किलॆमॆनजारो—अफ्रीका का सर्वोच्च शिखर
केन्या में सजग होइए! संवाददाता द्वारा
महज़ १५० वर्ष पहले, अफ्रीका का अधिकांश भीतरी भाग मानचित्र पर नहीं था। बाहरी दुनिया के लिए, यह विशाल महाद्वीप अज्ञात व रहस्यमयी था। उन अनेक कहानियों में से जो पूर्वी अफ्रीका से बाहर फैल गयी थीं, यूरोप के निवासियों को एक कहानी ख़ासकर विचित्र लगी। यह जर्मन मिशनरियों, योहानॆस रेपमॉन व योहान एल. क्राप्फ़ द्वारा दी गयी एक रिपोर्ट थी। उन्होंने दावा किया कि उन्होंने १८४८ में भूमध्य रेखा के पास एक इतना ऊँचा पहाड़ देखा जिसका शिखर हिम से श्वेत था।
उष्णकटिबंधी अफ्रीका में हिम से ढके एक पहाड़ के अस्तित्त्व की कहानी को न केवल शक की निगाह से देखा गया बल्कि इसे ठट्ठों में भी उड़ाया गया। फिर भी, एक विशाल पहाड़ के वृत्तांतों ने भूगोलज्ञों व खोजकर्ताओं की जिज्ञासा तथा रुचि को जगाया और उन्होंने अंततः मिशनरियों की रिपोर्टों को सच साबित किया। पूर्वी अफ्रीका में वाक़ई किलॆमॆनजारो नामक हिम से ढका एक ज्वालामुखीय पहाड़ था। कुछ लोगों ने समझा कि इसका अर्थ “विशालता का पहाड़” है।
अफ्रीका का “शिखर”
आज विशाल किलॆमॆनजारो अपनी स्पष्ट खूबसूरती व प्रभावशाली ऊँचाई के लिए विख्यात है। शायद ही कोई दृश्य इतना मनोहर व स्मरणीय हो जितना कि अफ्रीका के सूखे, धूल-भरे मैदानों में चरते हुए जा रहे हाथियों का झुंड और दूर प्रभावशाली पृष्ठभूमि में ऐश्वर्यशाली रूप से छाया हुआ हिमशिखरीय “किलॆ”।
किलॆमॆनजारो अफ्रीका महाद्वीप का सबसे ऊँचा पहाड़ है और इसकी गिनती संसार के सबसे बड़े निष्क्रिय ज्वालामुखियों में होती है। यह तंज़ानिया में, भूमध्य रेखा के ठीक दक्षिण व केन्या की सीमा-रेखा की बग़ल में है। यहाँ धरती ने चार सौ करोड़ क्यूबिक मीटर से भी अधिक ज्वालामुखीय पदार्थ उगले हैं, जिससे बादलों को छूता यह पहाड़ बना है।
इस पहाड़ का विशाल आकार इसके पृथक् होने की वज़ह से और बड़ा दिखता है। अकेले व अलग खड़ा, यह समुद्र तल से ९०० मीटर ऊपर स्थित, अति शुष्क मासाई जंगल क्षेत्र से उठकर ५,८९५ मीटर की विशाल ऊँचाई को छूता है! इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि किलॆमॆनजारो को कभी-कभी अफ्रीका के शिखर के रूप में वर्णन किया गया है।
किलॆमॆनजारो “कारवाँ का पहाड़” भी कहलाता था, क्योंकि एक चमकदार लाइटहाउस की तरह, इसके बड़े-बड़े हिम क्षेत्रों व ग्लेशियरों को किसी भी दिशा में सैकड़ों किलोमीटर दूर तक देखा जा सकता है। बीती सदियों में इसकी बर्फ़ीली चोटी ने कारवाँ को अकसर मार्ग दिखाया है। हाथी दाँत, सोना व दासों को लेकर ये कारवाँ अफ्रीका के वन्य भीतरी भाग से बाहर निकला करते थे।
इसकी प्रभावशाली चोटियाँ
किलॆमॆनजारो दो ज्वालामुखीय शिखरों से बना है। कीबो मुख्य ज्वालामुखीय चोटी है; इसका खूबसूरत समानुपाती शंकु स्थायी बर्फ़ व हिम से ढका होता है। पूर्व की ओर मावॆनज़ी नामक दूसरी चोटी है, जिसकी ऊँचाई ५,१५० मीटर है तथा यह कीबो व केन्या पहाड़ के बाद अफ्रीका की तीसरी सबसे ऊँची चोटी है। कीबो के कोमल, ढलानवाले किनारों की विषमता में, मावॆनज़ी ऊबड़-खाबड़ व खूबसूरती से नक्काशी हुई चोटी है, जिसके चारों ओर खड़ी खुरदरी चट्टानी दीवारें हैं। कीबो व मावॆनज़ी की चोटियाँ ४,६०० मीटर की ऊँचाई पर चट्टानों से छितरे हुए एक विशाल, ढलानवाले मैदान से जुड़ी हुई हैं। कीबो के पश्चिम की ओर शीरा है, जो एक पुराने ज्वालामुखी के समतल हुए ढेर का अवशेष है और यह काफ़ी समय से हवा-पानी से क्षय हो गया है। अब यह समुद्र तल से ४,००० मीटर ऊपर एक विस्मयकारी बंजर भूमि पठार है।
एक पारिस्थितिक श्रेष्ठ कृति
किलॆमॆनजारो का पारितंत्र ऊँचाई, वर्षा, व वनस्पति द्वारा निर्धारित विभिन्न कटिबंधों से बना है। निचली ढलानें आदिम उष्णकटिबंधी वनों से भरी हैं जिनमें हाथियों व अफ्रीकी भैंसों के झुंड घूमते-फिरते हैं। बंदरों की कई जातियाँ वनों के ऊपरी भागों में रहती हैं, और आगंतुक को कभी-कभार शर्मीले पहाड़ी बुशबक व डिकर मृग की हलकी-सी झलक मिल सकती है, जो घने झाड़-झंखाड़ों में आसानी से ओझल हो जाते हैं।
वन के ऊपर हीदर कटिबंध है। वायु व समय की कठोरता से टेढ़े-मेढ़े हुए पुराने गाँठदार पेड़, शैवाक की लड़ियों से ढके हुए हैं जो वृद्धों की लंबी सफ़ेद दाढ़ियों के समान दिखते हैं। यहाँ वृक्षों की संख्या कम है और विशालकाय हीदर फलता-फूलता है। घनी घासों के बीच छितरे हुए चटकीले रंग के फूलों के गुच्छों से पूरा क्षेत्र एक बेहद खूबसूरत नज़ारा बन जाता है।
वृक्ष सीमा से भी ऊपर, बंजर भूमि नज़र आती है। वृक्षों की जगह चार मीटर की ऊँचाई तक बढ़नेवाले विशालकाय ग्राउंडसॆल्स नामक अजीबोग़रीब दिखनेवाले पौधों ने, व बड़े पत्तागोभी या आर्टीचोक के समान दिखनेवाले लोबेलिया ने ले ली। निकले हुए पत्थरों व चट्टानों के चारों तरफ़ एवरलास्टिंग फूल खिलते हैं, जो पुआल-सरीखे तथा ख़ुश्क होते हैं। ये एवरलास्टिंग फूल इस अन्यथा रुपहले-धूसर-से दिखनेवाले प्राकृतिक दृश्य में कुछ जान डाल देते हैं।
और भी ऊँचाई पर, बंजर भूमि के बाद आल्पीय कटिबंध है। इस भूभाग का रंग फीका व रंगत गहरी भूरी व धूसर है। इस कम हलके, शुष्क वातावरण में बहुत ही कम पौधे जड़ पकड़ पाते हैं। इस स्थान पर, ये दो मुख्य चोटियाँ, कीबो व मावॆनज़ी, भूमि की एक बड़ी पर्वत-माला द्वारा जुड़ी हुई हैं। यह बड़ी पर्वत-माला एक उच्च-रेगिस्तान है, तथा शुष्क व चट्टानी है। यहाँ का तापमान आत्यंतिक है, दिन में ३८ डिग्री सेलसियस तक चढ़ जाता है व रात को हिमांक से काफ़ी नीचे गिर जाता है।
आख़िर में हम शिखर कटिबंध पर पहुँचते हैं। यहाँ की हवा ठंडी व साफ़ है। गहरे-नीले अंबर की पृष्ठभूमि में, बड़े-बड़े ग्लेशियर व हिम क्षेत्र, श्वेत व साफ़ दिखते हैं, जो पर्वत के धूमिल भूभाग की खूबसूरत विषमता में है। हवा ज़्यादा हलकी है व इसमें समुद्र तल पर पायी जानेवाली ऑक्सीजन मात्रा की लगभग आधी मात्रा है। कीबो के सपाट शिखर पर ज्वालामुखी का मुँह है, जो तक़रीबन पूरा-पूरा गोल है तथा इसका व्यास २.५ किलोमीटर है। मुँह के अंदर पहाड़ के एकदम बीचोंबीच एक विशाल राख-गड्ढा है जिसका माप लंबाई में ३०० मीटर है व ज्वालामुखी के अंदर १२० मीटर की गहराई तक जाता है। छोटे-छोटे वाष्प मुखों (धूम्र छिद्रों) से गर्म-गर्म गंधकी धुआँ हौले-हौले उठकर ठंडी हवा में घुल जाता है और इस निष्क्रिय दानव के अंदर हो रही उथल-पुथल की पुष्टि करता है।
किलॆमॆनजारो के भीमकाय आकार व विस्तार की वज़ह से यह अपना वातावरण खुद बनाता है। अर्ध-शुष्क निचली भूमि के उस पार से, हिंद महासागर से अंदर की ओर बहती नम हवा, पर्वत से टकराती है और ऊपर की ओर दिशा लेती है जहाँ यह सघनित होती है तथा इससे वर्षा होती है। इससे निचली ढलान कॉफ़ी रोपण और खाद्य-पदार्थों की पैदावार के लिए उपजाऊ हो जाती है जो पहाड़ की तलहटी के चारों तरफ़ रहनेवाले लोगों की जीविका है।
“किलॆ” पर जीत हासिल करना
किलॆमॆनजारो के आस-पास रह रहे लोग अंधविश्वास में यह विश्वास करते थे कि इसकी ढलानों पर दुष्टात्माओं का डेरा है जो इसकी बर्फ़ीली चोटी पर पहुँचने की कोशिश करनेवाले किसी भी व्यक्ति को हानि पहुँचाएँगी। इस विश्वास ने इसके शिखर पर पहुँचने का प्रयास करने से स्थानीय लोगों के हाथ बाँध दिए। वर्ष १८८९ में ही जाकर दो जर्मन खोजकर्ता इस पहाड़ पर चढ़े और अफ्रीका के सबसे ऊँचे स्थान पर खड़े हुए। दूसरी चोटी, मावॆनज़ी पर, जो कि देखा जाए तो चढ़ने के लिए ज़्यादा कठिन है, १९१२ में ही जीत हासिल हो पायी।
आज अच्छी सेहतवाला कोई भी व्यक्ति किलॆमॆनजारो पर आरोहण का अनुभव कर सकता है और यह पूर्वी अफ्रीका के आगंतुकों में काफ़ी लोकप्रिय है। पहाड़ पर चढ़ने की इच्छा रखनेवाले किसी भी व्यक्ति के लिए तंज़ानिया पार्क प्राधिकारियों के पास सुव्यवस्थित प्रबंध हैं। परिधान व उपकरण किराए पर लिए जा सकते हैं। प्रशिक्षित क़ुली व मार्गदर्शी उपलब्ध हैं और पर्वतारोहण के दौरान, शुरू से अंत तक रास्ते में कई आवास-स्थान हैं जो सुविधाजनक आवास पेश करते हैं। पहाड़ पर भिन्न-भिन्न ऊँचाइयों पर अच्छी-ख़ासी झोपड़ियाँ हैं, जो आरोहक को सोने का स्थान व छत प्रदान करती हैं।
अपनी आँखों से किलॆमॆनजारो को देखने पर हम प्रभावित होते हैं और विचार करने पर मजबूर हो जाते हैं। व्यक्ति परमेश्वर के बारे में कहे गए शब्दों से तत्परता से सहमत हो सकता है: “तू . . . अपनी सामर्थ्य से पर्वतों को स्थिर करता है।” (भजन ६५:६) जी हाँ, अफ्रीका की ऊँचाई पर व अकेले, किलॆमॆनजारो महान सृष्टिकर्ता की सामर्थ के प्रभावशाली प्रमाण के तौर पर बुलंद है।
[पेज 20, 21 पर नक्शा]
(भाग को असल रूप में देखने के लिए प्रकाशन देखिए)
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