बड़ा व्यवयास और नैतिकता
जब बड़े व्यवसाय कानून के अन्दर रहकर कार्य करते हैं, फिर भी, कैसे लोग उसका शिकार बन सकते है? क्योंकि सामान्यतः व्यवसाय का लक्ष्य लाभ उठाना है। बहुत से व्यवसायी अपने काम के बारे में कोई नैतिक फैसला नहीं करना चाहते कि जो लाभ होता है वह कहाँ से आता है।
उदाहरण के लिए, एक के बाद एक परीक्षा ने यह प्रदर्शित किया है कि अधिकांश लोग तम्बाकू फूँकने के कारण प्राण-घातक परिणामों को सहते हैं। तथापि, तम्बाकू की बड़ी निगम अपने हानिकारक उत्पादन बढ़ा कर उन्हें बाज़ारों में भेज कर भारी लाभ उठाते हैं। और वे बराबर ऐसी चीज़ों का विज्ञापन देकर अधिकाधिक लोगों का उत्साह बढ़ाते हैं ताकि उन्हें यह आदत लग जाए। वास्तविक रूप में, तथ्य यही है कि इससे जो पैसे मिलते हैं उसके लिए उनके मन में एक निरुत्तर तर्क है। और जब निगम दूसरे देशों से इसका व्यवसाय करते हैं, तब वे अपने कार्यों के परिणामों पर और भी ध्यान नहीं देते।
बड़ा व्यवसाय लोगों को एक और तरीके से शिकार बना सकता है। एक ऐसे उत्पादन को बेचने के लिए, जिसके वास्तव में किसी को आवश्यकता नहीं होती है, कुछ निगम ऐसी आवश्यकता को विज्ञापन द्वारा उत्पन्न करने में बहुत सा धन लगा कर लोगों को यह महसूस कराती हैं, कि ऐसी अनावश्यक वस्तुएँ किसी न किसी प्रकार आवश्यक है। इसका एक उदाहरण हाल ही के वर्षों में, बच्चों को दूध पिलाने की एक सूत्र, बाज़ारों में प्रगट हुआ—गरीब देशों में नन्हें बच्चों को बोतल से दूध पिलाने की तैयारियाँ।
सभी निपुण लोग इस बात से सहमत हैं कि एक नए जन्मे बालक के लिए उसकी माँ का दुध ही एक सिद्ध आहार है। फिर भी, बड़ी निगम पर दोष लगाया गया है कि उन्होंने जबरदस्ती गरीब देशों में इसका विपण किया है, ताकि माताओं को यह आश्वासन दिलाई जाए कि उनके बालक और भी ज्यादा स्वस्थ होंगे अगर उन्होंने इस सूत्र के अनुसार दूध दिया। इसका परिणाम? माताओं ने इस मामूली अनावश्यक उत्पादन पर दुष्प्राप्य पैसा खर्च किया है। अक्सर वे हिदायतों को समझ नहीं सकी और बच्चों की दूध की बोतल को उबलते पानी में धोने की आवश्यकता का मूल्यांकन नहीं किया। इस लिए, बच्चा कुपोषण या दस्त का शिकार हो सकता है।
रिपोर्टों से पता चलता है कि शिशु सूत्र के बिक्री को बढ़ाने के लिए माताओं को बच्चा जनने के तुरन्त बाद ही एक मुफ्त नमूना दिया गया। जब मुफ्त नमूना खत्म हो गया तो माँ को पता चला कि अब वह अपना दूध नहीं पिला सकती है सो उसे अब इसी तरीके को उपयोग करना पडेगा (सहज ही यह दूकान की कीमत के अनुसार)। क्यों? क्योंकि अगर माँ एक सप्ताह तक अपने बच्चे को अपना दूध नहीं पिलाएगी तो उसका दूध सूख सकता है।
यह कानूनी है परन्तु . . .
वास्तव में, गरीब देशों के साथ ऐसा करने पर बड़ी निगम की आलोचना की गई है। उदाहरण के लिए, बच्चों के २४ लाख पायजामा के साथ क्या हुआ जिन पर अमेरिका में रोक लगाई गई थी, क्योंकि उनके बनाने में कुछ ऐसी वस्तुएँ उपयोग में लायी गई थीं जिससे कैंसर हो सकता था? उन्हें ऐसा देशों को भेज दिया गया जो अच्छी तरह सुव्यवस्थित नहीं है।
हाल ही में इंगलैन्ड के एक अखबार दी गाड्यन ने यह घोषणा की थी: “दवाओं के अन्तरराष्ट्रीय उद्योग पर, जिस में इंगलैन्ड की प्रमुख कम्पनियाँ भी सम्मिलित हैं, औक्सफैम ने पिछले सप्ताह यह आरोप लगाया था कि ये कम्पनियाँ अपने व्यापारिक लाभ के लिए तृतीय विश्व (विकासमान देशों) के गरीबों को बराबर शोषण करती हैं।” अखबार ने यह भी कहा: “इसका सबसे अभिरांसी अभ्यारोपण बड़े औषध कम्पनियों की इच्छुकता है जो तृतीय विश्व को अत्याधिक खतरनाक और सम्भवतः ज़हरीला पदार्थ बेचते हैं—बहुधा सुरक्षा और क्षमता के दावे पर—जिसे उन्हें पश्चिमी देशों में से जबरदस्ती हटाना पड़ा।”
खबरें स्पष्ट करती हैं कि ऐसी दवाएँ तृतीय विश्व के देशों को पश्चिमी कम्पनियों के द्वारा जहाजों से भेजी जाती हैं जब कि पश्चिमी देशों में, उनकी खतरनाक परिणामों के कारण, उनपर रोक है। ऐशिया में व्यापक रूप से बिकने वाली प्रतिजीव खून की कमी के घातक रोग को पैदा कर सकती है। आफ्रिका में एक ऐसा स्टिरोइड हार्मोन बेचा जाता है जो औरतों में दाढ़ी बढ़ाती है, गंजापन पैदा कर सकता है और जवान लड़कियों के गुप्त भागों में परिवर्धन ला सकता है। दस्त रोकने का दवा, जो इन्डोनेशिया में बेची जाती है, जापान और अमेरिका से हटाना पड़ा क्योंकि उससे दिमाग को क्षति पहुँचती या अन्धापन आ सकता है।
इससे भी अधिक, कुछ दवा बेचने वाली कम्पनियाँ इन दवाओं को, विक्रेताओं की ताकों में पहुँचाने के लिए और भी ज्यादा आगे बढ़ गई है। डाक्टरों और अस्पतालों के प्रबन्धकों को घूस दी गईं जिस में “कार या उनके बच्चों को विश्वविद्यालय में मुफ्त शिक्षण सम्मिलित है।”
जब कि बड़े व्यवसाय की नैतिक समस्याएँ कहीं भी ज्यादा प्रकट नहीं होती जितना सब से बड़े व्यवसाय में हैं—हथियार बेचने का व्यवसाय।