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हमारे पाठकों से

हितकर मनोरंजन मैं यहोवा की साक्षी बनने के लिए अध्ययन कर रही हूँ, और श्रृंखला “हितकर मनोरंजन की तलाश में हैं” (जून ८, १९९७) प्रकाशित करने के लिए आपको शुक्रिया कहना चाहती हूँ। टॆलिविज़न पर ऐसी बहुत कम चीज़ें हैं जो देखने लायक हैं, और आपने हम सबको—बूढ़े हों या जवान—बहुत अच्छी सलाह दी। मैं आशा करती हूँ कि आप हमें ऐसे विषयों पर जानकारी देते रहेंगे।

डी. डब्ल्यू., अमरीका

परमेश्‍वर मेरी मित्रता छोड़ तो नहीं देगा?  बढ़िया लेख “युवा लोग पूछते हैं . . . परमेश्‍वर मेरी मित्रता छोड़ तो नहीं देगा?” (जून ८, १९९७) के लिए मैं अपने कृपालु सृष्टिकर्ता की बहुत शुक्रगुज़ार हूँ। कुछ समय पहले, मैंने इस विषय में एक प्रश्‍नावली भरी कि मेरे कितने मित्र होंगे, और अंतिम परिणाम ने मुझे आश्‍वस्त किया कि मेरे पास हमेशा बहुत-से मित्र रहेंगे। दुःख की बात है कि यह पूरी तरह गलत निकला। फिर भी, मैं समझती हूँ कि यहोवा परमेश्‍वर ही हमारा सबसे अच्छा मित्र है। यह सच है कि यदि हम यहोवा परमेश्‍वर के मित्र नहीं हैं, तो बाकी किसी चीज़ का अर्थ नहीं रहता।

ए. टी. एम., मॆक्सिको

युवाओं में दिलचस्पी लेने के लिए शुक्रिया। लेख “युवा लोग पूछते हैं . . . परमेश्‍वर मेरी मित्रता छोड़ तो नहीं देगा?” मुझे उस समय मिला जब मुझे इसकी सबसे अधिक ज़रूरत थी। मैं बहिष्कृत किया गया था और हाल ही में बहाल किया गया हूँ। कभी-कभी मैंने एकदम अकेला महसूस किया है और अनेक संदेहों ने मुझे बेचैन किया है—एक संदेह था, क्या परमेश्‍वर मेरी सुनता है? उपशीर्षक “शरीर में एक कांटा” के नीचे दिये गये पौलुस के उदाहरण पर विचार करने के बाद, मैंने तय किया कि नियमित बाइबल अध्ययन और सच्ची प्रार्थना करके मैं यहोवा से आशीष की आस देखूँगा। एक प्रश्‍न का स्पष्ट उत्तर मिल गया है, यहोवा मेरी मित्रता छोड़ तो नहीं देगा?

जे. सी. ए., अर्जेंटीना

मधुमक्खी-पालन मैं लेख “मधुमक्खी-पालन—एक ‘मीठी’ कहानी” (जून ८, १९९७) के बारे में लिख रहा हूँ जिसमें आपने मधुमक्खियों पर संक्षेप में सही जानकारी दी है। मुझे व्याख्या, चित्रों और भावनाओं का उचित मिश्रण—जिसमें कोई त्रुटि नहीं थी—बहुत पसंद आया। यदि प्रॆस गलत या सिर्फ आधी सही जानकारी दे तो अकसर मधुमक्खी-पालक उसे नोट कर लेता है, लेकिन आपके लेख में ऐसा कुछ नहीं है। मैं एक शौकीन मधुमक्खी-पालक हूँ, और मुझे अकसर इन कीड़ों में बहुत-से लोगों से ज़्यादा ‘अच्छी समझदारी’ नज़र आती है। सो मैं यह कहना उचित समझता हूँ कि इस विषय पर जानकारी देकर आपने जीवन की सुंदरता की प्रशंसा की है, जो कि खासकर ऐसे छोटे जीवों में झलकती है।

पी. जी. एम., इटली

युवा लोग पूछते हैं . . . मैं १२ साल की हूँ। मैं स्कूल जाती हूँ और आपकी पत्रिकाओं को पढ़ने में मुझे बहुत मज़ा आता है। इन्हें पढ़ना शुरू करने से पहले, मुझे अपने से बड़े लोगों के साथ संगति करना मुश्‍किल लगता था। लेकिन सजग होइए! के “युवा लोग पूछते हैं . . . ” भाग में दिये गये लेख पढ़ने के बाद, अब मुझे यह काफी आसान लगता है। शुक्रिया!

एन. टी., रूस

हमारे पाठकों से मैं २६ सालों से सजग होइए! को नियमित रूप से पढ़ती आयी हूँ, और मैं आज भी इस पत्रिका को उतना ही पसंद करती हूँ जितना शुरू में करती थी। मैं “हमारे पाठकों से” भाग को पढ़ना कभी नहीं भूलती, क्योंकि टिप्पणियाँ अकसर मुझे प्रेरित करती हैं कि उस लेख को दोबारा पढ़ूँ। इन बढ़िया पत्रिकाओं के लिए शुक्रिया।

एम. बी., फ्रांस

हमें जितनी भी पत्रिकाएँ मिलती हैं वे सभी मुझे पसंद हैं। जून ८, १९९७, सजग होइए! (अंग्रेज़ी) में बहिष्कार के बारे में पाठकों की टिप्पणियाँ मुझे बहुत पसंद आयीं। मुझे बहिष्कृत किया गया था और अगले साल बहाल किया गया। बहुत-से लोग सोचते हैं कि यह कार्यवाही कठोर है। लेकिन असल में ऐसा नहीं है। मुझे दिया गया अनुशासन स्वीकार करना कठिन तो था लेकिन वह निश्‍चित ही कठोर नहीं था। मैं जानती हूँ कि प्राचीन मेरी मदद करने की कोशिश कर रहे थे। उनकी मदद को ठुकराने के कारण ही मुझे बहिष्कृत किया गया। बहिष्कृत होने के बाद, मुझे एहसास हुआ कि यहोवा के बिना जीवन कितना सूना है। मेरे जीवन में बहुत खालीपन था जो तब तक नहीं भरा जा सकता था जब तक कि मैं अपनी जीवन-शैली बदल नहीं लेती और यहोवा के पास लौट नहीं आती। बहिष्कार ने मुझे नम्र बनाया और दिखाया कि मुझे यहोवा और उसके संगठन की ज़रूरत है।

ए. सी., कनाडा

सजग होइए! उत्तम पत्रिका सजग होइए! के अपने अभिदान को नवीकृत कराने से चूकने के लिए मुझे क्षमा कीजिए। यह ज्ञानवर्धक, शैक्षिक, और यथार्थ पत्रिका है जिसमें प्रेरणा देनेवाले और जागरूक करनेवाले विषय होते हैं। मैं वो सभी पुराने अंक प्राप्त करना चाहती हूँ जो मुझसे छूट गये हैं। मैं एक भी नहीं छोड़ना चाहती। अज्ञानता से लड़ने में धीरज के साथ मदद देने के लिए शुक्रिया।

एन. एस., श्रीलंका

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