परमेश्वर की सेवा स्कूल की चर्चा
जून 26, 2006 से शुरू होनेवाले हफ्ते में, परमेश्वर की सेवा स्कूल में नीचे दिए सवालों पर ज़बानी चर्चा होगी। स्कूल अध्यक्ष, 30 मिनट के लिए मई 1 से जून 26, 2006 तक के हफ्तों में पेश किए भागों पर हाज़िर लोगों के साथ चर्चा करेगा। [ध्यान दीजिए: जिस सवाल के बाद कोई हवाला नहीं दिया गया है, उसके जवाब के लिए आपको खुद खोजबीन करनी है।—सेवा स्कूल किताब के पेज 36-7 देखिए।]
भाषण के गुण
1. उतार-चढ़ाव क्या है, और इसकी क्या अहमियत है? [be-HI पेज 111, दोनों बक्स]
2. भाषण देते वक्त, हम अपने बोलने की रफ्तार को कैसे घटा-बढ़ा सकते हैं? [be-HI पेज 112 पैरा. 4–पेज 113 पैरा. 2, बक्स]
3. हम अपने भाषण के विषय के लिए जोश कैसे पैदा कर सकते हैं, और इसकी क्या अहमियत है? [be-HI पेज 115 पैरा. 1–पेज 116 पैरा. 2, सभी बक्स]
4. दूसरों को सिखाते वक्त स्नेह ज़ाहिर करना क्यों ज़रूरी है, और ऐसा करने में क्या बात हमारी मदद कर सकती है? [be-HI पेज 118 पैरा. 2–पेज 119 पैरा. 5]
5. समझाइए कि बातचीत में हाव-भाव करने और चेहरे पर तरह-तरह के भाव लाने की क्या अहमियत है। (मत्ती 12:48,49) [be-HI पेज 121, दोनों बक्स]
भाग नं. 1
6. अय्यूब की किताब कैसे यहोवा की महिमा का बखान करती है और कैसे उसके उन धर्मी स्तरों पर ज़ोर देती है, जिनके मुताबिक एक इंसान को जीना चाहिए? [bsi06-HI पेज 13 पैरा. 39, 41]
7. भजनों की किताब की सच्चाई का क्या सबूत है? [bsi06-HI पेज 16 पैरा. 10–पेज 17 पैरा. 11]
8. क्या नीतिवचन 13:16 में बताए चतुर इंसान का मतलब एक धूर्त्त व्यक्ति है? समझाइए। [w04-HI 7/15 पेज 28 पैरा. 3-4]
9. पवित्र आत्मा कैसे एक सहायक के तौर पर काम करती है, और इससे हमें क्या बढ़ावा मिलना चाहिए? (यूह. 14:25, 26) [be-HI पेज 19 पैरा. 2-3]
10. मोटे तौर पर यीशु किस मायने में आता है, और मत्ती 16:28 में अपने ‘आने’ का ज़िक्र करते वक्त उसका क्या मतलब था? [w04-HI 3/1 पेज 16 बक्स]
हफ्ते की बाइबल पढ़ाई
11. अय्यूब 42:1-6 के मुताबिक, अय्यूब ने जिस तरह से यहोवा को जवाब दिया, उससे हम क्या सीख सकते हैं?
12. देश-देश के लोग कौन-सी ‘व्यर्थ बात’ सोच रहे हैं? (भज. 2:1, 2)
13. कौन-सी नेवें ढा दी जाती हैं? (भज. 11:3)
14. एक अहंकारी इंसान को कैसे “भली भांति बदला” दिया जाता है? (भज. 31:23)
15. भजन 40 से हम क्या दिलासा पा सकते हैं, जो हमें अपने असिद्ध शरीर की लालसाओं से लड़ने और इस संसार से आनेवाली अलग-अलग आफतों का सामना करने में मदद दे सकता है? (भज. 40:1, 2, 5, 12)