क्षेत्र सेवा के लिए अर्थपूर्ण सभाएँ
लूका १०:१-११ में हमारे पास एक सभा का अभिलेख है जो यीशु ने अपने हाल में नियुक्त किए चेलों के साथ आयोजित की थी, ताकि उन्हें क्षेत्र सेवा के लिए तैयार होने में मदद करे। उसने उन्हें सुव्यवस्थित होने, उन्हें क्या कहना है वह तैयार करने, और कठिन परिस्थितियों से निपटने में मदद करने के लिए विशिष्ट निर्देशन दिए। इस वृत्तान्त को जाँचने के द्वारा हम सीख सकते हैं।
२ यीशु के साथ सभा के लिए स्पष्टतया सभी ७० चेले उपस्थित थे। सेवा की सभाओं में काफ़ी समय व्यर्थ जाता है यदि कुछ व्यक्ति आदतन देरी से आते हैं। उनका देर से आना आम तौर पर समूह को दुबारा संघटित करना तथा क्षेत्र नियुक्ति करना आवश्यक बना देता है। इसके कारण अकसर पूरे समूह को देरी हो जाती है। हम सभी समय पर आने और क्षेत्र की ओर शीघ्रता से बढ़ने के लिए तैयार होने के द्वारा अपना भाग निभा सकते हैं।
३ यीशु ने समूह को प्रयोग करने के लिए वार्तालाप का एक विशिष्ट विषय दिया, अर्थात “परमेश्वर का राज्य।” (लूका १०:९) हम भी वही संदेश प्रचार करने के लिए नियुक्त किए गए हैं, और हमें क्या कहना चाहिए उस पर कुछ सहायक सुझावों का हम सामान्यत: मूल्यांकन करते हैं। संचालक रीज़निंग पुस्तक की सहायता ले सकता है, जो ४० से अधिक भिन्न प्रस्तावनाएँ और उपयुक्त शास्त्रवचन प्रस्तुत करती है जिन्हें अनेक विविध परिस्थितियों में इस्तेमाल किया जा सकता है। एक या दो प्रस्तुतियों का संक्षिप्त पुनर्विचार हमारी सहायता कर सकता है कि बोलने के लिए मन में कुछ बातें जुटाएँ जो हमें दरवाज़ों पर अधिक आत्मविश्वास के साथ बोलने में समर्थ करेगा।
४ यीशु ने अपने चेलों को न केवल यह बताया कि क्या कहना है बल्कि उसे कैसे कहना है वह भी बताया। (लूका १०:५, ६) सेवा सभा कार्यक्रम में प्रस्तुत प्रदर्शन दिखाते हैं कि कैसे हम अपने आपको प्रभावकारी रीति से व्यक्त कर सकते हैं। संचालक शायद पिछली सभा में प्रस्तुत किए गए विषय पर पुनर्विचार करे और उसे किस तरह उस दिन सेवा में इस्तेमाल कर सकते हैं उस पर सुझाव दे। एक सरल शास्त्रीय प्रस्तुति का संक्षिप्त तैयार किया हुआ प्रदर्शन हमें अपने विचार एकाग्र करने और उन्हें शब्दों में डालने में सहायता कर सकता है।
५ यीशु ने अपने चेलों को उनके व्यक्तिगत व्यवहार के बारे में भी शिक्षण दिया। (लूका १०:७, ८) उसी तरह संचालक हमें ऐसी किसी भी चीज़ से दूर रहने में सहायता करने के लिए सुस्पष्ट निर्देशन दे सकता है जो हमारे कार्य से विकर्षित कर सकती है। वह हमें गली के नुक्कड़ पर जमा होने और विरोध करनेवालों से विवाद करने में समय बरबाद करने के बारे में सतर्क कर सकता है। वह हमें एक सही घर-घर का रिकार्ड रखने की आवश्यकता को याद दिला सकता है, जिसमें केवल गृहस्वामी का नाम और पता ही नहीं बल्कि जिस विषय पर चर्चा की गई थी उसे भी लिखना है। माता-पिताओं को अपने बच्चों का ध्यानपूवर्क निरीक्षण करने के लिए एक अनुस्मारक की ज़रूरत हो सकती है।
६ सत्तर चेलों ने यीशु के निर्देशनों को माना और उसके पश्चात् ‘आनन्द से लौटे।’ (लूका १०:१७, NW) यदि हम भी सेवा के लिए सभाओं से प्राप्त निर्देशन के प्रति प्रतिक्रिया दिखाएँगे, तो हम भी राज्य संदेश का प्रचार करने में अधिक आनन्द की प्रत्याशा कर सकते हैं।—प्रेरितों १३:४८, ४९, ५२.