मसीही ज़िंदगी और सेवा सभा पुस्तिका के लिए हवाले
© 2023 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
1-7 जनवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 32-33
चिंताओं में डूबे भाई-बहनों को दिलासा दीजिए
इंसाइट-1 पेज 710
एलीहू
एलीहू ने किसी की तरफदारी नहीं की, ना ही किसी की झूठी तारीफ की। उसने कहा कि वह भी अय्यूब की तरह मिट्टी का बना है और उनका बनानेवाला सर्वशक्तिमान परमेश्वर है। एलीहू अय्यूब को डराना नहीं चाहता था बल्कि एक दोस्त के नाते उसकी मदद करना चाहता था। उसने अय्यूब का नाम लेकर उससे बात की, जबकि एलीपज, बिलदद और सोपर ने ऐसा नहीं किया।—अय 32:21, 22; 33:1, 6.
क्या आप इंसानों की कमज़ोरियों को यहोवा की नज़र से देखते हैं?
8 क्या बात हमारी मदद करेगी कि हम अपने उन भाइयों को हमदर्दी दिखाएँ, जिन्हें मदद की ज़रूरत है? याद रखिए कि उनमें से बहुत-से भाई-बहन तकलीफ में हैं क्योंकि वे किसी बीमारी या निराशा से जूझ रहे हैं, या फिर इसलिए कि उनके परिवार के कुछ सदस्य सच्चाई में नहीं हैं। अगर हम उनकी जगह होते, तो हम भी यही चाहते कि दूसरे हमसे हमदर्दी जताएँ। ज़रा इसराएलियों के बारे में सोचिए। उन्होंने मिस्र में बहुत-सी तकलीफें झेली थीं, लेकिन उनके वादा किए गए देश में कदम रखने से पहले, यहोवा ने उन्हें याद दिलाया था कि उन्हें “अपना हृदय कठोर” नहीं करना है। यहोवा चाहता था कि इसराएली अपने गरीब और कमज़ोर भाइयों की मदद करें।—व्यव. 15:7, 11; लैव्य. 25:35-38.
9 हमें अपने भाइयों पर उनकी समस्याओं की वजह से दोष नहीं लगाना चाहिए, न ही ऐसा सोचना चाहिए कि हम उनसे बेहतर हैं। जब हमारे भाई कमज़ोर महसूस करते हैं, तब हमें उनकी मदद करनी चाहिए। (अय्यू. 33:6, 7; मत्ती 7:1) मिसाल के लिए, कल्पना कीजिए कि एक दुर्घटना में कोई ज़ख्मी हो जाता है और उसे फौरन अस्पताल ले जाया जाता है। जब वह वहाँ पहुँचता है, तो क्या डॉक्टर और नर्स यह चर्चा करने में समय बरबाद करेंगे कि इस दुर्घटना के लिए कौन ज़िम्मेदार है? बिलकुल नहीं। इसके बजाय, वे फौरन उसका इलाज करेंगे। हमारे साथ भी ऐसा ही है। जब हमारा कोई भाई कमज़ोर हो, तो उस वक्त उसे जिस चीज़ की सबसे ज़्यादा ज़रूरत होती है, वह है आध्यात्मिक मदद।—1 थिस्सलुनीकियों 5:14 पढ़िए।
10 कुछ भाई-बहनों को देखकर लग सकता है कि वे कमज़ोर हैं। मगर एक पल के लिए अगर हम उनके हालात के बारे में सोचें, तो हो सकता है हम पाएँ कि वे बिलकुल भी कमज़ोर नहीं हैं। ज़रा कल्पना कीजिए कि उस बहन को कितनी मुश्किलें उठानी पड़ती होंगी, जिसका पति यहोवा की सेवा नहीं करता। और उस माँ के बारे में क्या, जो अकेले ही अपने बच्चों की परवरिश करने में कड़ी मेहनत करती है और फिर भी लगातार सभाओं में हाज़िर होती है? या स्कूल में पढ़नेवाले उन नौजवानों के बारे में सोचिए जो रोज़ सच्चाई से समझौता करने के दबाव का सामना करते हैं। ये सभी यहोवा से सच्चे दिल से प्यार करते हैं और उन्होंने ठान लिया है कि वे उसके वफादार बने रहेंगे। जब हम इस बारे में सोचते हैं कि हमारे भाई-बहन यहोवा की सेवा करने के लिए कितना कुछ कर रहे हैं, तो इससे हमें यह याद रखने में मदद मिलती है कि वे “विश्वास में धनी” हैं, फिर भले ही वे हमें कमज़ोर क्यों न नज़र आएँ।—याकू. 2:5.
हमें कब बोलना चाहिए और कब नहीं?
17 अय्यूब से मिलने जो आदमी आए थे, उनमें से चौथा आदमी एलीहू था। वह अब्राहम का एक रिश्तेदार था। जब अय्यूब और बाकी तीन आदमी बात कर रहे थे, तो वह उनकी बातें ध्यान से सुन रहा था। इसीलिए वह अय्यूब को अच्छी सलाह दे पाया। उसने अय्यूब से प्यार से बात की, पर साथ ही उसे साफ-साफ बताया कि उसकी सोच क्यों गलत है। इसलिए अय्यूब अपनी सोच सुधार पाया। (अय्यू. 33:1, 6, 17) एलीहू अपनी बातों से यहोवा की बड़ाई करना चाहता था, न कि अपनी या किसी इंसान की। (अय्यू. 32:21, 22; 37:23, 24) एलीहू से हम सीखते हैं कि चुप रहने और बोलने का एक समय होता है। (याकू. 1:19) हम यह भी सीखते हैं कि जब हम किसी को सुधार करने के लिए सलाह देते हैं, तो हमारी बातों से यहोवा की बड़ाई होनी चाहिए, न कि हमारी।
18 हमें कब बात करनी चाहिए और कैसी बातें करनी चाहिए, इस बारे में बाइबल में कितनी बढ़िया सलाह दी गयी है! अगर हम यहोवा के एहसानमंद हैं कि उसने हमें बोलने का वरदान दिया है, तो हम बाइबल की सलाह मानेंगे। बुद्धिमान राजा सुलैमान ने ईश्वर-प्रेरणा से लिखा, “जैसे चाँदी की नक्काशीदार टोकरी में सोने के सेब, वैसे ही सही वक्त पर कही गयी बात होती है।” (नीति. 25:11) जब कोई बात कर रहा होता है तब अगर हम ध्यान से सुनें और बोलने से पहले सोचें, तो हमारे बोल सोने के सेब जैसे होंगे जो सुंदर होने के साथ-साथ बहुत अनमोल होते हैं। फिर चाहे हम ज़्यादा बोलें या कम, हमारी बातों से दूसरों का हौसला बढ़ेगा और यहोवा खुश होगा। (नीति. 23:15; इफि. 4:29) यहोवा के दिए वरदान की कदर करने का यह कितना बढ़िया तरीका है!
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
यहोवा के करीब बने रहिए
10 उसी तरह, हालाँकि अपने रूप-रंग की देखभाल करना गलत नहीं है, मगर बढ़ती उम्र की हर निशानी मिटाने के लिए बहुत ज़्यादा जतन करना सही नहीं होगा। बढ़ती उम्र की निशानियाँ एक इंसान के तजुरबे, उसकी गरिमा और अंदरूनी खूबसूरती के बाहरी सबूत हैं। उदाहरण के लिए बाइबल कहती है, “पक्के बाल शोभायमान मुकुट ठहरते हैं; वे धर्म के मार्ग पर चलने से प्राप्त होते हैं।” (नीति. 16:31) बुढ़ापे को यहोवा इसी नज़र से देखता है और हमें भी यही नज़रिया अपनाना चाहिए। (1 पतरस 3:3, 4 पढ़िए।) तो फिर खुद को जवान और खूबसूरत दिखाने के लिए क्या ऐसे ऑपरेशन या इलाज करवाना सही होगा जो गैर-ज़रूरी हैं और खतरनाक साबित हो सकते हैं? “यहोवा का आनन्द” यानी उससे मिलनेवाली खुशी सही मायनों में हमें खूबसूरत बनाती है, फिर चाहे हमारी उम्र या सेहत जैसी भी हो। (नहे. 8:10) हर बीमारी से निजात पाना और अपनी जवानी और खूबसूरती दोबारा पाना, नयी दुनिया में ही मुमकिन होगा। (अय्यू. 33:25; यशा. 33:24) तब तक आइए हम सेहत के मामले में समझदारी से काम लें और यहोवा के वादों पर विश्वास बनाए रखें, ताकि आज भी हम खुशी-खुशी जी सकें और यहोवा के करीब बने रहें।—1 तीमु. 4:8.
8-14 जनवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 34-35
जब लगे कि अच्छे लोगों के साथ ही बुरा होता है
परमेश्वर में कौन-से गुण हैं?
परमेश्वर हमेशा वही करता है जो सही है। “ऐसा हो ही नहीं सकता कि सच्चा परमेश्वर दुष्ट काम करे, यह मुमकिन नहीं कि सर्वशक्तिमान बुरे काम करे।” (अय्यूब 34:10) उसके फैसले हमेशा सही होते हैं। यही बात बाइबल के एक लेखक ने भी कही थी, ‘तू बिना तरफदारी किए राष्ट्रों का न्याय करेगा।’ (भजन 67:4) यहोवा को कोई धोखा नहीं दे सकता, क्योंकि वह इंसान का ‘दिल देख सकता है।’ कोई अगर सिर्फ अच्छा होने का दिखावा करे, तो भी परमेश्वर भाँप सकता है। वह सब बातों को सही-सही परख सकता है। (1 शमूएल 16:7) इसके अलावा आज दुनिया में हो रही हर नाइंसाफी और धोखाधड़ी के बारे में वह जानता है। उसने वादा किया है कि वह बहुत जल्द ‘दुष्टों को धरती से मिटा देगा।’—नीतिवचन 2:22.
जब परमेश्वर का राज आएगा, तो क्या-क्या मिट जाएगा?
5 यहोवा क्या करेगा? फिलहाल यहोवा दुष्ट लोगों को मौका दे रहा है कि वे बदल जाएँ। (यशा. 55:7) हालाँकि इस दुनिया का नाश तय है लेकिन दुष्ट लोगों का अभी न्याय नहीं किया गया है। उन लोगों का क्या होगा जो महा-संकट के आने तक खुद को नहीं बदलेंगे और इस दुष्ट दुनिया का साथ देते रहेंगे? यहोवा ने वादा किया है कि वह सभी दुष्ट लोगों का नामो-निशान मिटा देगा। (भजन 37:10 पढ़िए।) आज कई लोग बड़ी चालाकी से अपने बुरे कामों को छिपाए रखते हैं और अकसर उन्हें कोई सज़ा नहीं मिलती। (अय्यू. 21:7, 9) लेकिन बाइबल बताती है, “परमेश्वर इंसान के चालचलन को देखता रहता है, उसके एक-एक कदम पर उसकी नज़र रहती है। ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ दुष्ट उससे छिप सके, अंधकार या घना साया भी उसे नहीं छिपा सकता।” (अय्यू. 34:21, 22) सच, यहोवा से कोई नहीं छिप सकता। दुष्ट लोग जो भी करते हैं वह उसे देखता है। हर-मगिदोन के बाद, हम दुष्टों को वहाँ ढूँढ़ेंगे जहाँ वे होते थे मगर वे नहीं होंगे। वे हमेशा के लिए मिटा दिए जाएँगे!—भज. 37:12-15.
क्या आप यीशु की वजह से ठोकर खाएँगे?
19 क्या आज भी लोग ऐसे हैं? हाँ हैं। कई लोगों को इस बात से शिकायत है कि साक्षी वोट नहीं करते। लेकिन साक्षी जानते हैं कि अगर वे किसी इंसान को चुनेंगे तो वे यहोवा को ठुकरा रहे होंगे। (1 शमू. 8:4-7) वे राजनैतिक मामलों में निष्पक्ष रहते हैं, इसलिए लोग उनकी नहीं सुनते। इसके अलावा, लोगों को लगता है कि साक्षियों को स्कूल-अस्पताल बनाने चाहिए, समाज सेवा करनी चाहिए। लेकिन जब साक्षी, लोगों की समस्याएँ हल करने के बजाय प्रचार में लगे रहते हैं, तो वे उनका संदेश नहीं सुनते।
20 आप क्या कर सकते हैं, ताकि आप ठोकर न खाएँ? (मत्ती 7:21-23 पढ़िए।) यीशु ने अपने चेलों को बहुत ज़रूरी काम सौंपा है और वह है, प्रचार काम। (मत्ती 28:19, 20) वे अपना पूरा ध्यान इस काम में लगाते हैं, न कि दुनिया की समस्याओं का हल करने में। हालाँकि उन्हें लोगों से प्यार है और उनकी तकलीफें देखकर उन्हें दुख होता है, लेकिन वे जानते हैं कि सिर्फ परमेश्वर का राज ही लोगों की तकलीफें दूर कर सकता है। इसलिए वे उन्हें परमेश्वर और उसके राज के बारे में सिखाते हैं।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
यहोवा की सेवा के लिए आगे आइए कि उसकी बड़ाई हो
3 एलीहू नाम का एक जवान आदमी, अय्यूब और उन तीन आदमियों के बीच हो रही बातचीत सुन रहा था। जब उनकी बातें खत्म हुईं तब एलीहू ने यहोवा के बारे में अय्यूब से पूछा, “अगर तू अच्छे काम करे, तो उसका क्या भला होगा? तेरे कामों से उसे क्या मिलेगा?” (अय्यू. 35:7) क्या एलीहू भी यही कहना चाह रहा था कि यहोवा की सेवा में हमारी मेहनत बेकार है? नहीं। यहोवा ने एलीहू को नहीं फटकारा जिस तरह उसने दूसरे आदमियों को फटकारा था। दरअसल एलीहू कुछ और ही बात समझाने की कोशिश कर रहा था। वह यह कि यहोवा के लिए ज़रूरी नहीं कि कोई उसकी उपासना करे। वह अपने आप में पूरा है, वह किसी पर निर्भर नहीं। हम परमेश्वर को कुछ देकर उसे दौलतमंद या शक्तिशाली नहीं बना सकते। दरअसल हमारे अंदर जो भी गुण या काबिलीयतें हैं, वे सब हमें यहोवा से मिली हैं और वह इस बात पर ध्यान देता है कि हम इन्हें कैसे इस्तेमाल करते हैं।
15-21 जनवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 36-37
हमेशा की ज़िंदगी देने के परमेश्वर के वादे पर हम क्यों भरोसा रख सकते हैं?
क्या ईश्वर को जानना मुमकिन है?
ईश्वर हमेशा से है और हमेशा तक रहेगा: पवित्र शास्त्र में लिखा है कि ईश्वर “अनादिकाल से अनन्तकाल” तक रहेगा। (भजन 90:2) दूसरे शब्दों में कहें, तो ईश्वर की न तो कोई शुरूआत थी और न ही उसका कभी अंत होगा। इसलिए इंसानों के नज़रिए से देखें तो परमेश्वर की उम्र का हिसाब लगाना नामुमकिन है।—अय्यूब 36:26.
इससे आपको क्या फायदा होगा: ईश्वर वादा करता है कि अगर हम उसे जानें, तो वह हमें हमेशा की ज़िंदगी देगा। (यूहन्ना 17:3) अगर खुद ईश्वर हमेशा के लिए नहीं रहेगा, तो क्या हमें हमेशा की ज़िंदगी देने का उसका वादा कोई मायने रखता है? ज़ाहिर है कि ‘युग-युग का राजा’ ही इस वादे को पूरा कर सकता है।—1 तीमुथियुस 1:17.
क्या आप परमेश्वर के दिए तोहफों के लिए एहसानमंद हैं?
6 आइए अब हम पानी की बात करें। हमारी पृथ्वी सूरज से बिलकुल सही दूरी पर है। अगर यह सूरज के ज़रा भी नज़दीक होती, तो सारा पानी भाप बनकर उड़ जाता और पृथ्वी एक बड़ी-सी तपती हुई चट्टान बनकर रह जाती। और अगर पृथ्वी सूरज से ज़रा भी दूर होती, तो नदियों और समुंदर का सारा पानी बर्फ का एक बड़ा-सा गोला बन जाता। दोनों ही सूरत में धरती पर कोई जीव ज़िंदा नहीं रह पाता। यहोवा ने पृथ्वी को बिलकुल सही जगह पर रखा है, इसलिए जल-चक्र सही तरह से चलता रहता है और सभी जीवों को भरपूर पानी मिलता है। सूरज की गरमी से समुंदरों का पानी भाप बनकर उड़ जाता है और इससे बादल बन जाते हैं। धरती के सभी तालाबों में जितना पानी है, उससे ज़्यादा पानी हर साल भाप बनकर उड़ जाता है। यह पानी वायुमंडल में करीब दस दिन तक रहता है और फिर बारिश या बर्फ बनकर गिर जाता है। यह पानी बाद में बहकर वापस नदियों और समुंदरों में जा मिलता है। इसके बाद फिर से वही चक्र शुरू हो जाता है। जल-चक्र वाकई कमाल का है। यहोवा ने इसकी रचना इस तरह की है जिससे पृथ्वी पर पानी कभी खत्म नहीं होता। इससे साबित होता है कि यहोवा कितना बुद्धिमान और शक्तिशाली है।—अय्यू. 36:27, 28; सभो. 1:7.
अपनी आशा पक्की करते रहिए!
16 यहोवा ने हमें कितनी बढ़िया आशा दी है कि हम हमेशा तक जी सकते हैं। हमें उस वक्त का बेसब्री से इंतज़ार है जब यह पूरी होगी और हमें यकीन है कि ऐसा ज़रूर होगा। हमारी आशा एक लंगर की तरह है और तूफान जैसी मुश्किलों में हमें सँभाले रहती है। आशा होने की वजह से हम हर ज़ुल्म सह पाते हैं और यहोवा के वफादार रह पाते हैं, फिर चाहे हमारी जान पर ही क्यों ना बन आए। हमारी आशा एक टोप की तरह भी है और हमारी सोच की हिफाज़त करती है। इससे हम गलत बातों के बारे में सोचने के बजाय अच्छी बातों पर अपना ध्यान लगा पाते हैं। अपनी आशा की वजह से हम यहोवा के और करीब आ पाते हैं और हमें यकीन हो जाता है कि वह हमसे बहुत प्यार करता है। सच में, अपनी आशा को और पक्का करने से हमें कितने फायदे होते हैं।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-1 पेज 492
बातचीत
पुराने ज़माने में बाइबल में बतायी जगहों पर खबरें और जानकारी कई तरीकों से पहुँचायी जाती थी। जैसे, लोगों को अपने इलाके और दूसरी जगहों की खबरें किसी के ज़रिए मिलती थीं। कोई उन्हें बताता था या संदेश भेजता था। (2शम 3:17, 19; अय 37:20) लोगों को मुसाफिरों से भी खबरें मिलती थीं। मुसाफिर अकसर कारवाँ बनाकर चलते थे और जब वे खाना या दूसरा सामान खरीदने के लिए कहीं रुकते थे, तो लोगों को दूर-दूर की खबरें भी देते थे। मुसाफिरों के कारवाँ कई बार पैलिस्टाइन से गुज़रते थे क्योंकि यह एशिया, अफ्रीका और यूरोप के बीचों-बीच था। इसलिए यहाँ के लोगों को दूर देशों की बड़ी-बड़ी घटनाओं की खबरें आसानी से मिल जाती थीं। और शहर के बाज़ारों में भी लोगों को अपने देश और दूसरों देशों की खबरें मिलती थीं।
22-28 जनवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 38-39
क्या आप सृष्टि निहारने के लिए वक्त निकालते हैं?
क्या आप यहोवा के वक्त का इंतज़ार करेंगे?
7 बाइबल बताती है कि उसने ‘पृथ्वी की नाप तय की,’ ‘पाये बिठाए’ और ‘कोने का पत्थर रखा।’ (अय्यू. 38:5, 6) उसने वक्त निकालकर अपने काम भी देखे। (उत्प. 1:10, 12) ज़रा सोचिए कि जब यहोवा एक-एक करके सब बना रहा था, तो स्वर्गदूतों को कैसा लगा होगा। वे खुशी से “जयजयकार” करने लगे। (अय्यू. 38:7) इससे हम यहोवा के बारे में क्या सीखते हैं? धरती, सूरज, चाँद, सितारे और हर जीवित प्राणी को बनाने में यहोवा को हज़ारों साल लगे। लेकिन इतना वक्त देना फायदेमंद रहा क्योंकि इन सबको बनाने के बाद जब यहोवा ने इन्हें देखा, तो उसने कहा, “सबकुछ बहुत बढ़िया” है।—उत्प. 1:31.
एक अनोखी आशा—यहोवा के प्यार, बुद्धि और सब्र का सबूत
2 उसने सबसे पहले अपने बेटे यीशु को बनाया। फिर उसने यीशु के साथ मिलकर “बाकी सब चीज़ें” बनायीं। (कुलु. 1:16) उसने लाखों स्वर्गदूत बनाए और आकाश और धरती की सृष्टि की। यीशु को अपने पिता के साथ काम करके बहुत खुशी हुई। (नीति. 8:30) स्वर्गदूत भी यह देखकर बहुत खुश हुए कि यहोवा और उसका कुशल कारीगर यीशु कैसे आकाश और धरती की एक-एक चीज़ बना रहे हैं। वे मारे खुशी के “जयजयकार” करने लगे। आखिर में जब धरती की सबसे लाजवाब सृष्टि इंसान को बनाया गया, तब भी उन्होंने ज़रूर जयजयकार की होगी। (अय्यू. 38:7; नीति. 8:31) यहोवा की एक-एक रचना से साफ दिख रहा था कि उसमें कितना प्यार है और वह कितना बुद्धिमान है।—भज. 104:24; रोमि. 1:20.
सृष्टि निहारें, यहोवा को जानें!
8 यहोवा पर हम पूरा भरोसा कर सकते हैं। यहोवा ने अय्यूब को ऐसी कई बातें बतायीं जिससे वह उस पर और भी भरोसा कर पाया। (अय्यू. 32:2; 40:6-8) यहोवा ने उसे सृष्टि की कई चीज़ों के बारे में बताया, जैसे तारों के बारे में, बादलों के बारे में और बिजली के बारे में। यहोवा ने उससे कई जानवरों के बारे में भी बात की, जैसे जंगली साँड़ और घोड़े के बारे में। (अय्यू. 38:32-35; 39:9, 19, 20) इन सब बातों के बारे में सोचने से अय्यूब समझ पाया कि यहोवा ना सिर्फ ताकतवर है, बल्कि बहुत बुद्धिमान भी है और हमसे बहुत प्यार करता है। इस तरह अय्यूब यहोवा पर और भी भरोसा करने लगा। (अय्यू. 42:1-6) आज जब हम भी यहोवा की बनायी चीज़ों पर ध्यान देते हैं, तो समझ पाते हैं कि यहोवा हमसे कहीं ज़्यादा बुद्धिमान और ताकतवर है। वह हमारी हर मुश्किल भी दूर कर सकता है और वह ऐसा ज़रूर करेगा। यह बात ध्यान में रखने से हम यहोवा पर और भी भरोसा कर पाएँगे।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-2 पेज 222
कानून बनानेवाला
कानून बनानेवाला यहोवा: कानून बनानेवालों में से यहोवा सबसे बड़ा है। उसी ने कुदरत के नियम बनाए हैं। (अय 38:4-38; भज 104:5-19) उसने जानवरों के लिए भी नियम बनाए हैं। (अय 39:1-30) इंसानों को यहोवा ने बनाया है, इसलिए उन्हें उसके बनाए कुदरत के नियम और नैतिक नियम मानने हैं। (रोम 12:1; 1कुर 2:14-16) स्वर्गदूत भी यहोवा के बनाए नियम मानते हैं।—भज 103:20; 2पत 2:4, 11.
यहोवा के बनाए कुदरत के नियम कोई नहीं बदल सकता। (यिर्म 33:20, 21) ये नियम इतने पक्के हैं कि वैज्ञानिक उनके आधार पर चाँद, तारों और ग्रहों वगैरह के चलने की रफ्तार का सही-सही पता लगा पाते हैं। कुदरत के ये नियम तोड़ते ही हमें उनके अंजाम भुगतने पड़ते हैं। यहोवा के बनाए नैतिक नियम भी कोई नहीं बदल सकता। अगर कोई उन्हें नहीं मानेगा तो उसे अंजाम भुगतने पड़ेंगे। शायद ऐसा तुरंत ना हो, फिर भी हम यकीन रख सकते हैं कि कुदरत के नियमों की तरह नैतिक नियम तोड़ने के भी अंजाम होते हैं। बाइबल में लिखा है, “परमेश्वर की खिल्ली नहीं उड़ायी जा सकती। एक इंसान जो बोता है, वही काटेगा भी।”—गल 6:7; 1ती 5:24.
29 जनवरी–4 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | अय्यूब 40-42
अय्यूब ने जो सीखा, उससे हम भी सीख सकते हैं
“कौन है जो यहोवा का मन जान सका है?”
4 जब हम यहोवा के कामों पर मनन करते हैं तब हमें उसे अपने स्तरों के मुताबिक जाँचने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। भजन 50:21 में यहोवा ने ऐसी इंसानी फितरत के बारे में यूँ कहा: “तू ने समझ लिया कि परमेश्वर बिलकुल मेरे समान है।” कुछ ऐसी ही बात बाइबल के एक विद्वान ने करीब 175 साल पहले कही थी: “इंसान की फितरत होती है कि वह परमेश्वर को अपने स्तरों की कसौटी पर परखता है और सोचता है कि परमेश्वर भी इंसानी नियमों में बँधा है।”
5 हमें ध्यान रखना है कि हम अपने स्तरों और मरज़ी के मुताबिक यहोवा को समझने की कोशिश न करें। यह क्यों ज़रूरी है? हो सकता है बाइबल का अध्ययन करते वक्त यहोवा के कुछ काम हम असिद्ध इंसानों को ठीक न लगें क्योंकि हमारे सोचने का दायरा सीमित है। प्राचीन समय के इसराएली अपने असिद्ध नज़रिए से यहोवा को परखने लगे थे, जिस वजह से उन्होंने उसके व्यवहार के बारे में गलत नतीजा निकाला। ध्यान दीजिए कि यहोवा ने उनसे क्या कहा: “तुम लोग कहते हो, कि प्रभु की गति एक सी नहीं। हे इस्राएल के घराने, देख, क्या मेरी गति एक सी नहीं? क्या तुम्हारी ही गति अनुचित नहीं है?”—यहे. 18:25.
6 अगर हम यह समझ लेंगे कि यहोवा के मुकाबले हमारी सोच बहुत सीमित है और कई बार तो हम बिलकुल गलत होते हैं, तब हम यहोवा को अपने स्तरों पर नहीं परखेंगे। अय्यूब को यही सबक सीखने की ज़रूरत थी। मुसीबत के दौर में अय्यूब बहुत निराश हो गया था। वह अपने ही बारे में सोचने लगा और ज़्यादा ज़रूरी बातों पर गौर करने से चूक गया। लेकिन यहोवा ने बड़े प्यार से उसकी सोच सुधारी। उसने अय्यूब से 70 से भी ज़्यादा सवाल पूछे, जिनमें से अय्यूब एक का भी जवाब नहीं दे पाया। इस तरह यहोवा ने अय्यूब पर यह ज़ाहिर किया कि उसकी सोच बहुत सीमित है। अय्यूब ने अपनी इस कमी को नम्रता से कबूल किया और अपनी सोच सुधारी।—अय्यूब 42:1-6 पढ़िए।
अहम मसले को हमेशा याद रखिए
12 अय्यूब ने बहुत कुछ सहा था, क्या ऐसे में यहोवा का उसे सुधारना सही था? बिलकुल सही था और अय्यूब को भी यह सही लगा। वह यहोवा की बात समझ गया। उसने कहा, “मैं अपने शब्द वापस लेता हूँ, धूल और राख में बैठकर पश्चाताप करता हूँ।” (अय्यू. 42:1-6) इससे पहले भी एलीहू नाम के एक जवान आदमी ने अय्यूब की सोच सुधारी थी। (अय्यू. 32:5-10) अय्यूब ने यहोवा की बुद्धि-भरी सलाह मानी और अपनी सोच को बदला। इसके बाद यहोवा ने दूसरों को बताया कि वह अय्यूब की वफादारी से बहुत खुश है।—अय्यू. 42:7, 8.
यहोवा पर आशा रखिए
17 अय्यूब अकेला ऐसा नहीं था जिसने हिम्मत से मुश्किलों का सामना किया और जो यहोवा का वफादार रहा। पौलुस ने इब्रानियों को लिखी चिट्ठी में ऐसे ही कई वफादार लोगों का ज़िक्र किया और उन्हें ‘गवाहों का घना बादल’ कहा। (इब्रा. 12:1) उन सबने बड़ी-बड़ी मुश्किलों का सामना किया था, फिर भी वे आखिरी साँस तक यहोवा के वफादार रहे। (इब्रा. 11:36-40) हालाँकि वे यहोवा के सारे वादों को पूरा होते हुए नहीं देख पाए, पर उन्हें यहोवा पर आशा थी। वे जानते थे कि यहोवा उनसे खुश है, इसलिए उन्हें यकीन था कि भविष्य में वे उसके वादों को पूरा होते हुए देखेंगे। (इब्रा. 11:4, 5) तो क्यों न हम उनसे सीखें और चाहे जो हो जाए यहोवा पर आशा रखें!
18 यह दुनिया बद-से-बदतर होती जा रही है। (2 तीमु. 3:13) और शैतान एक-के-बाद-एक यहोवा के लोगों पर मुश्किलें लाता जा रहा है। पर चाहे कितनी ही मुश्किलें क्यों ना आएँ, हमें ठान लेना चाहिए कि हम जी-जान से यहोवा की सेवा करते रहेंगे क्योंकि हमने “एक जीवित परमेश्वर पर आशा रखी है।” (1 तीमु. 4:10) अय्यूब यहोवा का वफादार रहा, इसलिए यहोवा ने उसे इनाम दिया और साबित किया कि वह लगाव रखनेवाला और दयालु परमेश्वर है। (याकू. 5:11) आइए हम भी यहोवा के वफादार रहें और यकीन रखें कि “वह उन लोगों को इनाम देता है जो पूरी लगन से उसकी खोज करते हैं।”—इब्रानियों 11:6 पढ़िए।
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
इंसाइट-2 पेज 808
खिल्ली उड़ाना, मज़ाक बनाना, ताने कसना
अय्यूब पर बहुत ताने कसे गए, फिर भी वह निर्दोष बना रहा। लेकिन उसने हालात को सही नज़रिए से नहीं देखा। इस वजह से उससे एक गलती हो गयी और उसे सुधारा गया। एलीहू ने उसके बारे में कहा, “ऐसा कौन है जो अय्यूब की तरह, निंदा की बातें ऐसे पीता है मानो पानी पी रहा हो?” (अय 34:7) अय्यूब परमेश्वर के बजाय खुद को सही ठहराने में लगा रहा। इस तरह उसने ज़ोर दिया कि वह परमेश्वर से ज़्यादा नेक है। (अय 35:2; 36:24) अय्यूब यह पहचान नहीं पाया कि उसके तीनों ‘साथी’ परमेश्वर पर ताने कस रहे हैं। उसे लगा कि वे उस पर ताने कस रहे हैं। बाद में यहोवा ने बताया कि असल में ये तीनों परमेश्वर के बारे में झूठ बोल रहे हैं। (अय 42:7; 1शम 8:7 और मत 24:9 भी देखें) जब मसीहियों का मज़ाक बनाया जाता है या उन पर ताने कसे जाते हैं, तो उन्हें ये सारी बातें याद रखनी चाहिए। इससे वे सही नज़रिया बनाए रख पाएँगे और यह सब सह पाएँगे। और आगे चलकर उन्हें इसके लिए इनाम मिलेगा।—लूक 6:22, 23.
5-11 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 1-4
परमेश्वर के राज का पक्ष लीजिए
“मैं सब राष्ट्रों को हिलाऊँगा”
8 खबर सुनकर लोग क्या करते हैं? ज़्यादातर इसे ठुकरा देते हैं। (भजन 2:1-3 पढ़िए।) कई राष्ट्र तो गुस्से में हैं। वे यीशु को अपना राजा मानने से इनकार करते हैं। वे यह नहीं मानते कि यह खबर, खुशी की खबर है। कुछ देशों की सरकारों ने तो प्रचार काम पर पूरी तरह रोक लगा दी है। कई शासक कहते हैं कि वे परमेश्वर को मानते हैं, लेकिन वे उसके राज का साथ देने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि वे अपना ओहदा या अधिकार नहीं छोड़ना चाहते। पहली सदी के शासकों की तरह, आज के शासक भी यीशु के चेलों को सताते हैं और इस तरह उसके खिलाफ खड़े होते हैं।—प्रेषि. 4:25-28.
इस बँटी हुई दुनिया में निष्पक्ष बने रहिए
11 धन-दौलत और सुख-सुविधाएँ। जब पैसा और जो चीज़ें हमारे पास हैं वे हमारे लिए ज़्यादा मायने रखती हैं, तो हमारे लिए निष्पक्ष बने रहना मुश्किल हो सकता है। सन् 1970 के बाद, मलावी में कई साक्षियों के पास जो कुछ था, वह सब उन्हें छोड़ना पड़ा क्योंकि उन्होंने एक राजनैतिक पार्टी में जुड़ने से मना कर दिया था। दुख की बात है कि कुछ साक्षी आराम की ज़िंदगी नहीं छोड़ पाए। रूत नाम की एक बहन बताती है, ‘जब साक्षियों को देश से निकाल दिया गया, तो कुछ हमारे साथ गए तो सही, मगर बाद में वे राजनैतिक पार्टी में शामिल हो गए और घर वापस आ गए, क्योंकि वे शरणार्थी शिविर में ज़िंदगी की मुश्किलें नहीं सहना चाहते थे।’ लेकिन ज़्यादातर परमेश्वर के लोग ऐसे नहीं होते। वे निष्पक्ष बने रहते हैं, फिर चाहे इसकी वजह से उन्हें पैसों की तंगी झेलनी पड़े या अपना सबकुछ खोना पड़े।—इब्रा. 10:34.
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भूसी
जौ और गेहूँ जैसे अनाज के छिलके को भूसी कहते हैं। भूसी किसी काम की नहीं होती थी और पुराने ज़माने में अनाज को दाँवने और फटकने के बाद उसे अलग कर दिया जाता था। इसलिए बाइबल में भूसी का उदाहरण यह समझाने के लिए दिया गया है कि जो चीज़ बेकार या बुरी है, उसे अलग करके फेंक दिया जाना है।
जब अनाज को दाँवा जाता था, तो उसका छिलका या भूसी उतर जाती थी। फिर जब अनाज को फटका जाता था तो भूसी हवा में उड़ जाती थी। यह उदाहरण दिखाता है कि यहोवा कैसे धर्मत्यागियों को अपने लोगों से अलग करता है और दुष्ट लोगों और विरोधी राष्ट्रों का नाश करता है। (अय 21:18; भज 1:4; 35:5; यश 17:13; 29:5; 41:15; हो 13:3) परमेश्वर का राज अपने सभी दुश्मनों का चकनाचूर कर देगा और उन्हें भूसी की तरह हवा में उड़ा देगा।—दान 2:35.
अकसर भूसी को जला दिया जाता था ताकि वह वापस उड़कर अनाज के ढेर में ना मिल जाए। यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाले ने भविष्यवाणी की कि झूठे धर्म के दुष्ट लोगों का इसी तरह नाश कर दिया जाएगा। अनाज फटकनेवाला यीशु मसीह को दर्शाता है जो गेहूँ इकट्ठा करेगा, “मगर भूसी को उस आग में जला देगा जिसे बुझाया नहीं जा सकता।”—मत 3:7-12; लूक 3:17.
12-18 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 5-7
चाहे दूसरे कुछ भी करें, आप यहोवा के वफादार रहिए
मुश्किलों में आपको बाइबल से मिलेगी मदद
7 क्या किसी दोस्त या रिश्तेदार ने आपका भरोसा तोड़ा है या आपको दुख पहुँचाया है? दाविद के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। उसके बेटे अबशालोम ने उसे धोखा दिया और उसकी राजगद्दी छीनने की कोशिश की।—2 शमू. 15:5-14, 31; 18:6-14.
8 (1) प्रार्थना कीजिए। दाविद की घटना को ध्यान में रखकर यहोवा को साफ-साफ बताइए कि आप अपनी परेशानी के बारे में कैसा महसूस कर रहे हैं। (भज. 6:6-9) फिर उससे मदद माँगिए कि आप बाइबल से ऐसे सिद्धांत ढूँढ़ पाएँ जिससे आप अपनी मुश्किल का सामना कर सकें।
अपना यकीन पक्का कीजिए कि आपके पास सच्चाई है
3 आपको सिर्फ यह देखकर विश्वास नहीं बढ़ाना है कि साक्षियों में कितना प्यार है। ऐसा क्यों? मान लीजिए कोई भाई या बहन, यहाँ तक कि कोई प्राचीन या पायनियर गंभीर पाप कर देता है। या कोई भाई या बहन आपको ठेस पहुँचाता है या फिर सच्चाई से बगावत करता है और कहता है कि हमारी शिक्षाएँ गलत हैं। ऐसे में आप क्या करेंगे? क्या आप ठोकर खाकर यहोवा की सेवा करना छोड़ देंगे? अगर आप सिर्फ लोगों का प्यार देखकर सच्चाई में आए हैं और आपने खुद यहोवा के साथ एक अच्छा रिश्ता कायम नहीं किया है, तो आपका विश्वास कमज़ोर हो जाएगा। विश्वास बढ़ाना घर बनाने जैसा है। घर बनाते वक्त सिर्फ रेत इस्तेमाल नहीं की जाती बल्कि ऐसे सामान भी इस्तेमाल किए जाते हैं, जो मज़बूत और टिकाऊ हों। ठीक उसी तरह, यहोवा और भाई-बहनों के बारे में आपको जो बातें अच्छी लगती हैं, अगर सिर्फ उन्हीं की वजह से आपने विश्वास बढ़ाया है, तो आपका विश्वास ज़्यादा दिनों तक टिका नहीं रहेगा। यह ऐसा होगा मानो आपने विश्वास-रूपी घर रेत से बनाया है। आपको बाइबल का गहराई से अध्ययन करना होगा ताकि आपको पक्का यकीन हो कि इसमें जो लिखा है, वह सच्चाई है।—रोमि. 12:2.
4 यीशु ने कहा था कि कुछ लोग “खुशी-खुशी” सच्चाई अपना तो लेंगे लेकिन जब उन पर परीक्षाएँ आएँगी, तो उनका विश्वास डगमगा जाएगा। (मत्ती 13:3-6, 20, 21 पढ़िए।) शायद वे इस बात को ठीक से नहीं समझते कि यीशु के पीछे चलने से कुछ मुश्किलें आएँगी। (मत्ती 16:24) या शायद वे सोचते हों कि मसीही बनने से उनकी सारी परेशानियाँ दूर हो जाएँगी। लेकिन सच तो यह है कि इस दुनिया में जीना आसान नहीं है और मुश्किलें आएँगी ही। हमारे हालात कभी-भी बदल सकते हैं और कुछ समय के लिए हमारी खुशी छिन सकती है।—भज. 6:6; सभो. 9:11.
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कब्र
रोमियों 3:13 में पौलुस ने भजन 5:9 का हवाला दिया। उसने दुष्ट और धोखेबाज़ लोगों के गले की तुलना “खुली कब्र” से की। जैसे खुली कब्र में लाश डाली जाती है जो सड़ती है, वैसे ही उनके गले से खतरनाक और सड़ी हुई बातें निकलती हैं।—मत 15:18-20 से तुलना करें।
19-25 फरवरी
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 8-10
‘हे यहोवा, मैं तेरी तारीफ करूँगा’!
यहोवा के परिवार में आपकी अहमियत है
6 यहोवा ने हमारे लिए एक खूबसूरत घर बनाया। इंसान को बनाने से बहुत पहले यहोवा ने धरती तैयार की। (अय्यू. 38:4-6; यिर्म. 10:12) यहोवा दरियादिल है, इसलिए इंसान की खुशी के लिए उसने बहुत-सी चीज़ें बनायीं। (भज. 104:14, 15, 24) उसने उन पर गौर किया और देखा कि सबकुछ “अच्छा है।” (उत्प. 1:10, 12, 31) फिर उसने उन पर इंसान को “अधिकार दिया” और इस तरह उसका मान बढ़ाया। (भज. 8:6) यहोवा चाहता है कि परिपूर्ण इंसान हमेशा उनकी देखभाल करें। क्या आप इसके लिए यहोवा का शुक्रिया करते हैं?
क्या आप परमेश्वर के दिए तोहफों के लिए एहसानमंद हैं?
10 हमें यहोवा का एहसान मानना चाहिए कि उसने हमें बोलने की काबिलीयत दी है। हम यह एहसान कैसे ज़ाहिर कर सकते हैं? इसका एक तरीका है, दूसरों को परमेश्वर के बारे में बताना। (भज. 9:1; 1 पत. 3:15) कुछ लोग कहते हैं कि कोई परमेश्वर नहीं है और यह धरती और सारे जीव अपने आप बन गए। इनमें से कुछ लोग जानना चाहते हैं कि हम क्यों मानते हैं कि यहोवा ने ही सबकुछ बनाया है। ऐसे लोगों को हम बाइबल से समझा सकते हैं कि हम क्यों मानते हैं कि यहोवा ने ही आकाश और पृथ्वी को बनाया है। (भज. 102:25; यशा. 40:25, 26) हम उन्हें इस लेख में दी गयी कुछ बातें भी बता सकते हैं। इस तरह हम अपने पिता यहोवा की तरफ से बोलकर अपना एहसान ज़ाहिर कर सकते हैं।
क्या आप बोलने के मामले में एक अच्छी मिसाल हैं?
13 जोश से गीत गाइए। हमें याद रखना चाहिए कि जब हम सभाओं में गीत गाते हैं, तो इससे यहोवा की महिमा होती है। सारा नाम की एक बहन का कहना है कि वह ज़्यादा अच्छे-से नहीं गा पाती। फिर भी वह गीत गाकर यहोवा की महिमा करना चाहती है। इसलिए सभाओं की तैयारी करते वक्त वह गाने की भी प्रैक्टिस करती है। वह खासकर इस बात पर ध्यान देती है कि गीत के बोल, सभा के अलग-अलग भागों से कैसे जुड़े हैं। वह कहती है, “जब मैं गीतों के बोल पर ध्यान देती हूँ, तो मुझे इस बात की चिंता नहीं रहती कि मैं कैसे गा रही हूँ।”
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उँगली
बाइबल की कई आयतों में बताया गया है कि परमेश्वर ने अलग-अलग काम करने के लिए मानो अपने हाथ की उँगली या उँगलियों का इस्तेमाल किया। जैसे, दस आज्ञाएँ लिखने के लिए (निर्ग 31:18; व्य 9:10), चमत्कार करने के लिए (निर्ग 8:18, 19, फु.) और आसमान बनाने के लिए (भज 8:3)। जब कहा गया है कि सृष्टि परमेश्वर की “हस्तकला” है या उसने अपनी “उँगलियों” से इसे रचा, तो इसका मतलब है कि उसने अपनी पवित्र शक्ति का इस्तेमाल किया। यह हमें उत्पत्ति की किताब से पता चलता है, जहाँ बताया गया है कि परमेश्वर की ज़ोरदार शक्ति (रुआख) पानी के ऊपर यहाँ से वहाँ घूमती हुई काम कर रही थी। (उत 1:2) इसकी और भी साफ समझ हमें मसीही यूनानी शास्त्र से मिलती है। मत्ती की किताब में लिखा है कि यीशु “परमेश्वर की पवित्र शक्ति” से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालता है और लूका की किताब में लिखा है कि वह ‘परमेश्वर की उँगली’ से ऐसा करता है।—मत 12:28; लूक 11:20, फु.
26 फरवरी–3 मार्च
पाएँ बाइबल का खज़ाना | भजन 11-15
सोचिए कि आप ऐसी दुनिया में है जहाँ चारों तरफ शांति है
भजन संहिता किताब के पहले भाग की झलकियाँ
11:3—कौन-सी नेवें ढा दी जाती हैं? ये वही नेवें हैं जिन पर इंसानी समाज टिका हुआ है, जैसे कानून, व्यवस्था और न्याय। जब इन्हीं बातों का पालन नहीं किया जाता, तो पूरे समाज में गड़बड़ी फैल जाती है और नाइंसाफी का बोलबाला होता है। ऐसे में एक “धर्मी” इंसान के लिए ज़रूरी है कि वह परमेश्वर पर पूरा भरोसा रखे।—भजन 11:4-7.
क्या ऐसी दुनिया मुमकिन है, जहाँ हिंसा न हो?
पवित्र शास्त्र में लिखा है कि परमेश्वर वादा करता है कि जल्द ही वह इस धरती पर से हिंसा का नामो-निशान मिटा देगा। हिंसा से भरी यह दुनिया परमेश्वर के “न्याय के दिन” की तरफ आगे बढ़ रही है। (2 पतरस 3:5-7) उसके बाद हिंसा करनेवाला कोई नहीं होगा। हम कैसे यकीन कर सकते हैं कि परमेश्वर इस धरती पर से हिंसा को पूरी तरह खत्म करना चाहता है?
पवित्र शास्त्र में लिखा है, परमेश्वर ‘उपद्रव से प्रीति रखनेवालों से घृणा करता है।’ (भजन 11:5) हमारा बनानेवाला शांति और न्याय से प्रीति रखता है। (भजन 33:5; 37:28) इसलिए वह हिंसा करनेवालों को हमेशा के लिए बरदाश्त नहीं करेगा।
क्या आप सब्र रखेंगे और इंतज़ार करेंगे?
15 दाविद सब्र रखने और इंतज़ार करने के लिए क्यों तैयार था? इसका जवाब वह उसी भजन में देता है जिसमें उसने पाँच बार पूछा, “कब तक?” उसने कहा, “मुझे तो तेरे अटल प्यार पर पूरा भरोसा है, तू जो उद्धार दिलाता है उससे मेरा दिल मगन होगा। मैं यहोवा के लिए गीत गाऊँगा, उसने मुझे ढेरों आशीषें दी हैं।” (भज. 13:5, 6) दाविद जानता था कि उसके लिए यहोवा का प्यार अटल है। उसने याद किया कि कैसे यहोवा ने बीते समय में उसकी मदद की थी और उसे पूरा भरोसा था कि यहोवा बहुत जल्द उसे इन मुसीबतों से भी बाहर निकालेगा। दाविद जानता था कि सब्र रखने के अच्छे नतीजे मिलते हैं।
परमेश्वर का राज धरती पर उसकी मरज़ी पूरी करेगा
16 सुरक्षा: आखिरकार यशायाह 11:6-9 में लिखे सुंदर शब्द हर मायने में और सचमुच पूरे होंगे। आदमी, औरत, बच्चे सभी महफूज़ रहेंगे। वे चाहे धरती के किसी भी कोने में जाएँ उन्हें कोई खतरा नहीं होगा, न जानवरों से न इंसानों से। ज़रा उस समय की कल्पना कीजिए, जब यह पूरी धरती आपका घर होगी, आप नदियों, तालाबों और समुंदरों में तैर सकेंगे, पहाड़ों पर चढ़ सकेंगे और मैदानों में घूम सकेंगे और आपको किसी बात का डर नहीं होगा। रात को भी आप नहीं डरेंगे। यहेजकेल 34:25 के शब्द सच होंगे। परमेश्वर के लोग ‘वीराने में भी महफूज़ रह सकेंगे और जंगलों में भी सो सकेंगे।’
ढूँढ़ें अनमोल रत्न
क्या आपकी कायापलट हुई है?
12 दुख की बात है कि इस दुनिया में हमारे चारों तरफ ऐसे लोग हैं, जो उस तरह की सोच रखते हैं जिसका पौलुस ने ज़िक्र किया। उन्हें लगता है कि उसूलों और सही-गलत के स्तरों के मुताबिक जीना दकियानूसी है और उन्हें मानने के लिए किसी को मजबूर नहीं किया जाना चाहिए। बहुत से शिक्षक और माता-पिता अपने बच्चों को जो चाहे करने की आज़ादी देते हैं। वे बच्चों को यह तक सिखाते हैं कि वे खुद तय कर सकते हैं कि उनके लिए क्या सही है और क्या गलत। क्योंकि ऐसे लोगों का मानना है कि सही-गलत के स्तरों का पता लगाने का कोई तरीका नहीं। धर्म के मामले में भी यह बात सच है। कई लोग जो धर्म में आस्था रखने का दावा करते हैं, वे मानते हैं कि परमेश्वर क्या चाहता है, उस हिसाब से चलने की कोई ज़रूरत नहीं। वही करो, जो आपको सही लगता है। (भज. 14:1) इस तरह का रवैया मसीहियों के लिए खतरे से खाली नहीं। अगर हम ध्यान न दें, तो यह रवैया हम परमेश्वर के संगठन में भी अपनाने लग सकते हैं। हो सकता है हम भी परमेश्वर के संगठन से मिलनेवाली हिदायतों को मानने से इनकार करें और उन बातों के बारे में शिकायत करने लगें, जो हमें पसंद नहीं आतीं। या फिर हो सकता है हम मनोरंजन, इंटरनेट के इस्तेमाल और ऊँची शिक्षा के बारे में दी जानेवाली बाइबल की सलाह से पूरी तरह सहमत न हों।