भारतीय भाषाओं में “आत्मा” शब्द का इस्तेमाल
भारत में आमतौर पर यह माना जाता है कि इंसान के अंदर एक ऐसी चीज़ होती है जो मौत के बाद ज़िंदा, यानी अमर रहती है। इस शिक्षा के बारे में जब भी भारतीय लेखक लिखते हैं इसका ज़िक्र करने के लिए वे हमेशा शब्द आत्मा का इस्तेमाल करते हैं। मगर ईसाईजगत की बाइबलों में यूनानी शब्द न्यूमा (अंग्रेज़ी: स्पिरिट, SPIRIT) के अनुवाद के लिए इसी शब्द का इस्तेमाल किया गया है। दूसरी तरफ उन्होंने इब्रानी शब्द नेफेश (अंग्रेज़ी: सोल, SOUL) का सही अनुवाद किया है। उन्होंने इसे प्राणी या प्राण अनुवाद किया है। प्राणी का मतलब है साँस लेनेवाला। बस यह समझाने से कि आदमी एक प्राणी (इब्रानी: नेफेश) है लोग यह नहीं समझ पाते कि इंसान के अंदर एक अमर चीज़ यानी आत्मा नहीं है।
इसलिए यह बाइबल सच्चाई साफ-साफ समझाने के लिए कि इंसान के अंदर कोई भी ऐसी चीज़ नहीं होती है जो मरने के बाद उसके शरीर से निकल जाती है और ज़िंदा यानी अमर रहती है, हमने अपनी हिन्दी पत्रिकाओं में कुछ जगहों में बदलाव किए हैं, जिनमें मृत्यु के बाद जीवन के बारे में ज़िक्र किया गया है। मिसाल के तौर पर जुलाई १, १९९८ की प्रहरीदुर्ग के तीन अध्ययन लेखों को देखिए।