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  • क्या कृपा करना आपका उसूल है?

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  • क्या कृपा करना आपका उसूल है?
  • प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2022
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प्रहरीदुर्ग यहोवा के राज्य की घोषणा करता है (अध्ययन)—2022
w22 जून पेज 26-28
तसवीरें: 1. एक जवान भाई एक बुज़ुर्ग भाई के लिए सब्ज़ियाँ खरीदकर लाया है। 2. एक परिवार अपना घर बदल रहा है, इसलिए एक पति-पत्नी सामान पैक करने में उनकी मदद कर रहे हैं। 3. एक और पति-पत्नी एक बुज़ुर्ग बहन के घर के सामने से पत्ते साफ कर रहे हैं।

क्या कृपा करना आपका उसूल है?

लीसाa और ऐन नाम की दो मसीही बहनें जब यहोवा के साक्षियों से बाइबल के बारे में सीखने लगीं, तो उन्हें बहुत अच्छा लगा। उन्हें आज भी बाइबल पढ़ना और उस पर मनन करना बहुत पसंद है। लेकिन वे इस वजह से सच्चाई की तरफ आकर्षित नहीं हुईं। लीसा बताती है, “जब मैंने देखा कि मसीही भाई-बहन सभी से कितना प्यार करते हैं, दूसरों की कितनी परवाह करते हैं, तो मैं बता नहीं सकती कि मुझे कितना अच्छा लगा।” ऐन का भी कुछ यही कहना है। वह बताती है, “बाइबल की शिक्षाओं से ज़्यादा साक्षियों का प्यार और उनकी परवाह मेरे दिल को छू गयी।” इन बहनों की बातों से पता चलता है कि प्यार या कृपा का उन पर कितना गहरा असर हुआ।

हम कैसे दूसरों के साथ कृपा से पेश आ सकते हैं जिससे उनका हौसला बढ़े? हम दो तरीकों पर ध्यान देंगे: अपनी बातों और अपने कामों से। हम यह भी जानेंगे कि हमें किन लोगों पर कृपा करनी चाहिए।

अपनी बातों से

नीतिवचन अध्याय 31 में एक अच्छी पत्नी के बारे में लिखा है कि “भली बातें कहना उसका उसूल” है। (नीति. 31:26) इसका मतलब जब भी वह कोई बात कहती है और जिस तरीके से कहती है, तब वह इस “उसूल” को मानती है और दूसरों पर कृपा करती है। पतियों और पिताओं को भी बात करते वक्‍त इस “उसूल” को मानना चाहिए। कई माता-पिता अच्छे-से जानते हैं कि अगर वे अपने बच्चों से सख्ती से बोलें, तो बच्चों पर बुरा असर होगा और शायद उन्हें उनकी बात मानने का मन भी न करे। लेकिन अगर वे अपने बच्चों से प्यार और नरमी से बात करें, तो बच्चे उनकी बात सुनेंगे और उनकी मानेंगे भी।

चाहे हमारे बच्चे हों या ना हों, हम कैसे अपनी ज़बान से भली बातें कह सकते हैं? इसका जवाब हमें नीतिवचन 31:26 के पहले भाग से मिलता है। वहाँ लिखा है, “उसके मुँह से हमेशा बुद्धि  की बातें निकलती हैं।” इसका मतलब, हमें बोलने से पहले अच्छे-से सोचना होगा कि हम क्या कहेंगे और किस लहज़े में कहेंगे। हम खुद से पूछ सकते हैं, ‘मैं जो कहने जा रहा हूँ, क्या उससे माहौल गरम हो जाएगा या शांत होगा?’ (नीति. 15:1) इस तरह के सवाल करने से हम सोच-समझकर बोल पाएँगे।

एक और नीतिवचन में लिखा है, “बिना सोचे-समझे बोलना, तलवार से वार करना है।” (नीति. 12:18) कुछ कहने से पहले हमें सोचना चाहिए कि हम जो बात कहेंगे और जिस तरीके से कहेंगे उससे दूसरों को कैसा लगेगा। इस तरह हम अपनी ज़बान पर काबू रख पाएँगे। सच में, अगर ‘भली बातें कहना हमारा उसूल’ होगा, तो हम दिल दुखानेवाली बातें नहीं कहेंगे और न ही किसी से रूखे तरीके से बात करेंगे। (इफि. 4:31, 32) इसके बजाय हम प्यार से और नरमी से बात करेंगे ताकि लोगों का हौसला बढ़े। इस मामले में हम यहोवा से सीख सकते हैं। जब उसका सेवक एलियाह घबराया हुआ था, तो यहोवा ने एक स्वर्गदूत के ज़रिए उसकी हिम्मत बँधायी। बाइबल में लिखा है कि उसने एलियाह से ‘धीमी आवाज़ में बात की और उस आवाज़ में नरमी थी।’ (1 राजा 19:12) लेकिन भली बातें कहने के अलावा भले काम करना भी ज़रूरी है। आइए इस बारे में और जानें।

अपने कामों से

यहोवा की तरह बनने के लिए हमारी बातों के साथ-साथ हमारे व्यवहार में भी कृपा झलकनी चाहिए। (इफि. 4:32; 5:1, 2) लीसा, जिसका पहले ज़िक्र किया गया था, बताती है कि यहोवा के साक्षी किस तरह उसके और उसके परिवार के साथ पेश आए। वह कहती है, “हमें घर बदलना था और हमारे पास ज़्यादा वक्‍त नहीं था। तब दो पति-पत्नी अपने काम से छुट्टी लेकर हमारी मदद करने आए। वे यहोवा के साक्षी थे। और उस वक्‍त तो मैं बाइबल अध्ययन भी नहीं कर रही थी!” यह देखकर लीसा को इतना अच्छा लगा कि वह बाइबल अध्ययन करने लगी।

साक्षियों का व्यवहार ऐन के दिल को भी छू गया। वह बताती है, “दुनिया इतनी खराब हो गयी है कि किसी पर भी भरोसा नहीं किया जा सकता। इसलिए जब मैं साक्षियों से मिली, तो मैं तुरंत उन पर भरोसा नहीं कर पायी। मैं सोचने लगी कि उन्हें मेरी इतनी फिक्र क्यों है। लेकिन जब मुझे एहसास हुआ कि जिसके साथ मैं बाइबल पढ़ रही थी, उसे सच में मेरी फिक्र है, तो मैं उस पर भरोसा करने लगी।” इसका बहुत अच्छा नतीजा हुआ। ऐन बताती है, “धीरे-धीरे मैं उन बातों पर गहराई से सोचने लगी जो मैं सीख रही थी।”

तो देखा आपने, जब मंडली के भाई-बहनों ने लीसा और ऐन की खातिर भले काम किए, तो इसका उन पर गहरा असर हुआ और वे सच्चाई के बारे में सीखने लगीं। भाई-बहनों से उन्हें जो प्यार और अपनापन मिला, उस वजह से वे यहोवा और उसके लोगों पर भरोसा कर पायीं।

यहोवा की तरह दूसरों पर कृपा कीजिए

शायद कुछ लोग अपनी परवरिश या संस्कृति की वजह से हर किसी से प्यार से और मुस्कुराकर बात करें। यह सच में तारीफ के काबिल है! लेकिन अगर हम सिर्फ इसी वजह से लोगों के साथ कृपा से पेश आते हैं, तो यह नहीं कहा जा सकता कि हम परमेश्‍वर की तरह कृपा कर रहे हैं।​—प्रेषितों 28:2 से तुलना करें।

अगर हम परमेश्‍वर की तरह दूसरों पर कृपा करना चाहते हैं, तो हम पवित्र शक्‍ति की मदद से ही ऐसा कर सकते हैं। (गला. 5:22, 23) इस गुण को बढ़ाने के लिए हमें अपनी सोच और अपने कामों को पवित्र शक्‍ति के मुताबिक ढालना होगा। ऐसा करके हम यहोवा की तरह बन पाएँगे और दिखाएँगे कि हम उससे प्यार करते हैं। हम यीशु की तरह भी बनना चाहते हैं, इसलिए उसकी तरह लोगों की परवाह करते हैं और उनसे प्यार करते हैं। इस तरह यहोवा और लोगों के लिए प्यार हमें उभारता है कि हम सबके साथ कृपा से पेश आएँ। जब हम ऐसा करते हैं, तो यहोवा हमसे खुश होता है।

किन पर कृपा करें?

अकसर देखा गया है कि जिन्हें हम जानते हैं या जो हमारे साथ प्यार और कृपा से पेश आते हैं, हम भी उनके साथ अच्छे से पेश आते हैं और उनका धन्यवाद करते हैं। (2 शमू. 2:6; कुलु. 3:15) लेकिन अगर हमें लगे कि किसी व्यक्‍ति के साथ कृपा से पेश आने का कोई फायदा नहीं, वह इसके लायक ही नहीं है, तब हम क्या कर सकते हैं?

ज़रा इस बात पर गौर कीजिए: देखा जाए तो हममें से कोई भी परमेश्‍वर की कृपा के लायक नहीं है, फिर भी वह हम पर बहुत कृपा करता है। बाइबल में इसे “महा-कृपा” कहा गया है और मसीही यूनानी शास्त्र में इसका कई बार ज़िक्र किया गया है। महा-कृपा करने में यहोवा सबसे बढ़िया मिसाल है। और उसके वचन से हम सीखते हैं कि हम दूसरों पर कृपा कैसे कर सकते हैं। तो सवाल है, यहोवा किस तरह हम पर कृपा करता है?

यहोवा धरती पर रहनेवाले लाखों-करोड़ों लोगों को हवा-पानी और वह सबकुछ देता है जिससे वे ज़िंदा रह पाएँ। (मत्ती 5:45) देखा जाए तो वह इंसानों पर तब से कृपा कर रहा है जब वे उसे जानते भी नहीं थे। (इफि. 2:4, 5, 8) जैसे, उसने सभी इंसानों के लिए अपना जिगर का टुकड़ा, अपना इकलौता बेटा कुरबान कर दिया। प्रेषित पौलुस ने लिखा कि यहोवा ने हम पर “भरपूर महा-कृपा” की और अपने बेटे को फिरौती में दे दिया। (इफि. 1:7) इतना ही नहीं, हम कई बार गलतियाँ करते हैं और यहोवा का दिल दुखाते हैं, फिर भी वह हमें लगातार सही राह दिखाता है और सिखाता है। उसकी हिदायतें और बातें बारिश की “फुहार” जैसी होती हैं। (व्यव. 32:2) यहोवा की महा-कृपा के लिए हम कभी-भी उसका एहसान नहीं चुका सकते। सच तो यह है कि अगर यहोवा ने हम पर महा-कृपा ना की होती, तो हमारे पास भविष्य की कोई आशा नहीं होती।​—1 पतरस 1:13 से तुलना करें।

जब हम इस बारे में सोचते हैं कि यहोवा ने हम पर कितनी कृपा की है, तो हमारा दिल एहसान से भर जाता है और हमारा मन करता है कि हम भी उसकी तरह दूसरों पर कृपा करें। इसलिए हमें सिर्फ कुछ लोगों के साथ नहीं, बल्कि सबके साथ कृपा से पेश आना चाहिए और ऐसा हर दिन करना चाहिए। (1 थिस्स. 5:15) जब हम अपने परिवारवालों, मसीही भाई-बहनों, साथ काम करनेवालों, साथ पढ़नेवालों और पड़ोसियों के साथ हर दिन प्यार से पेश आएँगे, तो उन्हें बहुत तसल्ली मिलेगी। उन्हें ऐसा लगेगा मानो कड़ाके की ठंड में उन्हें तापने के लिए आग मिल गयी हो।

क्या आपके परिवार या मंडली में ऐसा कोई है जिसके लिए आप कुछ कर सकते हैं या प्यार से दो बातें कहकर उसकी हिम्मत बँधा सकते हैं? हो सकता है, किसी भाई या बहन को अपने घर या बगीचे की देखरेख करने में या कुछ खरीदारी करने में मदद चाहिए हो। या फिर हो सकता है कि आप प्रचार करते वक्‍त किसी ऐसे व्यक्‍ति से मिलें जिसे किसी तरह की मदद की ज़रूरत हो। क्या आप उन पर कृपा करेंगे?

आइए हम यहोवा की तरह बनें और अपनी बातों और कामों से दिखाएँ कि कृपा करना हमारा उसूल है!

a इस लेख में कुछ लोगों के नाम उनके असली नाम नहीं हैं।

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