अपने भाइयों से जान-पहचान बढ़ाइए
बाइबल सच्चे दोस्त को एक ऐसा इंसान बताती है जो भाई से भी ज़्यादा करीब होता है, जिसका प्यार कभी कम नहीं होता, जो हमेशा वफादार बना रहता है और जो मुसीबत के वक्त अपने दोस्त की मदद के लिए दौड़ा चला आता है। (नीति. १७:१७; १८:२४) हमें कलीसिया में ऐसे दोस्तों की कमी नहीं होगी अगर हम एक दूसरे से जान-पहचान बढ़ाने और एक दूसरे से प्रेम करने की कोशिश करें।—यूह. १३:३५.
२ सभाओं से पहले और सभाओं के बाद हमें भाइयों से मेल-जोल बढ़ाने का एक अच्छा मौका मिलता है। प्यार और जोश से भरी उनकी दोस्ती का मज़ा लेने के लिए क्यों न जल्दी आएँ और देर से जाएँ? अलग-अलग भाइयों से बात करें जैसे बुज़ुर्ग अनुभवी भाई, जवान या ऐसे भाई जो बात करने से झिझकते हैं।
३ बात करने में पहल कीजिए: बस नमस्ते करके ही मत रह जाइए। क्षेत्र सेवकाई का कोई अनुभव, हाल की पत्रिका में आया दिलचस्प मुद्दा या अभी-अभी खत्म हुई सभा के बारे में ही कुछ बताकर आप बातचीत शुरू कर सकते हैं। एक अच्छा सुननेवाला बनकर आप अपने भाइयों के बारे में बहुत कुछ जान सकते हैं। उनके अनुभवों के बारे में और उन बातों के बारे में पूछिए जो वे सीख रहे हैं। सिर्फ इतना ही पूछने से कि उन्होंने यहोवा को कैसे जाना, बहुत कुछ जाना जा सकता है। कुछ लोगों के जीवन में ऐसी घटनाएँ घटी हैं जिनसे उनका विश्वास मज़बूत हुआ है, वहीं कुछ लोग फिलहाल ऐसे हालात से गुज़र रहे हैं जिनके बारे में कई लोग सोच भी नहीं सकते। यह जानने से, हम सच्चे दोस्त की तरह उनकी ज़रूरतों को समझ सकेंगे और उनकी मदद कर सकेंगे।
४ एक दूसरे से दोस्ती कीजिए: अपनी बेटी की मौत के बाद से एक बहन को पुनरुत्थान पर राज्य गीत गाने में मुश्किल होती थी। वह याद करती है: “एक बार दूसरी तरफ बैठी एक बहन ने मुझे रोते हुए देखा। वह उठकर मेरे पास आई और फिर उसने मुझे अपनी बाँहों में लेकर बाकी का गीत मेरे साथ गाया। उस वक्त मेरे दिल में अपने भाई-बहनों के लिए बेहिसाब प्यार उमड़ने लगा। मैं बहुत खुश हुई कि हम ऐसी सभाओं में थे, और तब मैंने जाना कि हमें सहारा और कहीं नहीं बल्कि इसी राज्यगृह में मिलता है।” ज़रूरत के वक्त अपने भाइयों को दिलासा देकर और हमेशा उनका हौसला बढ़ाकर हमें अपने भाइयों से दोस्ती करनी चाहिए।—इब्रा. १०:२४, २५.
५ जैसे जैसे यह पुरानी दुनिया ज़ालिम होती जा रही है, आइए हम अपने भाइयों से और ज़्यादा जान-पहचान बढ़ाने का पक्का इरादा करें। इस तरह एक दूसरे को सच्चा प्रोत्साहन देने से सभी को आशीष मिलेगी।—रोमि. १:११, १२.