क्यों बच्चे लापता होते हैं
शायद प्रत्येक माता के जीवन में ऐसा एक समय आया होगा जब उसका बच्चा लापता प्रतीत हुआ है। बच्चे का शायद स्कूल से घर आने में, खेलकर या दुकान से आने में देर हो गयी हो। जैसे समय निकलता जाता है, माता अपने बच्चे की सुरक्षा के प्रति उन्मत होती है और खोजना भी आरम्भ कर देती है। साधारणतः वह घुमक्कड़ बच्चा कुशल घर लौटता है—शायद अब अतिचिन्तित माता या पिता के हाथ से कुछ अनुशासन का सामना भी करना पड़े।
परन्तु बच्चों की एक बढ़ती हुई संख्या घर नहीं लौटते, वे दृष्टी से ओझल हो जाते हैं। कितने? वास्तव में यह कोई नहीं जानता। लियो गोल्डस्टोन कहते है, जो कि UNICEF (यूनाइटेड नेशन्स चिल्ढ्रन्स् फन्ड) के साथ आँकड़ो के वरिष्ठ सलाहकार हैं, “दुर्भाग्यवश, हमारे पास ऐसे आँकड़े नहीं है। अन्तर्राष्ट्रीय रूप से हम यह जमा नहीं करते।” इसलिए कि अधिकांश घटनाएँ केवल एक स्थानीय समस्या के रूप में देखी गयी हैं, सुनिश्चित राष्ट्रीय आँकड़े भी नहीं है। जैसे अमेरिका की सीनेटर पाउला हॉकिन्स घोषणा करती है: “कोई यह भी नहीं जानता कि प्रत्येक वर्ष कितने बच्चे गायब होते हैं।” वह आगे कहती है: “परन्तु हम जानते हैं कि यह एक ऐसी समस्या है, जिसकी हम अवहेलना नहीं कर सकते हैं।”
किन्तु अनुमानित संख्याएँ हैं। “द यूनाइटेट स्टेट्स डिपार्टमेंट आफ हेल्थ एन्ड ह्यूमन सर्विसस् ने अंदाजा लगाया है कि १८ लाख बच्चे प्रत्येक वर्ष घर से लापता होते हैं,” द न्यू यॉर्क टाइम्स रिपोर्ट करती है। “अधिकांश तुरन्त लौट आते हैं। बहुत तो माता-पिता द्वारा अपहरण का शिकार बनते हैं। सैकड़ों धोखे का शिकार बनते हैं। परन्तु प्रत्येक वर्ष ५०,००० बच्चें अब भी लापता हैं।” समाचारपत्र यह भी बताता है कि बच्चों का एक हज़ार मुरदे “इस देश में प्रत्येक वर्ष बिना कोई उनकी माँग किए हुए रह जाते हैं।”
अधिकांश स्वयं भागनेवाले हैं
अब तक के लापता बच्चों में अधिकांश स्वयं भागनेवाले होते हैं। केवल इटली में प्रत्येक वर्ष ५०,००० से अधिक बच्चे भाग जाते हैं। अमेरिका में करीब १३,००,००० वार्षिक घटनाएँ होती हैं। चार्ल्स सदरलैंड, सर्च, के निर्देशक जो वार्षिक भागनेवाले और लापता व्यक्तियों की रिपोर्ट के प्रकाशक हैं, कहते हैं, “परन्तु वे भागेनेवालों की घटनाएँ हैं, और वास्तव में लापता व्यक्तियाँ नहीं है। इनमें पुराने भागनेवाले भी शामिल हैं।”
भागनेवालों में से ९० प्रतिशत दो सप्ताह के भीतर लौट आते हैं। वे क्यों भागते हैं? बहुधा यह स्कूल या घर में की एक दुःखदायी या कष्टकर परिस्थिति के कारण होता है। किशोरावस्था की कालावधि भावनात्मक परिस्थितियों से भरी रहती हैं, जो यद्यपि स्वरूप में छोटा हैं, उस जवान के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। माता-पिता के साथ कोई असहमति, अपने मित्रों के हंसी-मज़ाक का भय, स्कूल में निम्न दरजों या कोई समस्या भी आसानी से भागने के लिए प्रवृत करता है।
माता-पिता का अलगाव, तलाक, पुनःविवाह, छोटे-छोटे गैर कानूनी काम करने के परिणामों का डर अन्य कारण हैं। अधिक गम्भीर समस्या—पियक्कड माता-पिता, शारीरिक तथा लैंगिक दुर्व्यवहार— भीइन भागने की घटनाओं के कारण होते हैं। ये परिस्थितियाँ साधारणतः परिवार में आर्थिक कठिनाई होने के समय बढ़ती है।
“फेंके गए” बच्चे
अमरिका में प्रत्येक वर्ष हज़ारों बच्चे तकनीकी तौर से “गृहहीन” वर्ग में आते हैं। इनमें अधिकतर “धक्का देकर निकाले गए” या “फेंके गए” हैं—बच्चे जिन्हें माता-पिताओं ने अपने घर से धक्के देकर निकाल दिए हैं, या उन पर दुर्व्यवहार किया है, जिससे वे अपने आप को अनचाहा अनुभव करते हैं, और घर छोड़ने के सिवाय कोई दूसरा मार्ग नहीं देखते। ऐसे घटनाओं के सरकारी अभिलेख नहीं है, क्योंकि वे माता-पिता जो अपने बच्चों को घर से निकाल देते हैं अथवा छोड़ देते हैं कभी-कभार उन्हें लापता होने की रिपोर्ट करते हैं।
अकसर, जब अधिकारी माता-पिता से उनके बच्चों के विषय में फोन करते हैं तब वे कहते हैं: ‘उन्हें रख लीजिए। हम उन्हें वापस नहीं चाहते।’ स्वार्थ और बच्चों की देखरेख करने के उत्तरदायित्व से स्वतंत्र होने की इच्छा और नशीली पदार्थो का सेवन करनेवाले बच्चे जिनके कार्यो को माता पिता और अधिक नहीं सह सकते, कारण हैं। इन बच्चों का क्या होता है? द न्यू यॉर्क टाइम्स रिपोर्ट करती है: “कई गृहहीन नौजवान सड़कों में रहते हैं, वे जीने के लिए वेश्यावृत्ति या नशीली पदार्थो की बिक्री करते हैं।” यह आगे कहती है: “इन गृहहीन जवानों में कुछों के लिए, घर और सड़कों में कोई बड़ा अन्तर नहीं होता है।”
गरीब राष्ट्रों में, त्यागे गए बच्चे बहुत ही साधारण हैं। यहाँ माता-पिता इनको खिला नहीं सकते और देखरेख भी कर नहीं सकते हैं। कभी-कभी वे अपने बच्चों की बिक्री करने की कोशिश करते हैं ताकि बच्चा और परिवार दोनों बच सके। भारत में हताश माता-पिता बच्चे को बहुधा रेल्वे स्टेशन पर छोड़ देते हैं। कोलोम्बिया के बोगोटा शहर के सड़कों में कुछ ५,००० त्यागे बच्चे घूमते हैं, जो अपनी अक़ल की कमाई खाते हैं, दूसरों का शिकार करते हैं और दूसरों का शिकार बनते हैं।
चुराए गए—माता-पिता द्वारा भी!
हज़ारो अन्य “लापता” बच्चे बनते हैं क्योंकि वे माता या पिता में से एक के द्वारा अपहरण किए जाते हैं। साधारणतः ये अपहरण माता-पिता के अलगाव या विवाह-विच्छेद के मुक़दमे से सम्बन्धित हैं जब वह माता या पिता बच्चे को छीन लेता है, जिसे बच्चे की अभिरक्षा अदालत द्वारा नहीं दी गयी। ऐसा बच्चा इस कारण से “लापता” है कि वह माता या पिता जिस के पास उसकी अभिरक्षा सौंपी गयी है नहीं जानते कि उनके बच्चे कहाँ रखे गए हैं। कभी कभी इन जवान बच्चों को देश के बाहर ले जाया जाता है। बहुधा, उनसे यह कह दिया जाता है कि उनके माता या पिता मर गए हैं या वे अब उन्हें पास नहीं रखना चाहते। उनमें से बहुतों पर अन्त में शारीरिक रूप से दुर्व्यवहार और कुछों की हत्या भी की गयी है।
फिर बच्चों का लापता होने की ऐसी अव्याख्येय घटनाएँ हैं जो अनजान लोगों द्वारा अपहरण किए जाते हैं या उन्हें भगा लिए जाते है। ये घटनाएँ बहुधा समाचारपत्रों के मुख्य शीर्षक बनते हैं। कुछेक देशों में वेश्यापन और चोरी के मक़सद से बच्चों को चुराया जाता है, या भिखारी के रूप में तरस खाने योग्य बनाने के लिए विरुपित किया जाता है। १३ वर्षीय तुलसा की एसी ही एक कहानी है, जो “अपने देश नेपाल से अपहरण की गई थी और बम्बई के प्रचुर शरीर बेचनेवालों के बाज़ारों” में उसकी बिक्री की गई थी। जैसे कि इंडिया टुडे ने रिपोर्ट किया है, आठ महीनों के थोड़े ही समय में उसकी तीन विभिन्न वेश्यालय में “बिक्री” की गई थी और उस पर “करीब २,००० पुरुषों के दूषित माँगों” का मनोरंजन का प्रबन्ध करने के लिए दबाव दिया गया। केवल तब, जब वह बहुत बीमार हो गई और उसे अस्पताल में भर्ती किया गया, “अपनी उम्र के बराबर रोगों की लम्बी सूची,” लेकर, वह उन बन्दिकर्ताओं से छुटकारा पाकर अपनी कहानी बता सकी। इसका परिणाम यह हुआ कि “शरीर के व्यापार” करनेवालों में से २८ व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया।
बच्चे का लापता होने का चाहे जो भी कारण हो, उन माता-पिताओं के लिए, जो अपने बच्चों से प्रेम करते और उन्हें चाहते है, एक बड़ी मर्मभेदी हालत है। इसे रोकने के लिए क्या माता-पिता कुछ कर सकते हैं?