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  • क्या यीशु सच में मेरे लिए मरा था?

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  • क्या यीशु सच में मेरे लिए मरा था?
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2019
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2019
w19 जुलाई पेज 30-31
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क्या यीशु सच में मेरे लिए  मरा था?

बाइबल में ऐसे वफादार आदमियों का ज़िक्र मिलता है, जिनमें “हमारे जैसी भावनाएँ थीं।” उन्होंने ऐसी कई बातें कहीं, जो हमारे दिल को छू जाती हैं। (याकू. 5:17) उदाहरण के लिए, रोमियों 7:21-24 में पौलुस ने खुलकर अपने बारे में कहा, “जब मैं अच्छा करना चाहता हूँ, तो अपने अंदर बुराई को ही पाता हूँ। . . . मैं कैसा लाचार इंसान हूँ!” पौलुस की बात से हमें खासकर तब बहुत दिलासा मिलता है, जब हम अपनी कमज़ोरियों से लड़ रहे होते हैं।

पौलुस ने कुछ और भी भावनाएँ ज़ाहिर कीं। गलातियों 2:20 में उसने पूरे यकीन से कहा कि यीशु ने “मुझसे प्यार किया और खुद को मेरे लिए दे दिया।” क्या आपको भी ऐसा ही लगता है? शायद हमेशा ऐसा न लगे।

अगर हमने बीते समय में कोई पाप किया हो और इस वजह से खुद को किसी लायक नहीं समझते, तो शायद हम यह मानने को तैयार न हों कि यहोवा हमसे प्यार करता है, उसने हमें माफ कर दिया है। ऐसे में एक इंसान के लिए यह मानना मुश्‍किल हो सकता है कि यीशु ने उसके लिए अपनी जान दी थी। क्या यीशु वाकई चाहता है कि हम फिरौती बलिदान को एक तोहफा समझें जो उसने हममें से हरेक के लिए दिया है? ऐसा नज़रिया रखने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है? आइए इन दो सवालों पर गौर करें।

फिरौती बलिदान के बारे में यीशु का नज़रिया

यीशु चाहता है कि हर कोई यह माने कि फिरौती बलिदान खास उसके लिए दिया गया है। ऐसा हम क्यों कह सकते हैं? ज़रा लूका 23:39-43 में दर्ज़ घटना की कल्पना कीजिए। एक आदमी यीशु के पास यातना के काठ पर लटका हुआ है। वह कबूल करता है कि उसने बीते दिनों में बुरे काम किए थे। उसका अपराध ज़रूर बहुत बड़ा होगा, तभी उसे मौत की सज़ा दी जा रही थी। यह आदमी बहुत दुखी है और यीशु से गिड़गिड़ाकर बिनती करता है, “जब तू अपने राज में आए तो मुझे याद करना।”

यीशु को दो अपराधियों के बीच यातना के काठ पर लटकाया गया है

इस पर यीशु क्या करता है? वह बहुत दर्द में है, फिर भी वह किसी तरह अपना मुँह उस आदमी की तरफ करता है। उसे देखकर वह अपने चेहरे पर हलकी-सी मुस्कान लाता है और उसे दिलासा देता है, “मैं आज तुझसे सच कहता हूँ, तू  मेरे साथ फिरदौस में होगा।” यीशु चाहता तो उस आदमी को याद दिला सकता था कि “इंसान का बेटा . . . इसलिए आया है कि बहुतों की फिरौती के लिए अपनी जान बदले में दे।” (मत्ती 20:28) मगर उसने ऐसा नहीं किया। इसके बजाय, उसने “तू” और “मेरे” जैसे सर्वनाम इस्तेमाल करके दिखाया कि वह यह बलिदान उस आदमी के लिए देने जा रहा है। यीशु ने उससे कहा कि वह धरती पर फिरदौस में जीएगा।

इस तरह यीशु ने उस आदमी को समझाया कि फिरौती बलिदान से उसे भी फायदा होगा। ज़रा सोचिए, यीशु ने एक अपराधी को दिलासा दिया, जो उस वक्‍त तक परमेश्‍वर की सेवा नहीं कर रहा था। तो क्या वह एक मसीही को और भी ज़्यादा दिलासा नहीं देगा, जो वफादारी से परमेश्‍वर की सेवा कर रहा है? तो फिर क्या बात यह मानने में हममें से हरेक की मदद कर सकती है कि मसीह ने खुद मेरे लिए बलिदान दिया है?

किस बात ने पौलुस की मदद की?

यीशु ने पौलुस को प्रचार करने का जो ज़िम्मा सौंपा, उससे वह समझ पाया कि यीशु उसके लिए मरा था। वह कैसे? पौलुस बताता है, “हमारे प्रभु मसीह यीशु का मैं एहसान मानता हूँ जिसने मुझे शक्‍ति दी है क्योंकि उसने मुझे विश्‍वासयोग्य मानकर अपनी सेवा के लिए ठहराया है, हालाँकि पहले मैं परमेश्‍वर की निंदा करनेवाला और ज़ुल्म ढानेवाला और गुस्ताख था।” (1 तीमु. 1:12-14) इस सेवा से पौलुस को यकीन हो गया कि यीशु दयालु है, उससे प्यार करता है और उस पर भरोसा करता है। यीशु ने हममें से हरेक को भी प्रचार करने की ज़िम्मेदारी दी है। (मत्ती 28:19, 20) क्या इससे हमें भरोसा नहीं मिलता कि यीशु हमारे लिए भी मरा था?

ऐल्बर्ट के उदाहरण पर ध्यान दीजिए। करीब 34 साल पहले उसका मंडली से बहिष्कार हुआ था और हाल ही में वह लौट आया है। वह बताता है, “मेरे पाप हमेशा मेरे सामने रहते हैं, उन्हें भुलाना बहुत मुश्‍किल है। लेकिन जब मैं प्रचार में जाता हूँ, तो प्रेषित पौलुस की तरह मैं महसूस करता हूँ कि खुद यीशु ने मुझे यह ज़िम्मेदारी दी है। इस बात से मेरा हौसला बढ़ता है और मैं अपने बारे में, अपनी ज़िंदगी और भविष्य के बारे में सही नज़रिया रख पाता हूँ।”​—भज. 51:3.

दो भाई एक ऐसे आदमी का बाइबल अध्ययन करा रहे हैं, जिसके बदन पर टैटू बने हैं और जिसने हाथ और गले में बहुत-सी चीज़ें पहन रखी हैं

हर किस्म के लोगों के साथ अध्ययन करते वक्‍त उन्हें यकीन दिलाइए कि यीशु दयालु है और उनसे प्यार करता है

एक और भाई पर ध्यान दीजिए। ऐलन सच्चाई सीखने से पहले बहुत खूँखार था और उसने कई अपराध किए थे। वह कबूल करता है, “मैं अब भी उन लोगों के बारे में सोचता हूँ, जिन्हें मैंने चोट पहुँचायी थी। कभी-कभी यह बात मुझे निराश कर देती है। लेकिन मैं यहोवा का शुक्रगुज़ार हूँ कि उसने मुझ जैसे पापी को प्रचार करने का मौका दिया है। जब मैं लोगों को खुशखबरी सुनते देखता हूँ, तो मुझे एहसास होता है कि यहोवा कितना भला और प्यार करनेवाला परमेश्‍वर है! वह मेरे ज़रिए उन लोगों की मदद कर रहा है, जो मेरे जैसे ही बुरे काम करते थे।”

जब हम प्रचार में वक्‍त बिताते हैं, तो हम अपना ध्यान अच्छी बातों और अच्छे कामों पर लगा पाते हैं। प्रचार काम हमें इस बात का यकीन दिलाता है कि यीशु दयालु है, हमसे प्यार करता है और हम पर भरोसा करता है।

यहोवा हमारे दिलों से बड़ा है

शैतान की दुष्ट दुनिया बहुत जल्द खत्म होनेवाली है। लेकिन उस वक्‍त के आने तक शायद हमारा दिल बार-बार हमें उन पापों के लिए दोषी ठहराए, जो हमने बीते समय में किए थे। हम इन भावनाओं से कैसे लड़ सकते हैं?

बहन जीन अपनी जवानी के दिनों में दोहरी ज़िंदगी जीती थी। वह अपने मम्मी-पापा और मंडली के सामने तो अच्छी बनती थी, मगर पीठ पीछे गलत काम करती थी। इस वजह से उसका मन आज भी उसे दोषी ठहराता है। लेकिन वह कहती है, “मुझे इस बात से राहत मिलती है कि ‘परमेश्‍वर हमारे दिलों से बड़ा है।’” (1 यूह. 3:19, 20) हमें भी इस बात से दिलासा मिलता है कि यहोवा और यीशु अच्छी तरह समझते हैं कि हम पापी हैं। यह मत भूलिए कि उन्होंने फिरौती बलिदान परिपूर्ण इंसानों के लिए नहीं, बल्कि पश्‍चाताप करनेवाले पापियों के लिए दिया है।​—1 तीमु. 1:15.

जब हम गहराई से मनन करते हैं कि यीशु अपरिपूर्ण इंसानों के साथ किस तरह पेश आया और जब हम जी-जान से प्रचार करते हैं, तो हमें यकीन हो जाता है कि फिरौती बलिदान हममें से हरेक के लिए दिया गया है। इस तरह हर मसीही पौलुस की तरह कह पाएगा: यीशु ने “मुझसे  प्यार किया और खुद को मेरे लिए  दे दिया।”

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