बाइबल का दृष्टिकोण
क्या खेलों में प्रतिस्पर्धा ग़लत है?
दो वृद्ध व्यक्ति एक खुले दिन में बगीचे में बैठे चेस का खेल खेल रहे हैं। पास ही छुआछुई खेलते हुए चिल्लाते और दौड़ते बच्चों की आवाज़ है। थोड़ी ही दूर, युवकों का एक समूह बास्कॆटबॉल के खेल का मज़ा ले रहा है। जी हाँ, हमारे चारों ओर, हर दिन, छोटे-बड़े सभी खेल पसन्द करते हैं। अधिकांश लोग जब खेल में भाग लेते हैं, तब वे पूरी कोशिश करते हैं कि सर्वोत्तम खेल खेलें। शायद आप भी ऐसा करते हों।
लेकिन क्या यह कहा जा सकता है कि प्रतिस्पर्धा के ऐसे मैत्रीपूर्ण तरीक़े ग़लत हैं? अनेक व्यक्ति गलतियों ५:२६ (NW) में प्रेरित पौलुस की सलाह से परिचित हैं, जहाँ उसने कहा कि मसीहियों को ‘एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा उत्तेजित नहीं’ करनी चाहिए। इस बात को ध्यान में रखते हुए, क्या मसीहियों के लिए मनोरंजनात्मक खेलों में भाग लेना अनुचित होगा?
सरल शब्दों में कहें तो, नहीं। ऐसा क्यों? इस सवाल का जवाब देने से पहले, आइए हम खेलों के इतिहास पर एक नज़र डालें।
खेलों का इतिहास
खेलों में भाग लेना प्राचीन समय से होता आया है और इतिहास-भर में—परमेश्वर के लोगों के इतिहास में भी—यह बराबर एक विशेषता रही है। यहाँ तक कि बाइबल में “गेंद” शब्द भी आता है। दुष्ट लोगों के विरुद्ध यहोवा परमेश्वर की भर्त्सना का उल्लेख करते वक़्त, यशायाह २२:१८ (NW) में यह कहती है: “वह [उन्हें] . . . गेंद की तरह, कसकर बाँधेगा।” कुछ आधुनिक गेंदें—जैसे गोल्फ का गेंद और बेसबॉल—आज भी डोरियों को कसकर लपेटने के द्वारा बनाए जाते हैं। किंग जेम्स् बाइबल इसी आयत का अनुवाद यों करती है: “वह तुझे . . . गेंद की नाईं . . . फेंक देगा।” इस समानता के संगत होने के लिए ज़रूरी था, कि उस समय पर जीनेवाले लोग गेंदों का प्रयोग करते हों।
इसके अतिरिक्त, बाइबल में कुलपिता याक़ूब के एक स्वर्गदूत के साथ कुश्ती लड़ने की घटना है। इस वृत्तान्त से यह आवश्यक लगता है कि याक़ूब ने पहले से अभ्यास द्वारा कुछ निपुणता प्राप्त की होगी, क्योंकि वह संघर्ष घंटों चला और उसका निर्णय न हो पाया। (उत्पत्ति ३२:२४-२६) दिलचस्पी की बात है, कुछ विद्वानों के अनुसार, यह वृत्तान्त सूचित कर सकता है कि याक़ूब कुश्ती के नियमों से परिचित था। इस्राएली संभवतः धनुर्विद्या में भी भाग लेते थे—एक और खेल जिसमें अभ्यास और निपुणता आवश्यक है। (१ शमूएल २०:२०; विलापगीत ३:१२) दौड़ना एक और खेल था जिसके लिए प्राचीन समय के पुरुष अभ्यास करते थे और प्रशिक्षित थे।—२ शमूएल १८:२३-२७; १ इतिहास १२:८.
खेल जिनमें दिमाग़ का प्रयोग होता था—जैसे पहेलियाँ पूछना—स्पष्टतया लोकप्रिय थे और काफ़ी मान्यता-प्राप्त थे। इसका सबसे उल्लेखनीय उदाहरण शायद शिमशोन का पलिश्तियों से पहेली पूछना था।—न्यायियों १४:१२-१८.
मसीही यूनानी शास्त्र में, खेलों को कभी-कभी मसीही जीवन के लिए रूपकों के तौर पर प्रयोग किया जाता था। उदाहरण के लिए, १ कुरिन्थियों ९:२४, २५ में, पौलुस एक खिलाड़ी के कड़े प्रशिक्षण नित्यकर्म का ज़िक्र करता है और इसे आत्म-संयम और धीरज की एक मसीही की ज़रूरत पर लागू करता है। साथ ही, यह स्पष्ट है कि यहोवा ने अपनी अधिकांश सृष्टि में विनोदपूर्ण प्रवृत्ति रखी है, क्योंकि मानव और पशु दोनों ही खेलने के लिए समय निकालते हैं।—अय्यूब ४०:२०; जकर्याह ८:५. इब्रानियों १२:१ से तुलना कीजिए।
जब प्रतिस्पर्धा हद से बाहर जाती है
तो फिर, प्रेरित पौलुस संगी मसीहियों से क्या कह रहा था जब उसने उनसे कहा कि “एक दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा न उत्तेजित करें”? (गलतियों ५:२६, NW) इसका जवाब इसके संदर्भ में है। पौलुस ने इस कथन से पहले यह कहा कि “अहंकारी न बनें” या जैसे अन्य बाइबल अनुवाद व्यक्त करते हैं, “घमण्डी,” “अहंकारपूर्ण,” “झूठे गौरव के चाहनेवाले” न बनें। पौलुस के दिनों में खिलाड़ियों में प्रसिद्धि और गौरव की खोज व्यापक थी।
वैसे ही आज के शेख़ीबाज़ संसार में, अधिकाधिक खिलाड़ी अकड़कर चलते हैं और अपनी प्रवीणता तथा स्वयं अपनी ओर ध्यान आकर्षित करते हैं। कुछ लोग तो दूसरों को नीचा दिखाने की हद तक जाते हैं। ताने मारना, दूसरों पर उँगली उठाना, और शब्दों से अपमानित करना, या जिसे कुछ खिलाड़ी “रद्दी बातचीत” कहते हैं तेज़ी से सामान्य होती जा रही है। यह सब कुछ ‘प्रतिस्पर्धा उत्तेजित करना’ होगा, और उस बात की ओर ले जाएगा जिसका ज़िक्र पौलुस ने गलतियों ५:२६ (NW) के आख़िरी भाग में किया—ईर्ष्या।
सबसे बुरी बात, असंतुलित प्रतिस्पर्धा झगड़ों और यहाँ तक कि मृत्यु तक ले जाती है। गिबोन में शाऊल के लोगों से दाऊद के लोगों के मिलने पर विचार कीजिए, जब अब्नेर और योआब ‘जवानों का आगे आकर उनके सामने मुक़ाबला करने’ पर सहमत हुए। (२ शमूएल २:१४-३२, तनाख) ऐसा लगता है कि यह एक प्रकार की कुश्ती प्रतियोगिता का उल्लेख करता है। प्रतियोगिता चाहे जो भी थी, यह जल्द ही एक भीषण और रक्तरंजित युद्ध बन गया।
संतुलित दृष्टिकोण
मनोरंजनात्मक खेलों को स्फूर्तिदायक होना चाहिए—निराशाजनक नहीं। बातों को उनके सही स्थान पर रखने के द्वारा हम ऐसा कर सकते हैं। याद रखिए कि परमेश्वर और हमारे संगी मनुष्य के लिए हमारे महत्त्व का सम्बन्ध खेलों में हमारी निपुणता से क़तई नहीं है।
शारीरिक या मानसिक योग्यताओं के कारण हमारे अन्दर अभिमान की भावनाओं को उठने देना मूर्खता होगी। सो आइए इससे पहले कि दूसरों में ईर्ष्या उत्पन्न करें, हम अपनी ओर ध्यान आकर्षित करने की अनुचित, सांसारिक प्रवृत्ति से दूर रहें, क्योंकि प्रेम बड़ाई नहीं मारता। (१ कुरिन्थियों १३:४; १ पतरस २:१) और जबकि यह तर्कसंगत है कि हम उत्तेजना, सहज उत्साह की लहर, और टीम के सदस्यों को एक दूसरे को बधाई देने की अपेक्षा करें, हम नहीं चाहेंगे कि यह भावनाएँ अनियंत्रित हो जाएँ और दिखावटी प्रदर्शन बन जाएँ।
हमें कभी दूसरों के महत्त्व को खेलों में उनकी योग्यताओं से नहीं आँकना चाहिए। उसी तरह, निपुणता की कमी के कारण हम अपने बारे में हीन भावना नहीं रखना चाहेंगे। क्या इसका अर्थ है कि किए गए गोल या अंक लिखना ग़लत होगा? ज़रूरी नहीं। लेकिन हमें याद रखना चाहिए कि कोई भी खेल वास्तव में कितना महत्त्वहीन है—लोगों का सच्चा महत्त्व उनके अच्छे प्रदर्शन पर निर्भर नहीं करता। टीम के खेलों में कुछ टीमें नियमित रूप से खिलाड़ियों की अदला-बदली करती हैं ताकि कोई एक टीम हमेशा न जीते।
मसीहियों को यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि हालाँकि बाइबल में खेलों का ज़िक्र किया गया है, ऐसा बहुत ही कम किया गया है। यह निष्कर्ष निकालना एक ग़लती होगी कि बाइबल में खेलों का ज़िक्र ही, सभी खेलों की सुस्पष्ट स्वीकृति स्थापित करता है। (१ कुरिन्थियों ९:२६ की तुलना भजन ११:५ से कीजिए।) साथ ही, पौलुस ने लिखा कि “देह की साधना से कम लाभ होता है, पर [ईश्वरीय] भक्ति सब बातों के लिये लाभदायक है।”—१ तीमुथियुस ४:८.
सो उनके उचित स्थान पर, खेल आनन्ददायक और स्फूर्तिदायक होते हैं। बाइबल सब प्रकार की प्रतिस्पर्धा की निन्दा नहीं करती, लेकिन ऐसी प्रतिस्पर्धा की निन्दा करती है जो अहंकार, शत्रुता, लोभ, ईर्ष्या या हिंसा को उत्तेजित करती है।