परमेश्वर की सेवा स्कूल की चर्चा
अगस्त 28,2006 से शुरू होनेवाले हफ्ते में, परमेश्वर की सेवा स्कूल में नीचे दिए सवालों पर ज़बानी चर्चा होगी। स्कूल अध्यक्ष, 30 मिनट के लिए जुलाई 3 से अगस्त 28,2006 तक के हफ्तों में पेश किए भागों पर हाज़िर लोगों के साथ चर्चा करेगा। [ध्यान दीजिए: जिस सवाल के बाद कोई हवाला नहीं दिया गया है, उसके जवाब के लिए आपको खुद खोजबीन करनी है।—सेवा स्कूल किताब के पेज 36-7 देखिए।]
भाषण के गुण
1. नज़र मिलाकर बात करने से हमें अच्छा शिक्षक बनने में कैसे मदद मिलती है? (मत्ती 19:25,26; प्रेरि. 14:9,10) [be-HI पेज 124 पैरा. 3–पेज 125 पैरा. 3]
2. सहजता की अहमियत क्या है, और प्रचार में हम कैसे सहजता से बात कर सकते हैं? [be-HI पेज 128 पैरा. 1-5, बक्स]
3. हमें क्यों खुद की साफ-सफाई पर ध्यान देना चाहिए? [be-HI पेज 131 पैरा. 1-3]
4. हम अपने कपड़े और सजने-सँवरने के मामले में, ‘शालीन’ (NHT) और ‘संयमी’ इंसान कैसे बन सकते हैं? (1 तीमु. 2:9) [be-HI पेज 131 पैरा. 4–पेज 132 पैरा. 1]
5. हम जिस तरह से अपने रूप को सँवारते हैं, उससे यह ज़ाहिर नहीं होना चाहिए कि हमें संसार से लगाव है। इस बात का पूरा ध्यान रखने में हमें बाइबल के कौन-से सिद्धांतों को लागू करना चाहिए? [be-HI पेज 133 पैरा. 2-3]
भाग नं. 1
6. पढ़ाई से मिलनेवाला सबसे बड़ा फायदा क्या है? [be-HI पेज 21 पैरा. 3]
7. यह कैसे तय किया जा सकता है कि फलाँ इंसान बुद्धिमान है या मूर्ख? (नीति. 14:2) [w04-HI 11/15 पेज 26 पैरा. 5]
8. ऐसा क्यों है कि एक ‘समझदार इंसान को ज्ञान सहज से मिलता है’? (नीति. 14:6) [w04-HI 11/15 पेज 28 पैरा. 4-5]
9. अध्ययन क्या होता है? [be-HI पेज 27 पैरा. 3]
10. यहोवा की कारीगरी पर मनन करने से हम पर कैसा असर होना चाहिए? [w04-HI 11/15 पेज 8 पैरा. 4]
हफ्ते की बाइबल पढ़ाई
11. प्राचीन समय में, यहोवा ने क्या “आज्ञा” दी जिसकी वजह से “शुभ समाचार सुनानेवालियों की बड़ी सेना” बनी, और आज यह आयत कैसे लागू होती है? (भज. 68:11)
12. किस वजह से आसाप सही रास्ते से भटकनेवाला था, मगर उसकी सोच में सुधार कैसे आया? (भज. 73:2,3,17)
13. इस्राएलियों को जो मन्ना दिया गया था, उसे “स्वर्ग का अन्न” और “शूरवीरों की सी रोटी” क्यों कहा गया है? (भज. 78:24,25)
14. ‘परमप्रधान का छाया हुआ स्थान’ क्या है, और हम वहाँ कैसे ‘बैठ’ सकते हैं? (भज. 91:1,2)
15. किस मायने में यहोवा के भक्तों की मौत, उसकी नज़र में अनमोल हैं? (भज. 116:15)