अलग-अलग भाषाओं के ट्रैक्टों का पैक
भारत के 28 राज्यों में 1,600 से भी ज़्यादा भाषाएँ बोली जाती हैं। इसलिए इन अलग-अलग भाषा बोलनेवालों तक खुशखबरी पहुँचाना, हमारे लिए एक बड़ी चुनौती है। मगर बहुत-से प्रचारक अच्छी तरह से इस चुनौती का सामना कर रहे हैं। वे न सिर्फ अपने इलाके की भाषा बोलनेवालों को, बल्कि वे वहाँ रहनेवाले दूसरी ‘जाति और भाषा’ के लोगों को भी असरदार तरीके से गवाही दे रहे हैं। (प्रका. 7:9; मत्ती 24:14) शायद आप भी कई भाषाएँ जानते हों। या आप ऐसी भाषाओं में बात करते हों, जो लगभग सभी जानते हैं, जैसे हिंदी या अँग्रेज़ी। या फिर, ज़रूरत पड़ने पर सब जातियों के लोगों के लिए सुसमाचार पुस्तिका का इस्तेमाल करके आपको ज़रूर कामयाबी मिली होगी।
2 हम सभी प्रचारक परमेश्वर के संगठन से मिल रही मदद के लिए कितने एहसानमंद हैं, क्योंकि वह हमें 26 भारतीय भाषाओं में बाइबल साहित्य देता है। फिर भी, प्रचार के वक्त जब हमें दिलचस्पी दिखानेवाला कोई ऐसा शख्स मिलता है, जिसकी भाषा में साहित्य न तो हमारे बैग में होता है और न ही कलीसिया के स्टॉक में, तो हम काफी निराश हो सकते हैं। अगर हम दिलचस्पी दिखानेवाले सभी लोगों के पास, उनकी अपनी भाषा में बाइबल पर आधारित साहित्य छोड़ पाएँ, तो क्या इससे हमें संतोष नहीं मिलेगा?
3 इसे मुमकिन बनाने के लिए, अब कलीसियाएँ वॉचटावर पब्लिकेशन्स लिस्ट में दी सभी भाषाओं के ट्रैक्टों की थोड़ी-थोड़ी तादाद में गुज़ारिश कर सकती हैं। इसके अलावा, वे कुछ आम विदेशी भाषाओं के ट्रैक्टों की भी गुज़ारिश कर सकती हैं, जैसे चीनी, फारसी और फ्रांसीसी। इसके बाद, हरेक प्रचारक खुद के लिए 10, 15 या 20 अलग-अलग भाषाओं के ट्रैक्टों का एक पैक बना सकेगा। इस तरह, वह उन दूसरी भाषा बोलनेवाले लोगों को छपा हुआ संदेश देने के लिए तैयार रहेगा, जिनसे प्रचार में उसकी मुलाकात होने की गुंजाइश होती है। कलीसिया की सेवा समिति वॉचटावर पब्लिकेशन्स लिस्ट देखकर तय करेगी कि इस “पैक” में कौन-से ट्रैक्ट होने चाहिए। सेवा समिति ही यह चुनाव करेगी कि इलाके के लिए किन भाषाओं के ट्रैक्ट सबसे बढ़िया होगें और हरेक भाषा बोलनेवालों के लिए किस विषय का ट्रैक्ट एकदम सही होगा।
4 जैसे-जैसे प्रचारक अपने निजी पैक में से किसी को एक ट्रैक्ट देते हैं, वैसे-वैसे वे कलीसिया में रखे, छोटे स्टॉक से दूसरी कॉपी ले सकते हैं। इस तरह उनके पास हमेशा प्रचार के इलाके के हिसाब से सभी भाषाओं में ट्रैक्ट होंगे। इसके अलावा, वे लोगों को सभी ट्रैक्ट दिखाकर यह समझा सकते हैं कि कैसे हम बिना किसी पक्षपात के काम कर रहे हैं। साथ ही, हम सभी जाति और भाषा के लोगों तक खुशखबरी पहुँचाने की आज्ञा को बड़ी गंभीरता से लेते हैं।
5 ऐसा भी हो सकता है कि ट्रैक्ट की कुछ कॉपियाँ शायद ही कभी इस्तेमाल हों। अगर ऐसी बात है, तो उन्हें अपने प्रचार के बैग में, बाइबल में या किसी और साहित्य में इस तरह सँभालकर रखिए, जिससे कि वे मुड़ या फट न जाएँ बल्कि दिखने में हमेशा अच्छे लगें और हमारे संदेश की “शोभा” बनी रहे। (तीतु. 2:10) फटी-पुरानी कॉपियों की जगह नयी कॉपियाँ रखनी चाहिए।
6 हर साल, भारत का शाखा दफ्तर 26 अलग-अलग भाषाओं में ट्रैक्ट की 46,00,000 से भी ज़्यादा कॉपियाँ छापता है। इसलिए आइए हम इनका पूरा-पूरा इस्तेमाल करके सभी भाषा के लोगों की मदद करें, ताकि वे भी हमारे साथ मिलकर यहोवा की उपासना कर सकें।—यशा. 2:2, 3.