बाइबल का दृष्टिकोण
क्या बच्चों को अपना धर्म ख़ुद चुनना चाहिए?
जिस समय एक बच्चा पैदा होता है उस समय से और किशोरावस्था तक, माता-पिता अपने बच्चों के लिए चुनाव करते हैं। साथ ही, जहाँ तक संभव हो इस बात को ध्यान में रखते हुए कि बच्चा क्या पसंद करेगा, एक बुद्धिमान माता या पिता जानता है कि कब ढील देनी है।
फिर भी, एक बच्चे को चुनाव की कितनी स्वतंत्रता दी जाए यह माता-पिता के सामने एक चुनौती रख सकता है। जबकि यह सच है कि बच्चे सही चुनाव कर सकते हैं और कुछ हद तक स्वतंत्रता से लाभ उठा सकते हैं, यह भी उतना ही सच है कि वे ग़लत चुनाव कर सकते हैं, जो एक त्रासदी में परिणित हो सकता है।—२ राजा २:२३-२५; इफिसियों ६:१-३.
उदाहरण के लिए, बच्चे अकसर पौष्टिक भोजन की जगह रद्दी भोजन का चुनाव करेंगे। क्यों? क्योंकि छोटी उम्र में, वे अपने आप अच्छा निर्णय लेने में समर्थ नहीं हैं। यह आशा करते हुए कि आख़िरकार वे पौष्टिक भोजन का चुनाव करेंगे, क्या माता-पिता को इस मामले में अपने बच्चों को खुली छूट देना बुद्धिमानी होगी? जी नहीं। इसके बजाय, माता-पिता को अपनी संतान के लिए दीर्घ-कालिक हितों को ध्यान में रखते हुए अपने बच्चों के लिए चुनाव करने चाहिए।
इसलिए, माता-पिता बच्चों के भोजन, कपड़े, बनने-सँवरने, और नैतिकता के बारे में उचित रूप से चुनाव करते हैं। लेकिन धर्म के बारे में क्या? क्या माता-पिता को इसका भी चुनाव करना चाहिए?
यह चुनाव
कुछ लोग शायद तर्क करें कि माता-पिता को अपने बच्चे पर अपने धार्मिक विश्वासों को नहीं थोपना चाहिए। वास्तव में, १६० साल पहले, कुछ लोगों ने जो मसीही विश्वासों को मानने का दावा करते थे, इस विचार को बढ़ावा दिया कि “बच्चों को इस डर से धर्म की शिक्षा नहीं दी जानी चाहिए कि कहीं उनके मन एक ख़ास विश्वास की ओर प्रवृत्त न हो जाएँ, बल्कि उन्हें अकेला छोड़ देना चाहिए जब तक कि वे एक चुनाव करने के योग्य न हो जाएँ और ऐसा करने का चुनाव कर सकें।”
लेकिन, यह विचार बाइबल के दृष्टिकोण के साथ मेल नहीं खाता। बाइबल जन्म के समय से ही बच्चों में धार्मिक विश्वास बैठाने के महत्त्व पर ज़ोर देती है। नीतिवचन २२:६ कहता है: “लड़के को शिक्षा उसी मार्ग की दे जिस में उसको चलना चाहिये, और वह बुढ़ापे में भी उस से न हटेगा।”
इब्रानी शब्द “लड़के” में बचपन से लेकर किशोरावस्था शामिल है। बचपन से ही सीखने के महत्त्व के बारे में, इलिनोइ यूनिवर्सिटी, अमरीका के डॉ. जोसफ़ एम. हन्ट ने कहा: “जीवन के पहले चार या पाँच वर्षों में एक बच्चे में विकास बहुत तेज़ी से होता है और उसे आसानी से रूपांतरित किया जा सकता है। संभवतः उसके पहले जन्मदिन से पूर्व [उसकी] आधारभूत योग्यताओं का २० प्रतिशत विकास होता है, उसके चार साल का होने से पहले संभवतः ५० प्रतिशत विकास हो जाता है।” यह बाइबल में दी गई उत्प्रेरित सलाह पर मात्र बल देता है कि उसे परमेश्वर के मार्ग का प्रशिक्षण देते हुए, माता-पिता के लिए एक बच्चे के जीवन में शुरू से ही बुद्धिमतापूर्ण निर्देश देना अनिवार्य है।—व्यवस्थाविवरण ११:१८-२१.
असाधारण रूप से, शास्त्र परमेश्वर का भय माननेवाले माता-पिता को बच्चों में यहोवा के लिए प्रेम पैदा करने का निर्देश देता है। व्यवस्थाविवरण ६:५-७ कहता है: “तू अपने परमेश्वर यहोवा से अपने सारे मन, और सारे जीव, और सारी शक्ति के साथ प्रेम रखना। और ये आज्ञाएं जो मैं आज तुझ को सुनाता हूं वे तेरे मन में बनी रहें; और तू इन्हें अपने बालबच्चों को समझाकर सिखाया करना, और घर में बैठे, मार्ग पर चलते, लेटते, उठते, इनकी चर्चा किया करना।” “समझाकर सिखाया करना” अनुवादित इब्रानी क्रिया में, एक औज़ार को मानो किसी सान पत्थर पर पैना करने का भाव है। इसे थोड़ी-सी रगड़ से हासिल नहीं किया जा सकता, लेकिन मेहनत से बार-बार किया जाना चाहिए। द न्यू इंग्लिश बाइबल (अंग्रेज़ी) इस इब्रानी क्रिया को “दोहराना” अनुवादित करती है। सीधे शब्दों में, “समझाकर सिखाया करना” एक स्थायी प्रभाव छोड़ने को अन्तर्निहित करता है।—नीतिवचन २७:१७ से तुलना कीजिए।
अतः, सच्चे मसीही माता-पिता को अपने बच्चों के मन में अपने धार्मिक विश्वास को बैठाने की बाध्यता को गंभीरतापूर्वक लेना ज़रूरी है। अपने बच्चों को अपना धर्म ख़ुद चुनने की अनुमति देने के द्वारा वे उचित रूप से अपनी ज़िम्मेदारी को त्याग नहीं सकते। इसमें अपने ‘बालकों’ को सभाओं में ले जाना शामिल है। वहाँ माता-पिता उनके साथ बैठ सकते हैं और उस आध्यात्मिक लाभ के प्रति मूल्यांकन दिखाने में उनकी मदद कर सकते हैं, जिसे एक संयुक्त परिवार शास्त्रीय चर्चाओं और सभाओं में हिस्सा लेने के द्वारा प्राप्त कर सकता है।—व्यवस्थाविवरण ३१:१२, १३; यशायाह ४८:१७-१९; २ तीमुथियुस १:५; ३:१५.
जनकीय ज़िम्मेदारी
इसलिए कि एक वस्तु पौष्टिक है तो उसे खाने के लिए एक बच्चे को मात्र कह देने का अर्थ यह नहीं कि वह बच्चा उसका आनंद लेगा। अतः, एक माँ जानती है कि ऐसे अनिवार्य भोजन को बच्चे के मन को भाने के लिए जितना संभव हो सके उतना स्वादिष्ट कैसे बनाया जाता है। और हाँ, वह भोजन इस तरह बनाती है कि बच्चा उसे हज़म कर सके।
इसी तरह, एक बच्चा शुरू-शुरू में धार्मिक निर्देश से जी चुरा सकता है, और एक माता या पिता यह पाए कि इस मामले पर तर्क करने की कोशिश से कोई फ़ायदा नहीं। लेकिन, बाइबल का निर्देश स्पष्ट है—माता-पिता का अपने बच्चों को बचपन से ही प्रशिक्षित करने में अपना भरसक करना ज़रूरी है। इसलिए, एक बच्चे की उसे ग्रहण करने की योग्यता को ध्यान में रखते हुए, बुद्धिमान माता-पिता धार्मिक निर्देश को इस प्रकार प्रस्तुत करते हैं कि बच्चे को वह दिलकश लगे।
प्रेममय माता-पिता अपने बच्चों को जीवन की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने की उत्साहपूर्वक बाध्यता महसूस करते हैं, और अधिकांश मामलों में कोई भी व्यक्ति एक बच्चे की ज़रूरतों को इतनी अच्छी तरह नहीं जानता जितनी की माता-पिता जानते हैं। इसके सामंजस्य में, बाइबल इस बात की पुष्टि करती है कि भौतिक, साथ ही आध्यात्मिक रूप से प्रबंध करने की मुख्य बाध्यता माता-पिता के कंधों पर है—ख़ासकर पिता के। (इफिसियों ६:४) अतः, माता-पिता को किसी दूसरे पर अपना दायित्व डालने की कोशिश करने के द्वारा अपनी ज़िम्मेदारी को टालना नहीं है। हालाँकि वे दी गई मदद का फ़ायदा उठा सकते हैं, यह अतिरिक्त मदद होगी न कि माता-पिता के धार्मिक शिक्षण की जगह लेगी।—१ तीमुथियुस ५:८.
जीवन के किसी मोड़ पर, प्रत्येक व्यक्ति चुनाव करता है कि यदि वह एक धार्मिक विश्वास का पालन करेगा तो वह कौन-सा होगा। यदि मसीही माता-पिता अपने बच्चों को बचपन से धार्मिक निर्देश देने की व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी लेते हैं और यदि वे इस समय का प्रयोग उनके साथ उचित सिद्धान्तों पर तर्क करने के लिए करते हैं, तो इसकी संभावना ज़्यादा है कि उनके बच्चे जो चुनाव करेंगे वे सही होंगे।—२ इतिहास ३४:१, २; नीतिवचन २:१-९.
[पेज 14 पर तसवीर]
The Doré Bible Illustrations/Dover Publications, Inc.