पत्रिकाएँ पेश करने के लिए क्या कहना चाहिए
प्रहरीदुर्ग दिसं. 15
“आज कई लोगों को यह देखकर दुःख होता है कि त्योहार अब सिर्फ पैसा कमाने का ज़रिया बनकर रह गए हैं। क्या आपको लगता है कि आज त्योहारों के मौसम में गलत बातों पर ज़्यादा ज़ोर दिया जा रहा है? [जवाब के लिए रुकिए।] इस पत्रिका में समझाया गया है कि त्योहारों से जुड़े रस्मो-रिवाज़ वक्त के गुज़रते किस तरह बदल गए हैं। इसमें यह भी बताया गया है कि हम सही मायनों में परमेश्वर और मसीह का आदर कैसे कर सकते हैं।” यूहन्ना 17:3 पढ़िए।
सजग होइए! अक्टू.-दिसं.
“हर कोई चाहता है कि उसका अपना एक घर हो। क्या आपको लगता है कि ऐसा वक्त कभी आएगा जब हर किसी के पास रहने को अपना घर होगा? [जवाब के लिए रुकिए।] हमारा सिरजनहार जानता है कि मकान की समस्या का हल कैसे किया जाए।” यशायाह 65:21, 22 पढ़िए।
प्रहरीदुर्ग जन. 1
“इंसान में दूसरों की बेइंतिहा भलाई करने की काबिलीयत है, फिर भी वह अकसर दूसरों पर ऐसे घिनौने ज़ुल्म ढाता है कि उनका बयान तक नहीं किया जा सकता। क्या आपने कभी सोचा है कि इसकी वजह क्या है? [जवाब के लिए रुकिए।] यह पत्रिका बताती है कि बाइबल इस सवाल का क्या जवाब देती है। इसमें यह भी समझाया गया है कि आखिरकार अच्छाई, बुराई पर कैसे जीत हासिल करेगी।” रोमियों 16:20 पढ़िए।
सजग होइए! जन.-मार्च
“महँगाई के इस ज़माने में, शादी का खर्चा उठाना बहुत भारी पड़ रहा है। कुछ लोग शादी की रस्म सादगी से निपटाना पसंद करते हैं, जबकि दूसरे बड़ी धूम-धाम से रचाते हैं। इस मामले में सही फैसला करने में क्या बात एक इंसान की मदद कर सकती है? [जवाब के लिए रुकिए। इसके बाद रोमियों 12:2 पढ़िए।] सजग होइए! के इस अंक में पेज 25 पर बाइबल के उन सिद्धांतों के बारे में चर्चा की गयी है, जो आपको सोच-समझकर फैसला करने में मदद दे सकते हैं।”