त्योहारों के मौसम में यहोवा का आदर कीजिए
भारत में अगस्त की बारिश से जनवरी महीने तक त्योहारों का मौसम होता है। जो लोग दीवाली, दशहरा, गणेश पूजा, ओणम और पोंगल के त्योहार मनाते हैं, उनके लिए यह खुशियाँ मनाने का वक्त होता है। और जो त्योहार नहीं मनाते, वे भी इस दौरान मिलनेवाली छुट्टियों से खुश रहते हैं। इन त्योहारों में मिलनेवाली छुट्टियों को आप कैसे बिताएँगे?
2 छुट्टियों को परमेश्वर के काम में लगाइए: इन दिनों में हममें से ज़्यादातर लोगों की छुट्टी होगी, तो अपने पड़ोसियों को जाकर राज्य का सुसमाचार सुनाने से बढ़िया इनका और क्या इस्तेमाल हो सकता है? इन दिनों लोगों का पूरा परिवार घर पर होता है और खुशी का माहौल छाया होता है। इसलिए छुट्टियों के दौरान लोगों को गवाही देने से न सिर्फ अच्छे नतीजे मिल सकते हैं बल्कि आप भी इसका आनंद लेंगे।
3 इन छुट्टियों का पूरा-पूरा फायदा उठाने के लिए कलीसिया के प्राचीन, प्रचार करने का खास इंतज़ाम कर सकते हैं। परिवार के मुखिया, पहले से ही तैयारी कर सकते हैं कि वे पूरे परिवार के साथ छुट्टियों के दौरान प्रचार के इंतज़ाम में हिस्सा लेंगे। प्रचार के काम में थोड़ी और कोशिश करने से शायद आपके लिए ऑक्ज़लरी पायनियर सेवा करना भी मुमकिन हो। थकान के बावजूद, यीशु को प्रचार के काम से ऐसी ताज़गी मिलती थी जैसे अच्छा भोजन खाने से मिलती है। (यूह. 4:34) अगर हम अपने पड़ोसियों की मदद करने के लिए वक्त निकालें तो हम भी ऐसा ही महसूस करेंगे।
4 लिहाज़ दिखाइए और समझ से काम लीजिए: लोगों के लिए प्रेम की वजह से हम ऐसे वक्त पर उनका लिहाज़ करेंगे। इन दिनों में लोग अकसर मेहमानों की खातिर-दावत करने में या खास-खास पकवान बनाने में व्यस्त रहते हैं। इस बात को समझते हुए हम ऐसा लिहाज़ दिखाएँगे जैसा मसीहियों को सोहता है और थोड़े शब्दों में अपना संदेश सुनाएँगे। लेकिन, आपको ऐसे लोग भी मिल सकते हैं जो फुरसत में हैं और आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा करना चाहते हैं। इसलिए समझ से काम लेकर आप यह फैसला कर पाएँगे कि आपको बातचीत जारी रखनी चाहिए या नहीं। अगर बातचीत जारी रहती है, तो आप कह सकते हैं:
◼ “आज छुट्टी का दिन है इसलिए सब काफी खुश नज़र आ रहे हैं! कुछ लोग त्योहार की वजह से और कुछ छुट्टी की वजह से खुश हैं। ऐसे दिनों में पूरा परिवार बहुत अच्छे मूड में होता है और सब मिल-बाँटकर काम करते हैं। अगर साल का हर दिन ऐसा ही हो, कोई चिंता न हो और हर तरफ खुशी-ही-खुशी छायी हो तो आपको कैसा लगेगा? [जवाब के लिए रुकिए।] क्या आप जानते हैं कि परमेश्वर ने धर्मी लोगों के लिए ऐसा ही करने की ठानी है?” जवाब के लिए रुकिए। जवाब सुन लेने और धन्यवाद कहने के बाद, आप भजन 37:11, 29 पढ़कर यह कह सकते हैं: “हम लोगों को उस वक्त के बारे में सोचने के लिए कह रहे हैं जब एक-एक दिन, पृथ्वी पर जीनेवाले हर इंसान के लिए खुशियाँ लाएगा।” ज्ञान किताब के पेज 4 और 5 की तसवीर दिखाइए। दोबारा आने और अध्याय 1 पर चर्चा करने की पेशकश रखिए।
5 घर पर मिलनेवाले लोग बेशक हमें त्योहार की शुभकामनाएँ देंगे। ऐसे वक्त पर, हमें इस बुनियादी सिद्धांत को कभी नहीं भूलना चाहिए: हम संसार के धार्मिक त्योहारों या उनके समारोह में कोई भी हिस्सा नहीं लेते, न ही हम शुभकामना मिलने पर जवाब में शुभकामना देते हैं। (2 कुरि. 6:14-18) लेकिन जब हमें कोई नेक इरादे से शुभकामना देता है, तो हम बेवजह उसकी भावनाओं को ठेस पहुँचाकर उसे नाराज़ नहीं करना चाहेंगे। जब हमें शुभकामना दी जाती है तो हम जवाब में सिर्फ “शुक्रिया” या हाथ जोड़कर और मुस्कुराकर, “नमस्ते” कह सकते हैं। इस स्थिति से निपटने का एक और तरीका है कि हम उन्हें इस बात के लिए धन्यवाद कहें कि उन्होंने वक्त निकालकर हमारी बात सुनी। इस तरह, हम धर्म से जुड़े शब्दों का इस्तेमाल करने से दूर रहेंगे और हमारा विवेक हमें समझौता करने के लिए भी नहीं कोसेगा। साथ ही हम लोगों के मन में अपने लिए सद्भावना बनाए रखेंगे।
6 अगर वे हमें प्रसाद दें तो क्या किया जाना चाहिए? क्या हमें ऐसा सोचना चाहिए कि यह तो बस “मूरत को बलि [भोग] की हुई वस्तु” है, और इसलिए हरेक अपने विवेक के मुताबिक फैसला कर सकता है? (1 कुरि. 10:25-30) जी नहीं, आम तौर पर मेहमानों या घर पर आनेवाले किसी भी व्यक्ति को प्रसाद देना, उस दिन की पूजा का ही एक हिस्सा है और जो-जो प्रसाद खाते हैं, वे उस पूजा में शामिल होते हैं। तो जब हमें इस बात का पता है तब हम साफ-साफ मगर समझदारी से यूँ जवाब दे सकते हैं: “धन्यवाद। आपके सत्कार की मैं कदर करता/ती हूँ, लेकिन मैं प्रसाद नहीं लेता/ती।” (प्रेरि. 15:28, 29) लेकिन कुछ घरों में यह रिवाज़ हो सकता है कि इस वक्त के दौरान आनेवाले हर व्यक्ति को मिठाई और नाश्ता दिया जाए। ऐसे रिवाज़ पूजा से जुड़े नहीं होते और इसलिए कई भाई-बहन इन्हें शुद्ध विवेक के साथ खाने का चुनाव करते हैं।
7 इन दिनों में सिर्फ यहोवा के साक्षी ही घर-घर नहीं जाते। हर इलाके में कुछ दल होते हैं जो आम तौर पर घर-घर जाकर त्योहार या पूजा के लिए चंदा माँगते हैं। स्कूल में और काम की जगह पर भी हमसे चंदा माँगा जा सकता है। ऐसी माँगों को पूरा करने से हम यह दिखाएँगे कि हम उस देवी/देवता की पूजा को बढ़ावा दे रहे हैं, इसलिए हमें पहले से ही इस मामले में अटल फैसला कर लेना चाहिए। ऐसे मामले में भी साफ-साफ मगर सूझ-बूझ से दिए गए जवाब से बहुत फायदा होता है। पहले से सोच-समझकर चुने हुए शब्दों से हम इस बात पर ज़ोर दे सकते हैं कि चंदा देना हमारे लिए अपनी उपासना में समझौता करने के बराबर है और ऐसा करके हम अपने परमेश्वर से विश्वासघात करेंगे, इसलिए हम चंदा देने की बात सोच भी नहीं सकते।
8 त्योहार मनानेवाले कई लोगों का विश्वास होता है कि इन्हें मनाने से पूरे साल उनके घर में खुशहाली रहेगी। इसलिए वे नए साल की शुरूआत, भली और मीठी बातें बोलकर और भलाई के काम करके करना चाहते हैं। जब हम ऐसे दिनों में लोगों से बात करते हैं तो अच्छा होगा अगर हम “मौत,” “बीमारी” और “दुःख-दर्द” जैसे शब्द इस्तेमाल न करें। इसके बजाय हम ऐसे विषयों पर बात कर सकते हैं जिससे सभी को खुशी मिले, जैसे “अच्छी सेहत” और “नयी दुनिया में सदा तक रहनेवाली शांति और खुशहाली।” ज़्यादातर लोग, साल के इस वक्त पर ऐसी अच्छी बातों के बारे में खुशी-खुशी बात करते हैं।
9 ऐसा हो कि यहोवा का आदर करने की हमारी चाहत, हमें त्योहारों के मौसम में उसकी और ज़्यादा सेवा करने के लिए उकसाए। सूझ-बूझ से काम लीजिए, क्योंकि हम चाहते हैं कि लोग हमारी सुनें, मगर मन-ही-मन यह संकल्प भी कीजिए कि हम अपने विश्वास के मामले में समझौता नहीं करेंगे। आइए हम अपने पड़ोसियों को उस त्योहार तक ले जाएँ जो यहोवा ने आनेवाली नयी दुनिया में हमारे लिए तैयार किया है और जिसमें हम सदा तक खुशियाँ मनाते रहेंगे।—जक. 14:16.