मरकुस
अध्ययन नोट—अध्याय 16
सब्त का दिन: सब्त का दिन (नीसान 15) सूरज ढलने पर खत्म हो गया। यीशु के ज़िंदा होने के बारे में जानकारी खुशखबरी की चारों किताबों में पायी जाती है।—मत 28:1-10; मर 16:1-8; लूक 24:1-12; यूह 20:1-29.
मरियम मगदलीनी: मत 27:56 का अध्ययन नोट देखें।
याकूब: यानी छोटा याकूब।—मर 15:40 का अध्ययन नोट देखें।
सलोमी: मर 15:40 का अध्ययन नोट देखें।
खुशबूदार मसाले खरीदे ताकि . . . यीशु के शरीर पर लगाएँ: “यहूदियों के दफनाने की रीत के मुताबिक” यीशु की लाश को दफनाने से पहले उस पर मसाले लगाए गए थे। (यूह 19:39, 40) लेकिन ज़ाहिर है कि यह काम जल्दी में किया गया था, क्योंकि यीशु की मौत सब्त शुरू होने से करीब तीन घंटे पहले हुई थी और सब्त के दिन ऐसा काम करने की मनाही थी। सब्त के बाद हफ्ते के पहले दिन यानी यीशु की मौत के तीसरे दिन, ये औरतें शायद यीशु की लाश पर और भी मसाले और तेल लगाने आयी थीं ताकि उसकी लाश लंबे समय तक रह सके। (लूक 23:50–24:1) मुमकिन है कि जिन कपड़ों में लाश लपेटी गयी थी, उनके ऊपर ही वे मसाले और तेल लगातीं।
हफ्ते के पहले दिन: मत 28:1 का अध्ययन नोट देखें।
कब्र: मत 27:60 का अध्ययन नोट देखें।
पत्थर: ज़ाहिर है कि यह गोल था क्योंकि आयत कहती है कि यह “पहले से ही दूर लुढ़का हुआ था।” इसका वज़न शायद एक टन या उससे ज़्यादा रहा होगा। मत्ती के ब्यौरे में इसे “एक बड़ा पत्थर” बताया गया है।—मत 27:60.
बाकी चेलों से कहो: मत 28:7 का अध्ययन नोट देखें।
पतरस: खुशखबरी की किताबों के चार लेखकों में से सिर्फ मरकुस ने लिखा कि स्वर्गदूत ने पतरस का नाम लिया। (इसके मिलते-जुलते ब्यौरे मत 28:7 से तुलना करें।) यूह 20:2 के मुताबिक जब मरियम मगदलीनी ने देखा कि यीशु की कब्र खाली है, तो वह “शमौन पतरस और उस चेले के पास गयी जिससे यीशु को बहुत प्यार था” जो यूहन्ना था। ऐसा मालूम होता है कि यीशु पहले पतरस से अकेले में मिला था और कुछ समय बाद अपने सभी चेलों के सामने प्रकट हुआ था। (लूक 24:34; 1कुर 15:5) यह देखकर कि यीशु खासकर उससे मिलने आया है और स्वर्गदूत ने भी उसका नाम लिया था, पतरस को यकीन हो गया होगा कि उसके दोस्त यीशु ने उसे माफ कर दिया है, जबकि पतरस ने उसे जानने से तीन बार इनकार किया था।—मत 26:73-75.
क्योंकि वे बहुत डरी हुई थीं: आज मौजूद मरकुस की सबसे प्राचीन हस्तलिपियों के मुताबिक, खुशखबरी की यह किताब आयत 8 में दिए शब्दों से खत्म होती है। कुछ लोगों का दावा है कि किताब की समाप्ति इस तरह अचानक नहीं हो सकती। लेकिन यह दावा सही नहीं लगता क्योंकि मरकुस के लिखने की शैली ऐसी थी कि वह कम शब्दों में बात कहता था। इसके अलावा, चौथी सदी के विद्वान जेरोम और युसेबियस ने भी बताया कि मरकुस की असली किताब आगे बताए शब्दों से खत्म होती है: “क्योंकि वे बहुत डरी हुई थीं।”
ऐसी कई यूनानी हस्तलिपियाँ और दूसरी भाषाओं के अनुवाद हैं जिनमें आयत 8 के बाद लंबी या छोटी समाप्ति दी गयी है। लंबी समाप्ति (जिसमें 12 और आयतें हैं) पाँचवीं सदी की हस्तलिपियों में पायी जाती है जैसे, कोडेक्स एलेक्ज़ैंड्रिनस, कोडेक्स एफ्रीमी सीरि रिसक्रिपटस और कोडेक्स बेज़ी कैंटाब्रिजिएनसिस। यह समाप्ति लातीनी वल्गेट, क्युरेटोनियन सीरियाई और सीरियाई पेशीटा में भी पायी जाती है। लेकिन यह समाप्ति दूसरी कुछ हस्तलिपियों में नहीं पायी जाती। जैसे, चौथी सदी की दो यूनानी हस्तलिपियाँ कोडेक्स साइनाइटिकस और कोडेक्स वैटिकनस, चौथी या पाँचवीं सदी की हस्तलिपि कोडेक्स साइनाइटिकस सिरियकस और पाँचवीं सदी की मरकुस की वह हस्तलिपि जो प्राचीन साहिदिक कॉप्टिक भाषा में लिखी गयी थी। उसी तरह, आर्मीनियाई और जॉर्जियाई भाषा में मरकुस की सबसे पुरानी हस्तलिपियाँ भी आयत 8 के शब्दों से खत्म होती हैं।
बाद की कुछ यूनानी हस्तलिपियों और दूसरी भाषाओं के अनुवादों में छोटी समाप्ति (जिसमें सिर्फ एक-दो वाक्य और लिखे हैं) दी गयी है। आठवीं सदी की हस्तलिपि कोडेक्स रीजियस में दोनों समाप्तियाँ दी गयी हैं, पहले छोटी समाप्ति और बाद में बड़ी समाप्ति। हर समाप्ति से पहले एक नोट दिया गया है जिसमें लिखा है कि यह जानकारी 8वीं सदी के कुछ विशेषज्ञों ने स्वीकार की। फिर भी सबूतों से पता चलता है कि कोडेक्स रीजियस में इन दोनों समाप्तियों को प्रमाणित नहीं माना गया है।
छोटी समाप्ति
मर 16:8 के बाद दी गयी छोटी समाप्ति परमेश्वर की प्रेरणा से लिखे गए शास्त्र का हिस्सा नहीं है। इसमें लिखा है:
मगर जितनी बातों की उन्हें आज्ञा दी गयी थी, वे सब उन्होंने चंद शब्दों में उन्हें बता दीं जो पतरस के आस-पास थे। इसके अलावा, इन सब बातों के बाद, यीशु ने खुद उनके ज़रिए पूरब से पश्चिम तक, हमेशा के उद्धार के पवित्र और अविनाशी संदेश का ऐलान करवाया।
लंबी समाप्ति
मर 16:8 के बाद दी गयी लंबी समाप्ति परमेश्वर की प्रेरणा से लिखे गए शास्त्र का हिस्सा नहीं है। इसमें लिखा है:
9 हफ्ते के पहले दिन सुबह होते ही, जी उठने के बाद यीशु पहले मरियम मगदलीनी को दिखायी दिया, जिसमें से उसने सात दुष्ट स्वर्गदूतों को निकाला था। 10 वह गयी और जो यीशु के साथ रहा करते थे उन्हें जाकर इसकी खबर दी, क्योंकि वे मातम मना रहे थे और रो रहे थे। 11 मगर जब उन्होंने सुना कि वह जी उठा है और उसे दिखायी दिया है, तो यकीन न किया। 12 इसके अलावा, यह सब होने के बाद जब उनमें से दो देहात की तरफ जा रहे थे, तब यीशु उन्हें दूसरे रूप में दिखायी दिया और उनके साथ-साथ चल रहा था। 13 वे वापस आए और बाकियों को खबर दी। मगर उन्होंने इनका भी यकीन नहीं किया। 14 मगर बाद में जब वे खाने की मेज़ के सामने टेक लगाए थे, तो वह ग्यारहों को दिखायी दिया और उसने उनके विश्वास की कमी और दिलों की कठोरता के लिए उन्हें उलाहना दी। क्योंकि उन्होंने उनका यकीन नहीं किया था जिन्होंने उसे मरे हुओं में से जी उठने के बाद देखा था। 15 और उसने उनसे कहा: “सारी दुनिया में जाओ और सब लोगों को खुशखबरी सुनाओ। 16 जो यकीन करता है और बपतिस्मा लेता है वह उद्धार पाएगा, मगर जो यकीन नहीं करता वह दोषी ठहराया जाएगा। 17 इसके अलावा, यकीन करनेवालों में ये अलग-अलग चमत्कार दिखायी देंगे: वे मेरे नाम से दुष्ट स्वर्गदूतों को निकालेंगे, अलग-अलग भाषाएँ बोलेंगे, 18 और वे अपने हाथों से साँपों को उठा लेंगे और अगर वे कोई ज़हरीली चीज़ पी जाएँ, तौभी वह उन्हें कोई नुकसान न पहुँचाएगी। वे बीमार लोगों पर अपने हाथ रखेंगे और वे चंगे हो जाएँगे।”
19 इस तरह प्रभु यीशु उनसे बातें करने के बाद स्वर्ग में उठा लिया गया और परमेश्वर के दायीं तरफ बैठ गया। 20 इसी के मुताबिक, चेले निकले और उन्होंने हर जगह प्रचार किया। इस दौरान प्रभु ने उनके साथ काम किया और उनके ज़रिए अलग-अलग चमत्कारों से उनके संदेश की गवाही दी।