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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2000
w00 11/1 पेज 28-31

दान देने से खुशी मिलती है

एक मसीही ओवरसियर होने के नाते, पौलुस को अपने भाई-बहनों से प्यार था और वह हमेशा उनकी भलाई के बारे में सोचता था। (2 कुरिन्थियों 11:28) इसलिए लगभग सा.यु. 50 में जब यहूदिया के ज़रूरतमंद मसीहियों की मदद के लिए पौलुस ने दूसरे भाइयों से चंदा इकट्ठा करने का इंतज़ाम किया, तब उसने इस मौके पर भाइयों को उदारता के बारे में एक बहुत ही बढ़िया बात बतायी। पौलुस ने इस बात पर ज़ोर दिया कि अपनी खुशी से देना यहोवा की नज़रों में बहुत मोल रखता है। उसने कहा: “हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करे; न कुढ़ कुढ़ के, और न दबाव से, क्योंकि परमेश्‍वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है।”—2 कुरिन्थियों 9:7.

बहुत गरीब, मगर उदार

पहली सदी के ज़्यादातर मसीहियों का समाज में कोई खास रुतबा नहीं था। जैसा कि पौलुस ने कहा, वे ‘बहुत सामर्थी नहीं थे’ बल्कि वे जगत के ‘निर्बलों और तुच्छ’ लोगों में से थे। (1 कुरिन्थियों 1:26-28) मिसाल के तौर पर, मकिदुनिया के मसीही “बड़ी परीक्षा” और “भारी कंगालपन” में थे। फिर भी उन्होंने पौलुस से विनती की कि वे “पवित्र लोगों की सेवा” आर्थिक रूप से मदद देकर करना चाहते हैं। और जब उन्होंने दान दिया तो पौलुस ने देखा कि “उन्होंने अपनी सामर्थ भर बरन सामर्थ से भी बाहर मन से दिया” था!—2 कुरिन्थियों 8:1-4.

फिर भी उनकी उदारता इस बात से नहीं आँकी गई कि उन्होंने कितना दिया था, बल्कि यह देखा गया कि उन्होंने किस भावना से दिया था। क्या उनमें अपनी चीज़ें दूसरों के साथ बाँटने की इच्छा थी और क्या उन्होंने पूरे दिल से दिया। पौलुस ने कुरिन्थ के मसीहियों को बताया कि वे जो भी दान करते हैं उसे पूरे दिल से करना चाहिए। उसने उनसे कहा: “मैं तुम्हारे मन की तैयारी को जानता हूं, जिस के कारण मैं तुम्हारे विषय में मकिदुनियों के साम्हने घमण्ड दिखाता हूं,  . . और तुम्हारे उत्साह ने और बहुतों को भी उभारा है।” जी हाँ, कुरिन्थ के मसीहियों ने ‘मन में ठान’ लिया था कि वे दिल खोलकर दान देंगे।—2 कुरिन्थियों 9:2, 7.

‘उनके मन ने उन्हें उभारा’

उदारता के बारे में सिखाते वक्‍त प्रेरित पौलुस के मन में शायद 15 सदियों पहले हुई एक घटना याद रही होगी। यह तब की बात है जब इस्राएल की 12 जातियाँ मिस्र की गुलामी से आज़ाद हुई थीं और सीनै पर्वत की तराई पर डेरा डाले हुई थीं। यहाँ पर परमेश्‍वर यहोवा ने उन्हें उपासना के लिए तंबू बनाने और उसमें उपासना के सभी ज़रूरी सामान जुटाने की आज्ञा दी। बेशक इस काम के लिए काफी चीज़ों की ज़रूरत होती, इसलिये इस्राएलियों को दान देने के लिए कहा गया।

तब इस्राएलियों ने कैसा रवैया अपनाया? ‘प्रत्येक मनुष्य जिसके मन ने उसे प्रोत्साहित किया और प्रत्येक जिसके मन ने उसे उभारा वह मिलाप वाले तम्बू के कार्य . . . के लिए यहोवा के लिए भेंट ले आया।’ (निर्गमन 35:21, NHT) क्या उन्होंने उदारता से दिया? बेशक! इस बारे में मूसा को बताया गया कि “जिस काम के करने की आज्ञा यहोवा ने दी है उसके लिये जितना चाहिये उससे अधिक वे ले आए हैं।”—निर्गमन 36:5.

उस वक्‍त इस्राएलियों की आर्थिक हालत कैसी थी? अभी ज़्यादा समय नहीं हुआ था जब वे मिस्र में गुलाम थे। वहाँ वे बदतर हालात में जी रहे थे क्योंकि ‘उन पर भार डाल डालकर उनको दुःख दिया जाता था,’ उनके साथ ‘कठोरता से व्यवहार’ किया जाता था, वे ‘दुःख’ भरी ज़िंदगी जी रहे थे। (निर्गमन 1:11, 14; 3:7; 5:10-18) इसलिए इसमें कोई दो राय नहीं कि, मिस्र छोड़ने के बाद उनकी आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी। यह सच है कि इस्राएली मिस्र छोड़ते समय अपने साथ पशु-धन भी लेकर आये थे। (निर्गमन 12:32) लेकिन यह उनके पास ज़्यादा नहीं था, तभी तो कुछ ही समय बाद वे शिकायत करने लगे थे कि खाने के लिए न तो उनके पास माँस है और न ही रोटी।—निर्गमन 16:3.

तो फिर इस्राएलियों के पास उपासना का तंबू बनाने के लिए धन कहाँ से आया? दरअसल जब वे मिस्र छोड़ रहे थे तो उनके स्वामियों ने उन्हें बहुत सारा धन दिया था। बाइबल कहती है: “इस्राएलियों ने . . . मिस्रियों से सोने चांदी के गहने और वस्त्र मांग लिये। . . . उन्हों ने जो जो मांगा वह सब [मिस्रियों ने] उनको दिया।” मिस्रियों ने जो यह दरियादिली दिखाई इसके पीछे यहोवा का हाथ था, न कि फिरौन का। इस बारे में बाइबल कहती है कि “यहोवा ने मिस्रियों को अपनी प्रजा के लोगों पर ऐसा दयालु किया, कि उन्हों ने जो जो मांगा वह सब उनको दिया।”—निर्गमन 12:35, 36.

कई सदियों तक इस्राएली गुलामी की जंज़ीरों में जकड़े हुए थे, न जाने कितने दुःख और कष्ट झेले थे। और तब कहीं जाकर वे आज़ाद हुए और उन्हें धन मिला। और अब उन्हें यही धन दान करने के लिए कहा जा रहा है, तो उन्हें कैसा लगा होगा? वे ऐसा सोच सकते थे कि हमें जो यह धन मिला है यह हमारे खून-पसीने की कमाई है इसलिए इस पर हमारा हक है। लेकिन क्या उन्होंने ऐसा सोचा और दान देने से मुकर गए? नहीं, उन्होंने तो बेझिझक और दिल खोलकर दान दिया। वे नहीं भूले कि यहोवा की बदौलत ही उन्हें ये सारी चीज़ें मिली हैं। इसलिए उन्होंने पूरी उदारता से सोना-चाँदी और पशु-धन दान में दिये। उन्होंने “अपनी इच्छा से” दान दिये। उनमें दान करने की “इच्छा” थी। उनके ‘मन ने उन्हें प्रोत्साहित किया था’ और ‘उनकी आत्मा ने उन्हें उभारा था।’ (NHT) उन्होंने सचमुच “अपनी ही इच्छा से” यहोवा को भेंट चढ़ायी।—निर्गमन 25:1-9; 35:4-9, 20-29; 36:3-7.

हर हाल में देने को तैयार

एक इंसान की उदारता इस बात से नहीं आँकी जाती कि उसने कितनी रकम दान दी है। एक बार यीशु ने लोगों को मंदिर के भंडार में दान डालते देखा। बहुत-से अमीर लोग आकर भारी-भारी रकम दान में दे रहे थे, लेकिन यीशु एक गरीब विधवा के दान से बहुत प्रभावित हुआ। वैसे तो उसने सिर्फ दो दमड़ियाँ डालीं थीं जिनकी कीमत बहुत कम थी, मगर ये उसकी सारी पूँजी थी। यीशु ने कहा: “मैं तुम से सच कहता हूं कि इस कंगाल विधवा ने सब से बढ़कर डाला है। . . . इस ने अपनी घटी में से अपनी सारी जीविका डाल दी है।”—लूका 21:1-4; मरकुस 12:41-44.

पौलुस का भी यीशु के जैसा ही नज़रिया था। कुरिन्थ के जो भाई-बहन तंगहाली में रहनेवाले भाई-बहनों की मदद कर रहे थे, उनके बारे में पौलुस ने इस तरह कहा: “यदि मन की तैयारी हो तो दान उसके अनुसार ग्रहण भी होता है जो उसके पास है न कि उसके अनुसार जो उसके पास नहीं।” (2 कुरिन्थियों 8:12) जी हाँ, जब भाइयों के लिये दान करने की बात आती है, तो यह नहीं देखा जाता है कि कौन किससे ज़्यादा दे रहा है। हम अपनी हैसियत के मुताबिक और दिल खोलकर जो भी देते हैं, उससे यहोवा खुश होता है।

यह सच है कि हममें से कोई भी इंसान, दान देकर यहोवा को धनी नहीं बना सकता क्योंकि वह तो सब चीज़ों का मालिक है। मगर हमारे लिए यह कितनी खुशी की बात है कि उसे दान देकर हमें उसके लिए अपना प्यार दिखाने का एक मौका मिलता है। (1 इतिहास 29:14-17) दान न तो दिखावे के लिए न ही अपने स्वार्थ के लिए देना चाहिए। दान देने के लिए एक सही रवैया रखना चाहिए ताकि सच्ची उपासना को बढ़ावा दे सकें। ऐसा करने से परमेश्‍वर की आशीषों के साथ हमें उसकी सेवा में खुशी भी मिलेगी। (मत्ती 6:1-4) जैसा कि यीशु ने कहा: “लेने से देना धन्य है।” (प्रेरितों 20:35) अगर हम देने के ज़रिए खुशी पाना चाहते हैं, तो हमें अपनी पूरी ताकत लगाकर यहोवा की सेवा करनी चाहिए, साथ ही उसके काम को बढ़ावा देने के लिए और ज़रूरतमंद लोगों की मदद करने के लिए चंदा देना चाहिए।—1 कुरिन्थियों 16:1, 2

आज के उदारता के काम

आज यहोवा के साक्षी पूरे जोश के साथ ‘राज्य का सुसमाचार’ सारे जगत में फैला रहे हैं। (मत्ती 24:14) बीसवीं सदी के आखिरी दस सालों में करीब 30,00,000 से ज़्यादा लोगों ने बपतिस्मा लेकर परमेश्‍वर को किए अपने समर्पण का सबूत दिया है और करीब 30,000 नयी कलीसियाएँ बनी हैं। जी हाँ, यहोवा के साक्षियों की आज जितनी कलीसियाएँ हैं, उनमें लगभग एक तिहाई अभी हाल ही के दस सालों के दौरान बनी हैं! और ये सब कुछ उन भाई-बहनों की कड़ी मेहनत का नतीजा है जिन्होंने अपना समय और ताकत लोगों को यह बताने में लगाई है कि भविष्य के लिए यहोवा का मकसद क्या है। इस काम को बढ़ाने में मिशनरियों का भी बहुत बड़ा योगदान है, जिन्होंने अपना घर-बार छोड़कर दूर की जगहों में राज्य-प्रचार के काम में मदद की। इस सब बढ़ौतरी का नतीजा यह हुआ है कि नये सर्किट बनाने पड़े और नये सर्किट ओवरसियरों को भी नियुक्‍त करना पड़ा। साथ ही खुद बाइबल अध्ययन करने और प्रचार में इस्तेमाल करने के लिए ज़्यादा बाइबलें और साहित्य छापने पड़े हैं। अनेक देशों में ब्राँच ऑफिसों को भी बढ़ाने या फिर उनकी जगह बड़े ब्राँच ऑफिस बनाने की ज़रूरत पड़ी। ये सब कुछ यहोवा के लोगों की अपनी इच्छा से दिए गए चंदे की वजह से संभव हुआ है।

किंगडम हॉल की ज़रूरत

इस बढ़ती हुई ज़रूरत को देखते हुए यहोवा के साक्षियों को और भी किंगडम हॉल की ज़रूरत है। साल 2000 में किए गये सर्वे से पता चला है कि विकासशील देशों में 11,000 से भी ज़्यादा किंगडम हॉल की ज़रूरत है, लेकिन पैसे की कमी की वजह से यह ज़रूरत पूरी नहीं हो पा रही है। अब एक अफ्रीकी देश, अंगोला की ही बात ले लीजिये। कई सालों से वहाँ युद्ध होते आ रहे हैं मगर फिर भी हर साल प्रचारकों की संख्या में 10 प्रतिशत बढ़ौतरी हो रही है। इस देश में 675 कलीसियाएँ हैं मगर इनमें से ज़्यादातर कलीसियाओं का कोई किंगडम हॉल नहीं है। वे खुले मैदानों में अपनी सभाएँ करते हैं। यहाँ सिर्फ 22 किंगडम हॉल हैं और इनमें सिर्फ 12 की ही छत हैं और वे भी काम चलाऊ।

ठीक ऐसे ही हालात कॉन्गों गणराज्य के भी हैं। हाँलाकि कॉन्गो की राजधानी, नासा में तकरीबन 300 कलीसियाएँ हैं मगर यहाँ सिर्फ 10किंगडम हॉल हैं। देखा जाए तो पूरे कॉन्गो देश में 1,500 से भी ज़्यादा किंगडम हॉल की सख्त ज़रूरत है। और पूर्वी यूरोपीय देशों यानी रूस और युक्रेन में भी साक्षियों की बढ़ौतरी दिन दूनी रात चौगनी हो रही है इसलिए इन दोनों देशों में सैकड़ों किंगडम हॉल की ज़रूरत है। यही हाल लातीनी अमरीका का है, जिसकी एक मिसाल ब्राज़ील है। यहाँ 5 लाख से भी ज़्यादा साक्षी हैं और बहुत-से किंगडम हॉल की इस समय सख्त ज़रूरत है।

ऐसे देशों की ज़रूरतें पूरी करने के लिए, यहोवा के साक्षियों ने एक ऐसा कार्यक्रम शुरू किया है जिससे बड़ी तेज़ी के साथ ज़्यादा-से-ज़्यादा किंगडम हॉल बनाए जा सकें। इस काम के लिए संसार भर के हमारे भाई-बहन उदारता से दान दे रहें हैं ताकि गरीब देशों की कलीसियाओं को भी उपासना के लिए उपयुक्‍त जगह मिल सके।

प्राचीन इस्राएल के समय की तरह आज भी जब सच्चे मसीही ‘अपनी संपत्ति के द्वारा यहोवा की प्रतिष्ठा’ करते हैं, तो बहुत कुछ काम पूरा किया जाता है। (नीतिवचन 3:9, 10) यहोवा के साक्षियों की गवर्निंग बॉडी उन सभी लोगों का दिल से शुक्रिया अदा करती है जिन्होंने अपनी खुशी से दान दिया है। और हम पूरा विश्‍वास रख सकते हैं कि यहोवा की आत्मा लोगों के दिलों को उकसाती रहेगी ताकि वे राज्य के इस बढ़ते हुए काम की ज़रूरत को पूरा करने के लिए मदद देते रह सकें।

आनेवाले दिनों में भी राज्य का यह काम यूँ ही बढ़ता रहेगा। तो आइये हम कोई भी मौका हाथ से न जाने दें और खुशी से अपना तन-मन-धन इस काम में लगा दें। इस तरह हम दान देने से मिलनेवाली खुशी को महसूस कर सकेंगे।

[पेज 29 पर बक्स]

“ध्यान से इस्तेमाल करना!”

“मेरी उम्र दस साल है। मैं यह पैसा आपको भेज रहा हूँ, ताकि आप किताबें बनाने के लिए कागज़ या कुछ और खरीद सकते हैं।”—सिंडी।

“इस पैसे को भेजने में मुझे बहुत खुशी हो रही है। आप ये पैसे हमारे लिए और भी किताबें बनाने में लगा सकते हैं। ये पैसे मैंने अपने जेब खर्च से बचाया है जो मुझे पापा की मदद करने पर मिले हैं। इसलिए आप इसका ध्यान से इस्तेमाल करना!—पैम, उम्र सात साल।

“आपके यहाँ आए तूफान की खबर सुनकर मुझे बहुत दुःख हुआ। आशा करता हूँ कि आप लोग सही-सलामत होंगे। मेरी गुल्लक में सिर्फ 2 डॉलर हैं जो मैं आपको भेज रहा हूँ।”—एलिसन, उम्र चार साल।

“मेरा नाम रूडी है और मैं 11 साल की हूँ। मेरा भाई रैल्फ 6 साल का है। और मेरी बहन जूडिथ ढाई साल की है। [युद्धग्रस्त इलाकों में रहनेवाले] हमारे भाइयों की मदद के लिए हमने पिछले तीन महीनों से अपने जेब खर्च का पैसा बचाकर रखा है। हमने 20 डॉलर जमा किये हैं, जो हम आप को भेज रहे हैं।”

“मुझे उन जगहों के भाइयों के बारे में सुनकर बहुत दुःख हुआ [जहाँ तूफान आया है]। मैंने अपने पिताजी के साथ काम करके 17 डॉलर जमा किये हैं जो मैं आपको भेज रहा हूँ। मैं ये पैसे किसी खास काम के लिए नहीं भेज रहा हूँ, आप जैसे भी चाहें इसका इस्तेमाल कीजिएगा।”—मैक्लैन, उम्र आठ साल।

[पेज 31 पर बक्स]

कुछ लोग इन तरीकों से दान करते हैं

दुनिया भर में होनेवाले काम के लिए दान

बहुत-से लोग एक निश्‍चित रकम दान पेटी में डालते हैं, जिस पर लिखा होता है, “दुनिया भर में होनेवाले संस्था के काम के लिए अंशदान—मत्ती 24:14.” हर महीने कलीसियाएँ यह रकम अपने ब्राँच ऑफिस को भेजती हैं।

अगर आप चाहें तो पैसों का दान सीधे The Watch Tower Bible and Tract Society of India, H-58 Old Khandala Road, Lonavla 410 401, Maharashtra, गहने या दूसरी कीमती चीज़ें भी दान की जा सकती हैं। मगर इसके साथ एक छोटा-सा पत्र भी भेजना चाहिए जिसमें यह लिखा हो कि हम इसे एक तोहफे के रूप में भेज रहे हैं।

दान देने के लिए योजनाएँ

पैसों की भेंट करने के अलावा भी दूसरे तरीके हैं, जिनसे दुनिया भर में हो रहे राज्य के काम में मदद दी जाती है। ये हैं:

बीमा: वॉच टावर सोसाइटी को जीवन बीमा पॉलिसी या रिटाएरमेंट/पॆंशन योजना का बॆनेफीशयरी बनाया जा सकता है।

बैंक खाते: बैंक खाते, जमा प्रमाण-पत्र या अपना रिटाएरमेंट खाता, अपने बैंक के नियमों के मुताबिक वॉच टावर सोसाइटी को अमानत के रूप में दे सकते हैं या फिर मृत्यु पर देय कर सकते हैं।

स्टॉक्स और बॉन्ड्‌स: स्टॉक्स और बॉन्ड्‌स वॉच टावर सोसाइटी को सीधे भेंट कर सकते हैं।

ज़मीन-जायदाद: ऐसी ज़मीन-जायदाद जिन्हें बेचा जा सकता है, वे सीधे वॉच टावर सोसाइटी को भेंट कर सकते हैं या फिर इन्हें संस्था के नाम पर लिखकर, अपने जीवनकाल के दौरान इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। मगर अपनी ज़मीन-जायदाद संस्था के नाम लिखने से पहले आपको संस्था के साथ संपर्क करना चाहिए।

वसीयतनामा और ट्रस्ट: वसीयतनामा करने के द्वारा आप अपनी संपत्ति या पैसा कानूनी तौर पर वॉच टावर सोसाइटी के नाम कर सकते हैं या संस्था को ट्रस्ट एग्रीमैंट का बॆनेफीशयरी बना सकते हैं। सोसाइटी को बॆनेफीशयरी बनाते समय इंडियन सक्सेशन एक्ट, 1925 के सेक्शन 118 के तहत अपना वसीयतनामा बनाना चाहिए। जिसमें यह लिखा: “कोई भी व्यक्‍ति जिसके नाते-रिश्‍तेदार हैं तो उसका कोई हक नहीं बनता कि वह बिना वसीयतनामा के अपनी संपत्ति किसी धार्मिक या दानशील संस्थाओं को दे दे। लेकिन यह वसीयतनामा उसके मरने के एक साल से पहले बनाना चाहिए। और वसीयतनामा बनाने के छः महीने के अंदर-अंदर हिफाज़त के लिए कानून को अपनी वसीयत की रखवाली के लिए दे देनी चाहिए।”

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