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  • युद्ध और शांति के दौर में हमें यहोवा से हिम्मत मिली

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w24 नवंबर पेज 26-30
भाई पॉल और बहन ऐन क्रूडस।

जीवन कहानी

युद्ध और शांति के दौर में हमें यहोवा से हिम्मत मिली

पॉल और ऐन क्रूडस की ज़ुबानी

पॉल: नवंबर 1985 की बात है। हम पहली बार मिशनरी काम के लिए पश्‍चिम अफ्रीका में लाइबेरिया जा रहे थे। मैं और मेरी पत्नी ऐन बहुत खुश थे। रास्ते में हमारा हवाई जहाज़ सेनेगल में रुका। ऐन ने कहा, “बस, एक ही घंटे में हम लाइबेरिया पहुँच जाएँगे!” तभी एक घोषणा हुई, “लाइबेरिया जानेवाले सभी यात्री जहाज़ से उतर जाएँ। हम वहाँ नहीं जाएँगे। वहाँ विद्रोही गुट ने सरकार को गिराने की कोशिश की है और हालात ठीक नहीं हैं।” अगले 10 दिनों तक हम सेनेगल में मिशनरी भाई-बहनों के यहाँ रुके। हम खबरों में सुन रहे थे कि लाइबेरिया में बहुत खून-खराबा हो रहा है, ट्रक भर-भरकर लाशें ले जायी जा रही हैं और करफ्यू लगा है। यही नहीं, अगर किसी ने करफ्यू तोड़ा, तो उसे गोली मार दी जाएगी।

ऐन: कुछ लोग बड़े बिंदास होते हैं और खतरा मोल लेते हैं, लेकिन हम उन लोगों में से नहीं हैं। मैं बचपन से ही बहुत घबराती हूँ। जब मैं छोटी थी, तो मुझसे सड़क भी पार नहीं होती थी। लोग मुझे “डरपोक ऐनी” कहते थे। पर मैंने और मेरे पति ने सोच लिया था कि हम लाइबेरिया ज़रूर जाएँगे।

पॉल: मैं और ऐन इंग्लैंड में पैदा हुए थे। मेरा घर ऐन के घर से सिर्फ आठ किलोमीटर (5 मील) दूर था। उसकी मम्मी और मेरे मम्मी-पापा हमेशा कहते थे कि हम पायनियर सेवा करें। इसलिए स्कूल खत्म होते ही हमने पूरे समय की सेवा करने का फैसला किया, हम पायनियर सेवा करने लगे। इस बात से वे बहुत खुश थे। जब मैं 19 साल का हुआ, तो मुझे बेथेल में सेवा करने के लिए बुलाया गया। और फिर 1982 में हमारी शादी के बाद ऐन भी बेथेल में सेवा करने लगी।

भाई पॉल और बहन ऐन क्रूडस अपने गिलियड ग्रैजुएशन के दिन।

8 सितंबर, 1985 में गिलियड ग्रैजुएशन के दिन

ऐन: हमें बेथेल में सेवा करना पसंद था, लेकिन हम हमेशा से ही किसी ऐसी जगह जाकर सेवा करना चाहते थे जहाँ ज़्यादा ज़रूरत हो। बेथेल में ऐसे कई भाई-बहन थे जो पहले मिशनरी थे। उनके साथ समय बिताकर मिशनरी सेवा करने की हमारी इच्छा और बढ़ गयी। हम तीन साल तक हर दिन इस बारे में प्रार्थना करते रहे। और 1985 में हमें अपनी प्रार्थनाओं का जवाब मिल गया। हमें गिलियड की 79वीं क्लास के लिए बुलाया गया। हम बहुत खुश थे! स्कूल के बाद हमें पश्‍चिम अफ्रीका में लाइबेरिया भेजा गया।

भाई-बहनों के प्यार से हिम्मत मिली

पॉल: जब लाइबेरिया में हालात थोड़े ठीक हुए और हवाई जहाज़ वहाँ जाने लगे, तो हम पहला ही जहाज़ लेकर वहाँ चले गए। लेकिन वहाँ अभी-भी करफ्यू था और लोग बहुत डरे हुए थे। कार के साइलेंसर की आवाज़ सुनकर भी लोग घबरा जाते थे और यहाँ-वहाँ भागने लगते थे। हम हर रात भजन की किताब से कुछ आयतें पढ़ते थे, ताकि हम शांत रह पाएँ। वहाँ रहना इतना आसान नहीं था, पर हमें अपनी सेवा बहुत प्यारी थी। ऐन हर दिन प्रचार में जाती थी और मैं भाई जॉन चेरुकa के साथ बेथेल में काम करता था। भाई चेरुक को बहुत तजुरबा था और वे भाई-बहनों के हालात अच्छी तरह समझते थे। उन्होंने मुझे बढ़िया ट्रेनिंग दी।

ऐन: पता है, हमें लाइबेरिया क्यों इतना पसंद आया? क्योंकि वहाँ के भाई-बहन बहुत प्यारे थे! वे बड़े खुशमिज़ाज़ थे, हमसे बहुत प्यार करते थे और सबसे बढ़कर यहोवा से प्यार करते थे। हमें पता ही नहीं चला कि कब वे हमारे अपने हो गए। हमें एक नया परिवार मिल गया था! भाई-बहनों ने हमारी बहुत मदद की, हमें बढ़िया सलाह दी और हमारा हौसला बढ़ाया। वहाँ प्रचार करने में भी बहुत मज़ा आता था! लोग हमारी बात सुनना चाहते थे। अगर हम उनके घर से जल्दी निकलने की कोशिश करते, तो वे नाराज़ हो जाते थे। लोगों को बाइबल के बारे में बात करना पसंद था। हम सड़क पर भी उनसे इस बारे में बात कर सकते थे। और अगर दो लोग आपस में बात कर रहे हों और हम बीच में जाकर बात करने लगें, तो वे बुरा नहीं मानते थे। हमारे पास इतने बाइबल अध्ययन थे कि सबको समय देना मुश्‍किल हो जाता था। यह एक अच्छी मुश्‍किल थी!

डर लगा, पर यहोवा ने हिम्मत दी

कुछ भाई लाइबेरिया बेथेल आए शरणार्थियों से बात कर रहे हैं।

1990 में जब भाई-बहन भागकर लाइबेरिया बेथेल आए थे

पॉल: चार साल तक थोड़ी-बहुत शांति थी, लेकिन 1989 में गृह युद्ध शुरू हो गया। विद्रोही गुट के लड़ाकुओं ने 2 जुलाई, 1990 को बेथेल के आस-पास के इलाके पर कब्ज़ा कर लिया। तीन महीने तक हम अपने परिवारवालों और विश्‍व मुख्यालय से संपर्क नहीं कर पाए। हर जगह मार-काट मची थी, खाने के लाले पड़े थे और औरतों का बलात्कार किया जा रहा था। 14 साल तक देश का यही हाल रहा।

ऐन: कुछ जातियों के लोग आपस में लड़ रहे थे और एक-दूसरे का खून बहा रहे थे। लड़ाकू लोग हथियार लेकर सड़कों पर घूमते रहते थे, अजीबो-गरीब कपड़े पहनते थे और घरों में घुसकर लोगों को लूटते थे। उनके लिए दूसरों की जान लेना मुर्गी काटने जैसा था। उन्होंने जगह-जगह नाकाबंदी कर रखी थी और लाशों के ढेर लगा रखे थे। शाखा दफ्तर के आस-पास भी यही हाल था। हमारे कई वफादार भाई-बहनों को मार डाला गया। इनमें से दो तो मिशनरी थे।

लड़ाकू लोग दूसरी जाति के लोगों को ढूँढ़-ढूँढ़कर मार रहे थे। ऐसे में भाई-बहनों ने अपनी जान खतरे में डालकर दूसरी जाति के भाई-बहनों को अपने घरों में छिपाया। मिशनरी भाई-बहनों ने और बेथेल में सेवा करनेवालों ने भी ऐसा ही किया। कुछ भाई-बहन भागकर बेथेल आ गए थे। इनमें से कुछ लोग ऊपरवाली मंज़िल पर हमारे कमरों में सोते थे और कुछ नीचे ऑफिस वगैरह में। हमने अपने कमरे में एक परिवार को रुकाया था जिसमें सात लोग थे।

पॉल: लड़ाकू लोग हर दिन आकर देखने की कोशिश करते थे कि कहीं हमने दूसरी जाति के लोगों को तो नहीं छिपा रखा है। निगरानी के लिए हमने चार भाइयों को रखा था। जब कोई आता था, तो दो भाई गेट पर जाते थे और दो खिड़की से उन पर नज़र रखते थे। जो भाई गेट पर जाते थे, अगर वे अपने हाथ आगे की तरफ बाँध लेते तो इसका मतलब था कि सब ठीक है। लेकिन अगर वे अपने हाथ पीछे की तरफ बाँध लेते, तो बाकी दोनों भाई समझ जाते थे कि लड़ाकू लोग बहुत गुस्से में हैं और वे तुरंत जाकर भाई-बहनों को छिपा देते थे।

ऐन: कई हफ्तों बाद कुछ लड़ाकू लोग ज़बरदस्ती बेथेल में घुस आए। मैं एक बहन को लेकर बाथरूम में चली गयी और दरवाज़ा बंद कर लिया। बाथरूम में एक अलमारी थी जिसमें छिपने की छोटी-सी जगह थी। मैंने जैसे-तैसे बहन को वहाँ छिपा दिया। वे लोग मेरे पीछे-पीछे ऊपर आ गए। उनके हाथ में मशीन गन थीं। वे ज़ोर-ज़ोर से बाथरूम का दरवाज़ा पीटने लगे। पॉल ने उन्हें रोकने की कोशिश की और कहा, “मेरी पत्नी बाथरूम गयी है।” बहन को छिपाने के बाद मैं अलमारी में चीज़ें वापस रखने लगी और इसमें थोड़ा वक्‍त लग गया। मुझे लगा कि लड़ाकू लोगों ने ये सारी आवाज़ें सुन ली हैं और उन्हें शक हो गया है, इसलिए मैं बुरी तरह काँपने लगी। ऐसे में मैं दरवाज़ा कैसे खोलती? मैंने मन-ही-मन प्रार्थना की और यहोवा से मदद माँगी। फिर मैंने दरवाज़ा खोला और बड़े आराम से उन्हें हैलो कहा। एक आदमी मुझे धक्का देकर बाथरूम में घुस गया और अलमारी खोलकर देखने लगा। उसने सबकुछ बिखेर दिया। वह बड़ा हैरान था कि उसे कुछ नहीं मिला। फिर उसने और उसके साथियों ने ऊपर से लेकर नीचे तक पूरा घर छान मारा, लेकिन उनके हाथ कुछ नहीं लगा।

अँधेरे में भी सच्चाई की रौशनी चमकाते रहे

पॉल: हमारे पास खाने-पीने की चीज़ें बहुत कम थीं, लेकिन परमेश्‍वर से मिलनेवाले खाने की कोई कमी नहीं थी। कई महीनों तक हम नाश्‍ते में सिर्फ सुबह की उपासना सुनते थे। हम बता नहीं सकते कि उससे हमें कितनी ताकत मिली।

हम बाहर जाकर खाने-पीने की चीज़ें नहीं ला सकते थे, वरना जो भाई-बहन बेथेल में छिपे हुए थे, वे मारे जाते। हमने देखा कि कई बार यहोवा ने बिलकुल सही वक्‍त पर और ऐसे तरीके से मदद की कि हम सोच भी नहीं सकते थे। उसने हर वक्‍त हमें सँभाला और डर पर काबू करने में हमारी मदद की।

लाइबेरिया में हालात बद-से-बदतर होते जा रहे थे और कोई उम्मीद नज़र नहीं आ रही थी। लेकिन सच्चाई की वजह से भाई-बहनों ने उम्मीद नहीं खोयी। अपनी जान बचाने के लिए उन्हें कई बार भागना पड़ा, लेकिन उनका विश्‍वास नहीं डगमगाया। मुश्‍किलों में भी वे शांत रहे। उनमें से कुछ कह रहे थे कि ये मुश्‍किलें उन्हें महा-संकट के लिए तैयार कर रही हैं। प्राचीनों ने और जवान भाइयों ने बहुत हिम्मत दिखायी और भाई-बहनों की मदद की। और भाई-बहनों ने भी एक-दूसरे को सँभाला। जब वे भागकर किसी दूसरी जगह जाते थे, तो वहाँ भी प्रचार करते थे और सभाएँ चलाते थे। उन्होंने जंगल में पेड़ों की डालियों और पत्तों से राज-घर बनाए। इस मुश्‍किल-भरे वक्‍त में सभाओं से और प्रचार करने से उन्हें बहुत हिम्मत मिली। जब हमने भाई-बहनों को राहत का सामान बाँटा, तो कई लोगों ने कपड़ों के बजाय प्रचार के लिए बैग माँगे। यह बात हमारे दिल को छू गयी! वहाँ लोग बहुत दुखी और डरे हुए थे। जब हम उन्हें खुशखबरी सुनाते थे, तो वे बड़े ध्यान से हमारी सुनते थे। वे यह देखकर हैरान हो जाते थे कि इतनी मुश्‍किलों में भी हम यहोवा के साक्षी कितने खुश हैं। सच में, भाई-बहन अँधेरे में रौशनी की तरह चमक रहे थे! (मत्ती 5:14-16) उनका जोश देखकर कुछ लड़ाकुओं ने भी आगे चलकर सच्चाई अपनायी।

भाइयों से जुदा होने पर यहोवा ने हिम्मत दी

पॉल: बीच-बीच में हमें लाइबेरिया छोड़कर जाना पड़ा, तीन बार तो कुछ समय के लिए और दो बार पूरे-पूरे साल के लिए। एक मिशनरी बहन ने कहा, “गिलियड में हमें सिखाया गया था कि हमें जो भी काम मिले, हम उसे दिलो-जान से करें और हमने ऐसा ही किया। इसलिए जब मुश्‍किल हालात में हमें भाई-बहनों को छोड़कर जाना पड़ा, तो हमें बहुत दुख हुआ। हम पूरी तरह टूट गए!” हमें भी हर बार लाइबेरिया छोड़ते वक्‍त ऐसा ही लगता था। लेकिन खुशी की बात है कि लाइबेरिया से बाहर रहकर भी हम वहाँ के भाई-बहनों की मदद कर पाए।

भाई पॉल और बहन ऐन लाइबेरिया के हवाई-अड्डे पर उतरे हैं और चलते हुए आ रहे हैं।

1997 में लाइबेरिया वापस आकर हम बहुत खुश थे

ऐन: मई 1996 की बात है। हम बेथेल से 16 किलोमीटर (10 मील) दूर एक सुरक्षित जगह जाना चाहते थे। इसलिए हम चार लोग बेथेल की गाड़ी में निकल पड़े। हमारे पास शाखा दफ्तर के कुछ ज़रूरी कागज़ात भी थे। लेकिन तभी हमारे इलाके में दंगे शुरू हो गए। लड़ाकू लोग हवा में गोलियाँ चलाने लगे और उन्होंने हमारी गाड़ी रोक दी। उन्होंने हम तीन लोगों को गाड़ी से निकाला और पॉल को गाड़ी के साथ ही लेकर चले गए। हमें समझ ही नहीं आया कि क्या हुआ। फिर अचानक पॉल भीड़ में से चलता हुआ हमारी तरफ आया। उसके सिर से खून बह रहा था। हमें लगा कि उसे गोली लग गयी है। फिर हमने सोचा, गोली लगी होती तो वह चल कैसे पाता। असल में किसी ने उसे मारा था और गाड़ी से बाहर फेंक दिया था। शुक्र है उसे ज़्यादा चोट नहीं आयी!

पास ही में मिलिट्री की एक गाड़ी खड़ी थी जो खचाखच भरी हुई थी। लोग बहुत डरे हुए थे। हम जैसे-तैसे उस गाड़ी पर लटक गए। ड्राइवर ने इतनी तेज़ी से गाड़ी भगायी कि हम गिरते-गिरते बचे। हमने उसे रोकने के लिए कहा, लेकिन वह इतना घबराया हुआ था कि उसने हमारी सुनी ही नहीं। हम कैसे भी गाड़ी पर लटके रहे। फिर जब गाड़ी रुकी और हम उतरे, तो हमारा बुरा हाल था। इतनी देर लटके रहने की वजह से हमारे हाथ काँप रहे थे।

पॉल: हमारे पास कुछ नहीं था। हमारे कपड़े गंदे हो चुके थे और फट गए थे। हमने एक-दूसरे को देखा और सोचा, आज तो बाल-बाल बच गए! हम एक हेलिकॉप्टर के पास खुले मैदान में ही सो गए। हेलिकॉप्टर पर गोलियों के बहुत सारे निशान थे, वह एकदम खस्ता हाल में था। अगले दिन हम उसी हेलिकॉप्टर से सिएरा लियोन गए। हम खुश थे कि हम ज़िंदा हैं, लेकिन हमें लाइबेरिया के भाई-बहनों की बहुत चिंता हो रही थी।

यहोवा ने एक और मुश्‍किल सहने की हिम्मत दी

ऐन: हम सही-सलामत सिएरा लियोन के बेथेल पहुँच गए जो फ्रीटाउन शहर में था। वहाँ भाइयों ने बहुत अच्छी तरह हमारा खयाल रखा। पर फिर मुझे युद्ध की बुरी यादें सताने लगीं। दिन-भर मैं डरी-डरी रहती थी। मैं ठीक से सोच नहीं पाती थी, समझ नहीं आता था कि आस-पास जो हो रहा है, वह सच में हो रहा है या सपना है। रात में अचानक मेरी नींद खुल जाती थी। मुझे लगता था कि कुछ बुरा होनेवाला है और मैं काँपने लगती थी। मेरे हाथ-पैर ठंडे पड़ जाते थे और साँस लेना भी मुश्‍किल हो जाता था। तब पॉल मुझे अपनी बाहों में ले लेते थे और प्रार्थना करते थे। हम तब तक राज-गीत गाते थे, जब तक मैं शांत नहीं हो जाती थी। मुझे लगा मैं पागल हो गयी हूँ और अब मैं मिशनरी सेवा नहीं कर पाऊँगी।

फिर कुछ ऐसा हुआ जिसे मैं कभी नहीं भूल सकती। उसी हफ्ते हमें दो पत्रिकाएँ मिलीं। उनमें से एक थी 8 जून, 1996 की सजग होइए! (अँग्रेज़ी।) उसमें एक लेख आया था जिसका विषय था, “पैनिक अटैक आए, तो क्या करें?” उसे पढ़कर मुझे समझ आया कि मेरे साथ क्या हो रहा है। और दूसरी पत्रिका थी 15 मई, 1996 की प्रहरीदुर्ग। उसमें एक लेख आया था जिसका विषय था, “उन्हें उनका सामर्थ कहाँ से मिलता है?” उस लेख में एक तितली की तसवीर थी जिसके पंख काफी टूटे हुए थे। उसमें समझाया गया था कि पंख टूटने के बाद भी तितली उड़ती रहती है। उसी तरह जब हम टूट जाते हैं, तो यहोवा की पवित्र शक्‍ति हममें दम भर देती है और हम दूसरों की भी मदद कर पाते हैं। ये दोनों लेख यहोवा की तरफ से बिलकुल सही वक्‍त पर मिला खाना था। (मत्ती 24:45) मैंने इस तरह के और भी लेख ढूँढ़े और एक फाइल में उन्हें सँभालकर रखा। इनसे मुझे बहुत मदद मिली। धीरे-धीरे मेरी हालत सुधारने लगी और मेरा डर कम होने लगा।

यहोवा ने नयी जगह जाकर सेवा करने की हिम्मत दी

पॉल: जब भी हम अपने घर लाइबेरिया लौटते थे, तो हमें बहुत खुशी होती थी। 2004 के आखिर तक हमें वहाँ सेवा करते हुए करीब 20 साल हो चुके थे। युद्ध खत्म हो गया था और शाखा दफ्तर में कुछ निर्माण काम करने की योजना बनायी जा रही थी। लेकिन फिर हमसे कहा गया कि हमें सेवा के लिए दूसरी जगह भेजा जा रहा है।

यह हमारे लिए बहुत मुश्‍किल था। लाइबेरिया के भाई-बहन हमारा परिवार बन गए थे, उनके बिना हम कैसे रहते! हमने गिलियड जाने के लिए अपने परिवार को छोड़ा था, लेकिन उस वक्‍त यहोवा ने हमें सँभाला और हमें ढेरों आशीषें दीं। इसलिए हम नयी जगह जाने के लिए तैयार थे। इस बार हमें घाना भेजा गया।

ऐन: लाइबेरिया छोड़ते वक्‍त हम बहुत रोए। एक बुज़ुर्ग भाई, फ्रैंक ने हमसे कहा, “तुम हमें भूल जाना।” यह सुनकर हम चौंक गए। लेकिन फिर उन्होंने समझाया, “हम जानते हैं कि तुम हमें कभी नहीं भूल पाओगे। लेकिन नयी जगह पर दिल लगाकर सेवा करना। यह काम यहोवा ने तुम्हें दिया है, इसलिए वहाँ के भाई-बहनों पर ध्यान देना और उनकी मदद करना।” उस भाई की सलाह बहुत अच्छी थी। हम एक बार फिर एक नयी जगह जाकर नए दोस्त बनाने के लिए तैयार थे।

पॉल: देखते-ही-देखते हम घाना में अपने नए परिवार के साथ घुल-मिल गए। वहाँ बहुत सारे भाई-बहन थे! उनका विश्‍वास बहुत मज़बूत था और वे मुश्‍किलों के बावजूद वफादार थे। हमने उनसे काफी कुछ सीखा। घाना में 13 साल सेवा करने के बाद हमें एक और खबर मिली। हमसे कहा गया कि हम पूर्वी अफ्रीका के शाखा दफ्तर जाकर सेवा करें जो केन्या में है। हमें घाना और लाइबेरिया के भाई-बहनों की याद सताती थी। लेकिन केन्या पहुँचकर हमने जल्द ही नए दोस्त बना लिए। आज भी हम केन्या में सेवा कर रहे हैं और यहाँ बहुत सारा काम बाकी है।

तसवीरें: 1. बहन ऐन ने एक छोटी लड़की को गोद में लिया हुआ है और वे मुस्कुरा रही हैं। 2. भाई पॉल और कुछ जवान भाई साथ में सेल्फी ले रहे हैं।

2023 में केन्या में अपने नए दोस्तों के साथ

यहोवा ने हमें बहुत कुछ सिखाया

ऐन: हम ज़िंदगी में कई मुश्‍किलों से गुज़रे। इससे मेरी सेहत पर और मेरी भावनाओं पर बहुत बुरा असर पड़ा है। यहोवा चमत्कार करके हमें मुश्‍किलों से नहीं बचाता। आज भी जब मैं गोलियों की आवाज़ सुनती हूँ, तो मेरा जी घबराने लगता है और मेरे हाथ सुन्‍न पड़ जाते हैं। लेकिन हमारी हिम्मत बढ़ाने के लिए यहोवा ने हमें बहुत कुछ दिया है, जैसे उसने हमें इतने प्यारे भाई-बहन दिए हैं। मैंने देखा है कि अगर हम अध्ययन करते रहें, प्रार्थना करते रहें, सभाओं और प्रचार के लिए जाते रहें, तो हमें सेवा में लगे रहने की हिम्मत मिल जाती है।

पॉल: कुछ लोग पूछते हैं, “क्या आपको मिशनरी सेवा पसंद है?” मैं उनसे कहता हूँ, कई देश बहुत खूबसूरत होते हैं, लेकिन हालात कभी-भी बदल सकते हैं और मुश्‍किलें आ सकती हैं। इसलिए हमें जगह से ज़्यादा भाई-बहनों से प्यार है और वे ही हमारा परिवार हैं। भले ही हमारी परवरिश अलग-अलग माहौल में हुई हो और हम अलग-अलग जगह से हों, लेकिन हमारी सोच एक जैसी है। हमें भाई-बहनों का हौसला बढ़ाने के लिए भेजा जाता है, पर सच तो यह है कि उनसे मिलकर हमारा हौसला बढ़ जाता है।

हम जहाँ भी गए, हमें भाई-बहनों से बना परिवार मिला। यह किसी चमत्कार से कम नहीं है! जब तक हम यहोवा की मंडली का हिस्सा हैं, हमारे पास रहने के लिए एक सुंदर आशियाना है। हमें पूरा यकीन है कि अगर हम यहोवा पर भरोसा रखें, तो वह हमें ज़रूरत के हिसाब से हिम्मत और ताकत देगा।—फिलि. 4:13.

a 15 मार्च, 1973 की अँग्रेज़ी प्रहरीदुर्ग में छपी भाई जॉन चेरुक की जीवन कहानी, “I Am Grateful to God and Christ” पढ़ें।

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