अलग-अलग भाषा बोलनेवाले इलाके में चेला बनाना
सामान्य युग 33 में, पिन्तेकुस्त के दिन अलग-अलग जाति की एक बड़ी भीड़ ने हैरान कर देनेवाला एक भाषण सुना। उन्होंने कहा: “देखो, ये जो बोल रहे हैं क्या सब गलीली नहीं? तो फिर क्यों हम में से हर एक अपनी अपनी जन्म भूमि की भाषा सुनता है?” (प्रेरि. 2:7, 8) लगता है कि वहाँ मौजूद लोगों को यूनानी और इब्रानी भाषा का थोड़ा-बहुत ज्ञान था, फिर भी जब उन्होंने सुसमाचार को अपनी भाषा में सुना तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा और उसी दिन लगभग 3000 लोगों ने बपतिस्मा लिया।
2 आज भारत में 50 प्रतिशत से भी ज़्यादा प्रचारक बड़े शहरों में रहते हैं, जहाँ पर एक-से-ज़्यादा भाषाएँ बोली जाती हैं। इसके अलावा कुछ लोग अँग्रेज़ी माध्यम या किसी और माध्यम से पढ़ाई करते हैं इसलिए वे उसी भाषा में बात करना पसंद करते हैं। तो दिलचस्पी दिखानेवाले जो लोग आपकी भाषा नहीं जानते, उनकी तरक्की के लिए आप कैसे मदद कर सकते हैं? वे अपनी भाषा में संदेश कैसे सुन सकते हैं? और ऐसे क्या इंतज़ाम किए जाने चाहिए, जिससे वे सभाओं से पूरा लाभ उठा सकें?
3 हालाँकि अब अन्य-अन्य भाषाएँ बोलने का चमत्कार नहीं होता, मगर परमेश्वर की पवित्र आत्मा धरती पर उसके संगठन पर काम कर रही है। इसलिए आज कई भाषाओं में साहित्य एक-साथ अनुवाद करके हम तक पहुँचाए जाते हैं। इसलिए स्थानीय भाषा का पूरा ज्ञान न होने पर भी नए लोग साहित्य के ज़रिए पूरे कार्यक्रम को अच्छी तरह समझ पाते हैं।
4 कुछ कलीसियाओं के प्राचीनों ने कार्यक्रम का अनुवाद करने का इंतज़ाम किया है ताकि दो अलग-अलग भाषा बोलनेवाले समूह के लोग विषय को अच्छी तरह समझ सकें। लेकिन अनुवाद करने से भाषण में प्रवाह नहीं रहता और वक्ता अच्छी तरह दलील पेश करने में बाधा महसूस करता है। अगर अनुवादक तजुर्बेकार हो, तब भी श्रोताओं को सिर्फ 60 प्रतिशत जानकारी मिल पाती है। तो इसका मतलब हुआ कि सुननेवाले ज़रूरी आध्यात्मिक भोजन लेने से चूक जाते हैं।
5 कभी-कभी प्रचारकों को अपनी-अपनी भाषा में जवाब देने या सभाओं के भाग पेश करने के लिए उकसाया जाता है। इससे ऐसी स्थिति पैदा होगी, जैसी पहली सदी में हुई थी: ‘यदि सब के सब अन्य-अन्य भाषा बोलें, और अनपढ़ या अविश्वासी लोग भीतर आ जाएं तो क्या वे तुम्हें पागल न कहेंगे?’ (1 कुरि. 14:23) फिर पौलुस ने आगे समझाया कि सभाओं को कैसे व्यवस्थित रूप से चलाना चाहिए ताकि मौजूद सभी लोगों को विषय समझ में आए।—1 कुरि. 14:26-40.
6 अगर किसी कलीसिया में स्थानीय भाषा के अलावा कोई और भाषा बोलनेवाले काफी लोग आते हैं और वहाँ एक काबिल भाई भी वही भाषा बोल लेता है, तो अच्छा होगा कि धीरे-धीरे उस भाषा में एक नयी कलीसिया शुरू की जाए। प्राचीन चाहें तो इस सिलसिले में अधिक निर्देशन के लिए ब्राँच ऑफिस को खत लिख सकते हैं।
7 कई बार ऐसा होता है कि वही लोग, स्थानीय भाषा भी बोल लेते हैं, और जैसे-जैसे उस भाषा में उनका आत्म-विश्वास बढ़ता है, वे उसमें महारत हासिल कर लेते हैं। इसलिए नयी भाषा में एक समूह शुरू करने के बजाए बेहतर होगा कि उन्हें स्थानीय भाषा बोलने की अपनी काबिलीयत बढ़ाने के लिए उकसाया जाए। वरना यही लगेगा कि उन्हें अपनी भाषा पर बड़ा गर्व है, या फिर वे दूसरी भाषा सीखने के लिए राज़ी नहीं हैं। नेकदिल इंसान, सच्चाई के संदेश की तरफ आकर्षित होते हैं और अकसर उन्हें जो भी भाषा समझ में आती है, उस भाषा में सच्चाई सीखने को उत्सुक रहते हैं।
8 एक बार जब दूसरी भाषा में कलीसियाएँ शुरू होती हैं, तब पुरानी कलीसिया के सभी लोगों की ज़िम्मेदारी बनती है कि दिलचस्पी दिखानेवाले को वे उस कलीसिया में भेजें, जहाँ उसकी भाषा बोली जाती है, फिर चाहे वह कलीसिया थोड़ी दूर ही क्यों न हो। आप भले ही उसकी भाषा अच्छी तरह बोल लेते हों, लेकिन अच्छा होगा कि उस कलीसिया के प्रचारक को जो कि उसकी भाषा जानता है, साथ बुलाएँ। फिर आगे यही प्रचारक दिलचस्पी दिखानेवाले की मदद कर सकता है ताकि वह आध्यात्मिक उन्नति करता जाए, साथ ही उसे अपनी कलीसिया की सभाओं में आने के लिए कह सकता है।
9 अगर आप अपने प्रचार के इलाके में ऐसी कोई जगह पाते हैं, जिसमें ज़्यादातर लोग दूसरी भाषा बोलते हैं तो अपने प्राचीनों को इत्तला कीजिए। वे शायद इसे अपनी सबसे करीबी कलीसिया को देने का फैसला करें जहाँ वही भाषा बोली जाती है। कलीसियाओं में आपसी सहयोग होना बहुत ज़रूरी है। अगर आप अपनी सेवकाई में उन लोगों पर खास ध्यान देते हैं जो आपकी भाषा अच्छी तरह समझते हैं तो आपको अच्छे नतीजे मिल सकते हैं।
10 कभी-कभार ऐसा होता है कि माता-पिता अपनी मातृ-भाषा बोलना पसंद करते हैं जबकि उनके बच्चे अँग्रेज़ी स्कूलों में पढ़ने की वजह से अँग्रेज़ी बोलना पसंद करते हैं। इस समस्या से निपटने के लिए कुछ कलीसियाएँ, कार्यक्रम का अनुवाद करती हैं, साथ ही दो अलग-अलग प्रहरीदुर्ग अध्ययन चलाती हैं। लेकिन जब सभाओं के लिए बच्चे दूसरे कमरे में बैठते हैं तो माता-पिता को यह पता नहीं होता कि वे दिल खोलकर हिस्सा ले रहे हैं या नहीं। इसके अलावा उन्हें उनकी आध्यात्मिक प्रगति का भी अंदाज़ा नहीं होता। इसलिए परिवारों को यह फैसला करना चाहिए कि वे आध्यात्मिक शिक्षा किस भाषा में लेना चाहेंगे और उसी भाषा में परिवार के सभी सदस्यों को मिलकर आध्यात्मिक कामों में भाग लेना चाहिए। कुछ परिवार अपने बच्चों की खातिर अँग्रेज़ी भाषा बोलनेवाली कलीसिया में चले गए हैं।
11 इस निर्देशन के अनुसार चलने से सभी को परमेश्वर की दी गयी शिक्षा के कार्यक्रम से पूरा-पूरा फायदा होगा। और जब नए लोग अपनी भाषा में सुसमाचार सुनेंगे और समझेंगे कि इसमें क्या शामिल है, तो वे भी हमारे महान शिक्षक, यहोवा परमेश्वर की स्तुति करने के लिए प्रेरित होंगे।