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  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले

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  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
  • मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2020
  • उपशीर्षक
  • 6-12 जुलाई
  • 13-19 जुलाई
  • 20-26 जुलाई
  • 27 जुलाई–2 अगस्त
मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले—2020
mwbr20 जुलाई पेज 1-7

मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले

6-12 जुलाई

पाएँ बाइबल का खज़ाना | निर्गमन 6-7

“अब तू देखना मैं फिरौन का क्या करता हूँ”

इंसाइट-2 पेज 436 पै 3

मूसा

इसराएलियों की बात करें, तो शुरू-शुरू में उन्हें यकीन था कि मूसा परमेश्‍वर का भेजा हुआ है। लेकिन जब फिरौन उनसे और भी कड़ी मज़दूरी करवाने लगा, तो वे मूसा को दोष देने लगे। उनकी बातें सुनकर मूसा इस कदर निराश हो गया कि उसने यहोवा से फरियाद की। (निर्ग 4:29-31; 5:19-23) फिर परम-प्रधान परमेश्‍वर ने मूसा की हिम्मत बढ़ायी। उसने मूसा को बताया कि अब वह कुछ ऐसा करने जा रहा है, जिसकी आस अब्राहम, इसहाक और याकूब ने लगायी थी। यहोवा अपने नाम का मतलब मूसा पर पूरी तरह ज़ाहिर करता यानी इसराएलियों को गुलामी से छुड़ाता और वादा किए गए देश में उन्हें एक बड़ा राष्ट्र बनाता। (निर्ग 6:1-8) इसके बाद भी इसराएलियों ने मूसा का यकीन नहीं किया। लेकिन नौवें कहर के बाद उनमें एक बदलाव देखा गया। अब वे पूरी तरह मूसा का साथ देने लगे। इस वजह से दसवें कहर के बाद मूसा उन्हें आसानी से संगठित कर पाया और वे “सेना-दलों की तरह एक अच्छे इंतज़ाम के मुताबिक” मिस्र से निकल पाए।​—निर्ग 13:18.

इंसाइट-2 पेज 436 पै 1-2

मूसा

मिस्र के फिरौन के सामने। यह लड़ाई मिस्र के देवताओं और यहोवा के बीच थी। एक तरफ मूसा और हारून यहोवा की तरफ से इस लड़ाई में एक अहम भूमिका निभा रहे थे, तो दूसरी तरफ जादू-टोना करनेवाले पुजारियों के प्रधान यन्‍नेस और यम्ब्रेस थे। (2ती 3:8) फिरौन ने इन्हीं प्रधानों के ज़रिए मिस्र के सभी देवताओं को पुकारा कि वे यहोवा के खिलाफ अपनी ताकत दिखाएँ। मूसा के कहने पर हारून ने फिरौन के सामने जो पहला चमत्कार किया, उससे साबित हो गया कि यहोवा मिस्र के देवताओं से ज़्यादा शक्‍तिशाली है। लेकिन इससे फिरौन नहीं बदला, वह ढीठ-का-ढीठ ही रहा। (निर्ग 7:8-13) इसके कुछ समय बाद जब यहोवा तीसरा कहर लाया, तब पुजारियों को भी मानना पड़ा कि यह “परमेश्‍वर की शक्‍ति से हुआ है!” फिर जब यहोवा एक और कहर लाया और पुजारियों के शरीर पर फोड़े निकल आए, तो उनकी हालत इतनी खराब हो गयी कि वे फिरौन के सामने नहीं आ पाए और न ही उस कहर के दौरान मूसा का विरोध कर पाए।​—निर्ग 8:16-19; 9:10-12.

कहर से कुछ लोगों का दिल नरम हुआ, तो कुछ लोगों का कठोर।  मूसा और हारून ने हर कहर के आने से पहले उसका ऐलान किया। जैसा उन्होंने बताया वैसा ही हुआ। इससे यह साबित हुआ कि मूसा को यहोवा ने ही भेजा है। मिस्र में हर जगह यहोवा के नाम का ऐलान हो रहा था और उसके बारे में चर्चा हो रही थी। इससे यहोवा के नाम के प्रति लोगों में दो अलग-अलग रवैए देखे गए। इसराएली और कुछ मिस्रियों के दिल नरम हुए, तो वहीं दूसरी तरफ फिरौन, उसके सलाहकारों और उसका साथ देनेवालों के दिल और कठोर हो गए। (निर्ग 9:16; 11:10; 12:29-39) मिस्री यह अच्छी तरह जानते  थे कि उन पर ये कहर इसलिए नहीं आए कि उनके देवता उनसे नाराज़ थे बल्कि इसलिए कि यहोवा उनके देवताओं को सज़ा दे रहा था। नौवें कहर के बाद से ‘फिरौन के अधिकारी और मिस्री लोग मूसा का भी बहुत सम्मान करने लगे।’​—निर्ग 11:3.

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इंसाइट-1 पेज 78 पै 3-4

सर्वशक्‍तिमान

जब यहोवा ने अब्राहम से वादा किया कि उससे इसहाक पैदा होगा, तब यहोवा ने अपने लिए “सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर” (इब्रानी में एल शद्दाय) उपाधि इस्तेमाल की। इस वादे पर यकीन करने के लिए अब्राहम को पूरा विश्‍वास रखना था कि यहोवा अपना वादा पूरा करने की ताकत रखता है। इसके बाद जब यहोवा ने अब्राहम से किए करार की आशीषें उसके वारिस इसहाक और याकूब को दीं, तब भी उसने खुद को “सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर” कहा।​—उत 17:1; 28:3; 35:11; 48:3.

इसी बात को ध्यान में रखकर बाद में यहोवा ने मूसा से कहा, “मैं अब्राहम, इसहाक और याकूब के सामने प्रकट होता था और मैंने उन पर ज़ाहिर किया कि मैं सर्वशक्‍तिमान परमेश्‍वर हूँ [बी-एल शद्दाय]। मगर अपने नाम यहोवा से मैंने खुद को उन पर ज़ाहिर नहीं किया था।” (निर्ग 6:3) इसका यह मतलब नहीं कि ये कुलपिता यहोवा नाम से अनजान थे। उन्होंने और उनसे पहले जीनेवाले लोगों ने कई बार यहोवा का नाम लिया था। (उत 4:1, 26; 14:22; 27:27; 28:16) उत्पत्ति की किताब में कुलपिताओं की ज़िंदगी के बारे में बताया गया है। लेकिन देखा जाए तो मूल इब्रानी पाठ में इस किताब में शब्द “सर्वशक्‍तिमान” सिर्फ छ: बार आता है, जबकि यहोवा नाम 172 बार आता है। यह सच है कि कुलपिता यह जानते थे कि यहोवा ही “सर्वशक्‍तिमान” कहलाए जाने का हकदार है। लेकिन उन्होंने यह अनुभव नहीं किया था कि यहोवा नाम का सही मायनों में क्या मतलब है। इस बारे में संपादक जे. डी. डग्लस ने दी इलस्ट्रेटेड बाइबल डिक्शनरी  में एक दिलचस्प बात कही। उसने कहा कि परमेश्‍वर ने कुलपिताओं से भविष्य के बारे में कई वादे किए थे। सर्वशक्‍तिमान के तौर पर वह उन्हें पूरा करने की ताकत रखता है। जब उसने जलती हुई झाड़ी से मूसा से बात की, तो वह दूर भविष्य में होनेवाली कोई बात नहीं बता रहा था। याहवे नाम के मायने के मुताबिक वह मूसा को यकीन दिला रहा था कि वह अब से उसे ज़रूरी काबिलीयत और ताकत देगा और उसके साथ बना रहेगा।

इंसाइट-2 पेज 435 पै 5

मूसा

मूसा झिझक रहा था फिर भी यहोवा ने उसे नहीं ठुकराया।  चालीस साल पहले मूसा को भरोसा था कि वही इसराएल का छुड़ानेवाला बनेगा और इस मामले में उसने कुछ कदम भी उठाए। लेकिन अब वह कितना बदल गया था! वह खुद को इस ज़िम्मेदारी के काबिल नहीं समझ रहा था। उसने यह तक कहा कि वह साफ-साफ बोल नहीं पाता। मूसा और भी आनाकानी करने लगा और आखिर में उसने यहोवा से कहा कि वह यह काम किसी और को सौंप दे। हालाँकि यह सुनकर यहोवा भड़क उठा, फिर भी उसने मूसा को ठुकराया नहीं, बल्कि उसके भाई हारून को मूसा की तरफ से बोलने के लिए चुना। यहोवा ने मूसा को जो भी हिदायतें और आज्ञाएँ दी थीं, वे उसने हारून को बतायीं। आगे चलकर जब मूसा और हारून इसराएल के मुखियाओं से और फिरौन से मिले, (यह उसी फिरौन का वंशज था जिससे मूसा 40 साल पहले अपनी जान बचाकर भागा था) तो हारून ने वे सारी बातें उन्हें बतायीं। इस तरह मूसा हारून के लिए “परमेश्‍वर” जैसा बना। (निर्ग 2:23; 4:10-17) बाद में यहोवा ने हारून को मूसा का “भविष्यवक्‍ता” कहा। इसका मतलब था कि जैसे मूसा परमेश्‍वर का भविष्यवक्‍ता था और उसके निर्देशों के मुताबिक काम करता था, वैसे ही हारून को भी मूसा के निर्देशों के मुताबिक काम करना था। परमेश्‍वर ने यह भी कहा कि वह मूसा को “फिरौन के लिए परमेश्‍वर जैसा” बनाएगा यानी उसे परमेश्‍वर से शक्‍ति और फिरौन पर अधिकार मिलेगा। इस वजह से मूसा को मिस्र के राजा से डरने की ज़रूरत नहीं थी।​—निर्ग 7:1, 2.

13-19 जुलाई

पाएँ बाइबल का खज़ाना | निर्गमन 8-9

“घमंडी फिरौन ने अनजाने में परमेश्‍वर का मकसद पूरा किया”

इंसाइट-2 पेज 1040-1041

ढीठ

कई बार ऐसा हुआ है कि कुछ लोग और राष्ट्र मौत की सज़ा के लायक थे, लेकिन यहोवा ने सब्र रखा और उन्हें ज़िंदा रहने दिया। (उत 15:16; 2पत 3:9) कुछ लोगों ने यहोवा की दया पाने के लिए खुद को बदला। (यह 2:8-14; 6:22, 23; 9:3-15) लेकिन कुछ लोगों का दिल और कठोर हो गया और वे परमेश्‍वर और उसके लोगों का कड़ा विरोध करने लगे। (व्य 2:30-33; यह 11:19, 20) यहोवा ने इन लोगों को ढीठ बनने से नहीं रोका, इसलिए यह कहा जा सकता है कि उसने उन्हें “ढीठ ही रहने दिया” या ‘उनका दिल कठोर कर दिया।’ सही समय पर ढीठ लोगों का नाश करके यहोवा ज़ाहिर करता है कि उसके पास बहुत शक्‍ति है। साथ ही ऐसा करके वह अपने नाम का ऐलान करता है।​—निर्ग 4:21; यूह 12:40; रोम 9:14-18 से तुलना करें।

इंसाइट-2 पेज 1181 पै 3-5

दुष्टता

इसके अलावा यहोवा बुरे-से-बुरे हालात में भी कुछ ऐसा कर सकता है कि दुष्ट लोग अनजाने में ही उसका मकसद पूरा कर दें। हालाँकि दुष्ट लोग परमेश्‍वर का विरोध करते हैं, मगर यहोवा उन्हें यह छूट नहीं देता कि वे उसके वफादार सेवकों की जान ले लें। यहोवा उनके दुष्ट कामों से भी खुद को नेक साबित कर सकता है। (रोम 3:3-5, 23-26; 8:35-39; भज 76:10) यही बात नीतिवचन 16:4 में बतायी गयी है: “यहोवा हर काम इस तरह करता है कि उसका मकसद पूरा हो, उसने दुष्ट को भी विनाश के दिन के लिए इसीलिए रखा है।”

फिरौन को ही लीजिए। यहोवा ने मूसा और हारून के ज़रिए उससे कहा कि वह इसराएलियों को जाने दे, जो मिस्र में गुलाम थे। परमेश्‍वर ने फिरौन को दुष्ट नहीं बनाया था, लेकिन उसने फिरौन को ज़िंदा रहने दिया और हालात का रुख इस तरह मोड़ा कि यह ज़ाहिर हो गया कि वह दुष्ट है और मौत की सज़ा के लायक है। निर्गमन 9:16 से हम समझ सकते हैं कि यहोवा ने ऐसा क्यों किया। वहाँ लिखा है, “मैंने तुझे इसलिए ज़िंदा रहने दिया है ताकि तुझे अपनी शक्‍ति दिखा सकूँ और पूरी धरती पर अपने नाम का ऐलान करा सकूँ।”

मिस्र में दस कहर आए। फिर यहोवा ने लाल सागर में फिरौन और उसकी सेना का नाश कर दिया। यह यहोवा की शक्‍ति का ज़बरदस्त सबूत था। (निर्ग 7:14–12:30; भज 78:43-51; 136:15) इस घटना के सालों बाद भी मिस्र के आस-पास के राष्ट्रों में यह चर्चा होती रही कि यहोवा ने किस तरह अपने लोगों को बचाया। इस तरह पूरी धरती पर यहोवा के नाम का ऐलान हुआ। (यह 2:10, 11; 1शम 4:8) अगर यहोवा ने पहले ही फिरौन को खत्म कर दिया होता, तो उसकी ताकत इतने शानदार तरीके से ज़ाहिर नहीं होती। साथ-ही-साथ उसके नाम की इस तरह महिमा नहीं होती और उसके लोग इतने लाजवाब तरीके से छुड़ाए नहीं जाते।

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इंसाइट-1 पेज 878

खून चूसनेवाली मक्खी

मिस्र में जो चौथा कहर आया, उसमें मक्खियों का हमला हुआ (चौथा कहर और इसके बाद आए सभी कहर गोशेन में रहनेवाले इसराएलियों पर नहीं आए)। इन मक्खियों के लिए मूल पाठ में जिस इब्रानी शब्द का इस्तेमाल किया गया है, वह है एरव। लेकिन यह मक्खी कौन-सी थी, इस बारे में साफ तौर पर नहीं कहा जा सकता। (निर्ग 8:21, 22, 24, 29, 31; भज 78:45; 105:31) शब्द एरव का अनुवाद “खून चूसनेवाली मक्खियाँ” (नयी दुनिया अनुवाद) और कुछ बाइबल अनुवादों में डांस (हिंदी​—आर.ओ.वी.; हिंदी​—कॉमन लैंग्वेज) किया गया है।

हो सकता है कि ये खून चूसनेवाली मक्खियाँ एक तरह की घुड़मक्खी या फिर गोमक्खी रही हों। मादा घुड़मक्खी जानवरों और इंसानों को डंक मारती है, फिर उनका खून चूसती है। वहीं गोमक्खी का लार्वा जानवरों और इंसानों के शरीर में परजीवी की तरह रहने लगता है। गरम और उमसवाले इलाकों में पायी जानेवाली गोमक्खियाँ अकसर इंसानों को परेशान करती हैं। इससे हम समझ सकते हैं कि जब मिस्रियों और उनके जानवरों पर इन खून चूसनेवाली मक्खियों ने हमला किया होगा, तो उन्हें कितनी तकलीफ हुई होगी और कुछ लोगों की मौत भी हो गयी होगी।

प्र04 3/15 पेज 25 पै 9

निर्गमन किताब की झलकियाँ

8:26, 27—मूसा ने क्यों कहा कि इस्राएलियों के बलिदान “मिस्रियों के लिए घृणित” (NHT) होंगे? मिस्र में कई जानवरों को पूजा जाता था, इसलिए उन्हें जानवरों की बलि से सख्त नफरत थी। जब मूसा ने यहोवा की उपासना करने के लिए इस्राएलियों को छोड़ने की इजाज़त माँगी, तो बलिदानों का ज़िक्र करने से उसे अपना निवेदन जायज़ ठहराने का ठोस कारण मिला।

20-26 जुलाई

पाएँ बाइबल का खज़ाना | निर्गमन 10-11

“मूसा और हारून ने हिम्मत से काम लिया”

प्र09 7/15 पेज 20 पै 6

यीशु की तरह हिम्मत से प्रचार कीजिए

6 ज़रा सोचिए कि फिरौन से बात करने के लिए मूसा को कितनी हिम्मत जुटानी पड़ी होगी। क्यों? क्योंकि मिस्र के राजाओं को न सिर्फ देवताओं का प्रतिनिधि बल्कि साक्षात्‌ देवता माना जाता था। उन्हें सूर्य देवता रा का बेटा समझा जाता था। हो सकता है दूसरे राजाओं की तरह यह फिरौन भी अपनी मूर्ति की पूजा करता हो। फिरौन का हुक्म पत्थर की लकीर होता था, उसे कोई नहीं बदल सकता था। उसे दूसरों की सुनने की आदत नहीं थी। इसी ताकतवर, घमंडी और ढीठ इंसान के आगे मूसा को बार-बार आना था, जबकि फिरौन को उसका बिन-बुलाए आना बिलकुल पसंद नहीं था। मूसा ने उसे क्या संदेश सुनाया? यही कि मिस्र पर विनाशकारी विपत्तियाँ आएँगी। और मूसा ने फिरौन से क्या माँग की? यही कि फिरौन अपने लाखों इसराएली गुलामों को देश छोड़कर जाने की इजाज़त दे। क्या इस काम के लिए मूसा को हिम्मत की ज़रूरत थी? बिलकुल थी।​—गिन. 12:3; इब्रा. 11:27.

इंसाइट-2 पेज 436 पै 4

मूसा

फिरौन के सामने जाने के लिए हिम्मत और विश्‍वास की ज़रूरत थी।  मूसा और हारून यहोवा की ताकत से ही फिरौन के सामने जा सके। उन पर यहोवा की पवित्र शक्‍ति काम कर रही थी। ज़रा इस दृश्‍य की कल्पना कीजिए। उस वक्‍त की सबसे ताकतवर विश्‍व शक्‍ति मिस्र का राजा फिरौन अपने दरबार में बैठा है। उसकी शान देखते ही बनती है। है। घमंडी फिरौन खुद को देवता मानता है। उसके आस-पास सलाहकार, सेनापति, पहरेदार और गुलाम खड़े हैं। इसके अलावा वहाँ के जादू-टोना करनेवाले पुजारी भी हैं, जो मूसा के खिलाफ हैं। इन सबका मिस्र में बहुत दबदबा है और वे मानते हैं कि फिरौन का साथ देकर वे दरअसल मिस्र के देवी-देवताओं की भक्‍ति कर रहे हैं। मूसा और हारून फिरौन के सामने एक बार नहीं, बल्कि कई बार आ चुके हैं। लेकिन फिरौन टस-से-मस नहीं हुआ, उसने अपना दिल कठोर कर लिया है। वह चाहता है कि इसराएली उसके गुलाम बने रहें। जब मूसा और हारून फिरौन को आठवें कहर के बारे में बताते हैं, तो उन्हें दरबार से भगा दिया जाता है। नौवें कहर के बाद फिरौन उन्हें खबरदार करता है कि वे फिर कभी उसके सामने आने की जुर्रत न करें, नहीं तो वे अपनी जान से हाथ धो बैठेंगे।​—निर्ग 10:11, 28.

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

प्र95 9/1 पेज 11 पै 11

झूठे ईश्‍वरों के विरुद्ध साक्षी

जब इसराएली मिस्र में ही थे, यहोवा ने मूसा को फिरौन के पास भेजा और कहा: “तू फिरौन के सामने जा। देख, फिरौन और उसके अधिकारियों के दिल पर कोई असर नहीं हुआ है, वे अब भी ढीठ बने हुए हैं। और मैंने उन्हें ढीठ ही रहने दिया है ताकि मैं फिरौन के सामने अपने चिन्ह दिखा सकूँ, और तुम अपने बेटों और पोतों को यह दास्तान सुना सको कि मैं मिस्र पर कैसी-कैसी मुसीबतें लाया और मैंने क्या-क्या चिन्ह दिखाए। इससे तुम बेशक जान जाओगे कि मैं यहोवा हूँ।” (निर्गमन 10:1, 2) आज्ञाकारी इसराएली अपने बच्चों को यहोवा के शक्‍तिशाली कामों के बारे में बताते। आगे चलकर उनके बच्चे उन कामों के बारे में अपने बच्चों को बताते, और इसी प्रकार यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलता रहता। इस प्रकार, यहोवा के शक्‍तिशाली कामों को याद रखा जाता। उसी तरह आज भी, माता-पिताओं की ज़िम्मेदारी है कि अपने बच्चों को साक्षी दें।​—व्यवस्थाविवरण 6:4-7; नीतिवचन 22:6.

इंसाइट-1 पेज 783 पै 5

इसराएलियों का मिस्र से निकलना

यहोवा ने शानदार तरीके से इसराएलियों को छुड़ाया और जीत हासिल की। इस तरह उसने अपने नाम की महिमा की। जब इसराएली लाल सागर के उस पार पहुँच गए, तो मूसा ने इसराएलियों के साथ गीत गाया। तब उसकी बहन मिरयम, जो एक भविष्यवक्‍तिन थी, बाकी औरतों के साथ डफली बजाने लगी और नाचने लगी। (निर्ग 15:1, 20, 21) इसराएलियों को अब अपने दुश्‍मनों से आज़ादी मिल गयी थी। जब वे मिस्र से बाहर निकल रहे थे, तब उन पर एक कुत्ता भी नहीं भौंका। न कोई आदमी और न ही कोई जानवर उन्हें नुकसान पहुँचा सकता था। (निर्ग 11:7) निर्गमन की किताब में इस बात का कहीं भी ज़िक्र नहीं मिलता कि फिरौन अपनी सेना के साथ लाल सागर में मारा गया। लेकिन भजन 136:15 में साफ-साफ लिखा है कि “फिरौन और उसकी सेना को लाल सागर में झटक दिया” गया।

27 जुलाई–2 अगस्त

पाएँ बाइबल का खज़ाना | निर्गमन 12

“फसह से मसीही क्या सीख सकते हैं?”

प्र07 1/1 पेज 22 पै 4

‘तू आनन्द ही करना’

4 यीशु की मौत सा.यु. 33 के निसान 14 को हुई थी। इस्राएल में, हर साल निसान 14 को फसह का पर्व मनाया जाता था। यह बहुत ही खुशी का दिन होता था। इस दिन इस्राएली अपने-अपने परिवार के साथ इकट्ठा भोजन करते थे। भोजन के लिए, एक मेम्ना पकाया जाता था जिसमें कोई दोष नहीं होता था। इस तरह, वे याद करते थे कि सा.यु.पू. 1513 के निसान 14 को इस्राएल के पहिलौठों को बचाने में मेम्ने के लहू की कितनी खास भूमिका थी; वहीं दूसरी तरफ मौत के फरिश्‍ते ने मिस्र के सभी पहिलौठों को मौत के घाट उतारा था। (निर्गमन 12:1-14) फसह का मेम्ना, यीशु को दर्शाता था। इस बारे में प्रेरित पौलुस ने कहा: “हमारा . . . फसह जो मसीह है, बलिदान हुआ है।” (1 कुरिन्थियों 5:7) फसह के मेम्ने के लहू की तरह, यीशु का बहाया गया लहू भी कई लोगों को उद्धार दिलाता है।​—यूहन्‍ना 3:16, 36.

इंसाइट-2 पेज 583 पै 6

फसह

फसह के त्योहार में और यीशु के बलिदान में कई समानताएँ हैं। उदाहरण के लिए, अगर मिस्र में एक घराना अपने दरवाज़े पर खून छिड़कता, तो जब स्वर्गदूत वहाँ से गुज़रता तो उस घराने के पहलौठे की जान बच जाती। पहली सदी में भी पौलुस ने अभिषिक्‍त मसीहियों को पहलौठों की मंडली कहा, जिन्हें मसीह के खून के ज़रिए बचाया गया है। (इफ 1:7; 1थि 1:10; इब्र 12:23) इसके अलावा फसह के मेम्ने की एक भी हड्डी नहीं तोड़ी जानी थी। उसी तरह यह भविष्यवाणी की गयी थी कि यीशु की भी एक भी हड्डी नहीं तोड़ी जाएगी। यह भविष्यवाणी उसकी मौत पर पूरी हुई। (भज 34:20; यूह 19:36) यहूदी सदियों से फसह का जो त्योहार मनाते आए थे, वह कानून की उन बातों में से एक था जो आनेवाली बातों की छाया थीं और जो ‘परमेश्‍वर के मेम्ने’ यानी यीशु मसीह पर पूरी होतीं।​—इब्र 10:1; यूह 1:29.

प्र13 12/15 पेज 20 पै 13-14

‘वह दिन तुम को स्मरण दिलानेवाला ठहरे’

13 पीढ़ी-दर-पीढ़ी, इसराएली अपने बच्चों को फसह के बारे में ज़रूरी सबक सिखाते रहे। उनमें से एक सबक यह था कि यहोवा अपने उपासकों की हिफाज़त कर सकता है। इससे बच्चों ने सीखा कि यहोवा एक सच्चा और जीवित परमेश्‍वर है, जो अपने सेवकों में दिलचस्पी लेता है और उनकी खातिर कदम उठाता है। यह उसने तब साबित किया जब उसने मिस्र पर लायी दसवीं विपत्ति से इसराएलियों के पहलौठों की रक्षा की।

14 आज के ज़माने में, मसीही माता-पिता हर साल अपने बच्चों को फसह की कहानी नहीं सुनाते। लेकिन क्या आप यहूदी माता-पिताओं की तरह अपने बच्चों को यह सबक सिखाते हैं कि यहोवा अपने लोगों की हिफाज़त करता है? क्या आपके बच्चे यह साफ देख सकते हैं कि आपको पूरा यकीन है कि यहोवा आज भी हमारी हिफाज़त कर रहा है? (भज. 27:11; यशा. 12:2) यह सबक सिखाने के लिए क्या आप उन्हें एक लंबा-चौड़ा भाषण देते हैं, या उनके साथ इस विषय पर मज़ेदार चर्चा करते हैं? अपने परिवार के साथ इस सबक पर चर्चा करने की पूरी कोशिश कीजिए, क्योंकि ऐसा करने से यहोवा पर आपके परिवार का भरोसा और भी बढ़ेगा।

ढूँढ़ें अनमोल रत्न

इंसाइट-2 पेज 582 पै 2

फसह

मिस्र पर आए दस कहर वहाँ के देवी-देवताओं के मुँह पर एक ज़ोरदार तमाचा था, खासकर दसवाँ कहर जिसमें पहलौठे मारे गए थे। (निर्ग 12:12) यह इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि मेढ़ा मिस्री देवता रा के भक्‍तों की नज़रों में पवित्र जानवर था। इस वजह से जब फसह के मेम्ने का खून दरवाज़ों की बाज़ुओं पर छिड़का गया होगा, तो यह मिस्रियों की नज़र में उनके देवता रा का अपमान था। उसी तरह मिस्री लोग बैल को भी पवित्र मानते थे। इस वजह से जब बैलों के पहलौठे मारे गए, तो मिस्री देवता ओसिरिस की बेइज़्ज़ती हुई होगी। कहा जाता था कि खुद फिरौन भी रा देवता का बेटा है और वहाँ के लोग उसे पूजते थे। इसलिए जब फिरौन के पहलौठे बेटे की मौत हुई, तो यह साफ हो गया कि फिरौन और रा कितने लाचार हैं।

इंसाइट-1 पेज 504 पै 1

पवित्र सभा

‘पवित्र सभाओं’ की खासियत थी कि उस दौरान लोगों को कड़ी मेहनतवाला कोई काम नहीं करना था। उदाहरण के लिए, बिन-खमीर की रोटियों के त्योहार के पहले और सातवें दिन ‘पवित्र सभाएँ’ रखी जाती थीं। यहोवा ने कहा था, “इन दिनों में कोई भी काम न किया जाए। सिर्फ हरेक की ज़रूरत के मुताबिक खाना तैयार किया जा सकता है, इसके अलावा कोई और काम नहीं किया जा सकता।” (निर्ग 12:15, 16) इन ‘पवित्र सभाओं’ के दौरान याजक यहोवा को बलिदान चढ़ाने में व्यस्त रहते थे। (लैव 23:37, 38) लेकिन इसका यह मतलब बिलकुल नहीं था कि वे यहोवा की उस आज्ञा के खिलाफ जा रहे थे, जो उन्हें काम न करने के बारे में दी गयी थी। इस आज्ञा का यह मतलब भी नहीं था कि इन मौकों पर लोग यूँ ही खाली बैठे रहें बल्कि उन्हें इस समय का अच्छा इस्तेमाल करना था। हर हफ्ते सब्त के दिन लोग साथ मिलकर सीखते और उपासना करते थे। उन्हें परमेश्‍वर का वचन पढ़कर सुनाया जाता था और उसके मतलब पर गहराई से चर्चा की जाती थी। आगे चलकर, सभा-घरों में भी इसी तरीके से सिखाया जाने लगा। (प्रेष 15:21) इन बातों से साफ पता चलता है कि सब्त के दिन या ‘पवित्र सभाओं’ के दौरान लोगों को अपने कामों पर ज़्यादा ध्यान नहीं लगाना था। इसके बजाय उन्हें अपना समय प्रार्थना करने, परमेश्‍वर को करीब से जानने और उसके मकसदों के बारे में गहराई से सोचने में लगाना था।

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