सन् 2004 के लिए परमेश्वर की सेवा स्कूल
यहोवा मामूली लोगों को एक ऐसा काम करने के काबिल बना रहा है जो सारी दुनिया के लिए बहुत अहमियत रखता है। इसका एक तरीका है वह ट्रेनिंग जो हर हफ्ते परमेश्वर की सेवा स्कूल में दी जाती है। क्या आप इस स्कूल में पूरी तरह हिस्सा लेने के लिए अपना भरसक कर रहे हैं? इस इंतज़ाम से विद्यार्थियों को पूरा-पूरा फायदा मिले, इसके लिए जनवरी से कुछ तबदीलियाँ की जा रही हैं।
2 सहायक सलाहकार की बारी: हिदायत-भाषण और बाइबल झलकियाँ पेश करनेवाले भाइयों ने सहायक सलाहकार की सलाहों को बहुत सराहा है। जिन कलीसियाओं में कई काबिल प्राचीन हैं, वहाँ हर साल सहायक सलाहकार की ज़िम्मेदारी एक अलग प्राचीन को दी जा सकती है। इस तरह न सिर्फ काम का बोझ हलका होगा बल्कि दूसरे बढ़िया वक्ताओं और शिक्षकों के मिले-जुले अनुभव से प्राचीनों और काबिल सहायक सेवकों को बहुत फायदा होगा।
3 ज़बानी चर्चा का शेड्यूल: अगर ज़बानी चर्चा उसी हफ्ते में पड़ती है, जिस हफ्ते आपकी कलीसिया का सर्किट सम्मेलन है, तो ज़बानी चर्चा को (और उस हफ्ते के बाकी कार्यक्रम भी) अगले हफ्ते के लिए छोड़ देना चाहिए। और अगले हफ्ते का पूरा कार्यक्रम सम्मेलन में पेश किया जाना चाहिए। लेकिन अगर ज़बानी चर्चा उस हफ्ते में पड़ती है जिसमें सर्किट ओवरसियर कलीसिया से भेंट करने आता है, तो दो हफ्तों के पूरे-पूरे कार्यक्रमों की अदला-बदली करना ज़रूरी नहीं है। उस हफ्ते के शेड्यूल के मुताबिक ही गीत, भाषण गुण पर भाषण और बाइबल झलकियाँ पेश की जानी चाहिए। हिदायत भाषण (जो भाषण गुण के भाग के बाद दिया जाता है) अगले हफ्ते के कार्यक्रम से लिया जा सकता है। बाइबल झलकियों के बाद, आधे घंटे की सेवा सभा होगी, जिसमें फेर-बदल करके 10 मिनट के तीन भाग या 15 मिनट के दो भाग पेश किए जा सकते हैं। (शुरूआत की घोषणाएँ नहीं की जानी चाहिए।) सेवा सभा के बाद गीत गाया जाएगा और फिर आधे घंटे सर्किट ओवरसियर का कार्यक्रम होगा। अगले हफ्ते के स्कूल में शेड्यूल के मुताबिक भाषण गुण का भाग और बाइबल की झलकियाँ पेश की जाएँगी और उसके बाद ज़बानी चर्चा होगी।
4 आध्यात्मिक उन्नति करने के हर मौके का फायदा उठाइए। जैसे-जैसे आप परमेश्वर की सेवा स्कूल से फायदा हासिल करते हैं, आप अपनी कलीसिया का हौसला बढ़ाते हैं, बाइबल की भविष्यवाणी को पूरा करने में हिस्सा लेते हैं और जो लाजवाब संदेश हमें ऐलान करना है उसके रचयिता की स्तुति करते हैं।—यशा. 32:3, 4; प्रका. 9:19.