जीवन कहानी
यहोवा अपने वफादार लोगों को प्रतिफल ज़रूर देता है
वर्नन डनकम की ज़ुबानी
हमेशा की तरह उस रात भी मैंने खाने के बाद एक सिगरेट जलाया और फिर अपनी पत्नी आइलीन से पूछा: “आज की मीटिंग कैसी रही?”
उसने कुछ रुककर कहा, “आज एक खत पढ़कर सुनाया गया जिसमें बताया गया कि कलीसिया की ज़िम्मेदारी सँभालने के लिए अब कुछ और भाइयों को नियुक्त किया गया है। उनमें आपका नाम भी है। आपको साउंड सिस्टम सँभालने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। और खत के आखिर में कहा गया: ‘अगर इनमें से किसी भाई को धूम्रपान करने की आदत है, तो उसका यह फर्ज़ बनता है कि वह संस्था को लिखकर बता दे कि मैं यह ज़िम्मेदारी नहीं ले सकता।’ ”a यह सुनकर मैंने कहा: “ओह . . . , तो ऐसी बात है!”
फिर अपने दाँत जकड़ते हुए मैंने सिगरेट को ऐशट्रे में रगड़कर बुझा दिया और सोचा, “पता नहीं, मुझे इस ज़िम्मेदारी के लिए क्यों चुना गया। लेकिन आज तक मैंने कभी किसी ज़िम्मेदारी से मुँह नहीं मोड़ा है, ना ही आगे कभी मोड़ूँगा।” मैंने ठान लिया कि अब से मैं कभी धूम्रपान नहीं करूँगा। इस फैसले ने एक मसीही और एक संगीतकार की हैसियत से मेरी ज़िंदगी में ज़बरदस्त बदलाव लाया। मगर इस फैसले तक पहुँचने के लिए पहले मेरी ज़िंदगी में क्या-क्या घटना घटी, आइए उसके बारे मैं बताऊँ।
मेरा बचपन
मेरा जन्म सितंबर 21, 1914 के दिन, कनाडा के टोरोन्टो शहर में हुआ था। मैं घर में सबसे बड़ा था। मुझसे छोटे तीन भाई थे, योर्क, ओरलैंडो और डग्लस और उनसे छोटी दो बहनें थीं, आइलीन और कोरल। मेरे पापा का नाम वर्नन और मम्मी का नाम लाइला था। उन्होंने हम बच्चों को बड़े प्यार और मेहनत से पाल-पोसकर बड़ा किया था। जब मैं सिर्फ नौ बरस का था, तब मम्मी ने मुझे एक वाइलिन लाकर दिया और संगीत सीखने के लिए हैरिस स्कूल ऑफ म्यूज़िक में भरती किया। घर की हालत इतनी अच्छी नहीं थी, फिर भी मम्मी-पापा मेरे स्कूल की फीस और आने-जाने का खर्च किसी तरह उठा लेते थे। फिर मैंने टोरोन्टो के रॉयल कन्सरवेट्री ऑफ म्यूज़िक से संगीत की शिक्षा हासिल की। बारह साल की उम्र में मैंने टोरोन्टो के मशहूर मैस्सी हॉल में आयोजित की गई एक शहर-व्यापी संगीत प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। वह प्रतियोगिता मैंने जीत ली और मुझे इनाम में एक बहुत बढ़िया वाइलिन दिया गया, जिसका केस मगरमच्छ की खाल से बना था।
कुछ समय बाद मैंने पियानो और बास-वाइलिन बजाना भी सीख लिया। अकसर मैं अपने एक ग्रूप के साथ शुक्रवार और शनिवार की शाम को छोटी-छोटी पार्टियों में और विद्यार्थियों के कुछ डांस पार्टियों में संगीत बजाता था। एक ऐसी ही पार्टी में मेरी मुलाकात आइलीन से हुई। हाई स्कूल के आखिरी साल में मैंने शहर के बहुत-से ऑर्केस्ट्रा ग्रूप के साथ काम किया। ग्रैजुएशन के बाद, मुझे फर्डी माउरी ऑर्केस्ट्रा ग्रूप के साथ काम करने के लिए बुलाया गया। यहाँ मुझे बहुत पैसे मिलते थे। इस ग्रूप के साथ मैंने 1943 तक काम किया।
यहोवा को जानना
पहले विश्वयुद्ध से कुछ ही समय पहले मम्मी-पापा को सच्चाई मिली थी। उस वक्त पापा टोरोन्टो के एक डिपार्टमेंट स्टोर में काम करते थे। उनके साथ काम करनेवाले दो आदमी बाइबल विद्यार्थी थे। (उन दिनों यहोवा के साक्षी बाइबल विद्यार्थी कहलाते थे।) वे दोनों दोपहर को खाने के वक्त बाइबल पर कुछ चर्चा किया करते थे। पापा उनकी बातचीत सुनते और फिर शाम को घर आकर मम्मी को बताते थे। कुछ साल बाद, 1927 में टोरोन्टो के कनेडियन नैश्नल एक्ज़िबिशन ग्राऊँड्स के स्टेडियम में बाइबल विद्यार्थियों का एक बड़ा अधिवेशन हुआ। यह स्टेडियम हमारे घर के बहुत पास था इसलिए अधिवेशन के लिए अमरीका के ओहायो शहर से आए 25 लोग हमारे घर में ठहरे।
इसके बाद से एक बहन, एडा ब्लेट्सो हमारे घर अकसर आने लगी। वह मम्मी से बाइबल पर चर्चा करती और संस्था की नयी-नयी पत्रिकाएँ देकर जाती। एक दिन उसने मम्मी से पूछा: “मिसेज़ डनकम, मैं आपको जो पत्रिकाएँ देती हूँ, क्या आपने अभी तक उन में से किसी को पढ़कर देखा है?” उसी वक्त मम्मी ने ठान लिया कि वह पत्रिकाएँ ज़रूर पढ़ेगी, हालाँकि छः बच्चों की वज़ह से वह बहुत व्यस्त रहती थी। और तब से उसने संस्था की पत्रिकाएँ पढ़ना कभी नहीं छोड़ा। लेकिन मैं तो उनकी तरफ कभी मुड़कर भी नहीं देखता था। मैं स्कूल से ग्रैजुएट होने की कोशिश में था और संगीत में पूरी तरह खो चुका था।
जून 1935 में मैंने आइलीन से शादी कर ली। हमारी शादी ऐंग्लिकन चर्च में हुई। मैंने 13 साल की उम्र में ही यूनाइटेड चर्च छोड़ दिया था, इसलिए धर्म के साथ मेरा कोई संबंध नहीं था। मगर शादी के रजिस्टर में मैंने लिखा कि मैं एक यहोवा का साक्षी हूँ, हालाँकि तब तक मैं साक्षी नहीं था।
मेरी और आइलीन की यह ख्वाहिश थी कि जब हमें बच्चे होंगे तो हम उनकी अच्छी तरह से परवरिश करेंगे। इसलिए हम दोनों ने मिलकर नया नियम पढ़ना शुरू किया। लेकिन हम इसे ज़ारी नहीं रख सके क्योंकि बीच में दूसरे काम आ जाते थे। कुछ समय बाद हमने दोबारा शुरू किया मगर फिर नाकाम रहे। 1935 के क्रिसमस में मम्मी ने हमें तोहफे में एक किताब भेजी, जिसका नाम था, द हार्प ऑफ गॉड। किताब देखकर मेरी पत्नी ने कहा: “देखो तो, तुम्हारी मम्मी ने कैसा अजीब-सा तोहफा भेजा है!” लेकिन मेरे काम पर जाने के बाद, वह उस किताब को पढ़ने लगी और उसे वह किताब बहुत पसंद आयी। और यह बात मुझे काफी समय बाद पता चली। जहाँ तक बच्चों का हमारा सपना था, वह टूटकर बिखर गया क्योंकि फरवरी 1, 1937 को हमारी एक बच्ची पैदा हुई मगर वह गुज़र गई। तब हमारे दिल को गहरा सदमा पहुँचा।
इस दरमियान मम्मी-पापा और भाई-बहन, सब प्रचार में पूरे जोश के साथ हिस्सा लेने लगे थे। एक खास महीने में संस्था ने सुझाव दिया कि हर कोई कन्सोलेशन (अब सजग होइए!) पत्रिका के लिए सब्सक्रिप्शन पाने की कोशिश करे। हमारे परिवार में हर किसी को सब्सक्रिप्शन मिल गया था सिर्फ पापा को नहीं मिला था। यह जानकर मुझे बड़ा अफसोस हुआ। इसलिए हालाँकि मैंने कभी संस्था की कोई किताब नहीं पढ़ी थी, फिर भी मैंने पापा से कहा: “पापा, मेरे नाम से एक सब्सक्रिप्शन फॉर्म भर दीजिए तो आप भी दूसरों के बराबर हो जाएँगे।” फिर गर्मी का मौसम आया और हमारी ऑर्केस्ट्रा ग्रूप, टोरोन्टो शहर से बाहर एक पर्यटक-स्थल की तरफ निकल पड़ी। वहाँ मुझे कन्सोलेशन पत्रिका डाक द्वारा मिलने लगी। जब पतझड़ का मौसम आया तो हम वापस शहर लौट आए। यहाँ के नये पते पर भी हमें पत्रिकाएँ मिलने लगीं, मगर मैंने तो कभी उन्हें लिफाफे से निकालकर देखा तक नहीं।
एक बार क्रिसमस की छुट्टियों के दौरान जब मैंने पत्रिकाओं के ढेर पर नज़र डाली तो मैंने सोचा कि जब मैंने इन्हें पैसे देकर खरीदी हैं, तो कम-से-कम देख तो लूँ कि इनमें लिखा क्या है। तब मैंने एक पत्रिका निकाली और जब पढ़ा तो दंग रह गया! उसमें भ्रष्टाचार और राजनीति में किए जानेवाले षड्यंत्रों का पर्दाफाश किया गया था। फिर मैंने ये बातें अपने साथियों को भी बताई, मगर वे मेरी बातों पर यकीन नहीं करते थे। और मैं अपनी बातों को साबित करने के लिए यूँ लगातार पत्रिकाएँ पढ़ने लगा। इस तरह मैं यहोवा के बारे में गवाही देने लगा, हालाँकि मुझे इसका एहसास नहीं था। तब से लेकर आज तक मैं “विश्वासयोग्य और बुद्धिमान दास” द्वारा तैयार की जा रही बेमिसाल किताबों को बराबर पढ़ता हूँ।—मत्ती 24:45.
फिर कुछ समय बाद मैं आइलीन के साथ रविवार की सभाओं में भी जाने लगा, हालाँकि मैं पूरे हफ्ते बहुत व्यस्त रहता था। एक बार 1938 में जब हम रविवार की एक सभा में गए, तो दो बुज़ुर्ग बहनें हमारे पास आईं। उन्होंने हमें अभिवादन किया और फिर उनमें से एक ने पूछा: “भाई, क्या आपने यहोवा के पक्ष में होने का फैसला कर लिया है? देखिए, हरमगिदोन बस आने ही वाला है!” मुझे तो यकीन हो गया था कि यहोवा ही सच्चा परमेश्वर है और यही उसका संगठन है। और मैं इसका एक सदस्य भी होना चाहता था, इसलिए मैंने अक्टूबर 15, 1938 को बपतिस्मा ले लिया। करीब छः महीने बाद आइलीन का भी बपतिस्मा हो गया। मुझे यह कहने में खुशी होती है कि आखिर में हमारे परिवार के सभी सदस्य यहोवा के सेवक बन गए।
मीटिंगों में जाकर मुझे कितनी खुशी मिलती थी इसका मैं बयान नहीं कर सकता। भाई-बहनों के साथ जल्द ही मुझे अपनापन महसूस होने लगा। अगर मैं कभी मीटिंग नहीं जा पाता तो हमेशा यह जानने के लिए उत्सुक रहता कि मीटिंग कैसी रही। शुरू में मैंने जिस शाम का ज़िक्र किया, उस दिन भी मैं मीटिंग नहीं जा पाया था। और जब आइलीन ने मुझे मीटिंग की बात बताई और उसे सुनकर मैंने जो फैसला किया, उससे मेरी ज़िंदगी में एक नया मोड़ आ गया।
बहुत बड़ी तबदीली करने का समय
हमारी ज़िंदगी में एक और भारी बदलाव मई 1, 1943 को हुआ। इसके कुछ ही महीने पहले, हम सितंबर 1942 को क्लीवलैंड, ओहायो में आयोजित अधिवेशन, ‘न्यू वर्ल्ड थियोक्रैटिक असेम्बली’ में गए थे। यह हमारे लिए पहला बड़ा अधिवेशन था। वॉच टावर संस्था के अध्यक्ष, भाई नॉर ने “शांति—क्या यह कायम रह सकती है?” विषय पर एक भाषण दिया। भाषण बड़ा ही दिलचस्प था क्योंकि उस समय दूसरा विश्वयुद्ध ज़ोरों पर था और लोगों को उसके रुकने की कोई गुंजाइश नहीं दिख रही थी। मगर भाई ने बेधड़क होकर प्रकाशितवाक्य अध्याय 17 से समझाया कि युद्ध ज़रूर रुकेगा और उसके बाद शांति का एक समय शुरू होगा जिसके दौरान प्रचार काम ज़ोर-शोर से किया जाएगा।
भाई नॉर ने इससे पहले एक और भाषण दिया था और उसका हम पर ज़्यादा असर हुआ। वह भाषण था: “यिप्तह और उसकी मन्नत।” उसमें बताया गया कि प्रचार के लिए पायनियरों की बहुत ज़रूरत है। फिर श्रोताओं से पूछा गया कि पायनियरिंग करने के लिए कौन-कौन तैयार हैं। तब आइलीन और मैंने एक-दूसरे की तरफ देखा और कई दूसरे लोगों के साथ हमने एक आवाज़ में कहा: “हम तैयार हैं!” फिर तुरंत हम पायनियरिंग के लिए निकलने की तैयारी में लग गए।
हमारी पायनियरिंग मई 1, 1943 से शुरू हुई। संस्था ने हमें कनाडा के पारी साउंड, ऑन्टॆरीयो में प्रचार के लिए भेजा। लेकिन उस वक्त वहाँ प्रचार काम पर पाबंदी लगी हुई थी। दरअसल जुलाई 4, 1940 से पूरे कनाडा देश में पाबंदी लगी हुई थी। यहोवा के बारे में प्रचार करना और संस्था के साहित्य बाँटना गैर-कानूनी था। इसलिए हम प्रचार में अपने साथ सिर्फ किंग जेम्स वर्शन बाइबल ले जाते थे। हमारे यहाँ पहुँचने के बस चंद दिनों बाद, ब्राँच ऑफिस ने एक तजुर्बेकार पायनियर, भाई स्ट्यूवर्ट मैन को हमारे साथ प्रचार करने के लिए भेजा। हम इस इंतज़ाम के लिए कितने एहसानमंद थे! भाई बहुत मिलनसार थे, उनके चेहरे पर हमेशा मुस्कान रहती थी। उनके साथ काम करके हमें बहुत खुशी मिली और हमने उनसे बहुत कुछ सीखा भी। हम बहुत-से लोगों के साथ बाइबल स्टडी कर रहे थे। उसी दौरान संस्था ने हमें हैमिलटन शहर भेजा। लेकिन जल्द ही मुझ पर सेना में भर्ती होने का दबाव आया, हालाँकि तब तक इसके लिए मेरी उम्र बहुत ज़्यादा थी। और जब मैंने इंकार कर दिया, तो दिसंबर 31, 1943 के दिन मुझे गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद अदालत की सुनवाई हुई और फिर मुझे सर्विस कैंप में मज़दूरी करने की सज़ा दी गई। अगस्त 1945 तक मुझे वहीं रहना पड़ा।
मेरी रिहाई के तुरंत बाद संस्था ने मुझे और आइलीन को ऑन्टॆरीयो के कौर्नवल में भेजा। लेकिन कुछ ही समय बाद संस्था के कानूनी विभाग ने हमें एक खास ज़िम्मेदारी देकर क्वीबेक प्रांत में भेजा। क्वीबेक में ड्यूप्लीसी का राज चल रहा था और यहोवा के साक्षियों को बड़ी बेरहमी से सताया जा रहा था। अदालती कार्यवाही के सिलसिले में भाइयों की मदद करने के लिए मुझे हफ्ते में कई बार, चार अलग-अलग अदालतों में जाना पड़ता था। यह बड़ा ही दिलचस्प काम था और इस काम के ज़रिए मेरा विश्वास भी बहुत मज़बूत हुआ।
सन् 1946 में क्लीवलैंड में एक अधिवेशन हुआ और उसके बाद, मुझे सर्किट और डिस्ट्रिक्ट काम की ज़िम्मेदारियाँ सौंपी गईं। हम कनाडा के एक छोर से दूसरे छोर तक यात्रा करते थे। ज़िंदगी बड़े तेज़ रफ्तार से चल रही थी। 1948 में हमें वॉच टावर बाइबल स्कूल ऑफ गिलियड के 11वें क्लास के लिए बुलाया गया। भाई एलबर्ट श्रोडर और मैक्सवैल फ्रेंड हमारे शिक्षक थे। क्लास में 108 विद्यार्थी थे और उनमें 40 अभिषिक्त जन थे। ज़्यादातर भाई-बहनों को यहोवा की सेवा में काफी तजुर्बा हासिल था। उनके साथ एक क्लास में रहकर हमने काफी कुछ सीखा। यह एक बहुत ही बढ़िया अनुभव रहा!
एक दिन ब्रुकलिन से भाई नॉर हमारे क्लास में आए। उन्होंने एक भाषण दिया और कहा कि हमें ऐसे 25 भाई-बहनों की ज़रूरत है जो जापानी भाषा सीखने और जापान में जाकर सेवा करने के लिए तैयार हों। सभी-के-सभी 108 जन तैयार हो गए! अब भाई नॉर का काम था कि वह उनमें से 25 लोगों को चुने। भाई-बहनों को चुनने में ज़रूर यहोवा का हाथ था इसलिए बिलकुल सही चुनाव किया गया। इन भाई-बहनों ने ही जापान में प्रचार का काम शुरू किया और उनमें से ज़्यादातर आज भी जापान में मिश्नरी सेवा कर रहे हैं हालाँकि उनकी उम्र काफी ढल चुकी है। उनमें लॉयड और मेल्बा बैरी भी थे। उन्हें और कुछ भाई-बहनों को बाद में दूसरे देश भेजा गया। भाई लॉयड पिछले साल अपनी मृत्यु तक गवर्निंग बॉडी के सदस्य रहे। यहोवा ने हम सभी को वाकई में बहुत प्रतिफल दिया है।
ग्रैजुएशन के बाद मुझे और आइलीन को मिश्नरी काम के लिए जमैका जाना था। लेकिन कनाडा में अब भी कुछ मुकद्दमों की सुनवाई बाकी थी इसलिए हमें कनाडा वापस जाने के लिए कहा गया।
और ज़्यादा संगीत!
पायनियर सेवा की खातिर हालाँकि मैंने संगीत छोड़ दिया था, मगर ऐसा लग रहा था कि संगीत ने मुझे नहीं छोड़ा। वर्ष 1949 में टोरोन्टो के मैपल लीफ गार्डन्स नामक स्टेडियम में एक अधिवेशन हुआ जिसमें संस्था के अध्यक्ष, भाई नॉर और उनके सैक्रेट्री भाई मिलटन हैनशल आए। भाई नॉर ने एक भाषण दिया: “वह इतनी जल्दी नहीं, जितना आप सोचते हैं!” भाषण इतना ज़बरदस्त था कि सुननेवाले कभी भूल नहीं सकते। उस अधिवेशन में पहली बार मुझे ऑर्केस्ट्रा का काम सँभालने के लिए कहा गया। हमने किंगडम सर्विस सॉन्ग बुक (1944) के कुछ जाने-माने गीतों के लिए धुन बजाने की तैयारी की। भाइयों को यह बहुत अच्छा लगा। शनिवार का कार्यक्रम खत्म होने के बाद, हमने रविवार के लिए चुने गए गीतों का रिहर्सल किया। रिहर्सल के दौरान मैंने भाई हैनशल को हमारी ओर आते देखा, तो उनसे बात करने के लिए ऑर्केस्ट्रा को कुछ देर तक रोका। बातचीत के दौरान भाई ने मुझसे पूछा, “आपके ऑर्केस्ट्रा में कितने संगीतकार हैं?” मैंने कहा, “अगर सभी संगीतकार मौजूद हों, तो हम कुल मिलाकर 35 हैं।” उन्होंने कहा, “अगले साल, न्यू यॉर्क के अधिवेशन में आपके पास दुगुने संगीतकार होंगे।”
लेकिन न्यू यॉर्क के अधिवेशन से पहले ही मुझे ब्रुक्लिन बॆथल में काम करने के लिए बुला लिया गया। कुछ मजबूरियों की वज़ह से उस समय आइलीन मेरे साथ नहीं आ सकी थी, लेकिन वह बाद में आयी। जब मैं आया था, तब तक 124, कॉलम्बिया हाइट्स की बिल्डिंग तैयार नहीं हुई थी। इसलिए मुझे रहने के लिए बॆथल के पुराने बिल्डिंग में एक छोटा-सा कमरा दिया गया, जिसमें दो अभिषिक्त भाई भी मेरे साथ थे। वे थे, भाई पेन और भाई कार्ल क्लाइन। उनसे मैं यहीं पर पहली बार मिला था। वे दोनों उम्र में मुझसे बड़े थे। हालाँकि हम तीनों के लिए कमरा बहुत छोटा था मगर हमें कभी कोई परेशानी नहीं हुई। दोनों भाई बहुत धीरज और शांति से काम लेते थे। मैंने भी कोशिश की कि मेरी वज़ह से उन्हें कोई दिक्कत न हो। यहाँ रहकर मैंने सीखा कि अगर यहोवा की आत्मा साथ हो, तो सब कुछ मुमकिन है। भाई क्लाइन के साथ रहकर और उनके साथ काम करके मुझे बहुत-सी आशीषें मिलीं। वे मदद करने के लिए हमेशा तैयार रहते थे। हम दोनों की अच्छी बनती थी और हम 50 से भी ज़्यादा सालों से अच्छे दोस्त हैं।
सन् 1950, 1953, 1955 और 1958 में मुझे यैंकी स्टेडियम में हुए अधिवेशनों के ऑर्केस्ट्रा में काम करने का मौका मिला। इसके अलावा, 1963 में कैलिफॉर्निया, पासाडीना के रोज़ बोल स्टेडियम में हुए अधिवेशन में ऎल कैव्लिन के साथ भी ऑर्केस्ट्रा की ज़िम्मेदारी सँभालने का मौका मिला। 1953 में यैंकी स्टेडियम के अधिवेशन में रविवार को जन-भाषण से पहले एक संगीत कार्यक्रम पेश किया गया। कार्यक्रम में भाई एरिक फ्रॉस्ट ने बहन एडीट शीम्योनिक (बाद में वाइगौंट) को बुलाया जिसने अपने खूबसूरत अंदाज़ में भाई का लिखा गीत “साक्षियो—बढ़ते चलो!” गाया। गीत के लिए धुन हमारे ऑर्केस्ट्रा ग्रूप ने बजाया था। फिर, मिश्नरी भाई हैरी ऑरनॆट ने हमें ऐसे रिकॉर्डिंग सुनाए जिनसे हमारा रोम-रोम खिल उठा। भाई ने यह रिकॉर्डिंग अफ्रीका के उत्तरी रोडेशिया (ज़ांबिया) से लाए थे। तभी हमने पहली बार अफ्रीका के भाई-बहनों की सुरीली आवाज़ सुनी। उनके गीतों से सारा स्टेडियम गूँज उठा!
सन् 1966 की गीत-पुस्तिका की रिकॉर्डिंग
क्या आपको वह गुलाबी जिल्दवाली गीत-पुस्तिका याद है, जिसका नाम है: “सिंगिंग एंड अकंपनिंग यौरसैल्वस विथ म्यूज़िक इन यौर हार्टस्”? जब इस किताब को बनाने का काम पूरा होनेवाला था, तब भाई नॉर ने कहा: “हम इसके कुछ गीतों की रिकॉर्डिंग करेंगे। मैं चाहता हूँ कि आप इसके लिए एक छोटे-से ऑर्केस्ट्रा का इंतज़ाम करें। बस कुछ वाइलिन और कुछ बाँसुरी हो तो काफी है, मगर तुरही नहीं होनी चाहिए।” हमने रिकॉर्डिंग के लिए बेथेल का किंगडम हॉल चुना। लेकिन वहाँ कुछ परेशानियाँ खड़ी हो सकती थीं। उसकी दीवारों, टाइल के बने फर्शों और धातु की बनी कुर्सियों की वज़ह से आवाज़ में गड़बड़ी पैदा होने की गुंजाइश थी। तो बात उठी कि इस समस्या को दूर करने के लिए कौन हमारी मदद कर सकता है? तभी किसी ने कहा: “टॉमी मिट्चिल! वे अमेरिकन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी के नैटवर्क स्टूडियो में काम करते हैं।” फिर हमने भाई मिट्चिल से संपर्क किया। वे हमारी मदद करने के लिए बहुत खुश हुए।
रिकॉर्डिंग का पहला शनिवार आया। संगीतकारों का परिचय दिया जा रहा था। तभी मैंने देखा कि एक भाई के पास ट्रॉम्बोन था, जिसकी धुन बिलकुल तुरही जैसी होती है। उन्हें देखते ही मुझे भाई नॉर की बात याद आई। अब मैं क्या करूँ? बस देखता रहा। भाई ने अपना ट्रॉम्बोन निकाला और उसमें स्लाइड लगाकर बजाने के लिए तैयार हो गए। वही भाई टॉम मिट्चिल थे। लेकिन जब उन्होंने बजाना शुरू किया तो मैं दंग रह गया। उस धुन के क्या कहने! वो तो बिलकुल वाइलिन की तरह लग रही थी। तब मैंने फैसला किया कि ‘यह भाई रिकॉर्डिंग में ज़रूर रहेंगे।’ और भाई नॉर ने भी कोई एतराज़ नहीं किया।
हमारे ऑर्केस्ट्रा ग्रूप में जो भाई-बहन थे, वे सभी-के-सभी संगीत में माहिर थे। हमारे बीच का प्यार भी लाजवाब था। हममें कभी कोई तकरार नहीं हुई थी। हालाँकि रिकॉर्डिंग करना बहुत थकाऊ काम था, लेकिन कभी किसी ने शिकायत नहीं की। काम पूरा होने के बाद जब एक-दूसरे से जुदा होने का वक्त आया, तो हमारी आँखों में आँसू भर आए। हम भाई-बहनों के बीच आज भी पक्की दोस्ती है। हम में से हरेक ने संगीत बजाने का पूरा आनंद लिया और यहोवा का शुक्र है कि हम इस काम को अच्छी तरह पूरा कर पाए।
और भी बहुत-से सुअवसर
पूर्ण-समय की सेवकाई में मैंने कई साल बिताए हैं और आज भी मुझे इस काम में पहले जैसी खुशी मिलती है। मैंने सर्किट और डिस्ट्रिक्ट काम में कुल 28 साल बिताए जो कि खुशियों-भरे थे। इसके बाद, पाँच सालों तक मुझे ऑन्टॆरीयो के नॉर्वल असेंब्ली हॉल में सम्मेलनों का इंतज़ाम करने की ज़िम्मेदारी दी गई। हर सप्ताह के शनिवार-रविवार को सर्किट सम्मेलन हुआ करते थे, साथ ही विदेशी भाषाओं में ज़िला अधिवेशन भी होते थे। इसलिए मैं और आइलीन बहुत व्यस्त रहते थे। 1979/80 में कुछ आर्किटॆक्ट और इंजीनियरों ने हाल्टन हिल्स में नए ब्राँच ऑफिस का नक्शा तैयार करने के लिए इस असेंब्ली हॉल की बिल्डिंगों का इस्तेमाल किया था। इसके बाद, हमें संगीत के सिलसिले में ब्रुकलिन बुलाया गया। वहाँ हमने 1982 से 1984 तक काम किया।
मैंने अपनी प्रिय पत्नी आइलीन के साथ मिलकर 51 साल पायनियरिंग की। मगर 1994, जून 17 को आइलीन गुज़र गई। इसके बस सात दिन पहले हमारी शादी की 59वीं सालगिरह थी।
जब मैं अपनी बीती ज़िंदगी पर नज़र दौड़ाता हूँ तो मैं देख सकता हूँ कि हमें सही राह दिखाने में बाइबल कितनी अनमोल साबित हुई है! कभी-कभी मैं आइलीन की बाइबल निकालकर पढ़ता हूँ। उसने अपनी बाइबल में ऐसे शब्दों और आयतों पर निशानी लगाई है जो उसके दिल को छू गई थीं। उन पर विचार करने से मुझे बहुत अच्छा लगता है। आइलीन की तरह मेरे लिए भी बाइबल की कुछ आयतें खास मायने रखती हैं। ऐसी कुछ आयतें भजन 137 की हैं। वहाँ इन सुंदर शब्दों में यहोवा से प्रार्थना की गई है: “हे यरूशलेम, यदि मैं तुझे कभी भूलूँ। तो मेरी कामना है कि मैं फिर कभी कोई गीत न बजा पाऊँ। हे यरूशलेम, यदि मैं तुझे कभी भूलूँ। तो मेरी कामना है कि मैं फिर कभी कोई गीत न गा पाऊँ। मैं तुझको कभी नहीं भूलूँगा।” (भजन 137:5, 6, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) हालाँकि संगीत बजाना मेरा शौक है, लेकिन मुझे सबसे ज़्यादा खुशी यहोवा की सेवा में मिलती है, जिसने मेरी ज़िंदगी खुशियों से भर दी।
[फुटनोट]
a जून 1, 1973 की प्रहरीदुर्ग (अँग्रेज़ी) पत्रिका में समझाया गया कि अब से एक व्यक्ति को बपतिस्मा लेकर यहोवा का साक्षी बनने से पहले धूम्रपान छोड़ना क्यों ज़रूरी है।
[पेज 28 पर तसवीर]
आइलीन के साथ 1947 में
[पेज 30 पर तसवीर]
शुरू के एक रिकॉर्डिंग में