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सजग होइए! ब्रोशर (1987) (gbr-2)
gbr-2 पेज 27-29

मौन पत्थर बोलते हैं

मेक्सिको के संवाददाता द्वारा

फरवरी २१, १९७८ को शहर के इलेक्ट्रिक कम्पनी के कुछ कार्यकर्ताओं ने मेंक्सिको शहर के निचले भाग में गड्ढा खोदते वक्‍त पत्थर की मूर्तिकला का एक अंश उघाड़ दिया। वह मेक्सिको के इतिहास का सब से महत्त्वपूर्ण पुरातत्वीय अन्वेषणों में से एक रहा।

यह मूर्तिकला एक ऐसे जगह में पायी गयी जहाँ एक समय अज़टेक शहर, टेनोकटिट्‌लन, का मुख्य मंदिर स्थित था। आज इस मन्दिर के टूटे-फूटे अवशिष्ट की खुदाई की गई और दर्शकों के लिए खुला है। दर्शकों में से कुछ केवल जिज्ञासू है। लेकिन दूसरे यह देखने के लिए उत्सुक हैं कि ये खंडहर हमें अज़टेक के निवासियों के बारे में क्या बता सकते हैं, जो एक प्राचीन मेक्सिको साम्राज्य के संस्थापक थे। क्योंकि इन मौन पत्थरों के पास कहने के लिए एक चित्ताकर्षक कहानी है।

मुख्य मंदिर

इस उत्खनन के पास ही जॉकालो सुरंगपथ स्टेशन है। यहाँ आप, मुख्य मन्दिर जैसे दिखा होगा, उसका एक शल्क नमूना देखेंगे। वह पिरैमिड के आकार का था और उसके ऊपर दो मीनार समान इमारत थे। अज़टेक उपासना का मुख्य केन्द्र होने के कारण यह टेनोक्‌टिट्‌लन के मध्य चौक में अन्य मन्दिरों से घेरा हुआ था। यहाँ अज़टेक लोगों द्वारा पूजित प्रमुख मूर्तियाँ थीं, युद्ध के ईश्‍वर हुइट्‌ज़िलोपोक्‌टली और वर्षा के ईश्‍वर ट्‌लेलॉक।

जब स्पेन देश के निवासी आए, तब टेनोक्‌टिट्‌लन एक द्वीप था जो झीलों से भरी एक घाटी में स्थित था। उसकी गलियों के समानान्तर नहर थे जहाँ से माल चालुपाओं में या छोटे नावों में वाहित किया जाता था। अपनी पुस्तक कोटिमॉक में सॉलवडॉर टॉस्कॉनों हमारे लिए इसका वर्णन करता है: “प्रमुख मन्दिर की बड़ी चौक द्वीप का मध्य भाग ले लिया और कॉरटेस आगे कहता है, ‘कि ऐसी कोई मानवीय भाषा नहीं जो इसकी शान और अनोखापन का वर्णन कर सकती है, इतना बड़ा है कि उसके अन्दर ५०० लोगों के लिए निवासस्थान बनाया जा सकता है। इस चौक में उपासना करने के लिए कई पिरैमिड थे, गेंद के खेलों के लिए एक जगह, पुरोहितों के घर, कपाल के चबूतरें (ज़ोमपन्टली) और काटा हुआ पत्थर और देवदार लकड़ी से बनाए गए मन्दिर। इन सब के अतिरिक्‍त, युध्द के सूर्यदेव हुइट्‌ज़िलोपोकट्‌ली के लिए बना मुख्य मन्दिर पिरैमिड जो ३० मीटर [१०० फुट] ऊँचा था—ऊपर तक के लिए ११६ सीढ़ियाँ—जहाँ से सम्पूर्ण द्वीप का दृश्‍य देखने को मिलता है।’”

खंडहर की भेंट

चलो, हम इस जानकारी को मन में रखते हुए उस खंडहरों की ओर चलें जो नीचे उत्खनन की ओर ले जाता है ताकि हमें सम्पूर्ण क्षेत्र का एक दृश्‍य मिलें। आप क्या देख रहे हैं? पहली दृष्टि में ये तो सिर्फ खंडहरों का एक समूह है! इस स्थल को, कुछ छोटे संस्थापनों के अलावा, वैसे ही रखा है जैसे उसे पाने पर था। लेकिन एक सूक्ष्म दृष्टि कुछ दिलचस्प विषयों को उद्‌घाटित करती है।

उदाहरणार्थ उत्खनन के मध्य भाग में आप जगहों को देखेंगे जहाँ हुईट्‌ज़िलोपोक्‌टिली और ट्‌लेलॉक की उपासना की गई थी। यह दिलचस्पी की बात है कि जिस संरचना का वर्णन कॉरटेस ने किया, वह इससे कहीं अधिक बड़ा था। स्पेन देश के निवासी, अज़टेक संस्कृति को उखाड़ देना चाहते थे और खासकर उसे, जिसे वे एक रक्‍तपिपासु धर्म मानते थे। इसलिए १५२१ में उस शहर पर विजय प्राप्त करने के बाद, वे जान बूझकर उस मन्दिर का ऐसे नाश किया कि सिर्फ पत्थर के टुकड़े बचे रहें। फिर उन्होंने उनके अपनी इमारतों को उस स्थल में खड़ा कर दिया।

किन्तु जो स्पेन के निवासियों ने नहीं जाना वह यह था कि जिस मन्दिर का उन्होंने नाश किया वह निर्माणों की एक श्रंखला का आखिरी मन्दिर था। प्राथमिक इमारत को सात गुणा विवर्धित किया गया, प्रत्येक विवर्धन पूर्ववर्ती इमारत को छिपा लेता है। इसलिए, पहले के मन्दिरों के कूछ भाग स्पेन निवासियों के नाशन से बच निकले। यहाँ देखी जानेवाली, उपासना की दो जगहें, दूसरे विवर्धन के भाग हैं।

एक रक्‍तपिपासु धर्म

उपासना के इन जगहों में ही नर-बलि चढ़ाए जाते थे और ऐसे बलि ही अज़टेक धर्म को एक रक्‍तपिपासु धर्म का नाम दिया। फिर भी, उस धर्म को इन दिनों के धर्म से तुलना करते समय, डॉमिनिक वेरूट की टीका विचार करने योग्य है: “अज़टेक सभ्यता अपने संग संस्थागत किए गए मानवीय बलियों की बीभत्सा को लिए चले हैं, जो एक ऐसी सांस्कृतिक दृश्‍य घटना है जिसके कई समर्थक हैं, फिर भी उसके शत्रुओं में अब भी नफ़रत उत्पन्‍न करती है, जो नाज़ीवाद [और] पवित्र धर्माधिकरण के बारे में भूलते हैं।

किन्तु हुईट्‌ज़िलोपोक्‌टली के प्रार्थनागृह के सामने के बलि-पत्थर को देखने पर एक व्यक्‍ति को कँपकँपी टालना मुश्‍किल हो जाता है। इस पत्थर के सपाट तल पर बलि को लिटाया जाता था, चेहरा ऊपर की ओर होकर, उसका हृदय नोचकर ईश्‍वरों को देने के लिए तैयार रहता।

एक और पत्थर, जो देवी कोयोलसाओकी की मूर्ति है, अज़टेक उपासना के एक और पहलू को उद्‌घाटित करते है। कोयोलसाओकी हुईट्‌ज़िलोपोक्‌टली की बहन कहलाती है, जिसे उसने मारकर टुकड़ों में विभाजित किया। इसलिए यह समतल प्रतिमा उसके अंगच्छेद रूप का प्रतिनिधित्व करती है, जिस में सिर सीने से असंबध्द है। प्रत्यक्षत:, अज़टेक लोगों ने एक अंगच्छेद की गयी देवी की उपासना करने में कोई आशंका महसूस नहीं की।

तुलनाएँ—प्राचीन और आधुनिक

बाइबल के पाठक यह जानते हैं कि नर-बलि बहुधा झूठी उपासना का एक भाग बना है। कनानियों ने और कभी कभी धर्मत्यागी इस्राएलियों ने भी उनके बच्चों को अपदूत ईश्‍वरों के लिए बलि चढ़ाए थे। (२ राजा २३:१०; यिर्मयाह ३२:३५) अज़टेक लोगों में भी शिशु-बलि था। एल टेम्पलो मेयर पुस्तक में हम इसके बारे में पढ़ते हैं: “इन [गड्ढों] में से एक में बलिदान किए गए शिशुओं के अवशेष, वर्षा के ईश्‍वर की प्रतिनिधित्वों के साथ पाया गया। क्या अकाल के कारण यह कोई विशेष भेंट थी?”

पृष्ठ २१९ में वही पुस्तक आगे कहती है: “फ्रे वॉन डी टॉर्क्युमॉडः हमें इसके बारे में मॉनार्क्या इन्डियाना (इन्डियन राजतन्त्र), इस पुस्तक में कुछ कहते हैं: ‘सुवाह्‍य चबूतरों या तृणशैय्याओं पर जो फूलों और परों से प्रचुर मात्रा में सज्जित थे, बच्चों को पूर्ण रूप से सँवारकर बलि-स्थलों में ले जाया जाता, और इन्हें पुरोहितों और मंत्रियों के कँधों पर सँभाले जाते। दूसरे उनके सामने वाद्य बजाते, नाचते और गाते हुए आगे चलते। इस रीति से उन्हें वहाँ ले जाते, जहाँ उनका बलिदान करके अपदूत को अर्पित किया जाता था।’”

अज़टेक लोगों का धर्म और पुरानी दुनिया के धर्मों के बीच और अधिक समानताओं को सूचित करते हुए, यह प्रतिवेदित किया गया है कि ट्‌ललोक ईश्‍वर जननक्षमता का ईश्‍वर भी था। प्रमुख वेदियों में से एक उसके लिए समर्पित है। मन्दिर में दो बड़े साँपों की मूर्तियाँ भी थीं क्योंकि साँप भी जननक्षमता का प्रतीक है। उसी तरह, पुरानी दुनिया के कई प्राचीन मूर्तिपूजक धर्मों में जननक्षमता ईश्‍वर थे और साँप एक व्यापक धार्मिक प्रतीक था। यह भी दिलचस्पी की बात है कि, कोट्‌लिक्यु ने हुईट्‌ज़िलोपोक्‌टली को जन्म दिया और इस देवी माता को बाद में “सभी ईश्‍वरों की माता” कहलायी गयी।

अज़टेक लोग नए धर्म के अनुरूप हुए

स्पेन देश के लोगों ने कठिन परिश्रम किया और, बहुधा सख्ती से, अज़टेय धर्म को मेक्सिको से निकालने की कोशिश की। कई बार, उन्होंने पहले के इमारतों के पत्थरों को निर्माण कार्य में उपयोग करते हुए, उनके गिरजा, अज़टेक मन्दिरों के ऊपर बना लिए। अज़टेक मूर्तियों के टुकड़े तक निर्माण सामग्री के रूप में उपयोग किया गया।

फिर भी, अजटेक लोगों को नए धर्म से परिचित होना बहुत मुश्‍किल नहीं था। पत्थर की मूर्तियों के बदले, लकड़ी और मृतिका की मूर्तियाँ बनायी गयी। ये मूर्तियाँ ज़्यादा मानवीय लगती थीं लेकिन फिर भी वे मूर्तियाँ ही थी। और मेक्सिको की संस्कृति में कई पुराने धार्मिक विचार एक भाग बनकर रह गए। उदाहरणार्थ, मृतकों के लिए एक पूजापद्धति थी, जो हर साल नवम्बर के प्रारम्भ में मनाया जाता था। और इस नए धर्म के अनुयायी, प्राचीन मेक्सिको के निवासियों की तरह, आत्मा की अमरता पर विश्‍वास करते थे। इसलिए, कॉर्टेस द्वारा लाया गया धर्म और उस धर्म के बीच, जिसे वह नाश करने की कोशिश कर रहा था, बहुत समानताएं थीं।

इस मुख्य मन्दिर के मौन खंडहर, जो दर्शकों के लिए खुला है, एक साम्राज्य और एक संस्कृति का हमेशा के लिए नष्ट हो चुके हैं, तीव्रता से याद दिलाते हैं। वे हमें, क्रूर प्रथाओं की, ईश्‍वरों की, जिनकी उपासना अब कोई नहीं करते, और उन रिवाजों की जो अब भी परिरक्षित है लेकिन किसी और नाम और किसी और धर्म के तले स्मरण दिलाती हैं। और वे हमें उन विशिष्ट समानताओं की याद दिलाते हैं जो पुरानी दुनिया के धर्मों और नयी दुनिया के धर्मों के बीच मौजूद थीं।

[पेज 27 पर तसवीर]

देवी कोट्‌लिक्यु

[चित्र का श्रेय]

Nat’l Institute of Anthropology and History, Mexico

[पेज 28 पर तसवीर]

देवी कोयोलसाओकी

[चित्र का श्रेय]

Nat’l Institute of Anthropology and History, Mexico

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