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  • क्या आप जानते थे?
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w09 7/1 पेज 31

क्या आप जानते थे?

बाइबल में बताया कोढ़ और आज कोढ़ नाम की बीमारी, क्या दोनों एक ही हैं?

आज चिकित्सा क्षेत्र में जिस बीमारी को “कोढ़” कहा जाता है, वह इंसान में जीवाणुओं से होनेवाला संक्रमण है। इस जीवाणु (माइकोबैक्टैरियम लैप्रे) को डॉ. जी. ए. हैनसेन ने सन्‌ 1873 में पहली बार खोज निकाला। खोजकर्ताओं ने पता लगाया है कि यह जीवाणु शरीर के बाहर नाक के स्राव में नौ दिन तक ज़िंदा रह सकता है। उन्होंने यह भी देखा है कि कोढ़ी इंसान के करीब रहनेवालों को कोढ़ लगने का खतरा ज़्यादा रहता है और यह खासकर उसके कपड़ों से फैलता है। विश्‍व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक सन्‌ 2007 में 2,20,000 से भी ज़्यादा कोढ़ के नए मामले दर्ज़ किए गए हैं।

इसमें शक नहीं कि पुराने ज़माने में, मध्य पूर्वी देशों के लोगों को कोढ़ की बीमारी लगती थी और मूसा के नियम के मुताबिक एक कोढ़ी व्यक्‍ति को आम लोगों से अलग रहना होता था। (लैव्यव्यवस्था 13:4, 5) लेकिन बाइबल में जिस इब्रानी शब्द शारेआत का अनुवाद “कोढ़” किया गया है, वह सिर्फ इंसानों में होनेवाली बीमारी को ही नहीं, बल्कि घरों और कपड़ों में होनेवाले संक्रमण को भी दर्शाता है। इस तरह का कोढ़ अकसर ऊन और सन के कपड़ों या चमड़े से बनी चीज़ों में देखा जाता था। कुछ मामलों में इन्हें अच्छी तरह धोने के ज़रिए इस बीमारी से निजात पायी जा सकती थी। इसके बावजूद अगर कपड़े या चमड़े पर ‘हरा वा लाल’ धब्बा रह जाता, तो उसे जला दिया जाता था। (लैव्यव्यवस्था 13:47-52) अगर किसी घर में कोढ़ लगा हो तो उसकी दीवारों पर ‘हरी हरी वा लाल लाल लकीरें’ दिखायी देती थीं। जिन पत्थरों या दीवारों पर ऐसे निशान पाए जाते थे, उन पत्थरों को निकालकर और दीवारों को खुरचकर उसकी मिट्टी ऐसी जगह फेंक दी जाती थी, जहाँ इंसानों का बसेरा नहीं होता था। अगर यह बीमारी घर में फिर से आ जाती, तो घर को पूरी तरह ढा दिया जाता था और उसके मलबे को फेंक दिया जाता था। (लैव्यव्यवस्था 14:33-45) कुछ लोग कहते हैं कि कपड़ों या घरों में लगनेवाला यह कोढ़ दरअसल और कुछ नहीं बल्कि फफूँद है। लेकिन फिर भी इस बात को दावे के साथ नहीं कहा जा सकता। (w 09 2/1)

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