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सजग होइए!–1998
g98 6/8 पेज 10

भविष्य की जलवायु

हमारे वायुमंडल का प्रदूषण मनुष्यों द्वारा उत्पन्‍न की गयी पर्यावरण-संबंधी समस्याओं में से मात्र एक है। दूसरी समस्याओं में अत्यधिक वन-कटाई, पशु प्रजातियों का नाश और नदियों, झीलों और सागरों का प्रदूषण सम्मिलित है। इनमें से हरेक समस्या पर ध्यान से विचार किया गया है और उनका समाधान करने के लिए प्रस्ताव रखे गये हैं। क्योंकि समस्याएँ विश्‍वव्यापी हैं इसलिए वे विश्‍वव्यापी समाधान की माँग करती हैं। समस्याओं के बारे में और इस बारे में भी कि उनको दूर करने के लिए क्या किया जा सकता है व्यापक सहमति है। साल-के-साल, हम सुनते हैं कि कुछ किया जाना चाहिए। साल-के-साल, शायद ही कुछ किया जाता है। नीति बनानेवाले अकसर समस्याओं का रोना रोते हैं और मानते हैं कि कुछ किया जाना चाहिए। लेकिन असल में वे आगे यह कह रहे होते हैं, “हम नहीं कर सकते, अभी नहीं कर सकते।”

पहले पृथ्वी दिवस के अवसर पर, १९७० में न्यू यॉर्क सिटी में प्रदर्शनकारी एक बड़ा पोस्टर लिये हुए थे। उस पोस्टर में पृथ्वी ग्रह को “बचाओ!!” की चीख लगाते हुए दिखाया गया था। क्या कोई उस बिनती को कान देगा? परमेश्‍वर का वचन उत्तर प्रदान करता है: “तुम प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्‍ति नहीं। उसका भी प्राण निकलेगा, वह भी मिट्टी में मिल जाएगा; उसी दिन उसकी सब कल्पनाएं नाश हो जाएंगी।” (भजन १४६:३, ४) इसके बाद भजनहार सृष्टिकर्ता की ओर संकेत करता है, क्योंकि केवल उसी के पास मानवजाति की सभी जटिल समस्याओं को दूर करने की सामर्थ, बुद्धि और इच्छा है। हम पढ़ते हैं: “क्या ही धन्य वह है . . . जिसका भरोसा अपने परमेश्‍वर यहोवा पर है। वह आकाश और पृथ्वी और समुद्र और उन में जो कुछ है, सब का कर्त्ता है।”—भजन १४६:५, ६.

सृष्टिकर्ता की प्रेममय प्रतिज्ञा

पृथ्वी परमेश्‍वर की ओर से वरदान है। उसने इसकी अभिकल्पना और रचना की, साथ ही सभी जटिल और अद्‌भुत तंत्र बनाये जो पृथ्वी की जलवायु को सुखद बनाते हैं। (भजन ११५:१५, १६) बाइबल कहती है: “[परमेश्‍वर] ने पृथ्वी को अपनी सामर्थ से बनाया, उस ने जगत को अपनी बुद्धि से स्थिर किया, और आकाश को अपनी प्रवीणता से तान दिया है। जब वह बोलता है तब आकाश में जल का बड़ा शब्द होता है, और पृथ्वी की छोर से वह कुहरे को उठाता है। वह वर्षा के लिये बिजली चमकाता, और अपने भण्डार में से पवन चलाता है।”—यिर्मयाह १०:१२, १३.

मानवजाति के लिए सृष्टिकर्ता के प्रेम का वर्णन प्रेरित पौलुस ने प्राचीन लुस्त्रा के लोगों से किया। उसने कहा: “[परमेश्‍वर] ने अपने आप को बे-गवाह न छोड़ा; किन्तु वह भलाई करता रहा, और आकाश से वर्षा और फलवन्त ऋतु देकर, तुम्हारे मन को भोजन और आनन्द से भरता रहा।”—प्रेरितों १४:१७.

इस ग्रह का भविष्य मनुष्यों के प्रयासों और संधियों पर निर्भर नहीं। जिसके पास जलवायु को नियंत्रित करने की सामर्थ है उसने इसके बारे में अपने प्राचीन लोगों से प्रतिज्ञा की: “मैं तुम्हारे लिये समय समय पर मेंह बरसाऊंगा, तथा भूमि अपनी उपज उपजाएगी, और मैदान के वृक्ष अपने अपने फल दिया करेंगे।” (लैव्यव्यवस्था २६:४) जल्द ही पृथ्वी भर में लोग ऐसी परिस्थितियों का आनंद लेंगे। फिर कभी आज्ञाकारी मनुष्यों को विनाशकारी बवंडर, समुद्री तूफान, बाढ़, सूखा या किसी अन्य प्राकृतिक विपदा का भय नहीं होगा।

लहरें, मौसम, बहती हवाएँ दिल को खुश कर देंगी। लोग शायद तब भी मौसम की बात करें, लेकिन वे उसके बारे में कुछ करेंगे नहीं। परमेश्‍वर जो भविष्य लाएगा, उसमें जीवन इतना सुखमय होगा कि उन्हें कुछ करने की ज़रूरत ही नहीं होगी।

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