सच्ची शिक्षाएँ जो परमेश्वर को मंज़ूर हैं
धरती पर रहनेवाले हम इंसान कैसे जान सकते हैं कि कौन-सी शिक्षाएँ परमेश्वर को मंज़ूर हैं? इसके लिए ज़रूरी है कि खुद परमेश्वर हमें बताए कि उसे क्या भाता है। और यह भी ज़रूरी है कि वह इस जानकारी को दुनिया के तमाम इंसानों तक पहुँचाए। वरना इंसान कैसे जान सकेंगे कि परमेश्वर किन शिक्षाओं को मंज़ूर करता है, किस तरह की उपासना चाहता है और हमसे कैसा चालचलन बनाए रखने की माँग करता है? लेकिन क्या परमेश्वर ने ये सारी जानकारी दी है? अगर हाँ, तो किस तरीके से दी है?
क्या यह मुमकिन है कि कोई एक इंसान परमेश्वर का नुमाइंदा बनकर दुनिया के सभी लोगों को बताए कि उसे क्या भाता है? नहीं। इंसान तो सिर्फ 70-80 बरस जीता है, इसलिए भला वह दुनिया के करोड़ों-करोड़ लोगों में से हरेक से मिलकर यह जानकारी कैसे दे सकता है? लेकिन हाँ, अगर परमेश्वर अपनी मरज़ी के बारे में एक किताब में हमेशा के लिए लिखवा दे तो हर इंसान उसके बारे में जान सकता है, फिर चाहे वह दुनिया के किसी भी कोने में रहता हो। तो फिर क्या यह मानना सही नहीं होगा कि परमेश्वर ने एक किताब के ज़रिए ही लोगों को अपने बारे में बताया है? बाइबल एक ऐसी प्राचीन किताब है जो दावा करती है कि वह परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी गयी है। इसके एक लेखक ने लिखा कि “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और शिक्षा, ताड़ना, सुधार और धार्मिकता की शिक्षा के लिए उपयोगी है।” (2 तीमुथियुस 3:16, NHT) आइए बाइबल की करीब से जाँच करें और देखें कि इसमें दी गयी शिक्षाएँ सच हैं या नहीं।
बाइबल कितनी पुरानी है?
बाइबल, दुनिया के सबसे जाने-माने और पुराने धर्म-ग्रंथों में से एक है। इसके शुरूआती हिस्से करीब 3,500 साल पहले लिखे गए थे। बाइबल की लिखाई सा.यु. 98 में पूरी हुई।a इसे लिखने में 1,600 से ज़्यादा साल लगे और करीब 40 आदमियों ने इसे लिखा था। मगर फिर भी बाइबल की किताबों का आपस में गहरा तालमेल है। वजह यह है कि इसका असली रचयिता परमेश्वर है।
बाइबल अब तक की सबसे ज़्यादा बाँटी गयी किताब है और इसका सबसे ज़्यादा भाषाओं में अनुवाद किया गया है। हर साल पूरी बाइबल या इसके कुछ हिस्सों की करीब 6 करोड़ कॉपियाँ बाँटी जाती हैं। पूरी बाइबल या इसके कुछ हिस्सों को 2,300 से ज़्यादा भाषाओं और बोलियों में अनुवाद किया गया है। दुनिया के 90 प्रतिशत से ज़्यादा लोग पूरी बाइबल या इसके कुछ हिस्सों को अपनी-अपनी भाषा में पढ़ सकते हैं। यह किताब किसी देश, जाति या कबीले के लोगों के लिए नहीं, बल्कि सबके लिए है।
इसे किस तरतीब से रखा गया है?
अगर आपके पास बाइबल है, तो क्यों न उसे खोलकर देखें कि उसे किस तरतीब से रखा गया है?b सबसे पहले विषय-सूची देखिए। कई बाइबलों में यह शुरू में होती है। इस सूची में हर किताब का नाम और उसका पेज नंबर दिया होता है। आप देखेंगे कि बाइबल असल में कई छोटी-छोटी किताबों से बनी एक बड़ी किताब है। और हर किताब का एक अलग नाम है। सबसे पहली किताब उत्पत्ति है और आखिरी प्रकाशितवाक्य है। बाइबल की किताबों को दो भागों में बाँटा गया है। पहले भाग में 39 किताबें हैं और इसे इब्रानी शास्त्र कहते हैं क्योंकि इसकी ज़्यादातर किताबें इब्रानी भाषा में लिखी गयी थीं। दूसरे भाग में 27 किताबें हैं जो यूनानी भाषा में लिखी गयी थीं। इसलिए उन्हें यूनानी शास्त्र कहा जाता है। कुछ लोग इन भागों को पुराना नियम और नया नियम कहते हैं।
बाइबल की किताबों में अध्याय और आयतें दी गयी हैं ताकि उसमें जानकारी ढूँढ़ने में आसानी हो। इस पत्रिका में जहाँ आयतों का हवाला है, वहाँ पहले बाइबल की किताब का नाम आता है, उसके बाद की पहली संख्या अध्याय है और दूसरी संख्या आयत है। मिसाल के लिए, “2 तीमुथियुस 3:16” का मतलब है, तीमुथियुस की दूसरी पत्री, अध्याय 3, आयत 16. ज़रा अपनी बाइबल में इस आयत को खोलने की कोशिश कीजिए।
बाइबल से वाकिफ होने का इससे बढ़िया तरीका और क्या हो सकता है कि हम उसे बिना नागा पढ़ें? कुछ लोगों ने पाया है कि पहले यूनानी शास्त्र को पढ़ना आसान होता है, इसलिए वे मत्ती की किताब से शुरू करते हैं। अगर आप हर दिन, तीन से पाँच अध्याय पढ़ें तो एक साल के अंदर पूरी-की-पूरी बाइबल पढ़ लेंगे। लेकिन आप कैसे यकीन कर सकते हैं कि बाइबल वाकई परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी गयी है?
क्या आप बाइबल पर भरोसा कर सकते हैं?
अगर एक किताब दावा करती है कि वह ईश्वर-प्रेरणा से लिखी गयी है, तो उसमें ज़िंदगी के लिए ऐसी सलाह होनी चाहिए जो हर ज़माने के लोगों के लिए फायदेमंद हो। बाइबल ऐसी ही एक किताब है। इसमें दी जानकारी दिखाती है कि इसका रचनाकार इंसान के स्वभाव को अच्छी तरह समझता है। इसलिए यह हर पीढ़ी के लोगों के लिए कारगर साबित हुई है और इसमें दिए सिद्धांत आज भी उतने ही फायदेमंद हैं जितने कि उस वक्त थे जब ये लिखे गए थे। इसकी एक अच्छी मिसाल बाइबल में दिया एक मशहूर भाषण है, जिसे पहाड़ी उपदेश कहा जाता है। यह भाषण मसीही धर्म की शुरूआत करनेवाले यीशु मसीह ने दिया था। यह मत्ती के अध्याय 5 से 7 में दर्ज़ है। इस भाषण में यीशु ने बताया कि सच्ची खुशी पाने का राज़ क्या है, साथ ही यह भी समझाया कि आपसी झगड़ों को कैसे निपटाना चाहिए, प्रार्थना कैसे करनी चाहिए, खाने-पहनने की ज़रूरतों के बारे में क्या नज़रिया रखना सही है, आदि। इस भाषण में और बाइबल के बाकी सभी हिस्सों में साफ-साफ बताया गया है कि परमेश्वर को खुश करने और अपनी ज़िंदगी सँवारने के लिए हमें क्या करना चाहिए और क्या नहीं।
बाइबल पर भरोसा करने की एक और वजह यह है कि हालाँकि यह बहुत पुरानी किताब है, मगर इसमें विज्ञान से जुड़ी जो भी जानकारी दी गयी है, वह एकदम सही है। उदाहरण के लिए, पुराने ज़माने में जब ज़्यादातर लोग मानते थे कि पृथ्वी चपटी है, तभी बाइबल में बताया गया कि ‘पृथ्वी घेरा [या, गोला]’ है।c (यशायाह 40:22) बाइबल में लिखी एक कविता में यह भी कहा गया कि ‘पृथ्वी बिना टेक लटकी हुई है।’ (अय्यूब 26:7) इस बात को लिखने के 3,000 से ज़्यादा साल बाद मशहूर वैज्ञानिक सर आइज़क न्यूटन ने भी समझाया कि सारे ग्रह गुरुत्वाकर्षण की शक्ति के बल पर खाली अंतरिक्ष में अपनी जगह पर कायम हैं। बाइबल की एक और कविता पर ध्यान दीजिए जो आज से करीब 3,000 साल पहले लिखी गयी थी। इसमें पृथ्वी के जल-चक्र के बारे में यह बताया गया है: “सब नदियां समुद्र में जा मिलती हैं, तौभी समुद्र भर नहीं जाता; जिस स्थान से नदियां निकलती हैं, उधर ही को वे फिर जाती हैं।” (सभोपदेशक 1:7) जी हाँ, इस पूरी कायनात के बनानेवाले ने ही बाइबल को लिखवाया है।
बाइबल परमेश्वर की प्रेरणा से लिखी गयी है, ऐसा कहने का एक और सबूत यह है कि इसमें दिया इतिहास सच्चा है। इसमें दर्ज़ घटनाएँ, मनगढ़ंत कहानियाँ नहीं हैं। इन घटनाओं की ठीक-ठीक तारीख दी गयी है, लोगों और जगहों के नाम साफ-साफ बताए गए हैं। इसकी एक मिसाल लूका 3:1 (NHT) है, जिसमें बतायी जानकारी इतिहास से पूरी तरह मेल खाती है: ‘तिबिरियुस कैसर के शासनकाल के पन्द्रहवें वर्ष में पुन्तियुस पीलातुस यहूदिया का राज्यपाल था, और हेरोदेस गलील का शासक था।’
प्राचीन इतिहासकारों ने अपनी किताबों में तकरीबन हर बार अपने राजाओं की जीत और अच्छाइयों का ज़िक्र किया है, मगर बाइबल के लेखक उनसे अलग थे। उन्होंने सबकुछ साफ-साफ लिखा है, यहाँ तक कि अपनी गलतियों को भी नहीं छिपाया। उदाहरण के लिए, एक बार राजा दाऊद ने यह कबूल किया था: “यह काम जो मैं ने किया वह महापाप है। . . . क्योंकि मुझ से बड़ी मूर्खता हुई है।” (2 शमूएल 24:10) दाऊद की इस बात पर परदा नहीं डाला गया, बल्कि इसे बाइबल में दर्ज़ किया गया है। और बाइबल के एक और लेखक मूसा ने खुद इसमें लिखा कि एक वक्त पर कैसे वह सच्चे परमेश्वर पर भरोसा दिखाने से चूक गया था।—गिनती 20:12.
एक और वजह से हम कह सकते हैं कि बाइबल ईश्वर-प्रेरणा से लिखी गयी है। वह यह कि इसमें बतायी भविष्यवाणियाँ ठीक-ठीक पूरी हुई हैं। भविष्यवाणी का मतलब है, होनेवाली घटनाओं के बारे में पहले से लिखना। बाइबल की कुछ भविष्यवाणियाँ यीशु मसीह के बारे में थीं। जैसे, यीशु के जन्म से 700 से ज़्यादा साल पहले, इब्रानी शास्त्र में भविष्यवाणी की गयी थी कि यह मसीहा, जिसके आने का पहले से वादा किया गया था, “यहूदिया के बैतलहम” में पैदा होगा। ठीक जैसे भविष्यवाणी की गयी थी, यीशु बैतलहम में ही पैदा हुआ।—मत्ती 2:1-6; मीका 5:2.
एक और मिसाल लीजिए। दूसरे तीमुथियुस 3:1-5 में बाइबल भविष्यवाणी करती है: “अन्तिम दिनों में कठिन समय आएंगे। क्योंकि मनुष्य अपस्वार्थी, लोभी, डींगमार, अभिमानी, निन्दक, माता-पिता की आज्ञा टालनेवाले, कृतघ्न, अपवित्र। मयारहित, क्षमारहित, दोष लगानेवाले, असंयमी, कठोर, भले के बैरी। विश्वासघाती, ढीठ, घमण्डी, और परमेश्वर के नहीं बरन सुखविलास ही के चाहनेवाले होंगे। वे भक्ति का भेष तो धरेंगे, पर उस की शक्ति को न मानेंगे।” क्या आज दुनिया में हर तरफ ऐसे ही लोग देखने को नहीं मिलते? ज़रा सोचिए इस भविष्यवाणी को सा.यु. 65 में लिखा गया था, यानी आज से 1,900 से भी ज़्यादा साल पहले!
बाइबल हमें क्या सिखाती है?
जैसे-जैसे आप बाइबल का अध्ययन करेंगे, तो आप साफ देख सकेंगे कि इसमें इंसान की नहीं बल्कि परमेश्वर की बुद्धि पायी जाती है। यह ऐसे सवालों के सही-सही जवाब देती है, जैसे: परमेश्वर कौन है? क्या इब्लीस सचमुच है? यीशु मसीह कौन है? आज दुनिया में इतनी दुःख-तकलीफें क्यों हैं? मरने पर हमारा क्या होता है? अगर आप ये सवाल लोगों से पूछें, तो वे अपने-अपने विश्वास और रीति-रस्म के मुताबिक अलग-अलग जवाब देंगे। मगर बाइबल इन सवालों के बिलकुल सही जवाब देती है और दूसरे कई विषयों पर भी सच्चाई बताती है। इसके अलावा, दूसरे लोगों के साथ और ऊँचे अधिकारियों के साथ हमें कैसे पेश आना चाहिए और उनके बारे में कैसा नज़रिया रखना चाहिए, इस बारे में बाइबल ऐसी बढ़िया सलाह देती है जो किसी और किताब में नहीं मिलती।d
पृथ्वी और इंसान के लिए परमेश्वर का मकसद क्या है, इस बारे में बाइबल क्या बताती है? बाइबल वादा करती है: “थोड़े दिन के बीतने पर दुष्ट रहेगा ही नहीं . . . परन्तु नम्र लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और बड़ी शान्ति के कारण आनन्द मनाएंगे।” (भजन 37:10, 11) “परमेश्वर आप [इंसानों] के साथ रहेगा; . . . और वह उन की आंखों से सब आंसू पोंछ डालेगा; और इस के बाद मृत्यु न रहेगी, और न शोक, न विलाप, न पीड़ा रहेगी; पहिली बातें जाती रहीं।” (प्रकाशितवाक्य 21:3, 4) “धर्मी लोग पृथ्वी के अधिकारी होंगे, और उस में सदा बसे रहेंगे।”—भजन 37:29.
बाइबल यह भी बताती है कि युद्ध, अपराध, खून-खराबा और दुष्टता, ये सब बहुत जल्द मिटा दिए जाएँगे। बीमारी, बुढ़ापा और मौत का नामो-निशान तक नहीं रहेगा। धरती एक फिरदौस बना दी जाएगी और उस पर इंसान हमेशा-हमेशा के लिए जीएँगे। कितना सुंदर भविष्य है हमारे सामने! परमेश्वर के ये सारे वादे साबित करते हैं कि वह हम इंसानों से बेहद प्यार करता है।
आप क्या करेंगे?
बाइबल हमें सिरजनहार की तरफ से मिला एक शानदार तोहफा है। इस किताब की तरफ आपको कैसा नज़रिया दिखाना चाहिए? एक हिंदू आदमी का मानना था कि परमेश्वर की दी हुई एक ऐसी किताब सभी इंसानों के लिए फायदेमंद हो सकती है, जो इंसान की रचना से लेकर पूरा इतिहास बताती हो। जब उस आदमी को पता चला कि बाइबल के कुछ हिस्से, हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन लेखों यानी वेदों से भी पहले लिखे गए थे, तो उसने बाइबल को पढ़ने और उसमें दी जानकारी को जाँचने का फैसला किया।e अमरीका के एक यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर को भी एहसास हुआ कि जब बाइबल दुनिया में सबसे ज़्यादा बाँटी गयी किताब है, तो इसके बारे में कोई राय कायम करने से पहले इसे पढ़कर देखना ज़रूरी है।
बाइबल को पढ़ने और इसकी सिखायी बातों पर अमल करने से आपको बहुत-से फायदे मिलेंगे। बाइबल कहती है: “क्या ही धन्य है वह पुरुष जो . . . यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता; और उसकी व्यवस्था पर रात दिन ध्यान करता रहता है। वह उस वृक्ष के समान है, जो बहती नालियों के किनारे लगाया गया है। और अपनी ऋतु में फलता है, और जिसके पत्ते कभी मुरझाते नहीं। इसलिये जो कुछ वह पुरुष करे वह सफल होता है।”f (भजन 1:1-3) बाइबल का अध्ययन करने और उसमें लिखी बातों पर गहराई से सोचने से आपको खुशी मिलेगी, क्योंकि ऐसा करके आप अपनी आध्यात्मिक ज़रूरत पूरी कर पाएँगे। (मत्ती 5:3, NW) बाइबल आपको सिखाएगी कि आप एक कामयाब ज़िंदगी कैसे जी सकते हैं और समस्याओं का सामना कैसे कर सकते हैं। जी हाँ, बाइबल में दर्ज़ परमेश्वर के नियमों का “पालन करने से बड़ा ही प्रतिफल मिलता है।” (भजन 19:11) इतना ही नहीं, परमेश्वर के वादों पर भरोसा रखने से आपको आशीषें मिलेंगी और आप एक उज्ज्वल भविष्य की आशा पाएँगे।
बाइबल हमसे यह गुज़ारिश करती है: “नये जन्मे हुए बच्चों की नाईं [वचन के] निर्मल आत्मिक दूध की लालसा करो।” (1 पतरस 2:2) एक शिशु दूध के सहारे जीता है और जब तक उसकी भूख नहीं मिटती, तब तक वह रोता रहता है। उसी तरह, सही मायनों में देखा जाए तो हमारी ज़िंदगी परमेश्वर के बारे में ज्ञान लेने पर टिकी है। इसलिए उसका वचन पढ़ने की “लालसा” या ज़बरदस्त इच्छा पैदा कीजिए। बाइबल, परमेश्वर की सच्ची शिक्षाएँ बतानेवाली किताब है। इसे बिना नागा पढ़ने का लक्ष्य रखिए। आपके इलाके में रहनेवाले यहोवा के साक्षी खुशी-खुशी आपकी मदद करना चाहेंगे ताकि आपको बाइबल के अध्ययन से पूरा-पूरा फायदा हो। हम आपको प्यार से न्यौता देते हैं कि आप साक्षियों से संपर्क करें। या फिर आप इस पत्रिका के प्रकाशकों को खत लिख सकते हैं।
[फुटनोट]
a सा.यु. “सामान्य युग” को दर्शाता है। इसका मतलब है “प्रभु के साल में।” सा.यु.पू. का मतलब है, “सामान्य युग पूर्व।”
b अगर आपके पास बाइबल नहीं है, तो यहोवा के साक्षियों को आपको एक बाइबल दिलाने में बड़ी खुशी होगी।
c यशायाह 40:22 में जिस शब्द का अनुवाद ‘घेरा’ किया गया है, उसे “गोला” भी कहा जा सकता है। कुछ बाइबलों में इस शब्द का अनुवाद यूँ किया गया है: “भूमण्डल” (NHT) और “धरती के चक्र।”—ईज़ी-टू-रीड वर्शन।
d इन विषयों पर ज्ञान जो अनन्त जीवन की ओर ले जाता है किताब में चर्चा की गयी है। इसे यहोवा के साक्षियों ने प्रकाशित किया है।
e माना जाता है कि वेदों में दिए सबसे पुराने भजनों को करीब 3,000 साल पहले रचा गया था और इन्हें दूसरों तक ज़बानी तौर पर पहुँचाया गया था। अपनी किताब भारत का इतिहास (अँग्रेज़ी) में पी. के. शरतकुमार कहते हैं: “सामान्य युग चौदहवीं सदी में जाकर ही वेद लिखा गया था।”
[पेज 7 पर तसवीर]
परमेश्वर के वचन के लिए ‘लालसा कीजिए।’ बिना नागा इसका अध्ययन कीजिए
[पेज 5 पर चित्र का श्रेय]
NASA photo