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पॉम्पेई जहाँ समय रुक गया

इटली में सजग होइए! संवाददाता द्वारा

एक निर्जन, खाली और उपेक्षित शहर में, रसोईघरों में चूल्हों पर रखी कड़ाही, माल से भरी हुई दुकानें, जलरहित फुहारे, साबुत सड़कें—सब कुछ वैसे ही जैसे वे हुआ करते थे। यह है पॉम्पेई, जहाँ लगता है कि समय रुक गया।

सब कुछ जैसे का वैसा ही है जैसे यह क़रीब १,९०० से भी अधिक साल पहले उस विनाशकारी दिन में था जब नेपल्स की खाड़ी से दिखनेवाला वॆसूवियस पर्वत फूट पड़ा। इसने पॉम्पेई, हर्कलेनीअम, स्टॉब्या, और अग़ल-बग़ल के गाँवों को राख़ और लावे में दफ़ना दिया।

“पुरातनकाल के लोगों को,” पुस्तक पॉम्पे कहती है, “वॆसूवियस के ज्वालामुखीय स्वभाव के बारे में केवल धुँधली समझ थी और वे इसे उन घने जंगलों का एक हरा-भरा पहाड़ समझने के आदी हो चुके थे जिनमें कहीं-कहीं पर दाख की मनोरम बारियाँ थीं।” लेकिन सा.यु. ७९ की अगस्त २४ को, कई सालों की ख़ामोशी के बाद, वह पहाड़ एक भयानक विस्फोट के साथ जाग उठा।

सा.यु. ७९ का वह उद्‌भेदन

उस ज्वालामुखी ने गैस, शैलमूल, और मलबे उगल दिए जिसने आकाश को अंधियारा कर दिया और जिससे राख़ और अश्‍मक (लावे के छोटे कणों) की एक भीषण वर्षा हुई। दो दिनों के भीतर ही पॉम्पेई और गाँव की बड़ी जगह पर एक घनी परत जम गयी, जो ढाई मीटर की औसतन गहराई की थी। जबकि ज़ोरदार झटकों ने ज़मीन को कँपकँपाना जारी रखा, तब ज़हरीली गैसों के एक विशालकाय बादल ने, जो अदृश्‍य परन्तु जानलेवा थीं, शहर को घेर लिया, मानो उसे घातक रूप से गले लगा लिया हो। जब पॉम्पेई रफ़्ता-रफ़्ता दफ़नाया जा रहा था, हर्कलेनीअम पल भर में ग़ायब हो गया। पुस्तक रीस्कोप्रीरे पॉम्पेई (पॉम्पेई की फिर से खोज करना) के अनुसार, हर्कलेनीअम “धूल और ज्वालामुखीय मलबे के” बहाव में डूब गया “जिसकी गहराई समुद्रतट के पास बाइस मीटर [७२ फीट] तक पहुँच गयी।”

पॉम्पेई के कुछ १५,००० निवासियों की प्रतिक्रियाएँ विभिन्‍न थीं। [वहाँ से] फ़ौरन भाग निकलनेवाले लोग केवल ख़ुद की जान बचा सके। लेकिन, अपने घरों और उसके सामान को त्यागने की इच्छा न रखनेवाले कुछ लोग, ख़तरे से दूर रहने की उम्मीद में रुक गए। दूसरे, जो अपनी क़ीमती वस्तुओं को बचाने की चिन्ता में, बच निकलने से पहले हिचकिचाए, परन्तु अपने घरों की छतों के नीचे कुचलकर मारे गए, जो राख़ के वज़न से ढह गईं।

एक उदाहरण है “वनदेवी के घर” की मालकिन का, जो प्रतीयमानतः अपने धन-दौलत को त्यागने के लिए ख़ुद को राज़ी नहीं कर सकी। “हड़बड़ी में,” अपनी पुस्तक ला वी कोट्यीड्यॆन ऑ पॉम्पे (पॉम्पेई में दैनिक जीवन) में रॉबर एट्यन कहता है, “घर की मालकिन ने अपने सबसे बहुमूल्य जवाहिरात इकट्ठा किए—साँप की आकृति के सोने के कंगन, अँगूठियाँ, बालों की चिमटियाँ, कान की बालियाँ, एक चान्दी का दरपन, स्वर्ण-मुद्राओं से भरा एक थैला—और भागने की तैयारी की।” शायद गिरती राख़ से घबराकर वह अन्दर ही रही। “थोड़ी ही देर बाद,” एट्यन आगे कहता है, “वह छत ढह गयी, और उस दुखियारी स्त्री और उसके ख़ज़ाने को दफ़ना दिया।” अन्य लोग उन ज़हरीली गैसों से बेहोश हो गए जो सब जगह फैल गयी थीं।

जो हिचकिचाए थे उन्हें लावा राख़ की परत पर से अपनी जान बचाकर भागना पड़ा जो उस दौरान जम गयी थी। प्राणघातक अंतःश्‍वसन से दम घुटकर, जहाँ वे गिरे वहीं ढेर हो गए, और सूक्ष्म राख़ की लगातार बारिश के परिणामस्वरूप ढक गए। उनके दयनीय अवशेष सदियों बाद पाए गए, जिनकी बग़ल में उनकी मूल्यवान वस्तुएँ अभी भी पड़ी हैं। वह शहर और उसके निवासी राख़ की २० फीट से भी अधिक गहरी परत के नीचे दफ़ना दिए गए।

फिर भी, शुक्र है उस घातक बारिश का, कि शहर के निवासी भी फिर से उजागर हो गए हैं। क्या आप जानते हैं कैसे? इस पन्‍ने की तस्वीर पर उनकी लाशों के ढाँचों को देखिए। ये कैसे बनाए गए? राख़ में सड़े हुए माँस से हुई खाली जगह में पैरिस-प्लास्टर डालने के द्वारा, पुरातत्व-विज्ञानियों ने हमें उन दुःखी शिकार लोगों की आख़री संघर्षात्मक कृत्य को देखने में समर्थ किया है—“अपनी बाँह पर अपना सर रखकर सोयी हुई युवती; एक पुरुष, जिसका मुँह एक रुमाल से ढका हुआ है जो धूल और ज़हरीली गैसों के अंतःश्‍वसन को रोक नहीं सका; खनिज-झरने के परिचारक, जो श्‍वासावरोध के झटके और दोरे की अनुचित मुद्रा मे पड़े हुए हैं; . . . अपनी छोटी बेटी को एक आख़री दयनीय और निर्थक आलिंगन में अपने गले से लगानेवाली एक माँ।”—आर्कियो, अंग्रेज़ी।

हर्कलेनीअम में कोई सुरक्षा नहीं

पॉम्पेई से कुछ किलोमीटर दूर, हर्कलेनीअम में जो लोग फ़ौरन भाग नहीं गए, उन्होंने अपने-आपको फँसा हुआ पाया। अनेक लोग समुद्र-तट की ओर भागे, सम्भवतः समुद्र के द्वारा बचाए जाने की उम्मीद में, परन्तु एक भीषण समुद्र-कम्प ने नावों को निकलने से रोका। हर्कलेनीअम के प्राचीन समुद्र-तटों पर हाल ही की खुदाई ने ३०० से अधिक अस्थि-पंजरों को प्रकाश में लाया है। जब उन्होंने एक उच्च समतल भूमि में पनाह लेने की कोशिश की जहाँ से समुद्र दिखता था, ये लोग धूल और ज्वालामुखीय मलबे के भयानक बहाव से ज़िन्दा दफ़ना दिए गए। यहाँ भी, अनेक लोगों ने अपनी सबसे मूल्यवान वस्तुओं को बचाने की कोशिश की थी: सोने के ज़ेवरात, चान्दी के बरतन, शल्यक-औज़ारों का एक पूर्ण सेट—वहाँ यह सब कुछ अब तक, व्यर्थ, अपने स्वामियों के अवशेषों के पास पड़ा है।

समय रुक गया

पॉम्पेई प्रकृति की शक्‍तियों के सम्मुख जीवन की दुर्बलता की अर्थपूर्ण साक्ष्य देता है। दुनिया में किसी भी पुरातत्वीय स्थल से भिन्‍न, पॉम्पेई और आस-पास के क्षेत्रों के खण्डहर एक आशुचित्र प्रदान करते हैं जो आधुनिक विद्वानों और जिज्ञासुओं को सा.यु. प्रथम शताब्दी के दैनिक जीवन को जाँचने में समर्थ करता है।

उस क्षेत्र की समृद्धता मूलभूत रूप से कृषि, उद्योग, और व्यापार पर निर्भर थी। मानवशक्‍ति को तीव्र रूप से काम में लाने से—दास और स्वतंत्र-लोग हर दिन किराये पर लिए जाते थे—गाँवों की उपजाऊ ज़मीन ने प्रचुरता से पैदा किया। शहर की अनेक गतिविधियाँ भोजन-सामग्रियों की लेन-देन से सम्बन्धित थीं। पॉम्पेई को भेंट करनेवाला अब भी मकई को पीसने की चक्की, सब्ज़ी-मंडी, फल-विक्रेताओं और दाखमधु के सौदाग़रों की दुकानें देख सकता है। आप व्यापार के लिए—एक औद्योगिक स्तर पर ऊन और लिनेन बनाने तथा वस्त्र की कताई एवं बुनाई करने के लिए—कभी इस्तेमाल की गई इमारतों को देख सकते हैं। दर्जनों अन्य गृह-उद्योगों के साथ, जो जौहरियों की कार्यशाला से लेकर लोहे के सामान की दुकान तक थे, इन इमारतों, और घरों से एक शहर बना।

तंग, कभी भीड़-भरी सड़कों पर पत्थरों के टुकड़ों से खड़ंजा बनाया गया है। उनके आजू-बाजू में ऊँची की गयी पटरियाँ हैं और एक उत्तम कृत्रिम जल-प्रणालों की आपूर्ति से काम करनेवाले सार्वजनिक फुहारे हैं। मुख्य सड़कों के कोनों पर एक असाधारण और दिलचस्प विवरण देखा जा सकता है। आधुनिक क्रॉस-वॉक के प्राचीन पूर्वोदाहरणों की तरह, सड़कों के बीच में रखे पत्थर के खण्डों ने पदयात्रियों के आवागमन में सहुलियत दी और जब बारिश होती थी तब उनके पैरों को गीले होने से बचाने में उन्हें समर्थ किया। शहर में गाड़ी चलानेवाले किसी भी व्यक्‍ति को ऊँचे किए गए पत्थरों से दूर रहने के लिए कुछ कुशलता की ज़रूरत होती थी।। वे अब भी वहाँ हैं! कुछ भी नहीं बदला है।

व्यक्‍तिगत जीवन

पॉम्पेईवासियों के व्यक्‍तिगत जीवन को घेरा हुआ अन्तर्मुख भी आधुनिक समय के लोगों की नज़रों से नहीं बच सकता। शानदार जवाहरातों से सजी एक स्त्री एक यौद्धा की बाहों में उसके बैरक में मृत पड़ी हुई है। घरों और दुकानों के दरवाज़े चौड़े खुले हैं। रसोईघर प्रदर्शित किए गए हैं, मानों उन्हें मिनटों पहले ही छोड़ा गया हो, जिनमें चूल्हों पर कड़ाही है, भट्टी में अब भी अन-सिकी रोटी है, और दीवारों से सटकर बड़े-बड़े घड़े रखे हैं। उत्कृष्ट पलस्तर-कार्य, भित्तिचित्रों, और मोज़ेक से सजाए गए कमरे हैं, जहाँ अमीर लोग चान्दी के प्यालों में और आश्‍चर्यजनक रूप से शुद्ध बरतनों में बड़े आराम से जेवनार करते थे। प्रशान्त आन्तरिक बाग़ीचे स्तम्भश्रेणियों से घिरे हैं और मनोरम फुहारों से अलंकृत हैं जो अब ख़ामोश हो चुके हैं। साथ ही, उत्कृष्ट कारीगरी के संगमरमर और काँसे की मूर्तियाँ, और घरेलू देवताओं की वेदियाँ भी दिखायी देती हैं।

परन्तु, अधिकांश लोगों की जीवन-शैली काफ़ी शालीन थी। अनेक लोग, जिनके पास घर पर खाना पकाने की सहुलियतें नहीं थीं, वे अकसर अनेक शराबखानों में जाते थे। यहाँ, ज़्यादा ख़र्च किए बिना वे गप्पे लड़ा सकते थे, जूआ खेल सकते थे, या भोजन और शराब ख़रीद सकते थे। इनमें से कुछ जगह बदनाम बस्तियाँ रही होंगी जहाँ, ग्राहकों को शराब पिलाने के बाद, परिवेषिकाएँ, जो अकसर दासियाँ हुआ करती थीं, वेश्‍याओं का काम करती थीं। इस तरह के अनगिनत शराबखानों के अलावा, खुदाई ने बीस से भी अधिक अन्य गंदी बस्तियों को उजागर किया है, अकसर जिनकी विशेषता ऐसे चित्र और लेख होते हैं जो बिलकुल ही अश्‍लील होते हैं।

यह काम करने का समय है

पॉम्पेई का आकस्मिक विनाश व्यक्‍ति को सोचने के लिए मज़बूर करता है। प्रतीयमानतः, वे हज़ारों लोग जो वहाँ नाश हो गए, उन्होंने सन्‍निकट विनाश के चेतावनी चिन्हों के प्रति पर्याप्त शीघ्रता के साथ प्रतिक्रिया नहीं दिखायी—बारबार होनेवाले भूकम्प, ज्वालामुखी के विस्फोट, और अश्‍मक की भयंकर वर्षा। वे हिचकिचाए, शायद क्योंकि वे अपने आरामदायक जीवन और अपनी सम्पत्तियों को नहीं छोड़ना चाहते थे। हो सकता है कि उन्होंने उम्मीद लगाई हो कि ख़तरा टल जाएगा या अगर हालात और बिगड़ते हैं तो भागने के लिए तब भी समय होगा। अफ़सोस, वे ग़लत थे।

शास्त्र हमें बताता है कि आज सारा संसार एक वैसी ही स्थिति में है। जिस भ्रष्ट समाज में हम रहते हैं वह परमेश्‍वर से विमुख है। यह अचानक ही नाश होनेवाला है। (२ पतरस ३:१०-१२; इफिसियों ४:१७-१९) सभी प्रमाण सूचित करते हैं कि वह समय निकट है। (मत्ती २४:३-४२; मरकुस १३:३-३७; लूका २१:७-३६) और पॉम्पेई के दुःखद अवशेष अनिर्णय की मूर्खता के मौन साक्ष्य के रूप में खड़े हैं।

[पेज 20 पर बक्स]

मसीही क्रूस?

पॉम्पेई में अनेक क्रूसों की पुनःप्राप्ति का, जिनमें एक बेकरी की दीवार पर पलस्तर-कृति का एक क्रूस शामिल है, कुछ लोगों द्वारा अर्थ लगाया गया है कि यह सा.यु. ७९ में इस शहर के विनाश के पहले इसमें मसीहियों की उपस्थिति का प्रमाण है। क्या यह एक वैध कल्पना है?

प्रतीयमानतः नहीं। “एक वस्तु के रूप में क्रूस पूर्णतः-विकसित उपासना” को पाने के लिए, आन्टॉन्यो वारोने अपनी पुस्तक प्रीज़ॆन्से ग्वीडाईकॆ ए क्रीस्ट्याने आ पॉम्पे (पॉम्पेई में यहूदी और मसीही उपस्थितियाँ) में कहता है, “हमें चौथी शताब्दी तक रुकने की ज़रूरत है, जब विधर्मी सम्राट और जनता का धर्मपरिवर्तन ऐसी एक श्रद्धा को उनकी आध्यात्मिकता के अधिक अनुरूप बनाता।” “यहाँ तक कि दूसरी और तीसरी शताब्दियों में भी और कॉन्स्टॆन्टाईन के समय तक,” वारोने आगे कहता है, “मसीहियत के स्पष्ट सम्बन्ध में एक ऐसा प्रतीक पाना बहुत ही विरल है।”

यदि ये मसीही नहीं हैं, तो इन प्रतीकों का उद्‌गम क्या है? इस प्रतीक की पहचान जो एक क्रूस समझा जाता है और उसी बॆकरी में एक सर्प के रूप में एक ईश्‍वरत्व के चित्र की खोज के बारे में शंकाओं के अलावा, “कुछ बेहद अश्‍लील खोज हैं जिनका उस बॆकरी के मालिक की अनुमानित मसीही आध्यात्मिकता के साथ भी ताल-मेल बिठाना मुश्‍किल है,” वारोने कहता है। वह आगे कहता है: “यह जाना जाता है कि सभ्यता के आरम्भ से, उद्धार का प्रतीक बनने से भी बहुत पहले, क्रूस की आकृति के प्रतीक का स्पष्ट जादुई और धार्मिक महत्त्व के साथ इस्तेमाल किया जाता था।” यह विद्वान समझाता है कि प्राचीन समयों में क्रूस को बुरे प्रभावों से बचाने या उन्हें नष्ट करने के क़ाबिल समझा जाता था और सबसे बढ़कर, इसे एक तावीज़ की तरह इस्तेमाल किया जाता था।

[पेज 19 पर तसवीर]

कैलिगूला की मेहराब जिसकी पृष्ठभूमि में वॆसूवियस पर्वत है

[पेज 19 पर तसवीरें]

ऊपर: पॉम्पेईवासियों के पलस्तर ढाँचे

बाँए: नेरो की मेहराब और बृहस्पति के मन्दिर के भाग का दृश्‍य

[पेज 19 पर चित्रों का श्रेय]

Vertical borders: Glazier

Photos on pages (bottom), and 19: Soprintendenza Archeologica di Pompei

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