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  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2016
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  • 18-24 जुलाई
  • 25-31 जुलाई
मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2016
mwbr16 जुलाई पेज 1-15

मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले

4-10 जुलाई

पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 60-68

“प्रार्थनाओं के सुननेवाले परमेश्‍वर यहोवा की महिमा कीजिए”

(भजन 61:1) हे परमेश्‍वर, मेरा चिल्लाना सुन, मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान दे।

(भजन 61:8) इस प्रकार मैं सर्वदा तेरे नाम का भजन गा गाकर अपनी मन्‍नतें हर दिन पूरी किया करूँगा।

प्र99 9/15 पेज 9 पै 1-4

आपको अपने वादे क्यों निभाने चाहिए?

जब हम यहोवा को अपनी ज़िंदगी समर्पित करके उससे वादा करते हैं कि हम हमेशा-हमेशा के लिए उसकी सेवा करेंगे तो यह बेशक हमारी ज़िंदगी का सबसे बड़ा वादा होता है। उसकी आज्ञाएँ मानना कठिन नहीं हैं। लेकिन हाँ, इस दुष्ट संसार में कभी-कभी हमारे लिए उसके नियमों पर चलना मुश्‍किल हो सकता है। (2 तीमुथियुस 3:12; 1 यूहन्‍ना 5:3) फिर भी, जब हमने एक बार “अपना हाथ हल पर रख” दिया है यानी यहोवा को समर्पण करके उसके पुत्र यीशु मसीह के चेले बन गए हैं तो हमें दुनिया की ओर पीछे मुड़कर कभी नहीं देखना चाहिए।—लूका 9:62.

शायद हम यहोवा से प्रार्थना में वादा करें कि हम अपनी किसी कमज़ोरी पर काबू पाने के लिए संघर्ष करेंगे, कोई मसीही गुण पैदा करेंगे या परमेश्‍वर की सेवा में और भी तरक्की करेंगे। लेकिन इन वादों को पूरा करने में कौन-सी बात हमारी मदद करेगी?—सभोपदेशक 5:2-5 से तुलना कीजिए।

जो वादा दिल से और सोच-समझकर किया जाता है वही सच्चा वादा होता है। अगर हमारे वादे सच्चे हैं, तो हम दिल खोलकर यहोवा से प्रार्थना करेंगे यानी उसे बताएँगे कि हम अपने वादों को पूरा करना चाहते हैं और ऐसा करने में अड़चन पैदा करनेवाली हमारी कमज़ोरियाँ क्या-क्या हैं। अगर हम ऐसा करेंगे तो वादा निभाने का हमारा इरादा भी पक्का होगा। जब हम यहोवा से कोई वादा करते हैं तो यह ऐसा है मानो हमने यहोवा से कोई कर्ज लिया हो। जब कर्ज बहुत बड़ा होता है तो उसे चुकाने में समय लगता है। उसी तरह यहोवा से किए गए हमारे कुछ वादों को पूरा करने में भी समय लग सकता है। लेकिन जब हम लगातार और जी-जान से अपने वादों को पूरा करने की कोशिश करते हैं तो हम दिखाते हैं कि हमने सच्चे दिल से वादा किया है। और यहोवा वादा पूरा करने में हमारी मदद करेगा।

हमें अपने वादों के बारे में हमेशा या हर रोज़ प्रार्थना करनी चाहिए। अगर हम ऐसा करेंगे तो यह साबित होगा कि हम सचमुच अपना वादा पूरा करना चाहते हैं। इससे हम अपने स्वर्गीय पिता यहोवा को यह दिखाएँगे कि हमने सच्चे दिल से वादा किया है। हर रोज़ प्रार्थना करने से हमें याद भी रहेगा कि हमें अपना वादा पूरा करना है। इस बारे में दाऊद ने अच्छी मिसाल रखी। उसने एक गीत में यहोवा से बिनती की: “हे परमेश्‍वर, मेरा चिल्लाना सुन, मेरी प्रार्थना की ओर ध्यान दे। . . . मैं सर्वदा तेरे नाम का भजन गा गाकर अपनी मन्‍नतें हर दिन पूरी किया करूंगा।”—भजन 61:1, 8.

(भजन 62:8) हे लोगो, हर समय उस पर भरोसा रखो; उससे अपने अपने मन की बातें खोलकर कहो; परमेश्‍वर हमारा शरणस्थान है। (सेला)

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हमेशा यहोवा पर भरोसा रखिए!

हमें यहोवा पर भरोसा करने की ज़रूरत है

6 हो सकता है आप किसी ऐसी समस्या से गुज़र रहे हों जिस वजह से आप बहुत परेशान हैं। आपने शायद उससे निपटने की हर मुमकिन कोशिश की हो और मदद के लिए यहोवा से प्रार्थना भी की हो। तो क्या अब आप इस बात से सुकून महसूस कर सकते हैं कि यहोवा आपकी मदद ज़रूर करेगा? जी हाँ, आप कर सकते हैं! (भजन 62:8; 1 पतरस 5:7 पढ़िए।) यहोवा पर भरोसा करना सीखना बहुत ज़रूरी है। इससे हम यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्‍ता बना पाते हैं। लेकिन मदद के लिए यहोवा पर भरोसा करना हमेशा आसान नहीं होता। वह क्यों? एक वजह तो यह है कि यहोवा शायद फौरन हमारी प्रार्थनाओं का जवाब न दे।—भज. 13:1, 2; 74:10; 89:46; 90:13; हब. 1:2.

7 यहोवा हमेशा हमारी प्रार्थनाओं का जवाब फौरन नहीं देता। ऐसा क्यों? बाइबल कहती है कि यहोवा एक पिता की तरह है। (भज. 103:13) एक पिता अपने बच्चे की हर माँग पूरी नहीं करता या जैसे ही बच्चा कुछ माँगता है, वह फौरन उसे वह चीज़ नहीं देता। वह जानता है कि कभी-कभी बच्चा अचानक किसी चीज़ के लिए ज़िद करने लगता है, लेकिन कुछ समय बाद ऐसा होता है कि वह चीज़ उसे नहीं चाहिए। पिता यह भी जानता है कि उसके बच्चे के लिए सबसे अच्छा क्या है और बच्चे की ज़रूरत पूरी करने का दूसरों पर क्या असर हो सकता है। उसे पता है कि बच्चे की ज़रूरतें क्या हैं और ये कब पूरी की जानी चाहिए। अगर पिता बच्चे की हर माँग फौरन पूरी कर दे, तब तो पिता बच्चे का नौकर बन जाएगा। स्वर्ग में रहनेवाला हमारा पिता यहोवा हमसे प्यार करता है। वह हमारा सृष्टिकर्ता है और बहुत बुद्धिमान है। इसलिए वह जानता है कि हमारी ज़रूरतें क्या हैं। और वह यह तय करता है कि हम जिस बात के लिए प्रार्थना करते हैं, उसका जवाब देना कब सबसे अच्छा होगा। तो फिर हमारी भलाई इसी में है कि हम यहोवा के वक्‍त का इंतज़ार करें और देखें कि वह कैसे हमारी प्रार्थनाओं का जवाब देता है।—यशायाह 29:16; 45:9 से तुलना कीजिए।

8 यह भी याद रखिए कि यहोवा जानता है कौन किस हद तक मुश्‍किलें सह सकता है। (भज. 103:14) इसलिए वह हमें मुश्‍किलों के दौरान धीरज धरने के लिए ज़रूरी ताकत देता है। यह सच है कि कभी-कभी हमें लगता है कि अब हम और नहीं सह सकते। लेकिन यहोवा वादा करता है कि अगर कोई मुश्‍किल हमारी बरदाश्‍त के बाहर हो जाए तो “वह उससे निकलने का रास्ता भी निकालेगा।” (1 कुरिंथियों 10:13 पढ़िए।) जी हाँ, हम पूरा भरोसा रख सकते हैं कि यहोवा जानता है, हम किस हद तक मुश्‍किलें सह सकते हैं। तो क्या यह जानकर हमें दिलासा नहीं मिलता?

9 अगर हम यहोवा से मदद के लिए प्रार्थना करते हैं, लेकिन वह उसका जवाब फौरन नहीं देता, तो आइए हम सब्र रखें। याद रखिए, यहोवा भी सब्र दिखाता है। कैसे? हालाँकि वह हमारी मदद करने के लिए बेताब है, मगर ऐसा करने के लिए वह सबसे बढ़िया वक्‍त का इंतज़ार करता है। बाइबल कहती है, “यहोवा इसलिये विलम्ब [या “सब्र दिखाते हुए इंतज़ार,” एन.डब्ल्यू.] करता है कि तुम पर अनुग्रह करे, और इसलिये ऊँचे उठेगा कि तुम पर दया करे। क्योंकि यहोवा न्यायी परमेश्‍वर है; क्या ही धन्य हैं वे जो उस पर आशा लगाए रहते हैं।”—यशा. 30:18.

(भजन 65:1, 2) हे परमेश्‍वर, सिय्योन में स्तुति तेरी बाट जोहती है; और तेरे लिए मन्‍नतें पूरी की जाएँगी। 2 हे प्रार्थना के सुननेवाले! सब प्राणी तेरे ही पास आएँगे।

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यहोवा के साथ आपका रिश्‍ता कितना असल है?

13 ज़रा इस बारे में सोचिए: धरती पर आने से पहले, यीशु ने देखा कि यहोवा अपने सभी सेवकों की प्रार्थनाओं का जवाब देता है। जब यीशु धरती पर आया, तो उसने स्वर्ग में रहनेवाले अपने पिता को प्रार्थना में अपने विचार और अपनी भावनाएँ बतायीं। एक बार तो उसने पूरी रात प्रार्थना की। (लूका 6:12; 22:40-46) यीशु ने अपने चेलों को भी सिखाया कि उन्हें यहोवा से कैसे प्रार्थना करनी चाहिए। अगर यहोवा प्रार्थनाएँ नहीं सुनता तो क्या यीशु उससे प्रार्थना करता? क्या वह अपने चेलों को ऐसा करना सिखाता? इससे साफ पता चलता है, यीशु जानता था कि यहोवा सच में प्रार्थनाएँ सुनता है। एक मौके पर यीशु ने कहा, “पिता, मैं तेरा धन्यवाद करता हूँ कि तू ने मेरी सुनी है। मैं जानता था कि तू हमेशा मेरी सुनता है।” हम भी पूरा यकीन रख सकते हैं कि यहोवा ‘प्रार्थनाओं का सुननेवाला’ है।—यूह. 11:41, 42; भज. 65:2.

14 आपको शायद हमेशा यह आसानी से पता न चले कि आपकी प्रार्थनाओं का जवाब मिला है। लेकिन जब आप खास तौर से किसी बात के लिए प्रार्थना करते हैं, तब आप आसानी से समझ जाएँगे कि यहोवा ने आपकी प्रार्थनाओं का जवाब दिया है। फिर वह आपके लिए और भी असल शख्स बन जाएगा। साथ ही, अगर आप यहोवा को अपनी सारी चिंताएँ खुलकर बताएँ, तो वह आपके और भी करीब आएगा।

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बच्चो और जवानो, यहोवा की सेवा करने की अपनी इच्छा बढ़ाइए

प्रार्थना से कैसे यहोवा के लिए आपका प्यार गहरा होता है

10 तन-मन से यहोवा की सेवा करने की अपनी इच्छा को और भी ज़बरदस्त करने का दूसरा तरीका है, प्रार्थना। भजन 65:2 में हम पढ़ते हैं: “हे प्रार्थना के सुननेवाले! सब प्राणी तेरे ही पास आएंगे।” हालाँकि इसराएली परमेश्‍वर के चुने हुए लोग थे, फिर भी विदेशियों को यहोवा के मंदिर में आकर उससे प्रार्थना करने की इजाज़त थी। (1 राजा 8:41, 42) परमेश्‍वर किसी की तरफदारी नहीं करता। वह यकीन दिलाता है कि जो कोई उसकी आज्ञाएँ मानेगा, उसकी वह ज़रूर सुनेगा। (नीति. 15:8) और बेशक, ‘सब प्राणियों’ में बच्चे और जवान भी शामिल हैं।

इंसाइट-2 पेज 668 पै 2

प्रार्थना

जिनकी परमेश्‍वर सुनता है। सब लोग “प्रार्थनाओं के सुननेवाले” यहोवा परमेश्‍वर के पास आ सकते हैं। (भज 65:2; प्रेष 15:17) एक वक्‍त था जब परमेश्‍वर ने इसराएल को अपना “निज धन” माना था यानी उसने इसराएलियों से करार किया था। इसके बावजूद दूसरी जाति के लोग परमेश्‍वर यहोवा से प्रार्थना कर सकते थे, लेकिन उन्हें यह विश्‍वास करना था कि परमेश्‍वर ने इसराएल जाति को चुना था और यरूशलेम का मंदिर उसकी चुनी हुई जगह है, जहाँ यहोवा के लिए बलि चढ़ायी जानी थी। (व्य 9:26; 2 इत 6:32, 33; यश 19:22 से तुलना कीजिए।) यीशु ने अपनी मौत के ज़रिए यहूदियों और गैर-यहूदियों के बीच का फर्क हमेशा के लिए खत्म कर दिया। (इफ 2:11-16) इतालवी कुरनेलियुस के घर पर पतरस यह बात समझ गया कि “परमेश्‍वर भेदभाव नहीं करता, मगर हर ऐसा इंसान जो उसका भय मानता है और नेक काम करता है, फिर चाहे वह किसी भी जाति का क्यों न हो, वह परमेश्‍वर को भाता है।” (प्रेष 10:34, 35) इससे पता चलता है कि परमेश्‍वर की नज़र में जो बात सबसे ज़्यादा मायने रखती है, वह है, एक व्यक्‍ति का दिल और उसका दिल उसे क्या करने के लिए उभारता है। (भज 119:145; विल 3:41) जो लोग परमेश्‍वर की आज्ञाओं को मानते हैं और ‘वही काम करते हैं जो उसकी नज़रों में अच्छा है’, तो वे इस बात का भरोसा रख सकते हैं कि उसके “कान” हमेशा उनकी सुनने के लिए तैयार रहते हैं।—1यूह 3:22; भज 10:17; नीत 15:8; 1पत 3:12.

ढूँढ़े अनमोल रत्न

(भजन 63:3) क्योंकि तेरी करुणा जीवन से भी उत्तम है, मैं तेरी प्रशंसा करूँगा।

प्र06 6/1 पेज 11 पै 7

भजन संहिता किताब के दूसरे भाग की झलकियाँ

63:3. परमेश्‍वर की “करुणा जीवन से भी उत्तम है,” क्योंकि इसके बिना ज़िंदगी बेमतलब की है। इसलिए बुद्धिमानी इसी में है कि हम यहोवा के साथ दोस्ती करें।

(भजन 68:18) तू ऊँचे पर चढ़ा, तू लोगों को बँधुआई में ले गया; तू ने मनुष्यों से, वरन्‌ हठीले मनुष्यों से भी भेंटें लीं, जिस से याह परमेश्‍वर उनमें वास करे।

प्र06 6/1 पेज 10 पै 4

भजन संहिता किताब के दूसरे भाग की झलकियाँ

68:18 (बुल्के बाइबिल)—ये ‘मनुष्य’ कौन हैं जिन्हें “शुल्क-स्वरूप ग्रहण किया” गया है? ये उन लोगों में से कुछ पुरुष थे जिन्हें वादा-ए-मुल्क के नाश के बाद, बंदी बनाकर ले गए थे। इन पुरुषों को बाद में लेवियों की मदद करने का काम सौंपा गया था।—एज्रा 8:20.

11-17 जुलाई

पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 69-73

“यहोवा के लोगों में सच्ची उपासना के लिए जोश है”

(भजन 69:9) क्योंकि मैं तेरे भवन की धुन में जलते जलते भस्म हुआ। और जो निन्दा वे तेरी करते हैं, वही निन्दा मुझ को सहनी पड़ी है।

प्र10 12/15 पेज 7-11 पै 2-17

सच्ची उपासना के लिए जोशीले बनो

2 आज सच्चे मसीहियों के लिए बेहद ज़रूरी काम है, राज का प्रचार करना और सब राष्ट्रों के लोगों को चेला बनाना। (मत्ती 24:14; 28:19, 20) मरकुस ने लिखा कि यीशु के मुताबिक यह काम “पहले” किया जाना चाहिए यानी अंत आने से पहले। (मर. 13:10) और यह वाकई ज़रूरी है, क्योंकि जैसा यीशु ने कहा: “कटाई के लिए फसल बहुत है, मगर मज़दूर थोड़े हैं।” अगर कटनी समय पर न हुई तो फसल खराब हो सकती है।—मत्ती 9:37.

3 यह समझते हुए कि प्रचार काम बहुत अहमियत रखता है, हमें जितना हो सके उतना इस काम में अपना समय, ताकत और ध्यान देने की ज़रूरत है। और यह तारीफ के काबिल है कि बहुत-से लोग ऐसा कर रहे हैं। कुछ लोगों ने अपने जीवन को सादा बनाया है ताकि वे पायनियर या मिशनरी बन सकें या फिर बेथेल घरों में सेवा कर सकें। वे बहुत ही व्यस्त रहते हैं। इसके लिए उन्हें शायद बहुत-से त्याग करने पड़े होंगे और कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा होगा। लेकिन इसके बदले यहोवा ने उन्हें ढेरों आशीषें दी हैं। हम उनके लिए बहुत खुश हैं। (लूका 18:28-30 पढ़िए।) दूसरे मसीही, भले ही पूरे समय की सेवा नहीं कर पाते, मगर उन्होंने इस जीवन बचानेवाले काम में अपना जितना हो सके, उतना वक्‍त दिया है जिसमें बच्चों की मदद करना भी शामिल है ताकि वे उद्धार पा सकें।—व्यव. 6:6, 7.

4 हमने देखा कि ज़रूरी काम अकसर वक्‍त से जुड़ा होता है, जिसे तय दिन या समय के अंदर खत्म करना होता है। हम अंत के दिनों में जी रहे हैं और इसके इतिहास और बाइबल से हमें ढेरों सबूत मिलते हैं। (मत्ती 24:3, 33; 2 तीमु. 3:1-5) मगर फिर भी, यह तो किसी को नहीं पता कि अंत ठीक किस वक्‍त आएगा। जब यीशु ने “दुनिया की व्यवस्था के आखिरी वक्‍त की” “निशानी” के बारे में बताया तो उसने साफ-साफ कहा: “उस दिन और उस वक्‍त के बारे में कोई नहीं जानता, न स्वर्ग के दूत, न बेटा, लेकिन सिर्फ पिता जानता है।” (मत्ती 24:36) इस वजह से, प्रचार काम को बेहद ज़रूरी समझना खासकर उन लोगों के लिए मुश्‍किल हो जाता है, जो सालों से प्रचार कर रहे हैं। (नीति. 13:12) क्या आपको भी मुश्‍किल होती है? क्या बात हमारी मदद करेगी ताकि हम यहोवा परमेश्‍वर और यीशु मसीह के ज़रिए सौंपे गए प्रचार काम को बेहद ज़रूरी समझकर करते जाएँ?

हमारे आदर्श यीशु पर गौर कीजिए

5 परमेश्‍वर के सभी सेवकों ने उसकी सेवा को बेहद ज़रूरी समझा, मगर यीशु मसीह ने इस मामले में बेहतरीन मिसाल रखी। एक कारण यह था कि उसके पास सेवा के लिए सिर्फ साढ़े तीन साल थे। लेकिन फिर भी, सच्ची उपासना के मामले में जितना काम उसने पूरा किया, उतना तो किसी ने नहीं किया। उसने अपने पिता का नाम और मकसद ज़ाहिर किया, राज की खुशखबरी सुनायी, धार्मिक अगुवों की झूठी शिक्षाओं और उनके पाखंड का पर्दाफाश किया, और-तो-और यहोवा की हुकूमत का साथ देने के लिए मौत तक की परवाह नहीं की। अपना आराम त्यागकर वह गाँव-गाँव और शहर-शहर गया। उसने लोगों को सिखाया, उनकी मदद की और उन्हें चंगा किया। (मत्ती 9:35) इतने कम समय में इतना सारा काम, कभी किसी ने नहीं किया। जी हाँ, यीशु ने इस काम के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत की।—यूह. 18:37.

6 परमेश्‍वर की सेवा में रात-दिन एक करने के लिए किस बात ने यीशु को उभारा? दानिय्येल की भविष्यवाणी से यीशु को पता चला होगा कि यहोवा ने उसे अपना काम पूरा करने के लिए कितना समय दिया है। (दानि. 9:27) जैसा कि आयत बताती है कि उसके पास धरती पर सेवा के लिए “आधे ही सप्ताह” यानी साढ़े तीन साल का वक्‍त था। ईसवी सन्‌ 33 के बसंत में जब यीशु एक राजा के तौर पर बड़े शानदार तरीके से यरूशलेम में दाखिल हुआ, तब उसके कुछ ही समय बाद उसने कहा: ‘वह घड़ी आ चुकी है कि इंसान के बेटे की महिमा हो।’ (यूह. 12:23) यीशु जानता था कि जल्द ही उसकी मौत होनेवाली है, लेकिन उसने उस बात पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया और सिर्फ इसलिए कड़ी मेहनत नहीं की कि उसके पास कम वक्‍त बचा है। वह हर मौके पर परमेश्‍वर की इच्छा पूरी करना और दूसरों को प्यार दिखाना चाहता था। इसी प्यार की वजह से उसने चेले इकट्ठे किए, उन्हें तालीम दी और प्रचार अभियान में भेजा। वह चाहता था कि उसके चेले उसके शुरू किए गए काम को और भी बड़े पैमाने पर करें।—यूहन्‍ना 14:12 पढ़िए।

7 एक मौके पर यीशु ने परमेश्‍वर की सेवा के लिए बड़े ज़बरदस्त तरीके से अपना जोश दिखाया। यह तब की बात है, जब यीशु ने अपनी सेवा शुरू ही की थी। ईसवी सन्‌ 30 के फसह का पर्व था। वह और उसके चेले यरूशलेम आए और उन्होंने मंदिर में “मवेशियों और भेड़ों और कबूतरों की बिक्री करनेवालों को और पैसे बदलनेवाले सौदागरों को अपनी-अपनी गद्दियों” पर बैठे देखा। तब यीशु ने क्या किया और इसका उसके चेलों पर क्या असर हुआ?—यूहन्‍ना 2:13-17 पढ़िए।

8 उस दिन यीशु ने जो कहा और किया, उससे चेलों को दाविद की यह भविष्यवाणी याद आयी: “मैं तेरे भवन के निमित्त जलते जलते भस्म हुआ।” (भज. 69:9) उन्हें क्यों वह भविष्यवाणी याद आयी? क्योंकि जिस इंसान के दिल में ऐसी आग जलती हो, वही खतरनाक और जोखिम भरा काम कर सकता है, जैसा यीशु ने किया था। मंदिर में धोखाधड़ी से किए जानेवाले उस धंधे के पीछे और किसी का नहीं, बल्कि शास्त्रियों, फरीसियों और मंदिर के दूसरे अधिकारियों का हाथ था। उनकी पोल खोलकर यीशु ने दरअसल धर्म के ठेकेदारों से दुश्‍मनी मोल ले ली। इसलिए जब चेलों ने उसे ऐसा करते देखा, तो उन्हें यीशु का ‘परमेश्‍वर के घर’ या सच्ची उपासना के लिए “जोश” साफ नज़र आया। लेकिन जोश का मतलब क्या है? किसी काम को बेहद ज़रूरी समझने या उसके लिए जोश होने में क्या अंतर है?

बेहद ज़रूरी और जोश में अंतर

9 एक शब्दकोश के मुताबिक जोश का मतलब “किसी काम को करने का फितूर या लगन” है। इसके पर्यायवाची हैं धुन, भभक, जुनून और उत्साह। यीशु ने अपनी प्रचार सेवा में ऐसे ही गुण दिखाए थे। दूसरी बाइबलों जैसे टुडेज़ इंग्लिश वर्शन में भी भजन 69:9 का अनुवाद कुछ इस तरह किया गया है: “हे परमेश्‍वर, तेरे भवन के लिए मेरी भक्‍ति मुझ में आग की तरह भभकती है।” दिलचस्पी की बात है कि कुछ पूर्वी देशों की भाषाओं में “जोश” दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “गर्म दिल,” यानी दिल में आग जलना। तो इसमें ताज्जुब नहीं कि जब चेलों ने मंदिर में यीशु का जोश देखा तब उन्हें दाविद के शब्द याद आए। लेकिन किस बात ने यीशु के दिल में आग लगा दी और उसे इस कदर भड़काया कि उसने ज़बरदस्त कदम उठाया?

10 मूल इब्रानी और यूनानी भाषा शब्द “जोश” का अनुवाद “जलन” भी किया जा सकता है। (2 कुरिंथियों 11:2 पढ़िए।) न्यू वर्ल्ड ट्रांस्लेशन में इसका अनुवाद “पूरी-की-पूरी भक्‍ति” किया गया है। (मर. 12:28-30; लूका 4:8) इन शब्दों के बारे में एक बाइबल शब्दकोश कहता है: “इनका इस्तेमाल अकसर शादी के रिश्‍ते में किया जाता है। . . . जैसे पति या पत्नी एक-दूसरे से पूरा-पूरा प्यार पाने का हक रखते हैं और ऐसा न होने पर उनमें जलन पैदा होती है, उसी तरह परमेश्‍वर भी माँग करता है कि उसके लोग सिर्फ उसी की भक्‍ति करें और वह किसी कीमत पर अपना हक किसी को नहीं देता।” तो बाइबल के मुताबिक जोश शब्द में, किसी काम के लिए सिर्फ जुनून और उत्साह ही शामिल नहीं, जैसा कि बहुत-से प्रशंसक अकसर अपने मन-पसंद खेल के लिए दिखाते हैं, बल्कि इसमें सही तरह की जलन भी शामिल है। यीशु के जोश में जलन थी, यानी वह दुश्‍मनी या बदनामी बरदाश्‍त नहीं कर सकता था, उसमें यहोवा के नेक नाम की रक्षा करने या उस पर लगे कलंक को मिटाने की ज़बरदस्त धुन थी।

11 जी हाँ, यीशु के जोश को देखकर चेलों का दाविद के शब्दों को याद करना बिलकुल सही था। परमेश्‍वर की सेवा में यीशु ने कड़ी मेहनत सिर्फ इसलिए नहीं की कि उसके पास थोड़ा वक्‍त था, बल्कि इसलिए कि उसमें परमेश्‍वर के नाम और उसकी शुद्ध उपासना के लिए जोश या जलन थी। जब उसने देखा कि परमेश्‍वर के नाम पर किस तरह से कलंक लगाया जा रहा है और उसकी निंदा हो रही है तो उसका जोश या जलन से भरकर ऐसा कदम उठाना सही था। जब उसने देखा कि सीधी-साधी जनता पर धार्मिक अगुवे कैसे ज़ुल्म ढा रहे और लूट रहे हैं तो उसके जोश ने उसे उन्हें राहत देने के लिए उभारा और उसने उन अत्याचारी धार्मिक अगुवों के खिलाफ ज़बरदस्त न्यायदंड सुनाया।—मत्ती 9:36; 23:2, 4, 27, 28, 33.

सच्ची उपासना के लिए जोशीले बनो

12 हमारे समय के धार्मिक अगुवे भी यीशु के दिनों से बेहतर नहीं हैं। गौर कीजिए कि यीशु ने परमेश्‍वर के नाम के मामले में, अपने चेलों को सबसे पहले किस बात के लिए प्रार्थना करना सिखाया था। उसने सिखाया: “तेरा नाम पवित्र किया जाए।” (मत्ती 6:9) आज धार्मिक अगुवे खासकर ईसाईजगत के पादरी क्या लोगों को परमेश्‍वर का नाम बताते हैं या फिर उसके नाम को पवित्र करने या उसका आदर करने के बारे में सिखाते हैं? जी नहीं, उलटे जब वे त्रियेक, अमर आत्मा और नरक की आग जैसी झूठी शिक्षाएँ देते हैं तो वे परमेश्‍वर की गलत तसवीर पेश करते हैं, और दिखाते हैं कि परमेश्‍वर क्रूर और रहस्मयी है। वे अपने गंदे कामों और पाखंड के ज़रिए भी परमेश्‍वर का नाम कलंकित करते हैं। (रोमियों 2:21-24 पढ़िए।) इतना ही नहीं, उन्होंने परमेश्‍वर का नाम छिपाने, यहाँ तक कि बाइबल अनुवादों में से उसे निकाल देने की पूरी कोशिश की है। उनकी ऐसी हरकतों की वजह से, लोग न तो परमेश्‍वर के करीब आ पाते हैं, न ही उसके साथ मज़बूत रिश्‍ता बना पाते हैं।—याकू. 4:7, 8.

13 यीशु ने चेलों को परमेश्‍वर के राज के बारे में भी प्रार्थना करना सिखाया कि “तेरा राज आए। तेरी मरज़ी, जैसे स्वर्ग में पूरी हो रही है, वैसे ही धरती पर भी पूरी हो।” (मत्ती 6:10) वैसे तो ईसाईजगत के धार्मिक अगुवे इस प्रार्थना को बार-बार दोहराते हैं, मगर दूसरी तरफ वे लोगों को राजनीति और दूसरे इंसानी संगठनों में हिस्सा लेने का बढ़ावा देते हैं। और-तो-और, जो लोग परमेश्‍वर के राज की गवाही देते और इस काम में मेहनत करते हैं, उन्हें वे नीचा दिखाते हैं। इसका नतीजा यह हुआ है कि मसीही होने का दावा करनेवाले कई लोग परमेश्‍वर के राज के बारे में बात तक नहीं करते और विश्‍वास दिखाना तो दूर रहा।

14 यीशु ने प्रार्थना में परमेश्‍वर से यह बिलकुल साफ कहा कि “तेरा वचन सच्चा है।” (यूह. 17:17) स्वर्ग लौटने से पहले यीशु ने ज़ाहिर किया कि वह अपने लोगों को आध्यात्मिक भोजन देने के लिए धरती पर “विश्‍वासयोग्य और सूझ-बूझ से काम लेनेवाला दास” ठहराएगा। (मत्ती 24:45) हालाँकि ईसाईजगत के पादरी झट-से यह दावा करते हैं कि वे परमेश्‍वर के वचन के भंडारी हैं, मगर क्या उन्होंने अपने मालिक से मिली ज़िम्मेदारी को पूरी ईमानदारी से निभाया है? नहीं। वे अकसर कहते हैं कि बाइबल में लिखी बातें कथा-कहानियाँ हैं। झुंड को आध्यात्मिक भोजन देकर उन्हें दिलासा और ज्ञान देने के बजाय, पादरियों ने इंसानी फलसफों से उनके मन को बहलाने की कोशिश की है। यही नहीं, दुनिया के स्तरों के हिसाब से चलने के लिए, उन्होंने परमेश्‍वर के स्तरों की अहमियत कम कर दी है।—2 तीमु. 4:3, 4.

15 पादरियों ने परमेश्‍वर और बाइबल के नाम पर जैसे-जैसे काम किए हैं, उससे नेक लोग या तो भ्रम में पड़ गए हैं या परमेश्‍वर और बाइबल पर से उनका विश्‍वास ही उठ गया है। वे शैतान और उसकी दुष्ट व्यवस्था के चंगुल में फँस गए हैं। जब आप ये सारी बातें रोज़-ब-रोज़ होते देखते या सुनते हैं तो आपको कैसा महसूस होता है? जब आप देखते हैं कि किस तरह परमेश्‍वर के नाम पर दाग लगाया जा रहा है या उसकी बदनामी हो रही है तो यहोवा का सेवक होने के नाते क्या आपका दिल नहीं करता कि आप इन गलत कामों को रोकने के लिए कदम उठाएँ? जब आप देखते हैं कि नेक और ईमानदार लोगों को धोखा दिया जा रहा है और उनका फायदा उठाया जा रहा है तो क्या आपमें ऐसे कुचले हुओं का हौसला बढ़ाने की इच्छा नहीं जागती? जब यीशु ने देखा कि उसके दिनों के लोग “उन भेड़ों की तरह थे जिनकी खाल खींच ली गयी हो और जिन्हें बिन चरवाहे के यहाँ-वहाँ भटकने के लिए छोड़ दिया गया हो” तो उसने उन पर न सिर्फ तरस खाया, बल्कि “वह उन्हें बहुत-सी बातें [भी] सिखाने लगा।” (मत्ती 9:36; मर. 6:34) आज हमारे पास भी यीशु की तरह सच्ची उपासना के लिए जोश दिखाने का हर कारण है।

16 जब हम प्रचार काम में जोश दिखाते हैं, तब 1 तीमुथियुस 2:3, 4 में कहे पौलुस के शब्द हमारे लिए खास मतलब रखते हैं। (पढ़िए।) प्रचार में हम मेहनत सिर्फ इसलिए नहीं करते क्योंकि हम आखिरी दिनों में जी रहे हैं बल्कि इसलिए क्योंकि हम जानते हैं कि यह परमेश्‍वर की इच्छा है। वह चाहता है कि लोग सच्चाई का ज्ञान लें ताकि वे भी सही तरह से उसकी उपासना और सेवा कर सकें और आशीषें पाएँ। जी हाँ, सिर्फ समय कम होने की वजह से हम ज़ोर-शोर से प्रचार नहीं करते बल्कि इसलिए करते हैं क्योंकि हम परमेश्‍वर के नाम का आदर करना और लोगों को उसकी इच्छा के बारे में सिखाना चाहते हैं। हममें सच्ची उपासना के लिए जोश है।—1 तीमु. 4:16.

17 यहोवा के लोग होने नाते आज हमें यह आशीष मिली है कि हम इंसान और धरती के बारे में परमेश्‍वर का मकसद अच्छी तरह जानते हैं। इसकी बदौलत हम लोगों को सच्ची खुशी पाने का रास्ता दिखा पाते हैं और भविष्य की पक्की आशा दे पाते हैं। हम उन्हें बता पाते हैं कि जब शैतान की व्यवस्था का नाश होगा तब वे कैसे बच सकते हैं। (2 थिस्स. 1:7-9) तो यह सोचकर परेशान या निराश होने के बजाय कि यहोवा का दिन आने में देर हो रही है, हमें खुश होना चाहिए कि हमारे पास अब भी सच्ची उपासना के लिए जोश दिखाने का वक्‍त है। (मीका 7:7; हब. 2:3) हम ऐसा जोश कैसे पैदा कर सकते हैं? इसकी चर्चा हम अगले लेख में करेंगे।

(भजन 71:17, 18) हे परमेश्‍वर, तू तो मुझ को बचपन ही से सिखाता आया है, और अब तक मैं तेरे आश्‍चर्यकर्मों का प्रचार करता आया हूँ। 18 इसलिए हे परमेश्‍वर, जब मैं बूढ़ा हो गया, और मेरे बाल पक गए, तब भी तू मुझे न छोड़, जब तक मैं आनेवाली पीढ़ी के लोगों को तेरा बाहुबल और सब उत्पन्‍न होनेवालों को तेरा पराक्रम न सुनाऊँ।

प्र14 1/15 पेज 23-24 पै 4-10

विपत्ति के दिन आने से पहले यहोवा की सेवा कीजिए

4 अगर आपको सालों का तजुरबा है, तो खुद से यह ज़रूरी सवाल पूछिए, ‘जब तक मुझमें थोड़ी-बहुत ताकत है, मैं अपनी ज़िंदगी में क्या करूँगा?’ एक अनुभवी मसीही होने के नाते आपके पास कुछ ऐसे मौके हैं, जो दूसरों के पास नहीं हैं। मिसाल के लिए, आप जवानों को वे बातें सिखा सकते हैं, जो आपने इतने लंबे समय के दौरान यहोवा से सीखी हैं। यहोवा की सेवा में आपको जो अनुभव मिले हैं, उन्हें दूसरों के साथ बाँटकर आप उनका हौसला बढ़ा सकते हैं। राजा दाविद ने यहोवा से प्रार्थना की थी कि उसे ऐसा करने के मौके मिलें। उसने लिखा: “हे परमेश्‍वर, तू तो मुझ को बचपन ही से सिखाता आया है . . . हे परमेश्‍वर जब मैं बूढ़ा हो जाऊं, और मेरे बाल पक जाएं, तब भी तू मुझे न छोड़, जब तक मैं आनेवाली पीढ़ी के लोगों को तेरा बाहुबल और सब उत्पन्‍न होनेवालों को तेरा पराक्रम सुनाऊं।”—भज. 71:17, 18.

5 आपने सालों के दौरान जो बुद्धि हासिल की है, उसे आप दूसरों के साथ कैसे बाँट सकते हैं? क्या आप कुछ जवानों को अपने घर बुला सकते हैं, ताकि वे हौसला बढ़ानेवाली संगति का आनंद उठा सकें? क्या आप उन्हें अपने साथ प्रचार में ले जा सकते हैं, ताकि वे देख सकें कि आप यहोवा की सेवा में कितने खुश हैं? पुराने ज़माने के एलीहू ने कहा: “जो आयु में बड़े हैं वे ही बात करें, और जो बहुत वर्ष के हैं, वे ही बुद्धि सिखाएं।” (अय्यू. 32:7) प्रेषित पौलुस ने अनुभवी मसीही स्त्रियों को बढ़ावा दिया कि वे अपनी बातों और मिसाल से दूसरों का हौसला बढ़ाएँ। उसने लिखा: ‘बुज़ुर्ग बहनें अच्छी बातों की सिखानेवाली हों।’—तीतु. 2:3.

आप दूसरों की मदद कैसे कर सकते हैं

6 अगर आप एक अनुभवी मसीही हैं, तो आप दूसरों की मदद करने के लिए बहुत कुछ कर सकते हैं। ज़रा उन बातों के बारे में सोचिए जो आज आप जानते हैं, लेकिन आज से 30 या 40 साल पहले नहीं जानते थे। आप जानते हैं कि कैसे बाइबल के सिद्धांत ज़िंदगी के अलग-अलग हालात में लागू किए जा सकते हैं। आप दूसरों को बाइबल की सच्चाइयाँ असरदार तरीके से सिखाने की काबिलीयत रखते हैं। अगर आप एक प्राचीन हैं, तो आप जानते हैं कि ऐसे भाइयों की मदद कैसे की जा सकती है, जिन्होंने गलत कदम उठाएँ हैं। (गला. 6:1) शायद आपने मंडली के अलग-अलग कामों की, सम्मेलन से जुड़े विभागों की, या राज-घर निर्माण काम की निगरानी करना सीखा होगा। या आप शायद जानते हों कि कैसे डॉक्टरों को बगैर खून इलाज करने के तरीके इस्तेमाल करने का बढ़ावा दिया जा सकता है। हो सकता है आपने हाल ही में सच्चाई सीखी हो, लेकिन आपको ज़िंदगी का तजुरबा है। मिसाल के लिए, अगर आपने बच्चों की परवरिश की है, तो ज़ाहिर है आपने ऐसे कई हुनर सीखे होंगे जो ज़िंदगी में बहुत काम आते हैं। सालों का तजुरबा रखनेवाले मसीही यहोवा के लोगों को सिखाने, उनका मार्गदर्शन करने और हौसला बढ़ाने की ज़बरदस्त काबिलीयत रखते हैं।—अय्यूब 12:12 पढ़िए।

7 आप दूसरों की मदद करने के लिए और किन तरीकों से अपनी काबिलीयतें इस्तेमाल कर सकते हैं? शायद आप जवानों को बाइबल अध्ययन शुरू करना और चलाना सिखा सकते हैं। अगर आप एक बहन हैं, तो क्या आप जवान माँओं को कुछ सुझाव दे सकती हैं कि कैसे वे छोटे बच्चों की देखभाल करने के साथ-साथ, यहोवा की सेवा जोश के साथ करती रह सकती हैं। अगर आप एक भाई हैं, तो क्या आप जवान भाइयों को जोश के साथ भाषण देना और असरदार तरीके से प्रचार करना सिखा सकते हैं? क्या आप जवानों को दिखा सकते हैं कि जब आप बुज़ुर्ग भाई-बहनों से मिलने जाते हैं, तो आप कैसे उनका हौसला बढ़ाते हैं? भले ही अब आपमें वह पहले जैसा दमखम न रहा हो, लेकिन आज भी आपके पास जवानों को तालीम देने के बढ़िया मौके हैं। परमेश्‍वर का वचन कहता है: “जवानों का गौरव उनका बल है, परन्तु बूढ़ों की शोभा उनके पक्के बाल हैं।”—नीति. 20:29.

वहाँ सेवा करना जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है

8 बुज़ुर्ग होने पर भी प्रेषित पौलुस यहोवा की सेवा में बहुत व्यस्त रहा। करीब ईसवी सन्‌ 61 में, जब तक वह रोम की कैद से रिहा हुआ, उसने मिशनरी सेवा में कड़ी मेहनत करने में कई साल गुज़ार दिए थे। वह चाहता तो रोम में ही रहकर प्रचार करके आराम की ज़िंदगी बिता सकता था। (2 कुरिं. 11:23-27) और इसमें कोई शक नहीं कि रोम के भाइयों को भी बहुत खुशी होती, अगर पौलुस वहीं रहकर उनकी मदद करता। मगर पौलुस ने गौर किया कि दूसरे देशों में प्रचारकों की ज़रूरत ज़्यादा है। उसने तीमुथियुस और तीतुस के साथ मिलकर अपना मिशनरी दौरा जारी रखा। उसने उनके साथ इफिसुस तक सफर किया, फिर वे क्रेते और शायद मकिदुनिया भी गए। (1 तीमु. 1:3; तीतु. 1:5) हम नहीं जानते कि पौलुस स्पेन गया या नहीं, लेकिन उसने वहाँ जाने की योजना ज़रूर बनायी थी।—रोमि. 15:24, 28.

9 जब प्रेषित पतरस वहाँ सेवा करने गया जहाँ खुशखबरी सुनानेवालों की ज़्यादा ज़रूरत थी, तब शायद उसकी उम्र 50 से ऊपर रही होगी। हम ऐसा कैसे कह सकते हैं? अगर उसकी उम्र यीशु जितनी, या उससे थोड़ी ज़्यादा थी, तो ईसवी सन्‌ 49 में जब वह यरूशलेम में दूसरे प्रेषितों से मिला, तब वह करीब 50 साल का रहा होगा। (प्रेषि. 15:7) यरूशलेम में रखी उस सभा के कुछ वक्‍त बाद, पतरस बैबिलोन में रहने गया, शायद इसलिए ताकि वह वहाँ रहनेवाले बहुत-से यहूदियों को प्रचार कर सके। (गला. 2:9) करीब ईसवी सन्‌ 62 में जब उसने परमेश्‍वर की प्रेरणा से अपना पहला खत लिखा, तब वह वहीं रह रहा था। (1 पत. 5:13) किसी दूसरे देश में जाकर रहने से कई चुनौतियाँ आती हैं, लेकिन पतरस ने यहोवा की सेवा में इस बात को आड़े आने नहीं दिया। उम्र होने पर भी उसने खुद को उस खुशी से महरूम नहीं रखा, जो तन-मन से यहोवा की सेवा करने से मिलती है।

10 आज 50 साल से ज़्यादा उम्र के बहुत-से मसीहियों ने पाया है कि अब उनके हालात बदल गए हैं और वे नए तरीकों से यहोवा की सेवा कर पा रहे हैं। इनमें से कुछ भाई-बहन ऐसे इलाकों में सेवा कर रहे हैं, जहाँ प्रचारकों की ज़्यादा ज़रूरत है। मिसाल के लिए, रॉबर्ट नाम का एक भाई लिखता है: “मैं और मेरी पत्नी करीब 55 साल के थे, जब हमें एहसास हुआ कि हमारे आगे सेवा करने के कितने मौके हैं। हमारा एकलौता बेटा अलग रहता था और हमारे माता-पिता गुज़र गए थे। हमें उनसे विरासत में थोड़ी-बहुत जायदाद मिली थी। मैंने बैठकर हिसाब लगाया कि अपना घर बेचने पर हमें जो पैसे मिलेंगे उससे हम घर का कर्ज़ भी चुका पाएँगे और जब तक मुझे पेंशन मिलनी शुरू नहीं हो जाती, तब तक हमारा गुज़ारा भी चल जाएगा। हमने सुना था कि बोलीविया में बहुत-से लोग बाइबल अध्ययन कबूल कर रहे हैं और वहाँ गुज़र करना भी आसान है। इसलिए हमने फैसला किया कि हम वहीं जाकर बस जाएँगे। नए माहौल में खुद को ढालना इतना आसान नहीं था। उत्तर अमरीका में हम जो ज़िंदगी बिता रहे थे उसमें और यहाँ की ज़िंदगी में ज़मीन आसमान का फर्क था। लेकिन हमारी मेहनत रंग लायी।”

(भजन 72:3) पहाड़ों और पहाड़ियों से प्रजा के लिये, धर्म के द्वारा शान्ति मिला करेगी।

(भजन 72:12) क्योंकि वह दोहाई देनेवाले दरिद्र का, और दुःखी और असहाय मनुष्य का उद्धार करेगा।

(भजन 72:14) वह उनके प्राणों को अन्धेर और उपद्रव से छुड़ा लेगा; और उनका लहू उसकी दृष्टी में अनमोल ठहरेगा।

(भजन 72:16-19) देश में पहाड़ों की चोटियों पर बहुत सा अन्‍न होगा; जिसकी बालें लबानोन के देवदारों के समान झूमेंगी; और नगर के लोग घास के समान लहलहाएँगे। 17 उसका नाम सदा सर्वदा बना रहेगा, जब तक सूर्य बना रहेगा, तब तक उसका नाम नित्य नया होता रहेगा, और लोग अपने को उसके कारण धन्य गिनेंगे, सारी जातियाँ उसको धन्य कहेंगी। 18 धन्य है यहोवा परमेश्‍वर, जो इसराएल का परमेश्‍वर है; आश्‍चर्यकर्म केवल वही करता है। 19 उसका महिमायुक्‍त नाम सर्वदा धन्य रहेगा; और सारी पृथ्वी उसकी महिमा से परिपूर्ण होगी। आमीन फिर आमीन।

प्र16 अंक1 पेज 16 पै 3

पवित्र शास्त्र से जुड़े सवालों के जवाब

गरीबी को कौन मिटा सकता है?

ईश्‍वर ने अपने बेटे, यीशु को इंसानों पर हुकूमत करने के लिए ठहराया है। (भजन 2:4-8) यीशु ज़ुल्म और हिंसा का अंत करके गरीबी का नामो-निशान मिटा देगा।—भजन 72:8, 12-14 पढ़िए।

प्र10 8/15 पेज 32 पै 19-20

दोहाई देनेवालों का उद्धार कौन करेगा?

नयी दुनिया में खाने-पीने की कोई कमी नहीं होगी

19 एक बार फिर अपनी मन की आँखों से आनेवाले समय को देखने की कोशिश कीजिए, जब महान सुलैमान के अधीन परमेश्‍वर की नयी दुनिया में नेक लोग जीएँगे। हमसे वादा किया गया है कि “देश में पहाड़ों की चोटियों पर बहुत सा अन्‍न होगा।” (भज. 72:16) आमतौर पर पहाड़ों पर अनाज नहीं उगता, लेकिन ये शब्द दिखाते हैं यह धरती कितनी उपजाऊ हो जाएगी। उस वक्‍त फसल बहुतायत में होगी, ठीक जैसे सुलैमान के राज में “लबानोन” इलाके में हुआ करती थी। वह क्या ही समा होगा! खाने की कोई कमी नहीं होगी और सबको भरपेट पौष्टिक आहार मिलेगा! सभी ‘भांति भांति के चिकने भोजन’ का आनंद लेंगे।—यशा. 25:6-8; 35:1, 2.

20 इन सारी आशीषों का श्रेय किसे मिलना चाहिए? सबसे पहले हमारे अनंत राजा और इस विश्‍व के मालिक यहोवा परमेश्‍वर को। दरअसल उस समय हम सभी मिलकर भजन 72 की इन खूबसूरत आखिरी आयतों को दिल से गाएँगे: राजा यीशु मसीह का “नाम सदा सर्वदा बना रहेगा; जब तक सूर्य बना रहेगा, तब तक उसका नाम नित्य नया होता रहेगा, और लोग अपने को उसके कारण धन्य गिनेंगे, सारी जातियां उसको भाग्यवान कहेंगी। धन्य है, यहोवा परमेश्‍वर जो इस्राएल का परमेश्‍वर है; आश्‍चर्य कर्म केवल वही करता है। उसका महिमायुक्‍त नाम सर्वदा धन्य रहेगा; और सारी पृथ्वी उसकी महिमा से परिपूर्ण होगी। आमीन फिर आमीन।”—भज. 72:17-19.

ढूँढ़े अनमोल रत्न

(भजन 69:4) जो अकारण मेरे बैरी हैं; वे गिनती में मेरे सिर के बालों से अधिक हैं; मेरे विनाश करनेवाले जो व्यर्थ मेरे शत्रु हैं, वे सामर्थी हैं, इसलिये जो मैं ने लूटा नहीं वह भी मुझ को देना पड़ा।

(भजन 69:21) लोगों ने मेरे खाने के लिए इन्द्रायन दिया, और मेरी प्यास बुझाने के लिए मुझे सिरका पिलाया।

प्र11 8/15 पेज 11 पै 17

उन्होंने मसीहा के आने की आस लगायी

17 बिना किसी कारण मसीहा से नफरत की जाएगी। (भज. 69:4) प्रेषित यूहन्‍ना ने यीशु के शब्दों का हवाला देते हुए कहा: “अगर मैंने उनके बीच ये काम न किए होते, तो उनमें कोई पाप न होता। मगर अब उन्होंने मेरे काम देखे हैं और मुझसे और मेरे पिता, दोनों से नफरत की है। मगर यह इसलिए हुआ कि उनके कानून में लिखी यह बात पूरी हो सके: ‘उन्होंने बेवजह मुझसे नफरत की।’” (यूह. 15:24, 25) अकसर शब्द “कानून” पूरे शास्त्र को दर्शाता है। (यूह. 10:34; 12:34) खुशखबरी की किताबें साबित करती हैं कि यीशु से नफरत की गयी और खासकर यहूदी धर्म गुरुओं ने ऐसा किया। इसके अलावा मसीह ने कहा: “दुनिया के पास तुमसे नफरत करने की कोई वजह नहीं है, मगर यह मुझसे नफरत करती है, क्योंकि मैं इसके बारे में गवाही देता हूँ कि इसके काम दुष्ट हैं।”—यूह. 7:7.

प्र11 8/15 पेज 15 पै 15

उन्हें मसीहा मिल गया!

15 मसीहा को सिरका और पित्त मिली दाख-मदिरा दी जाएगी। भजनहार ने कहा: “लोगों ने मेरे खाने के लिये इन्द्रायन [एक किस्म का ज़हरीला पौधा] दिया, और मेरी प्यास बुझाने के लिये मुझे सिरका पिलाया।” (भज. 69:21) मत्ती कहता है: “उन्होंने यीशु को पीने के लिए पित्त मिली दाख-मदिरा दी। मगर उसने चखने के बाद, उसे पीने से इनकार कर दिया।” बाद में उनमें से एक ने “दौड़कर एक स्पंज लिया और उसे खट्टी दाख-मदिरा [सिरके] में डुबोकर सरकंडे पर रखा और उसे पीने के लिए दिया।”—मत्ती 27:34, 48.

(भजन 73:24) तू सम्मति देता हुआ, मेरी अगुवाई करेगा, और तब मेरी महिमा करके मुझ को अपने पास रखेगा।

प्र13 2/15 पेज 25 पै 3-4

कोई भी बात आपको महिमा पाने से रोक न सके

3 भजनहार को पूरा यकीन था कि यहोवा उसे महिमा देगा। (भजन 73:23, 24 पढ़िए।) यहोवा उसकी आज्ञा माननेवालों को महिमा कैसे देता है? उन पर अपनी मंज़ूरी देकर और कई तरीकों से उन पर आशीषें बरसाकर। मिसाल के लिए, वह उन्हें यह समझने में मदद देता है कि उसकी मरज़ी क्या है। साथ ही, वह उन्हें अपने साथ एक करीबी रिश्‍ता बनाने का सम्मान भी देता है।—1 कुरिं. 2:7; याकू. 4:8.

4 यहोवा हमें खुशखबरी का प्रचार करने का सुअवसर देकर भी हमें महिमा से नवाज़ता है। (2 कुरिं. 4:1, 7) जब हम प्रचार काम में हिस्सा लेकर यहोवा की बड़ाई करते हैं और दूसरों को फायदा पहुँचाते हैं, तो हमें यहोवा से महिमा मिलती है, क्योंकि वह हमसे वादा करता है: “जो मेरा आदर करें मैं उनका आदर करूंगा।” (1 शमू. 2:30) ऐसे लोग यहोवा के साथ एक अच्छा नाम बना पाते हैं और मंडली के दूसरे सेवकों से भी तारीफ पाते हैं। इस तरह यहोवा उनका आदर करता है।—नीति. 11:16; 22:1.

18-24 जुलाई

पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 74-78

“यहोवा के कामों को याद कीजिए”

(भजन 74:16) दिन तेरा है रात भी तेरी है; सूर्य और चन्द्रमा को तू ने स्थिर किया है।

(भजन 77:6) मैं रात के समय अपने गीत को स्मरण करता; और मन में ध्यान करता हूँ, और मन में भली भाँति विचार करता हूँ।

(भजन 77:11, 12) मैं याह के बड़े कामों की चर्चा करूँगा; निश्‍चय मैं तेरे प्राचीनकालवाले अद्‌भुत कामों का स्मरण करूँगा। 12 मैं तेरे सब कामों पर ध्यान करूँगा, और तेरे बड़े कामों को सोचूँगा।

प्र15 8/15 पेज 10 पै 3-4

यहोवा के अटूट प्यार पर मनन कीजिए

3 अभी हमने जिन साक्षियों का ज़िक्र किया, उन्हें इस बात का यकीन था कि मुश्‍किल घड़ी में यहोवा उनके साथ था। उसी तरह हम भी यह यकीन रख सकते हैं कि यहोवा हमारी तरफ है। (भज. 118:6, 7) इस लेख में हम ऐसी चार अहम बातों पर गौर करेंगे, जिनसे साबित होता है कि यहोवा हमसे प्यार करता है। (1) उसकी सृष्टि (2) बाइबल (3) प्रार्थना और (4) फिरौती। यहोवा ने जो भले काम किए हैं, उन पर मनन करने से उसके अटूट प्यार के लिए हमारी कदरदानी बढ़ेगी।—भजन 77:11, 12 पढ़िए।

यहोवा की सृष्टि पर मनन कीजिए

4 जब हम उन चीज़ों को निहारते हैं जिनकी यहोवा ने सृष्टि की है तो क्या हम यह देख पाते हैं कि वह हमसे कितना प्यार करता है? बेशक! क्योंकि उसकी हर रचना से उसका प्यार झलकता है। (रोमि. 1:20) उदाहरण के लिए, यहोवा ने धरती को इस तरह बनाया है कि हम न सिर्फ इस पर ज़िंदा रह सकते हैं बल्कि और भी बहुत कुछ कर सकते हैं। उसने हमें हर वह चीज़ दी है जो ज़िंदगी का मज़ा लेने के लिए ज़रूरी है। खाने की बात लीजिए। हालाँकि ज़िंदा रहने के लिए हमें खाने की ज़रूरत है, लेकिन यहोवा ने सिर्फ ज़रूरत पूरी नहीं की। उसने हमें तरह-तरह का खाना दिया है, जिस वजह से हमें खाना खाने में बड़ा मज़ा आता है! (सभो. 9:7) कैथरीन नाम की एक बहन जब सृष्टि की चीज़ें देखती है खास तौर से कनाडा में वसंत ऋतु (मार्च-अप्रैल) के नज़ारे, तो वह उमंग से भर जाती है। वह कहती है, ‘यह देखकर सच में हैरानी होती है कि कैसे हर चीज़ दमक उठती है। फूल ऐसे खिल जाते हैं मानो उन्हें इसके लिए पहले से तैयार किया गया हो। और प्रवासी पंछी अपने बसेरे की ओर लौट आते हैं, यहाँ तक कि छोटी-सी हमिंगबर्ड हमारी रसोई-घर की खिड़की के बाहर दाना चुगने आ जाती है। यह सब कितना अच्छा लगता है। जब यहोवा हमें इतनी खुशी देता है तो ज़ाहिर है वह हमसे बेहद प्यार करता होगा।’ हमारा पिता अपनी बनायी रचना से प्यार करता है और चाहता है कि हम भी उसका मज़ा लें।—प्रेषि. 14:16, 17.

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हम परमेश्‍वर के लिए अपना प्रेम कैसे दिखाते हैं

परमेश्‍वर के लिए प्रेम पैदा करना है तो उसके बारे में सिर्फ जानकारी हासिल करना काफी नहीं। पूरी दुनिया में रहनेवाले परमेश्‍वर के सेवक अपने तजुर्बे से कह सकते हैं कि एक इंसान के दिल में परमेश्‍वर के लिए सच्चा प्रेम तभी बढ़ता है, जब वह उसकी शख्सियत से वाकिफ होने लगता है। और यह प्रेम तब और भी मज़बूत होने लगता है जब वह सीखता है कि परमेश्‍वर किन-किन बातों से प्रेम करता है और किन से नफरत, उसकी पसंद-नापसंद क्या है और वह हमसे क्या माँग करता है।

यहोवा को हमसे प्यार होने की वजह से उसने अपना वचन, बाइबल हमें दिया है। इसके ज़रिए वह अपनी शख्सियत के बारे में हमें बताता है। इसे पढ़कर हम सीखते हैं कि यहोवा ने अलग-अलग हालात में क्या किया। जैसे अपने किसी अज़ीज़ का खत पढ़कर हमें बहुत खुशी होती है, उसी तरह जब भी हम बाइबल पढ़कर यहोवा की शख्सियत के बारे में कोई नयी बात सीखते हैं, तो हमें बेहद खुशी मिलती है।

लेकिन जैसे हम अपनी सेवा में अकसर देखते हैं, परमेश्‍वर के बारे में सीखनेवाला हर कोई उससे प्यार नहीं करता। यीशु ने अपने ज़माने के कुछ एहसानफरामोश यहूदियों से कहा: “तुम पवित्रशास्त्र में ढ़ूंढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उस में अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है, . . . परन्तु मैं तुम्हें जानता हूं, कि तुम में परमेश्‍वर का प्रेम नहीं।” (यूहन्‍ना 5:39, 42) यहोवा ने अपना प्यार ज़ाहिर करते हुए जो कुछ किया है, उसके बारे में कुछ लोग बरसों तक सीखते रहते हैं, फिर भी उनके दिल में परमेश्‍वर के लिए बिलकुल प्यार नहीं होता। ऐसा क्यों? क्योंकि वे सीखते तो हैं, मगर इस बारे में कभी गंभीरता से नहीं सोचते कि उन्हें क्या कदम उठाना है। दूसरी तरफ हमारे साथ अध्ययन करनेवाले ऐसे लाखों नेक लोग हैं जिनके दिल में परमेश्‍वर के लिए प्यार दिन-ब-दिन बढ़ता जाता है। क्यों? क्योंकि वे भी हमारी तरह आसाप की मिसाल पर चलते हैं। वह कैसे?

एहसान भरे दिल से मनन कीजिए

आसाप ने ठान लिया था कि वह अपने दिल में यहोवा के लिए प्रेम बढ़ाएगा। उसने लिखा: “[मैं] मन में ध्यान करता हूं, . . . मैं याह के बड़े कामों की चर्चा करूंगा; निश्‍चय मैं तेरे प्राचीनकालवाले अद्‌भुत कामों को स्मरण करूंगा। मैं तेरे सब कामों पर ध्यान करूंगा, और तेरे बड़े कामों को सोचूंगा।” (भजन 77:6, 11, 12) भजनहार आसाप की तरह जो इंसान यहोवा के मार्गों पर मनन करेगा, उसके दिल में यहोवा के लिए प्यार ज़रूर बढ़ेगा।

इसके अलावा, यहोवा की सेवा में हुए अपने बढ़िया अनुभवों के बारे में सोचने से उसके साथ हमारा रिश्‍ता मज़बूत होता है। प्रेरित पौलुस ने कहा कि हम “परमेश्‍वर के सहकर्मी” हैं, तो यह लाज़मी है कि सहकर्मियों के साथ दोस्ती होती है। (1 कुरिन्थियों 3:9) जब हम अपनी बातों और अपने कामों से यहोवा के लिए प्यार दिखाते हैं, तो वह इसकी कदर करता है और उसका मन आनंदित होता है। (नीतिवचन 27:11) फिर जब मुसीबत की घड़ी में हम उससे मदद माँगते हैं तो वह हमें सही राह दिखाता है, और इससे हमें एहसास होने लगता है कि वह हमारे साथ है। इस तरह उसके लिए हमारा प्यार और भी गहरा होता है।

जब दो दोस्त एक-दूसरे को अपने दिल की बात बताते हैं, तो उनकी दोस्ती गहरी होती है। उसी तरह जब हम यहोवा को बताते हैं कि हम क्यों उससे बेहद प्यार करते हैं, तो उसके लिए हमारा प्यार और भी मज़बूत होता है। ऐसा करने से हम मन-ही-मन यीशु के इन शब्दों को दोहराते हैं: “तू प्रभु अपने परमेश्‍वर से अपने सारे हृदय, और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि और अपनी सारी शक्‍ति से प्रेम करना।” (मरकुस 12:30, NHT) अपने सारे हृदय, सारे प्राण, अपनी सारी बुद्धि और शक्‍ति से यहोवा को लगातार प्यार करने के लिए हम कौन-से कदम उठा सकते हैं?

अपने सारे हृदय से यहोवा को प्रेम करना

बाइबल में हृदय का मतलब है, हमारे अंदर छिपा इंसान यानी हमारी ख्वाहिशें, हमारा रवैया और हमारी भावनाएँ। तो अपने सारे हृदय से यहोवा को प्यार करने का मतलब है कि हम सबसे बढ़कर उसी को खुश करने की इच्छा रखते हैं। (भजन 86:11) यह दिखाने के लिए कि हमें सबसे ज़्यादा यहोवा से प्यार है, हम अपने अंदर वे गुण पैदा करते हैं जिन्हें वह पसंद करता है। हम ‘बुराई से घृणा करके और भलाई में लगे रहकर’ परमेश्‍वर की मिसाल पर चलने की पूरी कोशिश करते हैं।—रोमियों 12:9.

परमेश्‍वर से प्यार होने की वजह से हम हरेक चीज़ के बारे में वैसा ही महसूस करते हैं जैसा वह महसूस करता है। मिसाल के लिए, हो सकता है हमें अपनी नौकरी बहुत पसंद हो या हमारा काम इतना दिलचस्प हो कि हम उसमें पूरी तरह डूब जाते हों, लेकिन क्या इसका यह मतलब है कि हमें वह काम ही सबसे ज़्यादा प्यारा है? नहीं। यहोवा को अपने पूरे हृदय से प्यार करने की वजह से, उसकी सेवा हमें ज़्यादा प्यारी है। उसी तरह, हमारे अंदर यह ख्वाहिश होती है कि हम अपने माता-पिता, जीवन-साथी और मालिक को खुश करें, मगर यह दिखाने के लिए हम पूरे हृदय से यहोवा को प्यार करते हैं, हम इन सबसे बढ़कर उसी को खुश करते हैं। और ऐसा करना ही सही है। आखिर वही तो हमारे हृदय में सबसे पहली जगह पाने का हकदार है।—मत्ती 6:24; 10:37.

अपने सारे प्राण से यहोवा से प्रेम करना

बाइबल में “प्राण” का बुनियादी मतलब है, हमारी पूरी शख्सियत और ज़िंदगी। तो अपने सारे प्राण से यहोवा को प्रेम करने का मतलब है अपनी ज़िंदगी इस तरीके से बिताना कि उससे यहोवा की स्तुति हो और साबित हो कि हम उससे प्यार करते हैं।

प्र03 7/1 पेज 10 पै 6-7

“देखो, हमारा परमेश्‍वर यही है”

6 मान लीजिए कि गर्मी का मौसम है और आप चिलचिलाती धूप में बाहर खड़े हैं। ऐसे में आप अपनी त्वचा पर क्या महसूस करेंगे? बेशक, सूरज की गर्मी। लेकिन असल में देखें तो आप यहोवा की सृजने की शक्‍ति का नतीजा महसूस करते हैं। सूरज में कितनी ऊर्जा है? सूरज के केंद्र का तापमान लगभग 1 करोड़ 50 लाख सेंटीग्रेड है। अगर आप सूरज के उस हिस्से से सुई की नोक के आकार का एक टुकड़ा लें और इस धरती पर रखें तो इसकी झुलसाने­वाली गर्मी से बचने के लिए आपको इससे 140 किलोमीटर दूर जाना पड़ेगा! हर सेकंड, सूरज इतनी ऊर्जा देता है जितनी ऊर्जा करोड़ों परमाणु बमों के फटने से निकलती है। मगर हमारी पृथ्वी परमाणु आग के इस विशाल भट्टे यानी सूरज से बिलकुल सही दूरी पर अपनी कक्षा में चक्कर लगाती है। अगर पृथ्वी, सूरज के थोड़ा भी पास होती तो इसका सारा पानी भाप बनकर उड़ जाता; और अगर थोड़ी दूर होती तो पानी बर्फ बन जाता। दोनों हालात में हमारे ग्रह पर जीवन संभव नहीं होता।

7 आज बहुत-से लोग सूरज के बारे में कभी गहराई से नहीं सोचते, इसके बावजूद कि वे उसी की बदौलत ज़िंदा हैं। इसलिए, सूरज हमें जो सिखा सकता है, उसे वे सीखने से चूक जाते हैं। भजन 74:16 यहोवा के बारे में कहता है: “सूर्य . . . को तू ने स्थिर किया है।” जी हाँ, सूरज से ‘आकाश और पृथ्वी के कर्त्ता’ यहोवा की महिमा होती है। (भजन 146:6) मगर सूरज तो बस सृष्टि की उन अनगिनत चीज़ों में से एक है जो हमें यहोवा की अपार शक्‍ति के बारे में सिखाती हैं। यहोवा की सृजने की शक्‍ति के बारे में हम जितना ज़्यादा सीखेंगे, उसके लिए हमारे दिल में विस्मय की भावना उतनी ही बढ़ती जाएगी।

(भजन 75:4-7) मैंने घमंडियों से कहा, “घमंड मत करो,” और दुष्टों से, “सींग ऊँचा मत करो; 5 अपना सींच बहुत ऊँचा मत करो, न सिर उठाकर ढिठाई की बात बोलो।” 6 क्योंकि बढ़ती न तो पूर्व से न पश्‍चिम से, और न जंगल की ओर से आती है; 7 परन्तु परमेश्‍वर ही न्यायी है, वह एक को घटाता और दूसरे को बढ़ाता है।

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भजन संहिता किताब के तीसरे और चौथे भाग की झलकियाँ

75:4, 5, 10—शब्द “सींग” का क्या मतलब है? जानवर का सबसे शक्‍तिशाली हथियार, उसका सींग होता है। इसलिए, शब्द “सींग” अधिकार या ताकत को दर्शाता है। यहोवा अपने लोगों के सींगों को ऊँचा करता है जिससे वे ऊपर उठाए जाते हैं, जबकि वह ‘दुष्टों के सींगों को काट डालता है।’ हमें खबरदार किया गया है कि हम ‘अपना सींग ऊँचा न करें,’ यानी हम घमंड से फूल न जाएँ। यहोवा लोगों को ऊपर उठाता है, इसलिए हमें यह मानकर चलना चाहिए कि कलीसिया में ज़िम्मेदारी का पद वही सौंपता है।—भजन 75:7.

इंसाइट-1 पेज 1160 पै 7

नम्रता

हमें मंडली से जुड़ी ज़िम्मेदारियाँ पाने के लिए इंतज़ार करना चाहिए क्योंकि ये यहोवा की तरफ से मिलती हैं। इस वजह से हर किसी को अगुवाई करनेवालों के अधीन रहना चाहिए, फिर चाहे वह स्त्री हो या पुरुष। (भज 75:6, 7) जैसे, लेवी कोरह के कुछ बेटों ने कहा, “दुष्टों के डेरों में वास करने से अपने परमेश्‍वर के भवन की डेवढ़ी पर खड़ा रहना ही मुझे अधिक भावता है।” (भज 84:10) इस हद तक नम्र होने में वक्‍त लगता है। शास्त्र में बताया गया है कि जिन्हें निगरानी के पद पर ठहराया जाता है, उनमें क्या-क्या काबिलीयतें होनी चाहिए और यह साफ-साफ बताया गया है कि जिन्होंने हाल ही में बपतिस्मा लिया है, उन्हें निगरानी के पद पर नहीं ठहराया जाना चाहिए ताकि वे ‘घमंड से फूल न जाएँ और वही दंड न पाएँ जो शैतान ने पाया है।’—1ती 3:6.

(भजन 78:11-17) उन्होंने उसके बड़े कामों को और जो आश्‍चर्यकर्म उसने उनके सामने किए थे, उनको भुला दिया। 12 उसने तो उनके बापदादों के सम्मुख मिस्र देश के सोअन के मैदान में अद्‌भुत कर्म किए थे। 13 उसने समुद्र को दो भाग करके उन्हें पार करा दिया, और जल को ढेर के समान खड़ा कर दिया। 14 उसने दिन को तो बादल के खम्भे से और रात भर अग्नि के प्रकाश के द्वारा उनकी अगुवाई की। 15 वह जंगल में चट्टानें फाड़कर, उनको मानो गहिरे जलाशयों से मनमाना पिलाता था। 16 उसने चट्टान से भी धाराएँ निकालीं और नदियों का सा जल बहाया। 17 तौभी वे उसके विरुद्ध अधिक पाप करते गए, और निर्जल देश में परमप्रधान के विरुद्ध उठते रहे।

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क्या आपकी नज़र इनाम पर है?

यहोवा के दिल में अपने लोगों के लिए जो भावनाएँ हैं, उन्हें जानने से हमें आशा मिलती है। और यह आशा हमारे लिए उतनी ही ज़रूरी है जितना कि विश्‍वास। (1 कुरिन्थियों 13:13) बाइबल में जिस यूनानी शब्द का अनुवाद “आशा” किया गया है, उसका मतलब है बेसब्री से “भलाई की उम्मीद” करना। प्रेरित पौलुस ने ऐसी आशा को ही ध्यान में रखकर लिखा: “हम चाहते हैं कि तुममें से हर कोई जीवन भर ऐसा ही कठिन परिश्रम करता रहे। यदि तुम ऐसा करते हो तो तुम निश्‍चय ही उसे पा जाओगे जिसकी तुम आशा करते रहे हो। हम यह नहीं चाहते कि तुम आलसी हो जाओ। बल्कि तुम उनका अनुकरण करो जो विश्‍वास और धैर्य के साथ उन वस्तुओं को पा रहे हैं जिनका परमेश्‍वर ने वचन दिया था।” (इब्रानियों 6:11, 12, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) ध्यान दीजिए कि अगर हम यहोवा की सेवा वफादारी से करते रहें, तो हम निश्‍चित हो सकते हैं कि हमारी आशा ज़रूर पूरी होगी। हमारी यह आशा दुनियावी लक्ष्यों की तरह “हमें निराश नहीं होने” देगी। (रोमियों 5:5, ईज़ी-टू-रीड वर्शन) तो हम अपनी आशा को मन में उज्ज्वल कैसे बनाए रख सकते हैं और उस पर पैनी नज़र कैसे रख सकते हैं?

अपनी आध्यात्मिक नज़र को कैसे पैना करें?

हम अपनी आँखों से एक साथ दो चीज़ों पर पैनी नज़र नहीं रख सकते। यही बात हमारी आध्यात्मिक नज़र के बारे में भी सच है। अगर हमारी नज़र दुनियावी चीज़ों पर गड़ी है, तो यह तय है कि हम परमेश्‍वर की वादा की गयी नयी दुनिया पर ठीक से नज़र नहीं रख पाएँगे। कुछ समय बाद हमें नयी दुनिया की सिर्फ धुँधली-सी तसवीर नज़र आएगी जिसमें हमें कोई दिलचस्पी नहीं होगी और हम उसे देखना बंद कर देंगे। इसका अंजाम हमारे लिए क्या ही भयानक होगा! (लूका 21:34) इसलिए यह कितना ज़रूरी है कि हम अपनी “आंख निर्मल” रखें यानी उसे सिर्फ परमेश्‍वर के राज्य और अनंत जीवन के इनाम पर लगाए रखें।—मत्ती 6:22.

अपनी आँख को निर्मल रखना हमेशा आसान नहीं होता। आए दिन हम जिन समस्याओं का सामना करते हैं, उन्हीं पर हमारा सारा ध्यान चला जाता है। इसके अलावा, दूसरी कई चीज़ों की तरफ हमारा ध्यान भटक सकता है, यहाँ तक कि हम बुरे कामों की तरफ लुभाए जा सकते हैं। ऐसे हालात में, हम ज़रूरी कामों को नज़रअंदाज़ किए बगैर परमेश्‍वर के राज्य और उसकी वादा की गयी नयी दुनिया पर कैसे अपनी नज़र गड़ाए रख सकते हैं? आइए ऐसा करने के तीन तरीकों पर गौर करें।

रोज़ाना परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन कीजिए। नियमित तौर पर बाइबल पढ़ने और उस पर आधारित किताबों-पत्रिकाओं का अध्ययन करने से हम अपना ध्यान आध्यात्मिक बातों पर लगाए रख सकेंगे। हो सकता है हम कई सालों से परमेश्‍वर के वचन का अध्ययन कर रहे हों, मगर फिर भी हमें लगातार उसका अध्ययन करना होगा, ठीक जैसे हमें ज़िंदा रहने के लिए लगातार भोजन करने की ज़रूरत होती है। हम यह सोचकर भोजन करना नहीं छोड़ते कि हमने गुज़रे वक्‍त में हज़ारों बार खाना खाया है। उसी तरह, हम बाइबल से चाहे कितने ही वाकिफ क्यों न हों, हमें नियमित तौर पर उससे आध्यात्मिक खुराक लेनी चाहिए ताकि हर वक्‍त हमारी आशा उज्ज्वल रहे, हमारा विश्‍वास और प्यार मज़बूत बना रहे।—भजन 1:1-3.

एहसानमंदी की भावना से परमेश्‍वर के वचन पर मनन कीजिए। मनन करना क्यों ज़रूरी है? इसके दो कारण हैं। पहला, मनन करने से हमें पढ़ी हुई बातों को दिमाग में बिठाने और अच्छी तरह समझने में मदद मिलती है और हम उनके लिए गहरी कदरदानी बढ़ा पाते हैं। दूसरा, मनन करने से हम यहोवा और उसके आश्‍चर्यकर्मों को, साथ ही उसने हमें जो आशा दी है, उसे नहीं भूलेंगे। उदाहरण के लिए: जिन इस्राएलियों ने मूसा के साथ मिस्र छोड़ा था, उन्होंने खुद अपनी आँखों से देखा कि यहोवा ने अपनी अद्‌भुत शक्‍ति से कैसे-कैसे काम किए। उन्होंने यह भी देखा कि उन्हें विरासत में मिलनेवाले देश तक ले जाते वक्‍त यहोवा ने कैसे प्यार से उनकी हिफाज़त की थी। फिर भी, वादा किए गए देश में पहुँचने से पहले जैसे ही उन्होंने वीराने में कदम रखा, वे शिकायत करने लगे। इससे ज़ाहिर हुआ कि उनमें विश्‍वास की भारी कमी थी। (भजन 78:11-17) इसकी असल वजह क्या थी?

उन लोगों ने यहोवा पर से अपना ध्यान हटा दिया और उसकी दी गयी शानदार आशा के बजाय खुद के चैनो-आराम के बारे में सोचने लगे और अपनी ख्वाहिशें पूरी करने में लग गए। ज़्यादातर इस्राएलियों ने खुद अपनी आँखों से यहोवा के चमत्कार देखे थे, फिर भी उनमें विश्‍वास नहीं रहा और वे शिकायत करने लगे। भजन 106:13 कहता है: “वे झट [यहोवा के] कामों को भूल गए।” (तिरछे टाइप हमारे।) इस तरह जानबूझकर परमेश्‍वर के कामों को नज़रअंदाज़ करने की वजह से उस पीढ़ी ने वादा किए गए देश में कदम रखने का मौका गँवा दिया।

इसलिए जब आप बाइबल पढ़ते या उसकी समझ देनेवाले साहित्य का अध्ययन करते हैं, तो समय निकालकर पढ़ी हुई बातों पर मनन कीजिए। इस तरह का मनन, आपकी आध्यात्मिक सेहत और तरक्की के लिए बेहद ज़रूरी है। मसलन, भजन 106 पढ़ते वक्‍त, जिसकी एक आयत का हवाला ऊपर दिया गया है, यहोवा के गुणों पर मनन कीजिए। गौर कीजिए कि वह इस्राएलियों के साथ कितने धीरज से पेश आया और उसने उन पर कितनी दया की। ध्यान दीजिए कि उसने किस तरह अपनी तरफ से उनकी पूरी-पूरी मदद की ताकि वे वादा किए गए देश में पहुँच सकें। देखिए कि उन्होंने कैसे बार-बार उसके खिलाफ बगावत की। ज़रा सोचिए कि यहोवा के दिल को कितनी ठेस पहुँची होगी जब उनकी एहसान-फरामोशी ने उसकी दया और सहनशीलता को इस हद तक परखा कि वह और बर्दाश्‍त न कर सका। इसके अलावा, आगे आयत 30 और 31 में बताया गया है कि पीनहास ने कैसे निडर होकर धार्मिकता के पक्ष में होने का अटल फैसला किया। उन दोनों आयतों पर मनन करने से हमें पक्का यकीन होता है कि यहोवा अपने वफादार लोगों को नहीं भूलता और उन्हें बहुतायत में आशीषें देता है।

अपनी ज़िंदगी में बाइबल सिद्धांतों को लागू कीजिए। जब हम बाइबल सिद्धांतों पर चलते हैं, तो हम खुद अनुभव करते हैं कि यहोवा की सलाह फायदेमंद है। नीतिवचन 3:5, 6 कहता है: “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण करके सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा।” ऐसे कई लोगों के बारे में सोचिए जिन्होंने बदचलन ज़िंदगी जीने की वजह से मन की शांति खो दी, निराशा, मायूसी और बीमारियों के शिकार हुए। ऐसे लोग जो पल भर का मज़ा लूटने में डूब जाते हैं, वे सालों तक या फिर ज़िंदगी भर के लिए मुसीबत की कटनी काटते हैं। मगर जो ‘सकरे मार्ग’ पर चलते हैं, उनकी बात कितनी अलग है। वे आज भी एक बेहतरीन ज़िंदगी जीते हैं और इससे उन्हें एक झलक मिलती है कि नयी दुनिया में ज़िंदगी कैसी होगी। और इससे उन्हें बढ़ावा मिलता है कि वे जीवन के मार्ग पर चलते रहें।—मत्ती 7:13, 14; भजन 34:8.

बाइबल के सिद्धांतों पर चलना एक चुनौती हो सकती है। कभी-कभी मुश्‍किल हालात में ऐसा लग सकता है कि बाइबल के खिलाफ जाकर उसका हल करने से तुरंत हमारी समस्या दूर होगी। मसलन, पैसे की तंगी से गुज़रते वक्‍त शायद हमारा मन करे कि राज्य के कामों को दूसरी जगह देना ठीक रहेगा। लेकिन जो लोग पूरे विश्‍वास के साथ काम करते और अपनी आध्यात्मिक नज़र पैनी रखते हैं, उन्हें यकीन दिलाया गया है कि ‘परमेश्‍वर से डरनेवालों का भला ही होगा।’ (सभोपदेशक 8:12) हो सकता है, एक मसीही को कभी-कभी ज़्यादा घंटे काम करना पड़े, लेकिन वह कभी एसाव के जैसा रवैया नहीं दिखाएगा जिसने आध्यात्मिक बातों को तुच्छ जाना और ऐसे ठुकरा दिया मानो उनकी कोई कीमत नहीं है।—उत्पत्ति 25:34; इब्रानियों 12:16.

ढूँढ़े अनमोल रत्न

(भजन 78:2) मैं अपना मुँह नीतिवचन कहने के लिये खोलूँगा; मैं प्राचीनकाल की गुप्त बातें कहूँगा।

प्र11 8/15 पेज 11 पै 14

उन्होंने मसीहा के आने की आस लगायी

मसीहा के दूसरे कामों की भविष्यवाणियाँ

14 मसीहा, मिसालों के ज़रिए बात करेगा। भजनहार आसाप ने गीत में गाया: “मैं अपना मुंह नीतिवचन कहने के लिये खोलूंगा।” (भज. 78:2) हम कैसे कह सकते हैं कि यह भविष्यवाणी यीशु पर लागू होती है? मत्ती इस बात को पुख्ता करता है। एक बार यीशु ने राज की तुलना राई के दाने और खमीर से की, तो उसका हवाला देते हुए मत्ती ने कहा: “[यीशु] बगैर मिसाल के उनसे बात नहीं करता था, ताकि यह बात पूरी हो जो भविष्यवक्‍ता से कहलवायी गयी थी: ‘मैं मिसालों के साथ अपना मुँह खोलूँगा, और जो बातें दुनिया की शुरूआत से छिपी रही हैं, उन्हें ज़ाहिर करूँगा।’” (मत्ती 13:31-35) असरदार तरीके से सिखाने के लिए यीशु मिसालों का इस्तेमाल करता था।

(भजन 78:40, 41) उन्होंने कितनी ही बार जंगल में उससे बलवा किया, और निर्जल देश में उसको उदास किया! 41 वे बारबार परमेश्‍वर की परीक्षा करते थे, और इस्राएल के पवित्र को खेदित करते थे।

प्र12 11/1 पेज 14 पै 5, अँग्रेज़ी

पवित्र शास्त्र सँवारे ज़िंदगी

जैसे-जैसे मैं बाइबल से सीखने लगा, परमेश्‍वर के बारे में मेरा नज़रिया पूरी तरह बदल गया। मैंने सीखा कि परमेश्‍वर की वजह से बुराइयाँ नहीं आती और न ही वह हम पर मुसीबतें लाता है। इसके बजाय जब लोग बुरे काम करते हैं, तो उसे खुद इस बात का बहुत दुख होता है। (उत्पत्ति 6:6; भजन 78:40, 41) मैंने ठान लिया कि मैं पूरी कोशिश करूँगा कि मैं कभी-भी यहोवा को दुखी न करूँ। मैं उसे खुश करना चाहता हूँ। (नीतिवचन 27:11) मैंने हद-से-ज़्यादा शराब पीना और तम्बाकू खाना छोड़ दिया और अनैतिक काम करने भी छोड़ दिए। मार्च 1994 में, मैंने बपतिस्मा लिया और यहोवा का साक्षी बन गया।

प्र11 7/1 पेज 10, अँग्रेज़ी

यहोवा के करीब आइए

क्या यहोवा की भी भावनाएँ हैं?

अगर इसका जवाब हाँ है, तो फिर एक और सवाल खड़ा होता है: क्या हमारे कामों से यहोवा की भावनाओं पर असर पड़ता है? या दूसरे शब्दों में कहें, तो क्या हम अपने कामों से परमेश्‍वर को खुश कर सकते हैं या उसे ठेस पहुँचा सकते हैं? लेकिन पुराने ज़माने के तत्वज्ञानियों का कहना है, नहीं। उनका कहना था कि परमेश्‍वर को किसी बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन बाइबल बताती है कि यहोवा की भी भावनाएँ हैं और उसे इस बात से बहुत फर्क पड़ता है कि हम क्या करते हैं। भजन 78:40, 41 में दी बात पर गौर कीजिए।

भजन 78 में बताया गया है कि परमेश्‍वर इसराएलियों के साथ किस तरह पेश आया। उन्हें मिस्र की गुलामी से छुड़ाने के बाद यहोवा ने उनके साथ एक खास रिश्‍ते की शुरूआत की। उसने वादा किया कि अगर वे उसकी आज्ञाओं को मानते रहेंगे, तो वे उसका “निज धन” ठहरेंगे और वह उनके ज़रिए अपना मकसद पूरा करेगा। लोग इस बात से सहमत थे। इस वजह से परमेश्‍वर ने उनके साथ कानून का करार किया। क्या वे कानून के हिसाब से चले?—निर्गमन 19:3-8.

भजनहार ने कहा, “उन्होंने कितनी ही बार जंगल में उससे बलवा किया!” (आयत 40) अगली आयत बताती है, “वे बारबार ईश्‍वर की परीक्षा करते थे।” (आयत 41) इन आयतों से साफ पता चलता है कि बार-बार बगावत करना उनकी आदत बन चुकी थी। मिस्र से छूटने के कुछ समय बाद इसराएलियों ने ऐसा करना शुरू कर दिया था। वे परमेश्‍वर के खिलाफ कुड़कुड़ाने लगे और यह कहने लगे कि क्या परमेश्‍वर वाकई हमारी परवाह करता है और क्या वह ऐसा करना चाहता भी है। (गिनती 14:1-4) ‘उन्होंने कितनी ही बार उससे बलवा किया है’ इन शब्दों के मतलब को बाइबल अनुवादकों ने कुछ इस तरह बताया कि वे बार-बार परमेश्‍वर की बात मानना छोड़ देते। इसके बावजूद जब वे दिल से पश्‍चाताप करते, तो यहोवा उन पर दया करता और उन्हें माफ करता। लेकिन अपनी आदत के मुताबिक वे फिर से वैसा ही करने लगते। वे यहोवा से मुँह फेर लेते और बार-बार बगावत करते और ऐसा ही चलता रहता।—भजन 78:10-19, 38.

जब उसके चुने हुए लोगों ने हर बार बगावत की, तो यहोवा को कैसा लगा? आयत 40 बताती है कि उन्होंने “उसको उदास किया।” एक और अनुवाद बताता है कि उन्होंने “उसे दुखी होने की वजह दी।” बाइबल के एक अनुवाद मुताबिक इस बात का मतलब यह है कि “इसराएलियों ने ऐसे काम किए जिससे परमेश्‍वर को दुख हुआ, जैसे माता-पिता को तब होता है जब उनका बच्चा बात नहीं मानता और बगावत करता है।” जैसे बगावती बच्चा अपने माता-पिता को ठेस पहुँचाता है, वैसे ही बगावती इसराएलियों ने “इस्राएल के पवित्र को खेदित” किया।—आयत 41.

हम इस भजन से क्या सीख सकते हैं? इससे हमें एक बात की तसल्ली हो जाती है कि यहोवा को अपने सेवकों से गहरा लगाव है और जब उसके सेवकों से कुछ गलती हो जाती है, तो वह उन्हें छोड़ नहीं देता। लेकिन हम एक और बात ध्यान में रख सकते हैं कि यहोवा की भी भावनाएँ हैं और हम जो भी करते हैं उससे उसे फर्क पड़ता है। इस बात का आप पर क्या असर पड़ता है? क्या यह बात आपको अच्छे काम करने के लिए उभारती है?

बुरा रास्ता चुनने और यहोवा को दुख देने के बजाय हम वह रास्ता चुनें, जो परमेश्‍वर के स्तरों के मुताबिक हो। इससे हम उसके दिल को खुश कर पाएँगे। यहोवा अपने उपासकों से यही चाहता है। वह कहता है, “हे मेरे पुत्र, बुद्धिमान होकर मेरा मन आनन्दित कर।” (नीतिवचन 27:11) अगर हम अपनी ज़िंदगी इस तरह जीएँ जिससे यहोवा का दिल खुश हो, तो इससे बढ़कर हम यहोवा को और कुछ नहीं दे सकते।

25-31 जुलाई

पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 79-86

“आपकी ज़िंदगी में कौन सबसे ज़्यादा मायने रखता है?”

(भजन 83:1-5) हे परमेश्‍वर, मौन न रह; हे परमेश्‍वर, चुप न रह, और न शान्त रह! 2 क्योंकि देख तेरे शत्रु हंगामा मचा रहे हैं; और तेरे बैरियों ने सिर उठाया है। 3 वे चतुराई से तेरी प्रजा की हानि की सम्मति करते, और तेरे रक्षित लोगों के विरुद्ध युक्‍तियाँ निकालते हैं। 4 उन्होंने कहा, “आओ, हम उनका ऐसा नाश करें कि राज्य भी मिट जाए; और इस्राएल का नाम आगे को स्मरण न रहे।” 5 उन्होंने एक मन होकर युक्‍ति निकाली है, और तेरे ही विरुद्ध वाचा बाँधी है।

प्र08 10/15 पेज 13 पै 7-8

यहोवा से की गयी दिली प्रार्थना का जवाब

7 भजनहार की सबसे बड़ी चिंता क्या थी? बेशक उसे अपनी और अपने परिवार की सलामती की फिक्र थी। लेकिन उसकी सबसे बड़ी चिंता यह थी कि यहोवा के नाम पर कलंक लगाया जा रहा था और उसका नाम धारण करनेवाली जाति को मिटाने के मंसूबे बाँधे जा रहे थे। भजनहार ने हमारे लिए क्या ही बढ़िया मिसाल कायम की! आइए हम भी इस संसार के अंतिम दिनों में मुश्‍किलों का सामना करते वक्‍त उसकी तरह सही नज़रिए बनाए रखें।—मत्ती 6:9, 10 पढ़िए।

8 भजनहार बताता है कि दुश्‍मन जातियाँ इस्राएल के बारे में क्या कह रही थीं: “आओ, हम उनको मिटा डालें कि उनकी जाति ही न रहे; और इस्राएल का नाम फिर कभी स्मरण न किया जाए।” (भज. 83:4, NHT) ये जातियाँ परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों से कितनी नफरत करती थीं! लेकिन इस्राएल के खिलाफ षड्यंत्र रचने के पीछे उनका एक और इरादा था। वे उनका देश हड़पना चाहते थे। इसलिए उन्होंने डींग मारी: “हम परमेश्‍वर की चराइयों [‘निवासस्थान,’ NW] के अधिकारी आप ही हो जाएं।” (भज. 83:12) क्या हमारे दिनों में ऐसा कुछ हुआ है? हाँ, हुआ है।

(भजन 83:16) इनके मुँह को अति लज्जित कर, कि हे यहोवा ये तेरे नाम को ढूँढ़े।

प्र08 10/15 पेज 15 पै 16

यहोवा से की गयी दिली प्रार्थना का जवाब

यहोवा की हुकूमत बुलंद होने के लिए प्रार्थना कीजिए

16 इन “अन्तिम दिनों” के दौरान दुश्‍मनों ने परमेश्‍वर के लोगों को मिटाने की लाख कोशिश की, लेकिन यहोवा ने उनकी हर कोशिश को नाकाम किया है। (2 तीमु. 3:1) इससे विरोधियों को शर्मिंदा होना पड़ा है। भजन 83:16 में इसी बात की ओर इशारा किया गया है: “इनके मुंह को अति लज्जित कर, कि हे यहोवा [लोग] तेरे नाम को ढ़ूंढ़ें।” और यहोवा ने वाकई ऐसा किया है! लगभग हर देश में दुश्‍मन यहोवा के साक्षियों का मुँह बंद करने में बुरी तरह नाकाम रहे हैं। उन देशों में सच्चे परमेश्‍वर के उपासकों के अटल इरादे और धीरज का नेकदिल लोगों पर गहरा असर हुआ है और उन्होंने ‘यहोवा के नाम को ढूँढ़ा है।’ बीते समय में जिन देशों में यहोवा के साक्षियों पर वहशियाना तरीके से ज़ुल्म ढाए गए, आज वहाँ सैकड़ों-हज़ारों साक्षी खुशी-खुशी यहोवा की स्तुति कर रहे हैं। यह वाकई यहोवा के लिए एक बड़ी जीत और दुश्‍मनों के मुँह पर एक करारा तमाचा है!—यिर्मयाह 1:19 पढ़िए।

(भजन 83:17, 18) ये सदा के लिये लज्जित और घबराए रहें, इनके मुँह काले हों, और इनका नाश हो जाए, 18 जिससे ये जानें कि केवल तू जिसका नाम यहोवा है, सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।

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आपकी ज़िंदगी में किस व्यक्‍ति की अहमियत सबसे ज़्यादा है?

शायद आपने यहोवा का नाम सबसे पहले तब देखा हो, जब किसी ने आपको बाइबल से भजन 83:18 दिखाया था। आप शायद इन शब्दों को पढ़कर हैरान हुए हों: “जिस से यह जानें कि केवल तू जिसका नाम यहोवा है, सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।” बेशक, बाद में आपने भी यही आयत दूसरों को दिखायी होगी ताकि वे हमारे प्यारे पिता यहोवा को जान सकें।—रोमि. 10:12, 13.

2 हालाँकि यहोवा का नाम जानना ज़रूरी है, लेकिन सिर्फ इतना काफी नहीं है। गौर कीजिए कि भजनहार ने हमारे उद्धार पाने के लिए एक और अहम सच्चाई पर ज़ोर दिया, जब उसने कहा: “केवल तू . . . सारी पृथ्वी के ऊपर परमप्रधान है।” जी हाँ, यहोवा ही इस विश्‍व में सबसे ज़्यादा अहमियत रखता है। सब चीज़ों का रचयिता होने के नाते, यह उम्मीद करना उसका हक है कि उसकी सारी सृष्टि पूरी तरह उसके अधीन रहे। (प्रका. 4:11) तो फिर हमें खुद से पूछना चाहिए, ‘मेरी ज़िंदगी में किस व्यक्‍ति की सबसे ज़्यादा अहमियत है?’ इसका हम जो भी जवाब देंगे, हमें उसे गंभीरता से जाँचने की ज़रूरत है।

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यहोवा से की गयी दिली प्रार्थना का जवाब

17 बेशक हम जानते हैं कि विरोधी हम पर ज़ुल्म ढाना बंद नहीं करेंगे। लेकिन जहाँ तक हमारी बात है, हम सभी को, यहाँ तक कि विरोधियों को भी सुसमाचार सुनाते रहेंगे। (मत्ती 24:14, 21) इन विरोधियों के सामने मौका खुला है कि वे पश्‍चाताप करें और उद्धार पाएँ। मगर यह मौका हमेशा खुला नहीं रहेगा। क्योंकि इंसानों के उद्धार से कहीं ज़्यादा ज़रूरी है कि यहोवा का नाम पवित्र किया जाए। (यहेजकेल 38:23 पढ़िए।) जब दुनिया के सारे राष्ट्र परमेश्‍वर के लोगों को मिटाने के लिए एकजुट होंगे, तो हम भजनहार की इस दुआ को याद करेंगे: “ये सदा के लिये लज्जित और घबराए रहें इनके मुंह काले हों, और इनका नाश हो जाए।”—भज. 83:17.

18 यहोवा की हुकूमत का ढिठाई से विरोध करनेवालों का शर्मनाक अंत होगा। परमेश्‍वर का वचन बताता है कि जो “सुसमाचार को नहीं मानते,” उन्हें हरमगिदोन में मार डाला जाएगा और इस तरह वे “अनन्त विनाश” का दंड पाएँगे। (2 थिस्स. 1:7-9) उनका नाश किया जाना और यहोवा के सच्चे उपासकों का बचाया जाना इस बात का पक्का सबूत होगा कि सिर्फ यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है। नयी दुनिया में यहोवा की शानदार जीत हमेशा याद की जाएगी। ‘धर्मियों और अधर्मियों के जी उठने’ पर वे भी यहोवा की इस फतह के बारे में सीखेंगे। (प्रेरि. 24:15) नयी दुनिया में वे इस बात के ठोस सबूत देख पाएँगे कि यहोवा की हुकूमत के अधीन रहना ही जीने का सबसे बेहतरीन तरीका है। और उनमें से नम्र लोगों को यह समझते देर नहीं लगेगी कि सिर्फ यहोवा ही सच्चा परमेश्‍वर है।

ढूँढ़े अनमोल रत्न

(भजन 79:9) हे हमारे उद्धारकर्त्ता परमेश्‍वर, अपने नाम की महिमा के निमित्त हमारी सहायता कर; और अपने नाम के निमित्त हम को छुड़ाकर हमारे पापों को ढाँप दे।

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भजन संहिता किताब के तीसरे और चौथे भाग की झलकियाँ

79:9. यहोवा हमारी प्रार्थनाएँ सुनता है, खासकर तब जब उनका ताल्लुक उसके नाम के पवित्र किए जाने से होता है।

(भजन 86:5) क्योंकि हे प्रभु, तू भला और क्षमा करनेवाला है, और जितने तुझे पुकारते हैं उन सभों के लिये तू अति करुणामय है।

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भजन संहिता किताब के तीसरे और चौथे भाग की झलकियाँ

86:5, NHT. हम यहोवा का कितना एहसान मान सकते हैं कि वह “क्षमा करने को तत्पर रहता है”! वह इंसान का मन टटोलता रहता है और अगर उसको कोई भी सबूत मिले कि फलाँ इंसान अपने पाप पर बहुत शर्मिंदा है, तो वह फौरन उसे दया दिखाता है।

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