ज़रिए दुनिया के एक कोने से दूसरे कोने तक संदेश तुरंत पहुँचाए जा सकते हैं। अपनी पवित्र आत्मा के ज़रिये, यहोवा ने अपने सेवकों को टेक्नॉलजी का इस्तेमाल करने और इस तरह दुनिया भर में सुसमाचार फैलाने की प्रेरणा दी है। वे टेक्नॉलजी की इन तरक्कियों को इसलिये इस्तेमाल नहीं करते कि इस दुनिया की सबसे आधुनिक चीज़ों के बारे में जानें और उन्हें काम में लाएँ। इसके बजाय, वे इस बात में ज़्यादा दिलचस्पी रखते हैं कि वे किन चीज़ों की मदद से अपना प्रचार का काम सबसे असरदार तरीके से कर सकते हैं।

२१. हम किस बात का पूरा-पूरा यकीन रख सकते हैं?

२१ यीशु ने भविष्यवाणी की, “राज्य का यह सुसमाचार सारे जगत में प्रचार किया जाएगा।” (मत्ती २४:१४) ठीक जैसे पहली सदी के मसीहियों ने इस भविष्यवाणी को पूरा होते देखा, वैसे ही आज हम इसे बड़े पैमाने पर पूरा होते देख रहे हैं। सुसमाचार का प्रचार काम इतना बड़ा और मुश्‍किल होने के बावजूद, पहली सदी में किया गया और आज भी किया जा रहा है। अच्छा और बुरा समय आया, कानून बदले और लोगों का रवैया बदला, युद्ध हुए और शांति का समय भी आया, टेक्नॉलजी ने बहुत तरक्की की, लेकिन यह सुसमाचार प्रचार का काम जारी रहा। इससे यहोवा की बुद्धि और भविष्य बता सकने की काबिलीयत ज़ाहिर होती है। यहोवा के ये गुण क्या आपको हैरत में नहीं डाल देते? हम इस बात का पूरा-पूरा यकीन रख सकते हैं कि प्रचार का यह काम यहोवा के ठहराए हुए समय पर ज़रूर पूरा होगा और उसका प्यार-भरा उद्देश्‍य भी पूरा होगा जिससे धर्मियों को आशीषें मिलेंगी। वे ही इस पृथ्वी के अधिकारी होंगे और इसमें सदा बसे रहेंगे। (भजन ३७:२९; हबक्कूक २:३) अगर हम यहोवा के उद्देश्‍य के मुताबिक जीएँ, तो हम भी उन धर्मियों में से एक होंगे।—१ तीमुथियुस ४:१६.

[फुटनोट]

a मसीहा के बारे में इन दो भविष्यवाणियों की ज़्यादा अच्छी समझ पाने के लिए किताब ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है के पृष्ठ ३६, ९७ और ९८-१०७ देखिए। यह किताब वॉच टावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा छापी गयी है।

दोहराने के लिए मुद्दे

◻ सुसमाचार को प्रचार करने का काम मुश्‍किल क्यों रहा है?

◻ सरकारी कानूनों से और समाज में शांति और स्थिरता से, मसीहियों को अपना काम करने में कैसे मदद मिली है?

◻ प्रचार के काम पर यहोवा की आशीष की वज़ह से हम भविष्य में क्या होने का पूरा-पूरा यकीन रख सकते हैं?

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
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