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  • सजग होइए!–1997
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सजग होइए!–1997
g97 4/8 पेज 31

हृदय से एक पुकार

मई ८, १९९६ की सजग होइए! में गोद लेने के विषय पर लेखों की एक श्रंखला थी। संसार-भर से पाठकों से मिली प्रतिक्रिया को देखकर हमें सुखद आश्‍चर्य हुआ है। निम्नलिखित चिट्ठी ख़ास तौर पर दिल छूनेवाली थी।

“मैं यह कहने पर मजबूर हूँ कि हममें से अनेक जिन्होंने अपने बच्चों को दे दिया, वास्तव में उन्हें रखना चाहते थे। मैं एक अविवाहित किशोरी थी, और तब भी स्कूल में पढ़ रही थी। जैसे ही मेरे माता-पिता को मालूम पड़ा कि मैं गर्भवती थी, तो उन्होंने मुझे बताया कि मुझे अपने हित से पहले बच्चे का हित रखना चाहिए और उसे गोद लिए जाने के लिए दे देना चाहिए। मुझसे कहा गया कि ‘एक बच्चे को माता और पिता दोनों की ज़रूरत होती है,’ जो मैं नहीं दे सकती थी। मेरे माता-पिता नहीं चाहते थे कि मैं बच्चे को रखूँ—अगर मेरे पास एक बच्चा होता तो उनके घर में मेरे लिए कोई स्थान नहीं था। मैं क्या कर सकती थी? उन्होंने तर्क किया: ‘तुम्हारी आज़ादी छीन लेने के लिए तुम्हें अपने बच्चे पर गुस्सा आएगा।’

“जैसे ही मेरी गर्भावस्था स्पष्ट दिखने लगी, मुझे स्कूल से निकाल लिया गया और किसी संबंधी के पास रहने के लिए भेज दिया गया। जब मैंने घर छोड़ा, मैं जानती थी कि मुझे वहाँ तब तक वापस नहीं लिया जाएगा जब तक मेरी गर्भावस्था पूरी नहीं हो जाती और मैं अपने बच्चे को दे नहीं देती।

“मैं अविवाहित माताओं के आश्रम में भेज दी गयी। जब समाज-सेवी ने मुझसे पूछा कि क्या मैं सचमुच बच्चे को गोद देना चाहती थी, तो मुझे पता था कि वह यह नहीं समझ रही थी कि मेरे पास कोई और चारा नहीं है। मैं अपने बच्चे को अपने पास रखना चाहती थी! मैं हमेशा उसे हँसता हुआ और ख़ुश देखने के लिए लालायित रही हूँ। आपके पाठकों को यह जानने की ज़रूरत है कि अनेक जन्म देनेवाली माताएँ मेरी तरह महसूस करती हैं।

“मुझे और कोई सही रास्ता नहीं सुझाया गया था। सो मैं ने वही किया जो मुझसे कहा गया कि बच्चे के ‘हित’ में था। तब से मैं एक गहरी चोट खाए हुए जी रही हूँ। मुझे यह विचार सताता है कि मेरा बेटा सोचता होगा कि मुझे उसकी कभी कोई परवाह नहीं थी और कि मैं उसे नहीं चाहती थी।

“अब, एक मसीही के नाते, मैं हमेशा ज़्यादा कठिन स्थितियों के बारे में बाइबल की सलाह की क़दर करती हूँ। ऐसी कठिन स्थितियाँ जो हम परमेश्‍वर के वचन को जीवन में लागू न करने की वजह से अपने आप पर लाते हैं। यह सांसारिक सोच-विचार के पीड़ादायी और व्यापक प्रभावों को दिखाता है। लेकिन गोद लिए गए लोगों को यह जानने की ज़रूरत है कि सिर्फ़ इसलिए कि उन्हें गोद दे दिया गया था, इसका अर्थ यह नहीं है कि उनकी ज़रूरत नहीं थी। प्लीज़, उन्हें यह बताइए!”

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