सुसमाचार की भेंट—व्यक्तिगत विश्वास के साथ
प्रेरित पौलुस थिस्सलुनीकी मण्डली के कठिन परिश्रम को याद में रखते हुए उनसे कहता है, “क्योंकि हमारा सुसमाचार तुम्हारे पास न केवल वचन मात्र ही में बरन सामर्थ और पवित्र आत्मा, और बड़े निश्चय के साथ पहुँचा है . . . और तुम हमारी और प्रभु की सी चाल चलने लगे।” (१ थिस्स. १:५, ६) जी हाँ, पौलुस और उसके साथी, थिस्सलूनीकी मण्डली के साथ यह अवश्य जानते थे कि वे सही रूप से परमेश्वर की उपासना करते थे। यह विश्वास उनकी बातचीत में स्पष्ट था। हमारी सेवकाई में भी, यह व्यक्तिगत विश्वास स्पष्ट होना चाहिए।
दिल से कहिए
२ हमारी सेवकाई में हम व्यक्तिगत विश्वास कैसे प्रकट करेंगे? मूल रूप से उसका अर्थ हमारे दिल में जो है उसे व्यक्त करना है। सुसमाचार प्रस्तुत करने की हमारी रीति यह दिखाना चाहिए कि हम जो कहते हैं उस में सचमुच विश्वास करते हैं। अगर हम हमारे दिल से बात करते हैं तो हमारी निष्कपटता और व्यक्तिगत विश्वास साफ दिखायी देगा क्योंकि ‘अपने मन के भले भण्डार से भली बातें निकलता है।’—लूका ६:४५.
३ अगर हमें वैयक्तिक विश्वास प्रकट करना है तो हमें सच्चाई और यहोवा की संस्था के लिए गहरा मूल्यांकन होना चाहिए। सच्चाई पाने के कारण दूसरों को इसके बारे में सीखने के लिए मदद देना आपकी ज़िम्मेदारी है। इन सब बातों के बारे में सकारात्मक रीति से सोचना आपको विश्वास के साथ सच्चाई प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित करेगा। उस सामरी स्त्री से बात करने के द्वारा यीशु ने हमारे लिए एक उत्तम उदाहरण छोड़ दिया।—यूहन्ना ४:२१-२४.
४ हम दिल से बोल रहे हैं या नहीं यह हमारी साहित्यों की भेंट करने की रीति बताती है। सुसमाचार प्रस्तुत करते वक्त हमें साहित्य भेंट से परिचित होना चाहिए और अमुक मुद्दों को चुन लेना चाहिए जो गृहस्वामी की रुचि को उत्तेजित करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। साहित्य की भेंट करने के द्वारा हमारा आत्मविश्वास भी बढ़ता है।
व्यवहार-वैचित्र्यों से दूर रहें
५ कभी कभी कुछ व्यवहार-वैचित्र्य, हमारी निष्कपटता और हमारे विश्वास पर, गृहस्वामी के दृष्टिकोण पर असर कर सकता है। अनावश्यक रीति से हमारी साहित्यों को देखना या गृहस्वामी से बात करते वक्त हमारी दृष्टि इधर उधर भटकना भी यह विचार दे सकता है कि हम निष्कपट नहीं है। हमें हमारे गृहस्वामी की ओर देखना है यह सूचित करने के लिए कि हम जो कह रहे हैं उस में विश्वास भी करते हैं।
६ हमारी मुख-मुद्रा भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वे साधारणतः वही बताती हैं जो हमारे दिल में है। दृढ़ विश्वास और गृहस्वामी में एक निष्कपट रुचि हमारे मुख में प्रकट होना चाहिए।
७ शब्दों के हमारे चुनाव को भी उस विचार पर गहरा प्रभाव होता है जो हम छोड़ जाते हैं। अगर हम “मैं सोचता हूँ” और “शायद” जैसी अभिव्यक्तियों को बार बार इस्तेमाल करेंगे तो गृहस्वामी यह सोच सकता है कि हमे खुद विश्वास नहीं है कि हम क्या कह रहे हैं। शब्दों का हमारा चुनाव हमारी ओर से विश्वास को प्रकट करना चाहिए।—मत्ती ७:२८, २९ से तुलना करें.
८ वैयक्तिक विश्वास के साथ सुसमाचार को प्रस्तुत करने के लिए जब आप कठिन परिश्रम करते हैं, आपको यह आश्वासन है कि ‘आपका परिश्रम प्रभु में व्यर्थ नही हैं।’—१ कुरि. १५:५८.