नवंबर के लिए सेवा सभाएँ
नवंबर ३ से आरंभ होनेवाला सप्ताह
गीत ४८
१० मि:स्थानीय घोषणाएँ। हमारी राज्य सेवकाई से चुनिंदा घोषणाएँ। देश और अपनी कलीसिया की जुलाई की क्षेत्र सेवा रिपोर्ट पर टिप्पणी कीजिए।
१५ मि:“सेवा का बड़ा द्वार खुला है।” एक प्राचीन द्वारा भाषण, जिसमें श्रोतागण के साथ चर्चा भी शामिल है। जो प्रचार कार्य में ज़्यादा हिस्सा ले सकते हैं उन सभी लोगों को प्रोत्साहित कीजिए। अगस्त १५, १९८८, प्रहरीदुर्ग, पृष्ठ २२ (अंग्रेज़ी) में दी गयी कुछ सलाह शामिल कीजिए।
२० मि:“राज्य समाचार में दिखायी गयी दिलचस्पी को और बढ़ाइए।” सवाल और जवाब। अनुच्छेद ६ की प्रस्तुतियों को प्रदर्शित कीजिए। उनमें से एक में, बाइबल अध्ययन शुरू होते हुए दिखाइए।
गीत १४४ और समाप्ति प्रार्थना।
नवंबर १० से आरंभ होनेवाला सप्ताह
गीत ५१
१० मि:स्थानीय घोषणाएँ। लेखा रिपोर्ट। कलीसिया को बताइए कि राज्य समाचार क्र. ३५ के साथ और किस क्षेत्र को पूरा किया जाना बाक़ी है। ख़ास अभियान के इस आख़िरी सप्ताह में पूरा भाग लेने के लिए सभी लोगों को प्रोत्साहित कीजिए।
१५ मि:स्थानीय ज़रूरतें।
२० मि:“अविश्वासी साथियों की मदद कीजिए।” दो प्राचीनों के बीच चर्चा जो निजी तौर पर अविश्वासी साथियों से जान-पहचान बढ़ाने के लिए चिंतित हैं। वे लोग अप्रैल १, १९९०, प्रहरीदुर्ग, पृष्ठ २३-२४, अनुच्छेद ६-९ में दिए गए सुझावों पर भी विचार करते हैं। अक्तूबर १, १९९५, प्रहरीदुर्ग, पृष्ठ १०-११, अनुच्छेद ११-१२ से अनुभवों को शामिल कीजिए।
गीत १४८ और समाप्ति प्रार्थना।
नवंबर १७ से आरंभ होनेवाला सप्ताह
गीत ५३
१० मि:स्थानीय घोषणाएँ। राज्य समाचार क्र. ३५ के अभियान के कुछ स्थानीय अनुभव बताइए।
१५ मि:“इंटरनॆट पर सुसमाचार।” इस लेख को समझाने के लिए अगस्त ८, १९९७ सजग होइए! की जानकारी का इस्तेमाल कीजिए। मुख्य विषय पर ज़ोर दीजिए—सुसमाचार के साथ लोगों तक पहुँचने के लिए हर जायज़ तरीक़े का इस्तेमाल करने की हमारी इच्छा।
२० मि:इस अतुलनीय अवसर का लाभ उठाइए! नवंबर १५, १९९६, प्रहरीदुर्ग, पृष्ठ २१-३ पर आधारित एक भाषण।
गीत १५१ और समाप्ति प्रार्थना।
नवंबर २४ से आरंभ होनेवाला सप्ताह
गीत ५६
१० मि:स्थानीय घोषणाएँ। बक्स “रंगीन प्रॆस” की चर्चा कीजिए।
१५ मि:कलीसिया पुस्तक अध्ययन में तहज़ीब। हम उन परिवारों की मेहमाननवाज़ी की क़द्र करते हैं जो पुस्तक अध्ययन के लिए अपने घर उपलब्ध कराते हैं। इसमें शायद काफ़ी तैयारी और असुविधा होती हो। जब हम ऐसे पुस्तक अध्ययन में उपस्थित होते हैं, तो हमें तहज़ीब, आदर और लिहाज़ दिखाना चाहिए। इनमें ये बातें भी शामिल होंगी: (१) हमें अच्छी तरह से अपने पैर पोंछने चाहिए, या अगर यह रीत है, तो घर में घुसने से पहले अपने जूते निकाल देने चाहिए, ताकि फ़र्श या कालीन गंदे न हों। (२) माँ-बाप को अपने बच्चों पर नज़र रखनी चाहिए, और यह देखना चाहिए कि वे अच्छी तरह पेश आएँ और पुस्तक अध्ययन के लिए दी गयी जगह में ही रहें। (३) जबकि ग्रुप शायद छोटा हो और माहौल कुछ-कुछ अनौपचारिक हो, फिर भी यह एक कलीसिया सभा है और हमें उसी तरह कपड़े पहनने चाहिए जैसे हम राज्य गृह में जाने के लिए पहनते हैं। (४) सभा के बाद संगति को ज़्यादा लंबा नहीं होना चाहिए, ताकि घरवालों को अपने लिए समय मिले। (५) जबकि गृहस्वामी जिनके घर में अध्ययन होता है, कभी-कभार अध्ययन के बाद हल्का-फुल्का नाश्ता परोसे, सभी लोगों को यह समझना चाहिए कि न तो इसकी अपेक्षा की जाती है और न ही यह आवश्यक है।
२० मि:चेला बनाइए, उन्हें सिखाइए। प्राचीन तीन या चार प्रकाशकों के समूह के साथ चर्चा करता है, और हमारी सेवकाई (अंग्रेज़ी) पुस्तक के पृष्ठ ८८-९२ पर आधारित कुछ सवालों के जवाब देता है: (१) प्रभावकारी सेवकाई के लिए पुनःभेंट करना आवश्यक क्यों है? एक व्यक्ति पुनःभेंट करने की चुनौती का सामना कैसे कर सकता है? (२) हम बाइबल अध्ययन शुरू करने पर इतना ज़ोर क्यों देते हैं? हम अध्ययन संचालित करने में निपुण कैसे बन सकते हैं? (३) विद्यार्थियों को संगठन की ओर निर्देशित करना क्यों महत्त्वपूर्ण है? हम इसे कैसे कर सकते हैं? समूह यह भी बताता है कि कैसे जून १९९६ और मार्च और अप्रैल १९९७ की हाल की हमारी राज्य सेवकाई के अंतःपत्रों ने इन क्षेत्रों में उनकी मदद की है।
गीत १६० और समाप्ति प्रार्थना।