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  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2016
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मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2016
mwbr16 सितंबर पेज 1

मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले

19-25 सितंबर

ढूँढ़े अनमोल रत्न

इंसाइट-1 पेज 783 पै 5

निर्गमन

इस तरह अपनी शक्‍ति का बहुत ही शानदार प्रदर्शन करके यहोवा ने अपना नाम ऊँचा किया और इसराएलियों को छुड़ाया। लाल सागर के पूर्वी किनारे पर आकर मूसा ने गाना गाया और उसके साथ-साथ इसराएली पुरुषों ने गाया। फिर मूसा की बहन मरियम ने हाथ में डफ लिया और सब स्त्रियाँ भी अपने-अपने डफ लेकर नाचती हुईं उसके पीछे हो लीं और पुरुषों के गाने के संग टेक लगाने लगीं। (निर्ग 15:1, 20, 21) जब वे मिस्र से निकले, तब कोई आदमी या जानवर उन्हें नुकसान नहीं पहुँचा सकता था, यहाँ तक कि कुत्ते भी उन पर गुर्रा नहीं सकते थे न ही अपनी जीभ हिला सकते थे। पर अब उनके दुश्‍मन पूरी तरह खत्म हो चुके थे। (निर्ग 11:7) हालाँकि निर्गमन की किताब में यह नहीं बताया गया है कि फिरौन अपनी सेना के साथ सागर में उतरा था और नाश हो गया, लेकिन भजन 136:15 में लिखा है कि यहोवा ने “फिरौन को सेना समेत लाल समुद्र में डाल दिया।”

26 सितंबर–2 अक्टूबर

ढूँढ़े अनमोल रत्न

इंसाइट-2 पेज 448

मुँह

परमेश्‍वर का बनाया शरीर का ऐसा अंग जिससे हर प्राणी खाना खाता है और इंसान इसका इस्तेमाल बोलने के लिए भी करते हैं। हम जो भी बोलते हैं, उससे परमेश्‍वर की महिमा होनी चाहिए। (भज 34:1; 51:15; 71:8; 145:21) भजन के लिखनेवाले ने कहा कि जो कोई साँस लेता है, वह यहोवा की महिमा करेगा, इसलिए इंसान अगर जीना चाहते हैं, तो उन्हें अपने मुँह का इस्तेमाल परमेश्‍वर की महिमा करने के लिए करना चाहिए। प्रेषित पौलुस ने कहा कि यहोवा और उसके बेटे पर सिर्फ दिल से विश्‍वास करना काफी नहीं है। अगर उद्धार पाना है, तो हमें सब लोगों के सामने अपने विश्‍वास का ऐलान करना होगा।—भज 150:6; रोम 10:10.

यहोवा, जो सब कुछ बनानेवाला है, अपने मकसद को पूरा करने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल ऐसे करता है कि हमारे मुँह से सही बातें कहलवा सकता है। अपनी शक्‍ति से चमत्कार करके उसने भविष्यवक्‍ताओं से भी यही करवाया। (निर्ग 4:11, 12, 15; यिर्म 1:9) एक बार तो उसने एक तुच्छ जानवर से यानी गधे से भी बुलवाया। (निर्ग 22:28, 30; 2पत 2:15, 16) आज भी यहोवा के सेवक उसकी बातें अपने मुँह से बोल सकते हैं, लेकिन उसके चमत्कार से नहीं, बल्कि उसके प्रेरित लिखित वचन से, जो उन्हें हर अच्छे काम के लिए पूरी तरह तैयार करता है। (2ती 3:16, 17) अब उन्हें मसीह का इंतज़ार नहीं करना है कि वह खुद आकर खुशखबरी लोगों को बताए और न ही उन्हें किसी और के पास जाकर प्रचार के बारे में सीखना है। उनके पास परमेश्‍वर का वचन है। इससे वे लोगों को गवाही दे सकते हैं। उनसे कहा गया है ,“यह संदेश तेरे पास, तेरे ही मुँह में और तेरे ही दिल में है।”—रोम 10:6-9; व्य 30:11-14.

इससे मौत या जीवन मिल सकता है। इसका मतलब है कि मुँह का सही इस्तेमाल बहुत मायने रखता है और यह बात यहोवा भी कहता है। उसके वचन में लिखा है, “धर्मी का मुँह तो जीवन का सोता है।” (नीत 10:11) हमें ध्यान रखना चाहिए कि हम अपने मुँह का कैसे इस्तेमाल करते हैं। (भज 141:3; नीत 13:3; 21:23) अगर हम गलत तरीके से मुँह का इस्तेमाल करेंगे, तो इससे हमारा नुकसान हो सकता है। (नीत 10:14; 18:7) परमेश्‍वर एक व्यक्‍ति को उसकी बोली के लिए ज़िम्मेदार ठहराता है। (मत 12:36, 37) शायद एक व्यक्‍ति कभी जल्दबाज़ी में कोई मन्‍नत मान ले या फिर किसी की कुछ ज़्यादा ही तारीफ कर दे, तो ऐसे में सामने­वाला घमंडी हो सकता है और उसके साथ-साथ वह व्यक्‍ति खुद भी दोषी ठहर सकता है। (सभ 5:4-6; नीत 26:28) खासकर किसी दुष्ट के सामने अपने मुँह पर लगाम रखना ज़रूरी है क्योंकि अगर परमेश्‍वर के सेवक ने यहोवा की सोच को ध्यान में न रखकर अपनी मरज़ी से कुछ कहा, तो इससे यहोवा के नाम की बदनामी हो सकती है और उसकी अपनी मौत भी। (भज 39:1) यीशु ने कुड़कुड़ाए बिना परमेश्‍वर की आज्ञा मानने में अच्छी मिसाल रखी। उसने कभी अपने विरोधि­यों को बुरा-भला नहीं कहा।—यश 53:7; प्रेष 8:32; 1पत 2:23.

हर इंसान असिद्ध है इसलिए मसीहियों को हर वक्‍त अपने दिल पर ध्यान देना चाहिए और सोच-समझकर बोलना चाहिए। यीशु ने कहा कि जो मुँह में जाता है, उससे इंसान अशुद्ध नहीं होता, बल्कि जो मुँह से आता है उससे होता है, क्योंकि “जो दिल में भरा है वही मुँह पर आता है।” (मत 12:34; 15:11) इस वजह से एक व्यक्‍ति को बहुत ध्यान रखना चाहिए कि उसके मुँह से सोच-समझे बिना कोई बात न निकले। उसे सोचना चाहिए कि उसकी किसी बात का क्या नतीजा हो सकता है। इसके लिए ज़रूरी है कि एक व्यक्‍ति परमेश्‍वर के वचन से सीखी बातों को लागू करने के लिए अपनी समझ का इस्तेमाल करे।—नीत 13:3; 21:23.

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