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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है—2004
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यीशु मसीह को कैसे याद रखना चाहिए?

यीशु मसीह “बेशक इतिहास की उन बड़ी हस्तियों में से एक था जिन्होंने लोगों के जीवन पर ज़बरदस्त प्रभाव डाला।”—“द वर्ल्ड बुक इनसाइक्लोपीडिया।”

आम तौर पर महान हस्तियों को उनके कामों के लिए याद किया जाता है। तो फिर ज़्यादातर लोग, यीशु को उसके कामों के बजाय उसके जन्म के लिए क्यों याद करते हैं? ईसाईजगत में कई लोगों को यीशु के जन्म की कहानियाँ मुँह-ज़बानी याद हैं। लेकिन उनमें से कितनों को यीशु के पहाड़ी उपदेश की बेजोड़ तालीम याद है और कितने उसके मुताबिक चलने की कोशिश करते हैं?

माना कि यीशु का जन्म एक अनोखी घटना थी, लेकिन उसके शुरूआती चेलों ने उसके जन्म से बढ़कर उसके कामों और उसकी शिक्षाओं को अहमियत दी। यकीनन, परमेश्‍वर नहीं चाहता था कि लोग सिर्फ यीशु के जन्म को याद करें और उसने बड़े होकर जो ज़िंदगी बितायी उसे भुला दें। लेकिन अफसोस कि क्रिसमस की वजह से यीशु के जन्म से जुड़ी कथा-कहानियों के ढेर में उसकी शख्सियत गुम हो गयी है।

आज जिस तरीके से क्रिसमस मनाया जाता है, उससे एक और परेशान करनेवाला सवाल खड़ा होता है। मान लीजिए, अगर यीशु फिर से ज़मीन पर आए और देखे कि किस तरह आज क्रिसमस के नाम पर ढेर सारा पैसा कमाया जा रहा है, तो उसे कैसा लगेगा? दो हज़ार साल पहले की उस घटना को याद कीजिए जब वह यरूशलेम के मंदिर में गया था। वहाँ मौजूद सर्राफों और व्यापारियों को देखकर वह भड़क उठा, क्योंकि वे यहूदी त्योहार के नाम पर लोगों को लूट रहे थे। उसने कहा: “इन्हें यहां से ले जाओ: मेरे पिता के भवन को ब्योपार का घर मत बनाओ।” (यूहन्‍ना 2:13-16) इससे साफ पता चलता है कि व्यापार को धर्म में मिला देना यीशु को हरगिज़ मंज़ूर नहीं था।

कैथोलिक धर्म पर सच्ची आस्था रखनेवाले स्पेन के कई लोग क्रिसमस के नाम पर दिनोंदिन बढ़ रहे व्यापार पर चिंता ज़ाहिर करते हैं। लेकिन क्रिसमस के रस्मों-रिवाज़ जिस कदर जड़ पकड़ चुके हैं, उन्हें देखते हुए लगता है कि आज व्यापार के इस चलन को रोकना नामुमकिन है। पत्रकार क्वान ऑरयॉस बताता है: “जो ईसाई कहते हैं कि क्रिसमस में ‘गैर-ईसाई धर्मों के रस्मों-रिवाज़ को मिलाना,’ साथ ही धर्म को ताक पर रखकर मौज-मस्ती करने और नयी-नयी चीज़ें खरीदने में खोए रहना गलत है, उनमें से ज़्यादातर इस बात से बेखबर हैं कि शुरूआत में ही क्रिसमस में . . . रोम के गैर-ईसाई [सूर्य के] त्योहार के कई रस्मों-रिवाज़ मिला दिए गए थे।”—एल पॉईस, दिसंबर 24, 2001.

क्रिसमस के पारंपरिक रिवाज़ों की शुरूआत कैसे गैर-ईसाई धर्मों से हुई और यह कैसे एक व्यापार का ज़रिया बन गया है, इस बारे में पिछले कुछ सालों में, स्पेन के बहुत-से पत्रकारों ने समझाया और विश्‍वकोशों में भी बताया गया है। एनसीक्लोपेड्या डे लॉ रेलीकोन कॉटोलीकॉ क्रिसमस की तारीख के बारे में साफ-साफ बताती है: “गैर-ईसाई त्योहारों को ईसाई त्योहारों का नाम देकर अपना लेना, कैथोलिक चर्च का चलन बन गया था, और ऐसा लगता है कि क्रिसमस की तारीख तय करने के पीछे भी यही वजह थी। . . . हम जानते हैं कि उस ज़माने में रोम के गैर-ईसाई, 25 दिसंबर को नातालीस इनविक्टी या ‘अजेय सूर्य’ का जन्मदिन मनाया करते थे।”

एनसीक्लोपेड्या ईस्पानीका भी कुछ ऐसा कहती है: “पच्चीस दिसंबर को यीशु का जन्मदिन इसलिए नहीं चुना गया कि लोग सही-सही पता लगाकर इस तारीख पर पहुँचे हैं, बल्कि यह इसलिए मनाया जाता है क्योंकि रोम में सर्दियों के मौसम में (दक्षिण अयनांत) जब दिन लंबे होने लगते थे, तो इस खुशी में जो त्योहार मनाया जाता था, उसी को आगे चलकर ईसाई रूप दे दिया गया और क्रिसमस के तौर पर मनाया जाने लगा।” सर्दियों के मौसम के उस त्योहार को रोमी लोग कैसे मनाते थे? बड़ी-बड़ी दावतें रखकर, रंग-रलियाँ मनाकर और एक-दूसरे को तोहफे देकर। लोगों के इस पसंदीदा त्योहार पर चर्च के अधिकारी पाबंदी लगाने से कतराते थे। इसलिए जिस दिन सूर्य का जन्मदिन मनाया जाता था, उन्होंने उसे यीशु का जन्मदिन कहकर इस त्योहार को “ईसाई रूप” दे दिया।

शुरू-शुरू में, यानी चौथी और पाँचवीं सदी के दौरान सूर्य की उपासना और उससे जुड़े रीति-रिवाज़ों को ईसाई धर्म से मिटाने की तमाम कोशिशें नाकाम रहीं। कैथोलिक “संत” ऑगस्टीन (सा.यु. 354-430) ने अपने फर्ज़ के नाते संगी विश्‍वासियों से गुज़ारिश की कि वे 25 दिसंबर को इस तरीके से न मनाएँ जैसे गैर-ईसाई लोग सूर्य के सम्मान में मनाते थे। आज भी ऐसा लगता है कि ईसाई धर्म में प्राचीन रोम के रीति-रिवाज़ों का दबदबा है।

मौज-मस्ती करने और पैसा कमाने का सबसे बढ़िया मौका

सदियों से, क्रिसमस को दुनिया का सबसे मशहूर त्योहार बनाने में कई चीज़ों का हाथ रहा है, और यह मौज-मस्ती और व्यापार का भी एक अच्छा ज़रिया बन चुका है। इसके अलावा, रोम से शुरू हुए इस क्रिसमस में सर्दियों में मनाए जानेवाले दूसरे कई त्योहारों के रस्मों-रिवाज़ मिला दिए गए, खासकर उत्तरी यूरोप के त्योहारों के रिवाज़।a और 20वीं सदी के सेल्समैन और व्यापार विशेषज्ञों ने ऐसे हर दस्तूर को पूरे ज़ोर-शोर से बढ़ावा दिया जिससे वे मालदार होते जाएँ।

नतीजा क्या रहा है? मसीह का पैदा होना हमारे लिए क्या मायने रखता है, इस पर ज़ोर देने के बजाय उसका जन्मदिन मनाने पर ज़्यादा अहमियत दी जा रही है। यहाँ तक कि कई मामलों में, क्रिसमस के मौके पर मसीह के नाम का इस्तेमाल लगभग बंद हो चुका है। स्पैनिश अखबार एल पॉईस बताता है: “[क्रिसमस] पूरी दुनिया में महज़ एक पारिवारिक त्योहार बनकर रह गया है और हर कोई इसे अपने तरीके से मनाता है।”

इससे ज़ाहिर होता है कि स्पेन और दुनिया के कई देशों में यह चलन बड़ी तेज़ी से ज़ोर पकड़ रहा है। एक तरफ जहाँ क्रिसमस की चमक-दमक बढ़ती जा रही है, वहीं दूसरी तरफ मसीह के बारे में लोगों का ज्ञान कम होता जा रहा है। असल में देखा जाए तो आज क्रिसमस से जुड़े ऐसे कई रस्मों-रिवाज़ दोबारा उभर आए हैं जो शुरू में रोमियों के ज़माने में थे, जैसे ऐयाशी करना, बड़ी-बड़ी दावतें रखना और एक-दूसरे को तोहफे देना।

हमारे लिए एक बालक उत्पन्‍न हुआ

क्रिसमस को जिस पारंपरिक तरीके से मनाया जाता है, उसका अगर मसीह के साथ कोई नाता नहीं, तो फिर सच्चे मसीहियों को उसके जन्म और जीवन को कैसे याद रखना चाहिए? यीशु की पैदाइश से करीब सात सौ साल पहले, यशायाह ने उसके बारे में यह भविष्यवाणी की थी: “हमारे लिये एक बालक उत्पन्‍न हुआ, हमें एक पुत्र दिया गया है; और प्रभुता उसके कांधे पर होगी”। (यशायाह 9:6) यशायाह ने इस बात का सुराग क्यों दिया कि यीशु का जन्म और आगे चलकर वह जो ज़िम्मेदारी निभाएगा, वह खास मायने रखता है? इसकी वजह यह है कि यीशु एक शक्‍तिशाली राजा बनता। वह शान्ति का शासक कहलाता और न तो शान्ति का, ना ही उसकी प्रभुता का कभी अन्त होता। इतना ही नहीं, यीशु का राज्य ‘न्याय और धर्म के द्वारा स्थिर रहता।’—यशायाह 9:7.

जब स्वर्गदूत जिब्राइल ने मरियम को खबर दी कि यीशु पैदा होगा, तब उसने यशायाह की उसी भविष्यवाणी को दोहराते हुए कहा: “वह महान होगा; और परमप्रधान का पुत्र कहलाएगा; और प्रभु परमेश्‍वर उसके पिता दाऊद का सिंहासन उस को देगा। और वह याकूब के घराने पर सदा राज्य करेगा; और उसके राज्य का अन्त न होगा।” (लूका 1:32, 33) इससे साफ ज़ाहिर होता है कि यीशु के जन्म का खास मकसद था, परमेश्‍वर के राज्य के ठहराए हुए राजा की हैसियत से हुकूमत करना। उसकी हुकूमत से सभी को फायदा पहुँच सकता है, जी हाँ, आपको और आपके अज़ीज़ों को भी। दरअसल, स्वर्गदूतों ने कहा था कि यीशु के जन्म से ‘पृथ्वी पर उन मनुष्यों को जिनसे परमेश्‍वर प्रसन्‍न है शान्ति’ मिलेगी।—लूका 2:14.

हममें से कौन है जो ऐसी दुनिया में नहीं जीना चाहेगा जहाँ न्याय और शान्ति हो? लेकिन अगर हम मसीह के राज्य में जीना चाहते हैं जहाँ चारों तरफ शांति का आलम होगा, तो हमें परमेश्‍वर को खुश करने और उसके साथ एक अच्छा रिश्‍ता कायम करने की ज़रूरत है। यीशु ने बताया था कि यह रिश्‍ता कायम करने में पहला कदम है, परमेश्‍वर और मसीह के बारे में सीखना। उसने कहा: “अनन्त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्चे परमेश्‍वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें।”—यूहन्‍ना 17:3.

जब हम यीशु को सही-सही जान लेंगे, तो हमें यह समझने में मुश्‍किल नहीं होगी कि यीशु किस तरह याद किए जाना पसंद करता है। क्या वह चाहेगा कि जिस तारीख पर, पुराने ज़माने में झूठे धर्म के लोग त्योहार मनाते थे, उसी दिन हम खा-पीकर और एक-दूसरे को तोहफे देकर उसे याद करें? यह तो बिलकुल नामुमकिन लगता है। यीशु ने अपनी मौत से पहलेवाली रात को अपने चेलों को बताया कि वह क्या चाहता है। उसने कहा: “जिस के पास मेरी आज्ञा हैं, और वह उन्हें मानता है, वही मुझ से प्रेम रखता है, और जो मुझ से प्रेम रखता है, उस से मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उस से प्रेम रखूंगा।”—यूहन्‍ना 14:21.

यहोवा के साक्षियों ने पवित्र शास्त्र का गहरा अध्ययन किया है, जिससे वे परमेश्‍वर और यीशु की आज्ञाओं को समझ पाए हैं। इन ज़रूरी आज्ञाओं की समझ पाने में वे आपकी खुशी-खुशी मदद करना चाहेंगे, ताकि आप यीशु को उसी तरीके से याद करें जैसा उसे याद करना चाहिए।

[फुटनोट]

a इसकी दो बड़ी मिसालें हैं, क्रिसमस का पेड़ और सांता क्लॉस।

[पेज 6, 7 पर बक्स/तसवीरें]

क्या बाइबल दावत मनाने और तोहफे देने की मनाही करती है?

तोहफे देना

बाइबल दिखाती है कि एक-दूसरे को तोहफे देना अच्छी बात है। खुद यहोवा परमेश्‍वर के बारे में कहा गया है कि वह “हर एक अच्छा वरदान और हर एक उत्तम दान” का देनेवाला है। (याकूब 1:17) यीशु ने ज़ाहिर किया कि अच्छे माता-पिता अपने बच्चों को तोहफे देते हैं। (लूका 11:11-13) अय्यूब के बीमारी से ठीक होने पर उसके दोस्तों और रिश्‍तेदारों ने उसे तोहफे दिए। (अय्यूब 42:11) लेकिन ऐसे तोहफे देने के लिए किसी खास त्योहार की ज़रूरत नहीं थी। ये सारे तोहफे दिल से दिए गए थे।—2 कुरिन्थियों 9:7.

परिवार का मिलना-जुलना

जब परिवार के सदस्य एक-साथ इकट्ठे होते हैं, तो आपसी रिश्‍ते और भी मज़बूत होते हैं, खासकर उन सदस्यों के साथ जो हमारे साथ नहीं रहते। यीशु और उसके चेले भी काना में एक शादी में गए थे। यकीनन यह एक बड़ी दावत थी जिसमें परिवार के सभी सदस्य और नाते-रिश्‍तेदार हाज़िर थे। (यूहन्‍ना 2:1-10) यीशु के बताए उड़ाऊ पुत्र के दृष्टांत में, पिता ने अपने बेटे के घर लौटने की खुशी में पूरे परिवार के लिए दावत का इंतज़ाम किया, जिसमें नाच-गाना भी हुआ।—लूका 15:21-25.

लज़ीज़ खाने का लुत्फ उठाना

बाइबल में ऐसे कई वाकये दर्ज़ हैं जिनमें परमेश्‍वर के सेवकों ने अपने परिवार, दोस्तों और संगी उपासकों के साथ लज़ीज़ खाने का मज़ा लिया। जब तीन स्वर्गदूत इब्राहीम से मिलने आए, तब उसने उन्हें दावत दी और खाने में मक्खन, दूध, फुलके और बछड़े का मांस परोसा। (उत्पत्ति 18:6-8) सुलैमान ने कहा कि ‘खाना-पीना और आनन्द मनाना’ परमेश्‍वर का दिया वरदान है।—सभोपदेशक 3:13; 8:15.

ज़ाहिर है कि परमेश्‍वर चाहता है कि हम अपने दोस्तों और परिवार के साथ लज़ीज़ खाने का लुत्फ उठाएँ। और यह उसे भाता है कि हम एक-दूसरे को तोहफे दिया करें। ऐसा करने के बेशुमार मौके हमारे सामने हैं, पूरे साल के दौरान कभी-भी हम ऐसा कर सकते हैं।

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