वार्तालाप एक कला है
खाना, सोना, काम करना, ये मनुष्य की मूल ज़रूरतें हैं। फिर भी, एक और ज़रूरत है जिसे पूरा किया जाना चाहिए। वह क्या है?
एक ऐसे व्यक्ति के शब्दों पर ध्यान दीजिए जिसने जीवन की एक सबसे अनमोल ज़रूरत से वंचित, कालकोठरी में पाँच साल काटे। “मैं संगति के लिए, किसी से बात करने के लिए, वार्तालाप करने के लिए तरसता था,” वह स्वीकार करता है। “मुझे यह एहसास होने लगा कि मुझे अकेलापन दूर करने के लिए कुछ करना पड़ेगा। मेरी तनहाई और ख़ामोशी में मेरे मन पर असर पड़ता।”
जी हाँ, हमारे अन्दर संचार करने की जन्मजात ज़रूरत है। वार्तालाप उस ज़रूरत को पूरा करने में मदद करता है। अनुसंधायक डेनिस आर. स्मिथ और एल. कीथ विल्यमसन टिप्पणी करते हैं: “हमें ऐसे लोगों की ज़रूरत है जिन पर हम खुलकर भरोसा कर सकते हैं, जिनके साथ हम अपनी सबसे बड़ी ख़ुशियाँ और अपने सबसे परेशान करनेवाले डर बाँट सकते हैं, जिनके साथ हम बात कर सकते हैं।”
हमें बात करने की ज़रूरत है!
मनुष्यों को वाणी की अद्भुत भेंट दी गयी है। जी हाँ, हमें वार्तालाप करने के लिए रचा गया है। एक व्यक्ति ने यह टिप्पणी की: “हमें परमेश्वर ने मिलनसार होने के लिए सृजा था। यदि आपको बात करने का अवसर नहीं मिलता, या यदि कोई आपकी संचार करने की क्षमता छीन लेता है, तो यह एक सज़ा के जैसे है। जब आप वार्तालाप करते हैं तो एक मूल्यवान चीज़ होती है। आप अपने बारे में बेहतर महसूस करते हैं, और आप यह जानने से लाभ उठाते हैं कि दूसरे क्या सोचते और महसूस करते हैं।”
एक सफ़री सेवक की पत्नी, इलेन कहती है: “शब्द भावनाओं को व्यक्त करते हैं। हम यह मानकर नहीं चल सकते कि हमारा साथी यह जानता है कि वह हमारे लिए कितना मूल्यवान है। यह बोला जाना चाहिए; कानों को उन शब्दों को सुनने की ज़रूरत है। हमें वार्तालाप करने की ज़रूरत है।”
एक मसीही प्राचीन का बेटा, डेविड अपने आपको इस प्रकार व्यक्त करता है: “कभी-कभी मैं हताश हो जाता हूँ और मुझे सचमुच नहीं पता होता कि मैं कैसा महसूस करता हूँ। मेरी पहली प्रवृत्ति होती है चुप्पी साध लेना, फिर अन्दर दबाव बढ़ता है। मैं ने पाया है कि यदि मैं किसी से बात करता हूँ, तो वह मानो दबाव को बाहर निकालने के लिए एक द्वार होता है। जब मैं बात करता हूँ तो मेरे पास यह जानने का अवसर होता है कि मेरी समस्या क्या है और मैं अपनी समस्या का हल निकालने में समर्थ होता हूँ।”
वार्तालाप में बाधाएँ
सचमुच, वार्तालाप एक ज़रूरत को पूरा करता है। लेकिन, वार्तालाप में बाधाएँ हैं। असल में, कुछ लोगों के लिए वार्तालाप एक संघर्ष बन जाता है—एक ऐसा कार्य जिससे दूर रहा जाना चाहिए।
गैरी कहता है, “अपने अधिकांश जीवन में मैं ने दूसरे लोगों के साथ वार्तालाप करने से कतराना एक आसान काम पाया है।” वह समझाता है: “इसका मुख्य कारण है मुझमें आत्म-विश्वास की कमी। मैं अब भी इस डर से पीड़ित हूँ कि जब मैं लोगों से वार्तालाप करता हूँ, तो मैं मूर्ख दिखता हूँ या यह कि जो मैं ने कहा है उसके कारण कोई मेरी हँसी उड़ा सकता है।”
इलेन अपनी परेशानी को शर्मीलापन कहती है। वह समझाती है: “मैं एक ऐसे परिवार में बड़ी हुई जहाँ हम अर्थपूर्ण वार्तालाप नहीं करते थे। मेरे पिताजी बहुत ही धमकानेवाले व्यक्ति थे। सो जब मैं बड़ी हुई, तो मुझे लगा कि मेरे पास बोलने लायक़ कुछ नहीं था।” जी हाँ, शर्मीलापन वार्तालाप का आनन्द लेने में बड़ी बाधाएँ उत्पन्न कर सकता है। यह आपको ख़ामोशी की चारदीवारी में बंद कर सकता है!
“यह एक महामारी के समान है,” एक मसीही प्राचीन जॉन कहता है, जो स्वीकार करता है कि उसे आत्म-सम्मान की कमी से संघर्ष करना पड़ता है। “यदि आप शर्मीलेपन के आगे झुक जाते हैं, तो आप अपने आपको अकेला कर लेते हैं। चाहे कमरे में सौ लोग भी क्यों न हों, आप वार्तालाप नहीं करेंगे। और यह आपको बहुत महँगा पड़ता है!”
दूसरी ओर, डैनियल नाम का एक प्राचीन यह कहता है: “बात करने में मुझे कोई समस्या नहीं होती। लेकिन इससे पहले कि मुझे एहसास हो, मैं दूसरे को बीच में रोककर ख़ुद बोलना शुरू कर देता हूँ। मुझे इसके बारे में तब पता चलता है जब मैं अपनी पत्नी के चेहरे पर वह ख़ास भाव देखता हूँ, और मन में सोचता हूँ, ‘ओह हो, मैं ने फिर वही किया।’ मैं जानता हूँ कि बाक़ी के वार्तालाप से उसका मन उठ जाता है।”
वार्तालाप की इन और अन्य बाधाओं को कैसे पार किया जा सकता है? इस कला के लिए कौन-से गुण अनिवार्य हैं? उन्हें कैसे लागू किया जा सकता है?
‘मैं क्या कह सकता हूँ?’
‘मैं किस विषय पर बात कर सकता हूँ?’ ‘मैं कुछ नहीं जानता।’ ‘जो मुझे कहना है उसे कोई नहीं सुनना चाहता।’ हालाँकि आपके मन में ये विचार हों, लेकिन वे शायद सच नहीं हैं। आपको जितना एहसास है आप उससे कहीं ज़्यादा जानते हैं, और उसमें से कुछ जानकारी संभवतः दूसरों की दिलचस्पी की है। उदाहरण के लिए, शायद हाल ही में आप कहीं गए थे। लोग शायद जानना चाहें कि जहाँ वे रहते हैं उसकी तुलना में वह जगह कैसी है।
इसके अलावा, आप पढ़ने के द्वारा विभिन्न विषयों के बारे में अपना ज्ञान बढ़ा सकते हैं और आपको बढ़ाना चाहिए। हर दिन कुछ पढ़ने के लिए समय निकालना एक अच्छी आदत है। यहोवा के साक्षियों के साहित्य में बाइबल पर और साथ ही सामान्य दिलचस्पी के विषयों पर जानकारी होती है। आप जितनी अधिक जानकारी लेते हैं, उतना अधिक आप बाँट सकते हैं। यहोवा के साक्षियों के द्वारा प्रयोग की गयी पुस्तिका प्रतिदिन शास्त्रवचनों की जाँच करना में दिया गया दैनिक पाठ एक उत्तम उदाहरण है। हर दिन, वह आपको कुछ अलग बात सोचने और वार्तालाप में प्रयोग करने के लिए देता है।
वार्तालाप करने का यह अर्थ नहीं कि एक व्यक्ति को सारी बात स्वयं ही करनी है। दोनों जनों को अपने विचारों और भावनाओं को व्यक्त करना चाहिए। दूसरे व्यक्ति को बोलने का मौक़ा दीजिए। यदि वह चुप है तो आप शायद कुशलता से कुछ प्रश्न पूछकर उसे प्रोत्साहित कर सकें। मान लीजिए कि आप एक वृद्ध व्यक्ति से बात कर रहे हैं। आप उससे बीते समय की घटनाओं के बारे में पूछ सकते हैं और कि जब वह छोटा था तब से संसार या पारिवारिक जीवन कैसे बदल गया है। आप उसकी बात सुनने का आनन्द उठाएँगे, और आप सीखेंगे।
अच्छे श्रोता बनिए
ध्यानपूर्वक सुनना वार्तालाप में एक उपयोगी विशेषता है। जिस तरह हम दूसरों की सुनते हैं वह उन लोगों की मदद कर सकता है जो अपना भार उठाने में मदद पाने की कोशिश करते हैं। एक व्यक्ति जो अपने आपको ‘कूड़े का ढेर’ समझता था, बहुत दुःखी था और उसने मदद के लिए एक मित्र को फ़ोन किया। जबकि वह समय बिलकुल ही सुविधाजनक नहीं था, उस मित्र ने दो घंटे तक कृपालुता से सुना! वह व्यक्ति अब मानता है कि वह एक वार्तालाप उसके जीवन में एक अति महत्त्वपूर्ण घटना थी। किस बात ने सफलता में योग दिया? “मात्र एक अच्छा श्रोता बनना” एकाग्रता से सुननेवाला मित्र स्वीकार करता है। “मुझे नहीं याद कि मैं ने कोई बुद्धिमानी के शब्द कहे। मैं ने मात्र सही प्रश्न किए, ‘आप वैसा क्यों महसूस करते हैं?’ ‘वह बात आपको क्यों परेशान कर रही है?’ ‘क्या बात मदद कर सकती है?’ उसने अपने सभी प्रश्नों के उत्तर दे दिए जब उसने मेरे प्रश्नों के उत्तर दिए!”
बच्चे उन माता-पिताओं को मूल्यवान समझते हैं जो उनके साथ वार्तालाप करने के लिए समय निकालते हैं। स्कॉट नाम का एक छोटा लड़का टिप्पणी करता है: “जब आपके माता-पिता आपके पास आकर जानना चाहते हैं कि आपके मन में क्या है तो अच्छा लगता है। हाल में पापा ऐसा कर रहे हैं, और यह मदद करता है क्योंकि कुछ बातें होती हैं जो आप अपने आप नहीं कर पाते।”
एक व्यक्ति सुझाव देता है, “आपको एक ऐसा वातावरण बनाना चाहिए जिसमें आपके बच्चे आपसे बात करेंगे।” वह अपने चारों बच्चों में से हरेक के साथ अकेले समय बिताता है क्योंकि उसे लगता है कि यदि युवाओं को संतुलित व्यक्तित्व विकसित करना है तो माता-पिताओं द्वारा एकाग्रता और सहानुभूति से सुनना अत्यावश्यक है। उसका सुझाव? जब अवसर आते हैं और एक बच्चा बात करना चाहता है तो सुनने के लिए तैयार रहिए। “चाहे आप कितने भी थके हुए या परेशान क्यों न हों, उन्हें मत रोकिए! सुनिए,” वह कहता है।
सच्ची दिलचस्पी से प्रतिक्रिया मिलती है
अनेक लोगों को संकोच मिटाने और अपने आपको वार्तालाप में व्यक्त करने में समर्थ होने के लिए भावात्मक समर्थन की ज़रूरत होती है। एक युवा पुरुष ने शोकित होकर कहा: ‘मुझे किसी से बात करने की ज़रूरत है, लेकिन मैं किसके पास जाऊँ? मेरे लिए बात करना आसान नहीं है। मुझे किसी ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत है जो मुझमें दिलचस्पी लेगा!’ असली और सच्ची दिलचस्पी एक ऐसा भरोसे का और सुरक्षित वातावरण बना सकती है जिसमें एक व्यक्ति के लिए दूसरे के साथ दिल खोलकर बात करना ज़्यादा आसान होता है।
एक व्यक्ति बताता है: “काफ़ी साल पहले, जब मुझे पारिवारिक स्थितियों से निपटने में कुछ परेशानियाँ हो रही थीं, मैं ने एक मित्र से वार्तालाप करने की कोशिश की। उसने बस इतना कहा, ‘कमर कस लो और हिम्मत बाँधो, सब कुछ ठीक हो जाएगा।’ कोई संवाद नहीं था, कोई वार्तालाप नहीं था, और न ही वह सहायक था। असल में वह मुझे फिर से मेरी संकोची स्थिति में ले गया। उसकी विषमता में, मैं ने बाद में यहोवा के साक्षियों के एक ओवरसियर से बात की। उसकी आँखों, उसके चेहरे के भाव, और उसके कृपापूर्ण व्यवहार से मैं जान गया कि वह सहानुभूतिपूर्ण था। उसके फलस्वरूप, मैं ने पाया कि धीरे-धीरे मेरा संकोच मिट रहा था और मैं ज़्यादा वार्तालाप कर रहा था क्योंकि उसे सच्ची दिलचस्पी थी। उसने कहा: ‘हम आपकी स्थिति में आपकी मदद करने के लिए जो कुछ हमसे हो सकता है ज़रूर करेंगे।’ आप इस प्रकार के लोगों के प्रति अनुकूल प्रतिक्रिया दिखाते हैं!”
क्या हम में से अधिक लोग अपने हृदय खोल सकते हैं और दूसरों को अर्थपूर्ण वार्तालाप में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित कर सकते हैं? जब हम देखते हैं कि एक व्यक्ति समूह के वार्तालाप में हिस्सा नहीं ले रहा, वार्तालाप करने से बहुत शर्मा रहा है, तो क्या हम उस व्यक्ति को अपने वार्तालाप में शामिल करने की कोशिश करते हैं? जॉन, जिसका पहले उल्लेख किया गया था, कहता है: “मैं उस शर्मीलेपन की भावना को समझ सकता हूँ क्योंकि मुझे उसके लिए समानुभूति है, और मैं उसके साथ व्यथित हो रहा हूँ!” वह आगे कहता है: “यह कितना महत्त्वपूर्ण है कि हम उसकी ओर खिंचें और उसे शामिल करें। हम इस बारे में मन में प्रार्थना भी कर सकते हैं।”
डैन एक मित्र के बारे में कहता है: “रॉय को वार्तालाप करने की अपनी क्षमता में आत्म-विश्वास की इतनी कमी थी कि जब एक समूह बात करता, तब वह हमेशा कुछ क़दम पीछे खड़ा होता। सो मैं उससे एक प्रश्न पूछता, ‘रॉय, बताना ज़रा, आपने उस विषय के बारे में क्या कहा था?’ तब वह बात करना शुरू कर देता। इसके फलस्वरूप, दूसरों ने उसके व्यक्तित्व का वह पहलू देखा जिसके बारे में वे अनजान थे।” डैन आग्रह करता है: “हिम्मत न हारिए जब एक व्यक्ति से वार्तालाप करना और उसका संकोच दूर करना मुश्किल होता है। अपने आपसे कहिए कि भीतर एक अच्छा व्यक्ति है जो बात करना चाहता है। उसका संकोच दूर करने का प्रयास करते रहिए।”
दूसरों में एक प्रेममय, सच्ची दिलचस्पी विकसित करने के द्वारा आपको लाभ पहुँचता है—चाहे आपको शर्मीलेपन की समस्या क्यों न हो। जॉन ने पाया कि इसने उसे अपने आपको अकेला कर लेने की प्रवृत्ति दूर करने में मदद दी। ‘प्रेम अपनी भलाई नहीं चाहता,’ वह समझाता है। (१ कुरिन्थियों १३:५) “प्रेममय कार्य करने के लिए आपको दूसरों से बात करनी चाहिए और उनका हाल पता करना चाहिए। अपनी कमियों के आगे झुक जाना समस्या का हल नहीं है। आप प्रार्थनापूर्वक अपनी व्यक्तिगत कमज़ोरियों को दूर कर सकते हैं।” वह आगे कहता है: “ऐसा करने का प्रतिफल बहुत बड़ा है। जब आप देखते हैं कि दूसरे कैसे प्रतिक्रिया दिखाते हैं और यह कि वे कैसे उत्साहित होते हैं तो आप भी प्रोत्साहित होते हैं। और इससे आपको हिम्मत मिलनी चाहिए कि आप बारंबार एक शर्मीले व्यक्ति के पास जाने की पहल करें।”
समानुभूति—वार्तालाप का आधार
समानुभूति मनुष्य के उन गुणों में से है जिनको सबसे ज़्यादा मूल्यवान समझा जाता है। असल में समानुभूति है क्या? पॆन्सिलवेनिया स्टेट युनिवर्सिटी का डॉ. बर्नार्ड गरनी कहता है कि समानुभूति ‘दूसरे व्यक्ति की भावनाओं और उसके दृष्टिकोण को सूक्ष्मता से समझने की योग्यता’ है, ‘चाहे आप उसके साथ सहमत हैं या नहीं।’ वार्तालाप में समानुभूति कितनी महत्त्वपूर्ण है? “वह आधार है! वह नींव है जिसके ऊपर अन्य सबकुछ बनाया जाता है।”
डॉ. गरनी समझाता है कि वार्तालाप सभी अच्छे सम्बन्धों के लिए अनिवार्य है। निःसंदेह, विचारों की भिन्नता सामान्य है। उनको सफलतापूर्वक सुलझाने के लिए और सम्बन्ध को बनाए रखने के लिए, हमें समस्या के बारे में बात करने के लिए तत्पर होना चाहिए। अनेक लोग ऐसा करने से कतराते हैं क्योंकि वे नहीं जानते कि दूसरे व्यक्ति को आत्म-रक्षात्मक और क्रोधित किए बिना कैसे बात की जाए। डॉ. गरनी के अनुसार, “अधिकांश लोग दूसरे व्यक्ति के पद के लिए क़दर और आदर को ग़लती से उस पद के साथ सहमत होने से मिला देते हैं। परिणामस्वरूप, जब वे असहमत होते हैं तो वे क़दर और आदर नहीं दिखाते। समानुभूति आपको सहमति और क़दरदानी के बीच फ़र्क समझने में मदद करती है।”
मानसिक रूप से अपने आपको दूसरे व्यक्ति की स्थिति में रखने से आप उसकी तरह महसूस करते और सोचते हैं। ऐसी परिस्थितियों में आप पाएँगे कि चाहे आप असहमत हैं तो भी सहानुभूति, क़दर, और आदर बढ़ सकता है।
चार बच्चों की माँ, जैनॆट के बारे में सोचिए। एक समय था जब वह निराश थी और अपने को बेकार समझती थी। अब वह समझती है कि किसी की मदद करने में समानुभूति कितनी ज़रूरी है। वह बताती है: “मुझे याद है मेरे पति ने मुझसे बात की और वे सारे अलग-अलग तरीक़े समझाए जिनसे मैं मदद करती थी, जबकि मैं सोचती थी कि मेरे कार्यों का कोई महत्त्व नहीं था। उन्होंने बड़े प्रेम से मेरी बात सुनी तब भी जब मैं रोते-रोते बोल रही थी, और फिर उन्होंने मुझे प्रोत्साहन दिया। लेकिन यदि उन्होंने मेरे सोच-विचार को तुच्छ समझा होता या कहा होता ‘ओह, यह बक़वास है,’ या कुछ वैसा ही कहा होता, तो मैं बहुत शान्त और गुम सुम हो जाती। इसके बजाय, उस शाम हमने एक बहुत लम्बा और अर्थपूर्ण वार्तालाप किया।”
‘समानुभूति दिखाती है कि आप परवाह करते हैं। यह संचार को प्रेरित करता है, अर्थात् विस्तृत क़िस्म का संवाद जो अधिकांश लोग चाहते हैं और उन्हें उसकी ज़रूरत है,’ डॉ. गरनी समाप्ति में कहता है।
आप कर सकते हैं!
आप एक अच्छे वार्ताकार हो सकते हैं। हमने वार्तालाप की कला में निपुण होने के लिए अत्यावश्यक कुछ बातों पर विचार किया, लेकिन ढेरों अन्य बातें हैं। उनमें से कुछ हैं मैत्रीभाव, विनोदवृत्ति, और व्यवहार-कुशलता। लेकिन एक कलाकार की तरह, जो प्रशिक्षण और अभ्यास के द्वारा एक उत्कृष्ट कलाकृति बनाने के लिए कुशलता से कैन्वस पर अपने ब्रुश को चलाता है, हमें भी इन ज़रूरी गुणों को विकसित करने के लिए प्रयास करते रहने की ज़रूरत है।
उदाहरण के लिए, डैनियल एक अच्छा वार्ताकार बन गया है। कैसे? किसी को बीच में रोककर ख़ुद बोलना शुरू कर देने की अपनी प्रवृत्ति को नियंत्रण में करना सीखने के द्वारा। वह स्वीकार करता है: “एक वार्तालाप में सारे समय ख़ुद ही न बोलते रहने के लिए मुझे सतर्क प्रयास करना पड़ता है। मेरे लिए इसका अर्थ है अपनी ज़बान को क़ाबू में रखना। जब मेरा मन बीच में छोटी-मोटी बात जोड़ने का करता है, तो मैं मानसिक रूप से ब्रेक लगा देता हूँ! यदि मुझे लगता है कि एक टिप्पणी वार्तालाप की दिशा बदल देगी या किसी दूसरे की वार्तालाप करने की क्षमता छीन लेगी, तो मैं नहीं बोलता!”
किस बात ने इलेन की मदद की? बाइबल का यथार्थ ज्ञान पाने के बाद उसे एहसास हुआ कि उसके पास बात करने के लिए कुछ उपयोगी और लाभकर विषय है। वह कहती है: “मैं ने पाया है कि यदि मैं अपनी ओर से ध्यान हटाकर दूसरों के साथ आध्यात्मिक बातों के बारे में बात करती हूँ, तो मैं ज़्यादा आराम से वार्तालाप कर सकती हूँ। जो बाइबल-आधारित साहित्य हम नियमित रूप से प्राप्त करते हैं उन्हें पढ़ना भी मदद करता है। जब मैं उन्हें हाथों हाथ पढ़ लेती हूँ तो मैं दूसरों के साथ कुछ नयी और ताज़ी बात बाँट सकती हूँ और ज़्यादा आसानी से वार्तालाप कर सकती हूँ।”
अपने वार्तालाप में इन अत्यावश्यक गुणों को विकसित करने की कोशिश कीजिए। तब आप भी दूसरों को स्फूर्ति और ख़ुशी पहुँचा सकते हैं और एक ऐसी कला में निपुण होने की संतुष्टि पा सकते हैं जो सचमुच एक मानवी ज़रूरत को पूरा करती है।