आइए हम ‘असली बात पर आएँ!’
क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है कि आप किसी को अच्छी तरह सुसमाचार सुना रहे हों और उसने बीच में ही टोकते हुए कहा हो: “असली बात पर आओ! आखिर तुम कहना क्या चाहते हो?” अगर हमारे साथ ऐसा हुआ है तो हम इससे क्या सीख सकते हैं?
२ आजकल कई लोगों में सब्र नहीं है। दरवाज़े पर हमें देखते ही वे फौरन जानना चाहते हैं कि हम कौन हैं और उनके घर क्यों आएँ हैं। और जब उन्हें पता चलता है कि हम उनसे बाइबल के बारे में बात करना चाहते हैं तो वे सुनने से इंकार कर देते हैं। कई लोगों की नज़रों में बाइबल पढ़ना और परमेश्वर के बारे में बातें करना फिज़ूल है। लेकिन, इन लोगों को हम कैसे यकीन दिला सकते हैं कि बाइबल के बारे में बात करना उनके लिए ज़रूरी है?
३ क्या कहना सबसे अच्छा होगा: उन्हें यह बताना सबसे अच्छा होगा कि उनकी समस्याओं का हल बाइबल से उन्हें मिल सकता है, मगर यह उन्हें कम से कम शब्दों में बताने की कोशिश कीजिए। इसके लिए सबसे बढ़िया तरीका होगा उन्हें एक ऐसा सवाल पूछना जिस पर वे सोचें, और फिर उन्हें बाइबल से उसका जवाब देना। इसके कुछ तरीके नीचे बताए गए हैं, जिन्हें आप आज़मा सकते हैं। इनसे हमें जल्दी से ‘असली बात पर आने’ में मदद मिलेगी और साथ ही सुननेवाले में दिलचस्पी भी पैदा होगी।
४ जिन इलाकों में लोग आम तौर पर कहते हैं कि वे हमारी बात नहीं सुनना चाहते, उनसे हम एक ऐसे विषय पर सवाल पूछ सकते हैं जिनमें वे खुद दिलचस्पी लेते हों:
◼“हम सन् २००० के बिलकुल करीब आ पहुँचे हैं। आपको क्या लगता है, आगे कुछ सुधार होगा या दुनिया ऐसे ही चलती रहेगी? [जवाब के लिए रुकिए।] आज हम जो समस्याएँ और गड़बड़ी देखते हैं, उनके बारे में बाइबल में पहले से ही बताया गया था। इसमें यह भी बताया गया है कि इनका हल क्या है।” इसके बाद २ तीमुथियुस ३:१, २, ५ और नीतिवचन २:२१, २२ पढ़िए।
◼ “हमारे देश में बीमारियों को दूर करने के बारे में बहुत चिंता की जाती है। क्या आपको मालूम है कि परमेश्वर ने वादा किया है कि वह सभी बीमारियों को हमेशा-हमेशा के लिए मिटा देगा?” इसके बाद प्रकाशितवाक्य २१:३, ४ पढ़िए।
◼ “अगर इस इलाके के सभी लोग परमेश्वर की बात मानकर या शास्त्र के मुताबिक चलेंगे तो आपके विचार से समाज को इससे कैसे फायदा होगा?” इसके बाद मत्ती २२:३७-३९ पढ़िए।
५ राज्य के सुसमाचार का प्रचार करना ही हमारा मकसद है। इसलिए, जहाँ तक हो सके हमें लोगों को बताना चाहिए कि परमेश्वर का राज्य हमारे लिए क्या-क्या करेगा। इसके लिए आप कह सकते हैं:
◼ “क्या आपको नहीं लगता कि अगर पूरी दुनिया में सिर्फ एक सरकार होगी, तो कितना अच्छा होगा? क्या आप जानते हैं कि दुनिया की सबसे पुरानी किताब, बाइबल में बताया गया है कि एक दिन ऐसा ही होगा?” इसके बाद दानिय्येल २:४४ पढ़िए।
◼ “आपके खयाल से अगर यीशु मसीह इस दुनिया पर राज करेगा तो यह दुनिया कैसी होगी?” इसके बाद भजन ७२:७, ८ पढ़िए।
६ धार्मिक किस्म के लोगों से आप इस तरह बातचीत शुरू कर सकते हैं:
◼ “आज समाज में आदमी और औरत के बीच में या किसी धर्म या रंग को लेकर भेदभाव किया जाता है, जिसकी वज़ह से कई लोगों को दुःख उठाना पड़ता है। लेकिन आपके विचार से परमेश्वर ऐसे भेदभाव के बारे में क्या सोचता होगा?” इसके बाद प्रेरितों १०:३४, ३५ पढ़िए।
◼ “हम जानते हैं कि यीशु मसीह ने अपने ज़माने में कई चमत्कार किए थे। अगर आप उसे एक और चमत्कार करने को कह सकते तो आप कौन-सा चमत्कार करने को कहते?” इसके बाद भजन ७२:१२-१४, १६ पढ़िए।
७ अगर व्यक्ति दरवाज़ा खोलने से हिचकिचाता है तो आप यह कहकर बातचीत शुरू कर सकते हैं:
◼ “आज ज़्यादातर लोग अपनी समस्याओं से लड़ते-लड़ते थक चुके हैं। वे जानना चाहते हैं कि उनकी समस्याएँ कैसे दूर होंगी। आप भी ज़रूर यही जानना चाहेंगे। लेकिन हमारी समस्याओं का असली हल हमें कहाँ मिलेगा?” [जवाब के लिए रुकिए।] इसके बाद २ तीमुथियुस ३:१६, १७ पढ़िए।
८ क्यों न इसे आज़माकर देखें? लोगों में दिलचस्पी जगाने के लिए अकसर एक सरल और छोटा-सा सवाल ही काफी होता है। एक बार दो बहनों ने एक स्त्री से मुलाकात की जो पहले विरोध किया करती थी। बहन ने उससे सवाल किया: “क्या आप जानती हैं कि वह राज्य कौन-सा है जिसके लिए आप यीशु से प्रार्थना करती हैं?” इस सवाल से उस स्त्री में दिलचस्पी जगी इसलिए उसने उन दोनों को अंदर बुलाया और बाइबल स्टडी करने को तैयार हो गयी। अब वह बपतिस्मा लेकर यहोवा की सेवा कर रही है!
९ लोगों से बात करते वक्त उनमें दिलचस्पी दिखाइए और दिल से बात कीजिए। जब लोगों को यकीन होगा कि हम उनका भला चाहते हैं, तो वे हमारी बात सुनने को तैयार होंगे।—प्रेरि. २:४६, ४७.
१० सुसमाचार का प्रचार करना आजकल इतना आसान नहीं है। आज कई लोग अजनबियों को शक की नज़र से देखते हैं। कुछ लोग अपने कामों में इतने मशरूफ हैं कि उनके पास हमारी बात सुनने के लिए ज़रा भी फुरसत नहीं है। लेकिन हम यकीन रख सकते हैं कि ढूँढ़ने पर हमें योग्य लोग ज़रूर मिलेंगे। (मत्ती १०:११) उन्हें ढूँढ़ने में हम तभी कामयाब होंगे जब हम कम शब्दों में गवाही देंगे और जल्दी से ‘असली बात पर आएँगे!’