मौत एक खौफनाक हकीकत!
“इंसान की पैदाइश से यह गुंजाइश हमेशा बनी रहती है कि किसी भी पल वह मर सकता है। और फिर एक-न-एक-दिन यह गुंजाइश हकीकत का रूप ले ही लेती है। इसे कोई टाल नहीं पाता।” यह बात ब्रिटेन के एक इतिहासकार आरनल्ड टॉइनबी ने लिखी थी। वाकई, जब हमारे किसी अपने की या करीबी दोस्त की मौत हो जाती है, तो हम पर दुःखों का कैसा पहाड़ टूट पड़ता है!
हज़ारों सालों से मौत इंसानों के लिए एक खौफनाक हकीकत बनी हुई है। एक-न-एक-दिन यह हर किसी को अपने शिकंजे में ले लेती है। इससे कोई नहीं बच सकता। किसी अपने की मौत पर हम कितने लाचार और बेबस महसूस करते हैं। यही बात 19वीं सदी के एक निबंध-लेखक ने इस तरह लिखी: “गम हमें दोबारा बच्चा बना देता है—अक्लमंदों की अक्ल काम नहीं करती। बड़े-बड़े ज्ञानियों को कुछ नहीं सूझता।” जी हाँ, मौत के आगे हम छोटे बच्चों की तरह बेबस हो जाते हैं, हम हालात को बदलने के लिए कुछ नहीं कर पाते। न दौलत और न ताकत मरनेवाले को वापस ला सकती है। ज्ञानियों और समझदारों के पास कोई जवाब नहीं होता। जैसे कमज़ोर रोता है, वैसे ताकतवर भी रोता है।
ऐसी ही बेबसी और दर्द, प्राचीन इस्राएल के राजा दाऊद ने अपने बेटे अबशालोम की मौत पर महसूस किया था। उसकी मौत की खबर सुनकर राजा दाऊद रो पड़ा और कहा: “हाय मेरे बेटे अबशालोम, मेरे बेटे, मेरे बेटे अबशालोम! काश, तेरे बदले मैं मर गया होता! हाय अबशालोम, मेरे बेटे, मेरे बेटे!” (2 शमूएल 18:33, NHT) बड़े-बड़े दुश्मनों को हरानेवाला शूरवीर राजा, बेबस होकर सिर्फ यह कामना कर सकता था कि काश “अन्तिम बैरी” यानी मौत उसके बेटे के बजाय खुद उसका शिकार करती।—1 कुरिन्थियों 15:26.
क्या मौत का कोई इलाज है? अगर हाँ, तो जो मर गए हैं क्या उनके लिए कोई उम्मीद है? क्या हम अपने अज़ीज़ों से दोबारा कभी मिल पाएँगे? अगला लेख हमें बाइबल से इन सवालों के जवाब देगा।