वॉचटावर ऑनलाइन लाइब्रेरी
वॉचटावर
ऑनलाइन लाइब्रेरी
हिंदी
  • बाइबल
  • प्रकाशन
  • सभाएँ
  • g97 12/8 पेज 23-25
  • मैं पक्षपात का सामना कैसे करूँ?

इस भाग के लिए कोई वीडियो नहीं है।

माफ कीजिए, वीडियो डाउनलोड नहीं हो पा रहा है।

  • मैं पक्षपात का सामना कैसे करूँ?
  • सजग होइए!–1997
  • उपशीर्षक
  • मिलते-जुलते लेख
  • अपनी ज़बान को लगाम दीजिए!
  • मक्कारी-भरी अवज्ञाकारिता
  • अलगाव का ख़तरा
  • ईर्ष्या का ख़तरा
  • मेरे भाई की तरफ़ ही हमेशा क्यों ध्यान दिया जाता है?
    सजग होइए!–1997
  • मैं अपने भाई या बहन से अलग, अपनी एक पहचान कैसे बनाऊँ?
    सजग होइए!–2004
  • मेरे माता-पिता मुझे समझते क्यों नहीं?
    युवाओं के प्रश्‍न—व्यावहारिक उत्तर
  • मेरे भाई-बहन के साथ पटरी बैठाना इतना कठिन क्यों है?
    युवाओं के प्रश्‍न—व्यावहारिक उत्तर
और देखिए
सजग होइए!–1997
g97 12/8 पेज 23-25

युवा लोग पूछते हैं . . .

मैं पक्षपात का सामना कैसे करूँ?

“मेरी बहन मुझसे दो साल छोटी है और उसी पर सारा स्नेह न्योछावर किया जाता है। . . . यह बात सही नहीं लगती।”—वीना।a

आपके भाई या बहन को जितना ज़्यादा स्नेह मिलता है, उतना ही ज़्यादा आपको शायद लगे कि आपको कोई पूछता ही नहीं। और यदि आपके किसी भाई या बहन के पास उत्कृष्ट क्षमताएँ हैं, वह गंभीर समस्याओं का सामना कर रहा है, या उसकी ऐसी रुचियाँ हैं अथवा उसमें ऐसे गुण हैं जो आपके माता-पिता से मिलते-जुलते हैं, तो आपको थोड़ा-भी स्नेह पाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ सकता है! आप इसके बारे में जितना ज़्यादा सोचते हैं, उतना ही ज़्यादा आप आहत और क्रोधित महसूस कर सकते हैं।b

लेकिन, बाइबल सावधान करती है: “क्रोध तो करो, पर पाप मत करो। अपने बिछौनों पर पड़े हुए मनन करो और शान्त रहो।” (भजन ४:४, NHT) जब आप परेशान और क्रोधित होते हैं, तब इसकी संभावना कहीं अधिक होती है कि आप कुछ ऐसा कह दें या कर दें जिसके बारे में शायद आपको बाद में पछताना पड़े। याद कीजिए कि कैन के भाई, हाबिल का परमेश्‍वर के साथ जो अच्छा संबंध था उसके कारण कैन कितना क्रोधित हुआ। परमेश्‍वर ने उसे चिताया: “पाप द्वार पर दुबका बैठा है और वह तेरी लालसा करता है, परन्तु तुझे उस पर प्रभुता करना है।” (उत्पत्ति ४:३-१६, NHT) कैन अपनी भावनाओं पर प्रभुता करने से चूक गया और परिणाम अनर्थकारी था!

सच है कि आप कैन के जैसे हत्यारे नहीं बनने जा रहे। फिर भी, पक्षपात बुरी भावनाएँ और संवेदनाएँ जगा सकता है। इसलिए ख़तरे शायद आपके द्वार पर दुबके बैठे हों! उनमें से कुछ कौन-से हैं? और आप इस स्थिति पर प्रभुता कैसे कर सकते हैं?

अपनी ज़बान को लगाम दीजिए!

जब बीना १३ साल की थी, उसे लगा कि उसके माता-पिता उसके भाई को ज़्यादा पसंद करते थे और उसके साथ नाइंसाफ़ी करते थे। वह याद करती है: “मेरी मम्मी और मैं एक दूसरे पर बहुत चीखते-चिल्लाते थे, लेकिन उससे कोई फ़ायदा नहीं होता था। न मैं सुनती थी कि वह क्या कह रही हैं, और न वह सुनती थीं कि मैं क्या कह रही हूँ, सो कोई हल नहीं निकलता था।” शायद आपने यह भी पाया हो कि चीखने-चिल्लाने से और कुछ नहीं, बस स्थिति बद से बदतर हो जाती है। इफिसियों ४:३१ कहता है: “सब प्रकार की कड़वाहट और प्रकोप और क्रोध, और कलह, और निन्दा सब बैरभाव समेत तुम से दूर की जाए।”

अपनी बात समझाने के लिए आपको चीखने की ज़रूरत नहीं। वैसे भी शांति से काम लेना अकसर ज़्यादा कारगर होता है। नीतिवचन २५:१५ कहता है: “धीरज धरने से न्यायी मनाया जाता है, और कोमल वचन हड्डी को भी तोड़ डालता है।” सो यदि आपके माता-पिता पक्षपात के दोषी जान पड़ते हैं, तो उन पर चीख-चिल्लाकर आरोप मत लगाइए। सही समय का इंतज़ार कीजिए, और फिर उनसे शांत और आदरपूर्ण ढंग से बात कीजिए।—नीतिवचन १५:२३ से तुलना कीजिए।

यदि आप अपने माता-पिता की कमियों पर ध्यान खींचते हैं या यह कहकर उनकी निंदा करते हैं कि वे कितने “नाइंसाफ़” हैं, तो वे आपसे रूठ जाएँगे अथवा अपने बचाव का रुख़ अपना लेंगे। इसके बजाय इस बात पर ध्यान खींचिए कि उनके व्यवहार से आप पर कैसा असर हुआ है। (‘आप मुझे अनदेखा करते हैं, तो मुझे बड़ी चोट पहुँचती है।’) तब वे शायद आपकी भावनाओं को ज़्यादा गंभीरता से लेने के लिए प्रेरित हों। साथ ही, “सुनने के लिये तत्पर” होइए। (याकूब १:१९) अति संभव है कि आपके माता-पिता के पास आपके भाई या बहन को ज़्यादा स्नेह दिखाने का उचित कारण हो। शायद उसे कुछ समस्याएँ हो रही हैं जिनके बारे में आप अनजान हैं।

लेकिन तब क्या यदि आप क्रोधित होने पर अकसर आपा खो बैठते हैं और उलटा-सीधा बोल पड़ते हैं? “जिस मनुष्य की आत्मा उसके वश में नहीं,” उसकी तुलना नीतिवचन २५:२८ (NHT) ऐसे नगर से करता है “जिसकी दीवारें ढह गयीं”; संभावना है कि वह अपने ही अपरिपूर्ण आवेगों तले कुचला जाए। दूसरी ओर, अपनी भावनाओं को वश में करने की क्षमता असली शक्‍ति का चिन्ह है! (नीतिवचन १६:३२) तो फिर, क्यों न अपनी भावनाएँ व्यक्‍त करने से पहले तब तक रुकें जब तक कि आप शांत न हो जाएँ, दूसरे दिन तक भी रुक सकते हैं? आप शायद पाएँ कि स्थिति से दूर हटना भी सहायक है, टहलने के लिए जा सकते हैं या कुछ व्यायाम कर सकते हैं। (नीतिवचन १७:१४) अपनी ज़बान को क़ाबू में रखने के द्वारा, आप चोट पहुँचानेवाली या बेवकूफ़ी की बात कहने से बच सकते हैं।—नीतिवचन १०:१९; १३:३; १७:२७.

मक्कारी-भरी अवज्ञाकारिता

अवज्ञाकारिता के फँदे से भी बचने की ज़रूरत है। सोलह-वर्षीया मीना ने देखा कि जब उसका छोटा भाई पारिवारिक बाइबल अध्ययन को भंग करता, तब उसे कभी सज़ा नहीं मिलती। इसे पक्षपात समझते हुए, कुंठित होकर उसने “हड़ताल” कर दी, अध्ययन में हिस्सा लेने से इनकार कर दिया। क्या आपने कभी कोई नाइंसाफ़ी महसूस करके चुप्पी साधी है अथवा असहयोग अभियान चलाया है?

यदि हाँ, तो यह समझिए कि ऐसी मक्कारी-भरी युक्‍तियाँ बाइबल की आज्ञा के विरुद्ध हैं कि अपने माता-पिता का आदर करें और उनकी आज्ञा मानें। (इफिसियों ६:१, २) इसके अलावा, अवज्ञाकारिता आपके माता-पिता के साथ आपका संबंध बिगाड़ती है। बेहतर होगा कि अपनी समस्याओं के बारे में अपने माता-पिता से बात करें। नीतिवचन २४:२६ दिखाता है कि “जो सीधा उत्तर देता है” वह दूसरों का आदर कमाता है। जब मीना ने अपनी माँ के साथ समस्या पर बात की, तब उनके मतभेद दूर हुए और स्थिति सुधरने लगी।

अलगाव का ख़तरा

पक्षपात से निपटने का एक और अहितकर तरीक़ा है अपने परिवार से दूर होना या स्नेह के लिए अविश्‍वासियों का सहारा लेना। कमल के साथ यही हुआ: “मैंने अपने आपको अपने परिवार से अलग कर लिया और स्कूल में दुनियावी दोस्त बनाकर उनका सहारा लिया। मैंने बॉयफ्रॆंड भी बनाये, पर मेरे माता-पिता को इसकी जानकारी नहीं थी। फिर मैं बहुत हताश हो गयी और मेरा अंतःकरण कचोटने लगा, क्योंकि मैं जानती थी कि जो मैं कर रही हूँ वह सही नहीं। मैं उस स्थिति से बाहर निकलना चाहती थी, लेकिन मुझे अपने माता-पिता को बताने का कोई रास्ता नहीं सूझ रहा था।”

अपने आपको अपने परिवार और संगी विश्‍वासियों से दूर करना—ख़ासकर उस समय जब आप परेशान हैं और सही तरह सोच नहीं पा रहे—ख़तरनाक है। नीतिवचन १८:१, २ चिताता है: “जो औरों से अलग हो जाता है, वह अपनी ही इच्छा पूरी करने के लिये ऐसा करता है, और सब प्रकार की खरी बुद्धि से बैर करता है।” यदि इस समय आपको अपने माता-पिता से बात करना कठिन लगता है, तो जैसे मित्र का वर्णन नीतिवचन १७:१७ में दिया गया है वैसा ही एक मसीही मित्र ढूँढ़िए: “[सच्चा] मित्र सब समयों में प्रेम रखता है, और विपत्ति के दिन भाई बन जाता है।” आम तौर पर ऐसा ‘सच्चा मित्र’ कलीसिया के प्रौढ़ सदस्यों के बीच बड़ी आसानी से मिल जाता है।

कमल को अपनी ज़रूरत के समय में ‘सच्चा मित्र’ मिल गया: “जब सर्किट ओवरसियर [सफ़री सेवक] हमारी कलीसिया में आए, तब मेरे माता-पिता ने मुझे उनके साथ काम करने का प्रोत्साहन दिया। वह और उनकी पत्नी बहुत समझदार थे, और उन्होंने मुझमें सच्ची दिलचस्पी ली। मैं खुलकर उनसे बात कर सकी। मुझे ऐसा नहीं लगा कि वे मेरी आलोचना करेंगे। उन्होंने इस बात को समझा कि एक मसीही घर में पलने-बढ़ने का यह अर्थ नहीं कि आप परिपूर्ण बन गये हैं।” कमल को उनके प्रोत्साहन और परिपक्व सलाह की ही ज़रूरत थी!—नीतिवचन १३:२०.

ईर्ष्या का ख़तरा

नीतिवचन २७:४ चिताता है: “क्रोध तो क्रूर, और प्रकोप धारा के समान होता है, परन्तु जब कोई जल उठता है, तब कौन ठहर सकता है?” माता-पिता के दुलारे भाई या बहन से ईर्ष्या और जलन के कारण कुछ युवा अविवेकी काम करने के लिए उत्तेजित हुए हैं। एक स्त्री ने स्वीकार किया: “जब मैं छोटी थी, मेरे बाल पतले, लच्छेदार और भूरे थे और मेरी बहन के सुंदर सुनहरे बाल उसकी कमर तक लटकते थे। मेरे पिताजी उसके बालों की तारीफ़ करते नहीं थकते थे। वह उसे अपनी ‘रपुनज़ॆल परी’ कहते थे। एक रात जब वह सो रही थी, तब मैंने अपनी माँ की कैंची ली, दबे पाँव उसके बिस्तर तक गयी और उसके ज़्यादा-से-ज़्यादा बाल काट डाले।”—भाई-बहनों के बीच दुश्‍मनी नहीं (अंग्रेज़ी), अडॆल फ़ाबर और इलेन माज़लिश द्वारा।

तो फिर, यह आश्‍चर्य की बात नहीं कि बाइबल में ईर्ष्या को “शरीर के” दुष्ट ‘कामों’ में गिना गया है। (गलतियों ५:१९-२१; रोमियों १:२८-३२) लेकिन, हम सब में “ईर्ष्यालु प्रवृत्ति” है। (याकूब ४:५, NHT फुटनोट) सो यदि आपके मन में अपने भाई या बहन को मुसीबत में डालने, उसे नीचा दिखाने, या किसी और तरह से उसे औक़ात में लाने की युक्‍ति आती है, तो पूरी संभावना है कि ईर्ष्या ‘द्वार पर दुबकी बैठी है,’ आप पर प्रभुता करने की कोशिश कर रही है!

यदि आप पाते हैं कि आपके अंदर ऐसी हानिकर भावनाओं का ग़ुबार भरा हुआ है तो आपको क्या करना चाहिए? पहली बात, परमेश्‍वर से उसकी आत्मा के लिए प्रार्थना करने की कोशिश कीजिए। गलतियों ५:१६ कहता है: “आत्मा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे।” (तीतुस ३:३-५ से तुलना कीजिए।) अपने भाई या बहन के प्रति अपनी सच्ची भावनाओं पर विचार करना भी मदद कर सकता है। क्या आप असल में यह कह सकते हैं कि—अपनी खीज के बावजूद—आप उसके प्रति थोड़ा-सा प्रेम महसूस नहीं करते? शास्त्र हमें बताता है कि “प्रेम डाह नहीं करता।” (१ कुरिन्थियों १३:४) सो नकारात्मक, ईर्ष्या-भड़काऊ बातों को मत सोचते रहिए। यदि उसे आपके माता-पिता से ख़ास स्नेह मिल रहा है, तो उसके आनंद में आनंद मनाने की कोशिश कीजिए।—रोमियों १२:१५ से तुलना कीजिए।

अपने माता-पिता से बातचीत करना भी इस संबंध में सहायक साबित हो सकता है। यदि वे आपको अधिक स्नेह दिखाने की ज़रूरत के बारे में विश्‍वस्त हो जाते हैं, तो इससे आपको अपने भाई-बहनों के प्रति ईर्ष्या की भावनाओं को दूर करने में बड़ी मदद मिलेगी। लेकिन तब क्या यदि घर पर स्थिति नहीं सुधरती और पक्षपात जारी रहता है? क्रोधित मत होइए, चीखिए मत, अथवा अपने माता-पिता के विरुद्ध विद्रोह मत कीजिए। मददपूर्ण, आदरपूर्ण मनोवृत्ति बनाए रखने की कोशिश कीजिए। यदि ज़रूरी हो, तो मसीही कलीसिया के अंदर प्रौढ़ लोगों का सहारा लीजिए। सबसे बढ़कर, यहोवा परमेश्‍वर के निकट आइए। भजनहार के शब्दों को याद रखिए: “मेरे माता-पिता ने तो मुझे छोड़ दिया है, परन्तु यहोवा मुझे सम्भाल लेगा।”—भजन २७:१०.

[फुटनोट]

a नाम बदल दिये गये हैं।

b सजग होइए! के नवंबर ८, १९९७ अंक में, लेख “मेरे भाई की तरफ़ ही हमेशा क्यों ध्यान दिया जाता है?” देखिए।

[पेज 24 पर तसवीर]

यह समझाना कि आप उपेक्षित महसूस करते हैं समस्या को सुलझा सकता है

    हिंदी साहित्य (1972-2025)
    लॉग-आउट
    लॉग-इन
    • हिंदी
    • दूसरों को भेजें
    • पसंदीदा सेटिंग्स
    • Copyright © 2025 Watch Tower Bible and Tract Society of Pennsylvania
    • इस्तेमाल की शर्तें
    • गोपनीयता नीति
    • गोपनीयता सेटिंग्स
    • JW.ORG
    • लॉग-इन
    दूसरों को भेजें