युवा लोग पूछते हैं . . .
हमेशा मेरी ही ग़लती क्यों मानी जाती है?
“मेरे पापा को एलर्जी है और उन्हें ऐसे लोगों के साथ काम करना पड़ता है जो धूम्रपान करते हैं। घर लौटने पर वह कभी-कभी बहुत परेशान-से होते हैं। चीज़ें खो बैठते हैं और दोष मुझ पर लगाते हैं। जब मैं उनसे कहती हूँ कि उनकी ग़लती थी, तब वह ग़ुस्सा हो जाते हैं और कहते हैं कि मुझे ज़ुबान नहीं चलानी चाहिए।”—एक किशोरी।
क्या आप कभी-कभी महसूस करते हैं कि घर में बलि का बकरा आप ही हैं? क्या ऐसा लगता है कि हर बात का दोष आपके मत्थे मढ़ा जाता है? १४-वर्षीय जयाa को ऐसा लगता है। वह एक-जनक घराने में रहती है और प्रायः अपने छोटे भाई और बहन को सँभालती है। “मेरी नज़र हटी नहीं कि वे झगड़ने लगते हैं,” जया शिकायत करती है। “वे इतनी बेवकूफ़ी और नासमझी के काम करते हैं, लेकिन घर लौटने पर पापा मुझे ही डाँटते हैं कि मैंने उन्हें क्यों नहीं रोका।”
यदि आपके माता-पिता आपको बिगड़ा हुआ, आलसी, या ग़ैर-ज़िम्मेदार कहते हैं, या आपकी कमियों को उछालनेवाले दूसरे नाम देते हैं जिनसे महसूस होता है कि आप एकदम निखट्टू हैं, तो कभी-कभी ऐसा भी लग सकता है मानो वे सोच बैठे हैं कि आप ग़लती करेंगे ही। रमन के घरवालों ने उसे सनकी प्रोफ़ॆसर का ख़िताब दे दिया—ऐसा नाम जिससे वह बड़ा खिजता था। आपको भी शायद ऐसे नाम या ख़िताब से खिज मचती हो जो आपकी कमियों को उजागर करता है, चाहे वह नाम प्यार से ही क्यों न दिया गया हो। आपको सुधरने का मनोबल देने के बजाय, नकारात्मक ख़िताब आपके अंदर यह भावना पक्की कर सकता है कि दोष हमेशा आपका ही होता है।
जब लगता है कि पक्षपात के कारण दोष लगाया गया है तब ज़्यादा ही चोट पहुँच सकती है। “मैं मँझला हूँ,” फ्रैंकी नाम का एक किशोर कहता है, “और हमेशा मेरे साथ ही नाइंसाफ़ी होती है।” ऐसा लग सकता है कि आपके छोटे भाई-बहनों पर तो कभी उँगली उठ नहीं सकती, और आप हैं जो हर छोटी-बड़ी ग़लती के ज़िम्मेदार ठहराए जाते हैं।
माता-पिता दोष क्यों लगाते हैं
जब बच्चे ग़लती करते हैं तब माता-पिता का उन्हें सुधारना कोई अजीब बात नहीं। हितकर, सकारात्मक सुधार देना परमेश्वर का भय रखनेवाले माता-पिताओं द्वारा अपने बच्चों को “प्रभु की शिक्षा और अनुशासन में” पालने का एक तरीक़ा है। (इफिसियों ६:४, NHT) लेकिन, कभी-कभी अच्छे-से-अच्छे माता-पिता भी ज़्यादा ही भड़क सकते हैं, और तो और ग़लत निष्कर्ष पर कूद सकते हैं। यीशु के बचपन की एक घटना याद कीजिए। इस अवसर पर, यीशु लापता था। बाद में पता चला कि वह परमेश्वर के मंदिर में बाइबल चर्चा कर रहा था। फिर भी, जब उसके माता-पिता ने उसे ढूँढ़ निकाला, तब उसकी माँ ने पूछा: “हे पुत्र, तू ने हम से क्यों ऐसा व्यवहार किया? देख, तेरा पिता और मैं कुढ़ते हुए तुझे ढूंढ़ते थे।”—लूका २:४८.
चूँकि यीशु परिपूर्ण था, यह सोचकर डरने का कोई कारण नहीं था कि वह किसी ग़लत काम में फँस गया होगा। लेकिन सभी प्रेममय माता-पिताओं की तरह, उसकी माँ ने ख़ुद को अपने बच्चे के लिए ज़िम्मेदार समझा और कड़ी प्रतिक्रिया दिखायी, संभवतः इस बात के डर से कि कहीं उसको कोई नुक़सान न पहुँचे। उसी तरह, आपके माता-पिता कभी-कभी ज़्यादा ही भड़क सकते हैं, इसलिए नहीं कि वे आपको तंग करना या सताना चाहते हैं, बल्कि इसलिए कि वे सचमुच आपकी परवाह करते हैं।
इस बात को भी समझिए कि हम “कठिन समय” में जी रहे हैं। (२ तीमुथियुस ३:१) नौकरी करना और फिर घर सँभालना, आपके माता-पिता बहुत तनाव में रहते हैं, और इस कारण आपके साथ उनके व्यवहार पर असर पड़ सकता है। (सभोपदेशक ७:७ से तुलना कीजिए।) एक मानसिक-स्वास्थ्य सेविका ने कहा: “कुछ परिवारों में, संकट आने पर माता-पिता अपना आपा खोकर बिना सोचे-समझे फ़ैसले कर सकते हैं जबकि आम तौर पर वे पक्षपात नहीं करते।”
इसकी संभावना ज़्यादा होती है कि एक-जनक अपने बच्चों पर अपना ग़ुस्सा उतारें, क्योंकि उनके पास कोई साथी नहीं होता जिसके साथ वे विचार-विमर्श कर सकें। माना, माता-पिता की निजी कुंठाओं का फल भुगतना मज़ाक नहीं है। १७-वर्षीय लूसी कहती है: “अगर मैंने कोई ग़लती की है और सज़ा मिलती है, तो ठीक है। लेकिन जब मुझे इसलिए सज़ा मिलती है कि मम्मी ख़राब मूड में हैं, तब यह सरासर अन्याय है।”
पक्षपात एक और कारण है। हालाँकि माता-पिता सामान्यतः अपने सभी बच्चों से प्रेम करते हैं, फिर भी किसी एक बच्चे की ओर उनका ख़ास रुझान होना अजीब नहीं।b (उत्पत्ति ३७:३ से तुलना कीजिए।) यह भावना उठना कि आपसे उतना प्रेम नहीं किया जाता अपने आपमें दुःखद है। लेकिन यदि ऐसा लगता है कि आपकी ज़रूरतों को नज़रअंदाज़ किया जा रहा है या अकसर आपके ऊपर उन बातों का दोष लगाया जाता है जो आपके छोटे भाई-बहनों ने की हैं, तो निश्चित ही चिढ़ मचेगी। “वह मेरा भाई है, डैरन,” युवा रॉक्सैन कहती है। “वह मम्मी का नन्हा फ़रिश्ता है। . . . वह हमेशा मुझ पर दोष लगाती हैं, डैरन पर कभी नहीं लगातीं।”
समस्या-ग्रस्त परिवार
सुखी परिवारों में पक्षपात के कारण दोष शायद कभी-कभार ही लगाया जाए। लेकिन समस्या-ग्रस्त परिवारों में दोष लगाना, शर्मिंदा करना, और अपमान करना माता-पिता का आए दिन का ढर्रा हो सकता है। कभी-कभी तो दोष के साथ-साथ “कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा” भी की जाती है।—इफिसियों ४:३१.
जब माता-पिता ऐसी भड़ास निकालते हैं तब क्या एक युवा को दोष दिया जा सकता है? यह सच है कि अवज्ञाकारी पुत्र या पुत्री माता-पिता के लिए ‘दुख का कारण’ हो सकते हैं। (नीतिवचन १७:२५, NHT) लेकिन, माता-पिताओं से बाइबल यह कहती है: “अपने बच्चों को रिस न दिलाओ [अक्षरशः, “क्रोध न भड़काओ”]।” (इफिसियों ६:४) सभी मसीहियों के जैसे ही, माता-पिता को आत्म-संयम रखना चाहिए, “सहनशील” होना चाहिए। (२ तीमुथियुस २:२४) सो जब माता-पिता आत्म-संयम खो देते हैं, तब वे इसका दोष अपने बच्चे की कमियों पर नहीं लगा सकते।
गालियाँ देना इसका सबूत हो सकता है कि माता-पिता भावात्मक व्यथा, हताशा, या निम्न आत्म-सम्मान से पीड़ित हैं। यह वैवाहिक व्यथा या मद्यव्यसनता जैसी समस्याओं का भी संकेत दे सकता है। एक सूत्र के अनुसार, व्यसनी माता-पिताओं के बच्चों को अकसर बलि का बकरा बनाया जाता है। “उनका कोई काम ठीक नहीं है। उन्हें ‘बेवकूफ़,’ ‘बदमाश,’ ‘स्वार्थी’ इत्यादि कहा जा सकता है। फिर परिवार के सदस्य उस बच्चे (या बच्चों) को ‘समस्या’ समझने लगते हैं और अपनी ख़ुद की उलझी भावनाओं और समस्याओं पर से उनका ध्यान हट जाता है।”
अनुचित दोष से निपटना
डॉ. कैथलीन मॆकॉय कहती है: “बच्चे के व्यक्तित्व को नाम देना, छोटा दिखाना, या उसकी आलोचना करना . . . किशोर के निम्न आत्म-सम्मान, हताशा और अंतर्मुखी होने का एक कारण हो सकता है।” या जैसे स्वयं बाइबल कहती है, कठोर व्यवहार से बच्चे “तंग” हो सकते हैं और उनका “साहस टूट” सकता है। (कुलुस्सियों ३:२१) आप यह सोचना शुरू कर सकते हैं कि आप एकदम निकम्मे हैं। आप अपने माता-पिता के प्रति नकारात्मक भावनाएँ भी उत्पन्न कर सकते हैं। आप यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि आप उन्हें प्रसन्न करने के लिए कुछ नहीं कर सकते और कोशिश करने से कोई लाभ नहीं। क्रोध और चिढ़ घर कर सकते हैं, जिसके कारण आप कोई अनुशासन नहीं स्वीकार करते—हितकर आलोचना भी नहीं।—नीतिवचन ५:१२ से तुलना कीजिए।
आप कैसे निपट सकते हैं? काफ़ी कुछ आपकी व्यक्तिगत स्थिति पर निर्भर करेगा। क्यों न रुककर उसे यथार्थ के दर्पण में देखें? उदाहरण के लिए, क्या यह सचमुच सही है कि हमेशा आपको दोष दिया जाता है? या क्या बस इतना है कि आपके माता-पिता कभी-कभी कुछ ज़्यादा ही आलोचना करते हैं और ग़लत बात कह देते हैं? “हम सब बहुत बार चूक जाते हैं,” बाइबल कहती है, और इसमें माता-पिता सम्मिलित हैं। (याकूब ३:२) सो यदि आपके माता-पिता कभी-कभार कुछ ज़्यादा ही भड़क जाते हैं तो क्या इसका अर्थ है कि आप भी भड़क जाएँ? कुलुस्सियों ३:१३ में बाइबल की सलाह ठीक बैठ सकती है: “यदि किसी को किसी पर दोष देने का कोई कारण हो, तो एक दूसरे की सह लो, और एक दूसरे के अपराध क्षमा करो: जैसे प्रभु ने तुम्हारे अपराध क्षमा किए, वैसे ही तुम भी करो।”
अपने माता-पिता के लिए हमदर्दी ऐसा करने में आपको मदद दे सकती है। नीतिवचन १९:११ कहता है: “जो मनुष्य बुद्धि से चलता है वह विलम्ब से क्रोध करता है, और अपराध को भुलाना उसको सोहता है।” यदि काम से घर लौटने पर आपके पापा ज़्यादा ही चिड़चिड़े दिखायी पड़ते हैं और आपको किसी ऐसी बात के लिए दोष देते हैं जो आपने की ही नहीं, तो क्या बात का बतंगड़ बनाने की ज़रूरत है? यह समझना कि वह शायद तनाव में हैं और थके हुए हैं आपको ‘उनका अपराध भुलाने’ में मदद दे सकता है।
लेकिन तब क्या, यदि अनुचित दोष लगाया जाना कभी-कभार का रोना नहीं है बल्कि लगातार और हमेशा की बात है? अपनी स्थिति सुधारने के तरीक़ों के बारे में एक भावी लेख चर्चा करेगा।
[फुटनोट]
a इस लेख में कुछ नाम बदल दिए गए हैं।
b वॉचटावर बाइबल एण्ड ट्रैक्ट सोसाइटी द्वारा प्रकाशित पुस्तक “युवाओं के प्रश्न—व्यावहारिक उत्तर” (अंग्रेज़ी) में पृष्ठ ५० पर, अध्याय ६ “मेरे भाई-बहन के साथ पटरी बैठाना इतना कठिन क्यों है?” देखिए।
[पेज 15 पर तसवीर]
ज़रूरी होने पर माता-पिता द्वारा सुधार-सलाह अनुचित नहीं है