वह स्कूल जो हमें ज़रूरी कामों के लिए काबिल बनाता है
लोग स्कूल में सीखने इसलिए जाते हैं ताकि अपनी ज़िंदगी के लक्ष्यों को हासिल कर सकें। क्या इससे बढ़िया और कोई लक्ष्य हो सकता है कि हम अपने जीवनदाता की स्तुति करें और दूसरों को उसके उद्देश्यों और मार्गों के बारे में सिखाएँ? बिलकुल नहीं। परमेश्वर की सेवा स्कूल का खास मकसद है, हमें इस काबिल बनाना कि हम दूसरों को अपने विश्वास के बारे में सिखा सकें। इसलिए, जब हम हर हफ्ते स्कूल में हाज़िर होते हैं तो हम वह हुनर हासिल करते हैं जो हमें ज़िंदगी के सबसे ज़रूरी कामों के लिए काबिल बनाता है।
2 पिछले महीने की हमारी राज्य सेवकाई के साथ-साथ “सन् 2003 के लिए परमेश्वर की सेवा स्कूल का कार्यक्रम” भी दिया गया था। इस कार्यक्रम में ज़्यादा जानकारी दी गयी है कि यह स्कूल कैसे चलाया जाएगा। अच्छा होगा अगर आप इस कार्यक्रम को परमेश्वर की सेवा स्कूल से फायदा उठाइए किताब में रखें। यह किताब आपको हर हफ्ते परमेश्वर की सेवा स्कूल में लानी है। आइए सन् 2003 के लिए परमेश्वर की सेवा स्कूल की कुछ खासियतों पर गौर करें।
3 भाषण के गुण: जनवरी से, परमेश्वर की सेवा स्कूल की हर सभा, पाँच मिनट के भाषण से शुरू होगी जो भाषण के किसी एक गुण के बारे में होगा या पढ़ाई, अध्ययन या सिखाने के किसी एक पहलू पर होगा। यह भाषण स्कूल ओवरसियर देगा या वह किसी दूसरे काबिल प्राचीन को यह भाषण पेश करने के लिए कह सकता है। वक्ता, भाषण के गुण की परिभाषा और उसकी अहमियत के बारे में चर्चा कर सकता है। इसके बाद उसे जानकारी को और भी खुलकर समझाने के लिए बाइबल से उदाहरण देने चाहिए और यह दिखाना चाहिए कि कैसे भाषण के गुण को अमल में लाया जा सकता है। और इस दौरान हमें खास ध्यान इस बात पर देना चाहिए कि ऐसा करके हम अपने प्रचार के काम में कैसे तरक्की कर सकते हैं।
4 भाग नं. 1: हिदायत-भाषण पेश करनेवाले भाइयों को एक बार फिर सलाह दी जाती है कि उन्हें “यह ज़ोर देना है कि जानकारी पर कैसे अमल किया जाना चाहिए।” इसका मतलब है कि उन्हें कलीसिया को यह दिखाना है कि जानकारी का कैसे इस्तेमाल करें। जब आपको यह भाग मिलता है तो इसकी तैयारी कैसे करें इसके लिए सेवा स्कूल की किताब के पेज 48-9 देखिए और उसी किताब के इंडॆक्स में “जीवन में लागू करना” के तहत दिए गए हवालों का अध्ययन कीजिए।
5 बाइबल पढ़ाई का कार्यक्रम: अगर आप गुज़रे वक्त में कार्यक्रम के मुताबिक हर हफ्ते की बाइबल पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए थे तो क्यों न आप ठान लें कि इस साल, आप कार्यक्रम के अनुसार बाइबल पढ़ाई ज़रूर पूरी करेंगे? जो लोग ऐसा करेंगे वे मसीही यूनानी शास्त्र को, साल के खत्म होते-होते पूरा पढ़ पाएँगे। बाइबल पढ़ाई का कार्यक्रम मसीही यूनानी शास्त्र से शुरू करने के क्या फायदे हैं, इसके बारे में सेवा स्कूल किताब के पेज 10 पैराग्राफ 4 में बताया गया है।
6 बाइबल पढ़ाई की झलकियाँ: इस भाग के समय को बढ़ाकर 10 मिनट कर दिया गया है ताकि श्रोता उस हफ्ते की बाइबल पढ़ाई के अध्यायों पर चंद बातें बता सकें। जिनको भी यह भाग सौंपा जाता है उन्हें दिए गए समय में ही अपना भाग पूरा करना चाहिए। यह भाग हर हफ्ते पेश किया जाएगा, उस हफ्ते भी जब ज़बानी चर्चा होगी। हफ्ते की पढ़ाई के लिए दिए गए अध्यायों को पढ़ते वक्त ऐसे खास मुद्दे ढूँढ़िए जिनसे आपको पारिवारिक अध्ययन में, अपनी सेवा में या रोज़मर्रा ज़िंदगी में फायदा हो। जब यहोवा ने लोगों और राष्ट्रों के साथ व्यवहार किया तो कौन-से गुण दिखाए? आपने ऐसा क्या सीखा जिससे आपका विश्वास मज़बूत हुआ और आपके दिल में यहोवा के लिए श्रद्धा और बढ़ी? दिए गए अध्यायों के किसी भी मुद्दे पर चर्चा कीजिए, यहाँ तक कि उन आयतों पर भी जो भाग नं. 2 में पढ़ी जाएँगी क्योंकि उस भाग को पेश करनेवाला भाई उन आयतों पर चर्चा नहीं करेगा।
7 भाग नं. 2: हर हफ्ते, पहले विद्यार्थी भाग में बाइबल पढ़ाई का अभ्यास किया जाएगा। हर महीने के आखिरी हफ्ते को छोड़ बाकी सभी हफ्तों में यह भाग हफ्ते की बाइबल पढ़ाई से लिया जाएगा। महीने के आखिरी हफ्ते में इस भाग की पढ़ाई प्रहरीदुर्ग से की जाएगी। विद्यार्थी को दिया गया भाग सिर्फ पढ़ना चाहिए, उसे पढ़ाई की शुरूआत और आखिर में कुछ कहने की ज़रूरत नहीं। इस तरह से वह अपने पढ़ने की काबिलीयत पर ज़्यादा ध्यान दे सकता है।—1 तीमु. 4:13.
8 भाग नं. 3 और नं. 4: इनमें से कुछ भागों के लिए रीज़निंग किताब से काफी जानकारी दी गयी है तो कुछ में कम; और कुछ में तो सिर्फ शीर्षक दिए गए हैं। अगर रीज़निंग किताब उपलब्ध नहीं है, तो इसकी जगह उन किताबों से जानकारी ले सकते हैं, जिनका हवाला दिया गया है। जिन भागों के लिए बहुत कम जानकारी दी गयी है या सिर्फ शीर्षक दिया गया है, उन भागों को पेश करनेवाले भाई-बहनों को हमारे मसीही साहित्य से खोजबीन करके अपना टॉक पेश करना होगा। इससे बहनों को यह फायदा है कि वे अपने सहायक को ध्यान में रखकर अपने भाग को उसी हिसाब से पेश कर सकेंगी।
9 सैटिंग: जैसा कि सेवा स्कूल किताब के पेज 45 पर बताया गया है कि स्कूल ओवरसियर सैटिंग दे सकता है। लेकिन अगर वह नहीं देता तो बहनें पेज 82 पर दी गयी सैटिंग की सूची में से कोई भी चुन सकती हैं। अगर एक बहन हर दो महीने में भाषण देती है तो 30 अलग-अलग सैटिंग उसके लिए पाँच साल तक काफी होंगी। अगर बहनें सैटिंग नं. 30 यानी “दूसरी कोई सैटिंग जो आपके इलाके के मुताबिक सही है,” चुनती हैं तो उन्हें यह सैटिंग सेवा स्कूल की भाग पर्ची (S-89) के नीचे या पीछे लिखनी चाहिए। स्कूल ओवरसियर पेज 82 पर उस सैटिंग के पास ही वह तारीख लिखेगा जिस दिन विद्यार्थी अपना भाग पेश करेगा। यह तारीख वह सलाह पर्चे पर निशान लगाते वक्त लिख सकता है।
10 सलाह पर्चा: आपका सलाह पर्चा आपकी किताब में ही पेज 79-81 पर दिया गया है। इसलिए हर बार अपना भाग पेश करने के बाद आपको स्कूल ओवरसियर के पास यह किताब लानी चाहिए। स्कूल ओवरसियर को एक रिकॉर्ड रखना होगा कि विद्यार्थी, सलाह के किन मुद्दों पर काम कर रहे हैं।
11 ज़बानी चर्चा: परमेश्वर की सेवा स्कूल में सीखी बातों की चर्चा ज़बानी तौर पर होगी। यह हर दो महीने में एक बार 30 मिनट के लिए होगी। पहले जिस तरह हमारी राज्य सेवकाई में सवाल आया करते थे, इस चर्चा के लिए वैसे ही सवाल आते रहेंगे। अगर ज़बानी चर्चा उस हफ्ते में पड़ती है जिस हफ्ते में सर्किट सम्मेलन या सर्किट ओवरसियर का दौरा है तो ज़बानी चर्चा के बजाय अगले हफ्ते में होनेवाले भाषण दिए जाने चाहिए। और अगले हफ्ते ज़बानी चर्चा की जानी चाहिए।
12 दूसरी क्लासें: जब कलीसिया में 50 से ज़्यादा विद्यार्थी हो जाते हैं तो प्राचीन दूसरी क्लास शुरू करने की सोच सकते हैं। “सभी विद्यार्थी-भागों के लिए, या फिर आखिरी दो विद्यार्थी-भागों के लिए दूसरी क्लास का इंतज़ाम” किया जा सकता है। (सेवा स्कूल, पेज 285) आखिरी दो विद्यार्थी-भागों के लिए दूसरी क्लास रखने का सुझाव ऐसी कलीसियाओं को ध्यान में रखकर दिया गया है जिनमें बहनें ज़्यादा हैं मगर पढ़ाई के भाग पेश करने के लिए भाई बहुत कम हैं। ये क्लासें लेने के लिए प्राचीनों को काबिल भाइयों का चुनाव करना चाहिए।
13 सहायक सलाहकार: जैसा कि परमेश्वर की सेवा स्कूल के कार्यक्रम में बताया गया है, प्राचीनों के निकाय को एक सहायक सलाहकर चुनना चाहिए, जो बाइबल झलकियाँ और हिदायत-भाषण पेश करनेवाले प्राचीनों और सहायक सेवकों को निजी सलाह देगा। यह ज़िम्मेदारी ऐसे भाई को दी जानी चाहिए जो तजुर्बेकार हो और जिसकी सलाह की दूसरे प्राचीन कदर करेंगे। उसकी सलाह से भाइयों का हौसला बढ़ना चाहिए। उसे भाइयों की अच्छी बोली और उनके सिखाने के तरीकों की सराहना करनी चाहिए और सुधार करने के लिए दो या तीन मुद्दे बताने चाहिए। यह ज़रूरी नहीं कि सहायक सलाहकार उन भाइयों को, जो अकसर भाषण देते हैं, स्कूल के हर भाषण के बाद सलाह दे। मगर कभी-कभार उन्हें सलाह देने की ज़रूरत पड़ सकती है क्योंकि हालाँकि ये भाई जन-भाषण देते हैं, फिर भी उन्हें आगे तरक्की करने के लिए मदद दी जा सकती है। इसके लिए सहायक सलाहकार को अपनी परख-शक्ति का इस्तेमाल करना होगा।—1 तीमु. 4:15.
14 किस बात पर ध्यान देना चाहिए: सलाह देनेवाला भाई, किन बातों को ध्यान में रखकर एक भाग की जाँच कर सकता है? सेवा स्कूल किताब के 53 अध्यायों में से ज़्यादातर अध्यायों में दिया तीसरा बक्स संक्षिप्त में बताता है कि एक गुण को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है। तो विद्यार्थी-भाग के दौरान स्कूल ओवरसियर इस बक्स के मुताबिक जाँच सकता है। स्कूल ओवरसियर को किताब में दिए गए उन सुझावों या सलाह पर भी ध्यान देना चाहिए जिनकी बिनाह पर वह जाँच कर सकेगा कि विद्यार्थी कितनी अच्छी तरह से जानकारी को क्रम में रख पाया है और भाषण को कितने असरदार तरीके से पेश किया है। मिसाल के लिए, पेज 55 के ऊपर की तरफ सवालों की श्रृंखला और पेज 163 के आखिरी पैराग्राफ में दिए गए मुद्दों पर गौर करें।
15 खाली जगहों को भरना: सेवा स्कूल किताब में चौड़े हाशिए के अलावा कई खाली जगह छोड़ी गयी हैं जहाँ पर आप निजी अध्ययन करते वक्त या परमेश्वर की सेवा स्कूल में भाग लेते वक्त अपने नोट्स् लिख सकते हैं। (पेज 77, 92, 165, 243, 246, और 250 देखिए।) हर हफ्ते अपने साथ अपनी किताब लाना मत भूलिएगा। शुरूआत के भाग से जो भी बताया जाता है उसे किताब में देखिए। पूरे स्कूल के दौरान अपनी किताब खुली ही रखिए। स्कूल ओवरसियर जो भी सुझाव देता है उन्हें लिखिए। ध्यान दीजिए कि वक्ता अपने भाषण में सिखाने के किन तरीकों, सवालों, मिसालों, अलंकारों, दृष्टांतों, समझाने के लिए दिखायी गयी तसवीरों या चीज़ों का इस्तेमाल करते हैं या फर्क दिखाते हैं। अच्छे नोट्स् लेने से आप उन बहुत-सी उम्दा बातों को याद कर पाएँगे जो आपने स्कूल में सीखी हैं।
16 यीशु मसीह जानता था कि परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना, इतना महान काम है कि उसकी बराबरी किसी और काम से नहीं की जा सकती। यही उसकी ज़िंदगी का सबसे ज़रूरी काम था। (मर. 1:38) उसने कहा: “मुझे . . . परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाना अवश्य है, क्योंकि मैं इसी लिये भेजा गया हूं।” (लूका 4:43) हमने यीशु की मिसाल पर चलने के उसके न्यौते को स्वीकार किया है इसलिए हम भी सुसमाचार का प्रचार करने में लगे हुए हैं। और हमेशा हमारी कोशिश यही रहेगी कि हम “स्तुतिरूपी बलिदान” चढ़ाने की अपनी कुशलता बढ़ाते रहें। (इब्रा. 13:15) इस लक्ष्य को पाने के लिए आइए हम ठान लें कि हम परमेश्वर की सेवा स्कूल में नियमित रूप से हाज़िर होंगे। जी हाँ, यह वह स्कूल है जो हमें ज़िंदगी के ज़रूरी कामों के लिए काबिल बनाता है।